MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:52 PM,
#82
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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दरवाजे पर मेहुल खड़ा था. मैने उसे देखा तो, मैं उठ कर खड़ा हो गया. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, वो मेरे पहुचने से पहले ही वापस क्यो आ गया है. उसे इस तरह देख कर मुझे कुछ घबराहट भी हो रही थी. मैं तुरंत अपनी जगह से उठ कर उसके पास गया और उस से पुछ्ने लगा.

मैं बोला "तू अभी इतने समय यहाँ कैसे. मैं तो आने ही वाला था. फिर तुझे आने की इतनी जल्दी क्या पड़ी थी."

मेहुल बोला "मैं कहाँ आना चाहता था. वो तो अंकल (पापा) वहाँ पहुच गये और उन्हो ने मुझसे कहा कि, वो तुम्हारे वहाँ आने तक, वहीं रुकेगे, इसलिए अब मैं घर जाकर आराम कर लूँ. अब मैं उनकी बात को कैसे काट सकता था. मुझे मजबूरी मे यहाँ आना ही पड़ा."

मैं बोला "चल जाने दे. मैं तो जा ही रहा हूँ. तू ये बता कि, तुझे वहाँ रुकने मे कोई तकलीफ़ तो नही हुई."

मेहुल बोला "मुझे क्या तकलीफ़ होना थी. मैं तो रात को 1 बजे के बाद बैठे बैठे ही सो गया था. फिर सीधे सुबह 6 बजे ही मेरी नींद खुली और 7 बजे अंकल आ गये तो, मैं यहाँ आ गया."

मैने मन मे सोचा "मैं साला यहाँ घर मे होते हुए भी रात भर जागता रहा और ये वहाँ हॉस्पिटल मे होकर रात भर आराम से सोता रहा." ये सोचते हुए मैने, मेहुल पर झुझलाते हुए कहा.

मैं बोला "तू हॉस्पिटल मे सोने के लिए रुका था, या अंकल की देख भाल करने के लिए. यदि तुझे सोना ही था तो, तू यहाँ घर मे रुक जाता. मैं हॉस्पिटल मे रह जाता."

मेहुल बोला "अबे इतना भड़क क्यों रहा है. मैं कौन सी अपनी मर्ज़ी से सो रहा था. पापा ही बोले थे कि, जब मैं सो जाउ तो, तुम भी सो जाना. मुझे यदि ज़रूरत होगी तो, मैं तुम्हे जगा लूँगा. अब क्या मैं उनकी बात भी नही मानता."

मैं बोला "वा मेरे लाल. बहुत आग्याकारी बन गया है. सीधे से कहता क्यो नही कि, तेरे से रात भर वहाँ जगा नही गया है."

मेहुल बोला "अब तुझे जो समझना है. तू समझता रह. मुझे तो अब नींद आ रही है. मैं अपने कमरे मे जाकर आराम से सोता हूँ."

मैं बोला "रात भर सोने के बाद भी, अभी तेरी नींद पूरी नही हुई है."

मेहुल बोला "अबे तुझे ताने मारने के सिवा कोई काम नही है क्या. जब देखो तब, मुझ पर बरसता ही रहता है. क्या कुर्सी मे बैठे बैठे सोने से भी कभी नींद पूरी होती है. नींद तो बिस्तर पर सोने से पूरी होती है. साला रात भर कुर्सी मे बैठे बैठे मेरी तो कमर ही दुखने लगी है. मैं तुझसे कोई बेकार की बहस करना नही चाहता. मैं तेरे से सिर्फ़ इतना बताने आया था कि, मैं हॉस्पिटल से आ गया हूँ. अब तुझे जब जाना हो, तू जा. मैं तो चला सोने."

मैं अभी उसको कुछ और बकने वाला था. लेकिन वो बिना मेरा जबाब सुने ही वापस चला गया. शायद उसे सच मे नींद आ रही थी. मेहुल के जाते ही निक्की ने मुस्कुराते हुए पुछा.

निक्की बोली "क्या आप दोनो बचपन से ही, इस तरह झगड़ते रहते है."

मैं बोला "बचपन से तो नही, मगर अब अक्सर ऐसे ही झगड़ते है."

निक्की बोली "इसकी कोई खास वजह तो होगी. तभी तो आप दोनो मे ज़्यादा बात नही होती."

मैं बोला "ऐसी कोई खास वजह नही है. बचपन मे हम दोनो कभी नही झगड़ते थे. लेकिन जब से इसने अपनी गर्लफ्रेंड के चक्कर मे. अपनी क्लास बदली है. तब से हम दोनो के बीच ऐसे ही, बात चीत होती है."

निक्की बोली "क्या आप इनके क्लास बदल लेने की वजह से नाराज़ है."

मैं बोला "नही, नाराज़ तो नही हूँ. लेकिन फिर भी ना जाने क्यो, मैं इस पर बात बात पर गुस्सा करता हूँ और ये भी चिड जाता है. जिसकी वजह से हम दोनो मे, कम ही बात होती है और यदि ज़रूरत ना हो तो, बात नही भी होती है."

निक्की बोली "इसके बाद भी आप दोनो के बीच इतना प्यार है. देख कर ताज्जुब होता है."

मैं बोला "ये कोई ताज्जुब करने की बात नही है. जिनके बीच प्यार होता है. उन्ही के बीच झगड़ा भी होता है. ऐसा ही कुछ हम दोनो के बीच भी है. हम भले ही एक दूसरे से हफ्तों बात ना करे या महीनो मिले ना. लेकिन हमारे बीच का प्यार कभी नही घटता है. हमारे घर वाले भी कभी हमारे बीच कोई भेद भाव नही करते. यही वजह थी कि, अंकल ने अपनी बीमारी की बात, मेहुल से पहले मुझे बताई थी."

निक्की बोली "यदि ऐसा है तो, फिर आपको उस दिन मेरी बात का इतना बुरा क्यो लगा."

निक्की की ये बात सुनते ही मेरा उसके उपर फिर दिमाग़ खराब हो गया. मैने गुस्से मे वहाँ से उठते हुए कहा.

मैं बोला "सॉरी, मुझे हॉस्पिटल के लिए जाने मे देर हो रही है. अब मैं निकलता हूँ."

ये कह कर मैं निक्की का जबाब सुने बिना ही वहाँ से निकल आया. शायद निक्की समझ चुकी थी कि, मैं अभी भी उस से उस बात के उपर से नाराज़ हूँ. मैने इसकी कोई परवाह नही की और मैं सीधे हॉस्पिटल आ गया. हॉस्पिटल आकर मैं उपर अंकल के पास गया.

पापा अंकल के पास ही बैठे थे. उन्हो ने देखा कि अब मैं आ चुका हूँ तो, उन्हो ने अंकल से कल आने का बताया और फिर वो बिना मुझसे बात किए चले गये. वैसे भी मेरी पापा से कम ही बात होती थी और हम दोनो एक दूसरे को ज़रा भी पसंद नही करते थे. लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए बाप बेटा का रिश्ता निभा रहे थे.

मगर आज मुझे पापा का इस समय आना कुछ समझ मे नही आया. वैसे तो वो जब से यहाँ आए थे. तब से रोज ही अंकल से मिलने आ रहे थे. फिर भी आज उनका इतनी सुबह सुबह आना मुझे कुछ अजीब सा लगा.

मगर बाद मे मैने सोचा कि, आज शायद उन्हे कोई काम होगा. इसलिए वो अंकल से सुबह जल्दी मिल कर चले गये है. ये सोच कर मैने पापा के जल्दी आने की बात को अनदेखा कर दिया और अंकल से उनकी तबीयत के बारे मे पुच्छने लगा.

अंकल से ये ही सब बातें करते करते 10 बज गये. मैं कुछ देर के लिए नीचे जाने की सोच ही रहा था. तभी दादा जी आ गये. उन्हो ने बताया कि, वो राज के साथ आए है. मेरी उन से एक दो बातें हुई और फिर मैं नीचे आ गया.

नीचे राज अकेला बैठा था. मैने उसे देखते ही उस से कहा.

मैं बोला "तुम्हे इतनी जल्दी आने की क्या ज़रूरत थी. आराम से खाना वाना खा कर आना चाहिए था."

राज बोला "मेरी तो खाना देर से खाने की आदत है. वैसे भी वो और मेहुल बारी बारी से खाना खाने जाते है. मेहुल 12 बजे खाना खाने जाता है और 2 बजे वापस आता है. उसके बाद मैं 2 बजे जाता हूँ और और 5 बजे आता हूँ."

मैं बोला "ठीक है. हम भी ऐसा ही कर लेगे. मगर मुझे लगता है कि, अब यहाँ दो लोगों के रुकने की ज़रूरत नही है. तुम बेकार मे ही परेशान हो रहे हो."

राज बोला "मुझे तो यहाँ रुकने मे कोई परेशान नही है. लेकिन लगता है कि, तुम्हे मेरा यहा रुकना पसंद नही है.

मैं बोला "ऐसी बात नही है. मैं सिर्फ़ इस वजह से कह रहा था कि, तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान हो रहा होगा."

राज बोला "मेरी पढ़ाई का कोई नुकसान नही हो रहा है. मैं यदि कॉलेज भी जा रहा होता तो, वहाँ भी सिर्फ़ मस्ती ही करता और यहाँ भी रुका हूँ तो, सिर्फ़ मस्ती ही कर रहा हूँ. वैसे भी यहाँ एक से बाद कर एक लड़कियाँ और नर्स है. मैं और मेहुल तो दिन भर बस इसी नज़ारे का मज़ा लेते रहते है. आज तुम भी यहाँ रुके हो तो, तुम भी इसका मज़ा ले लो."

मैं बोला "मुझे ये सब पसंद ही नही है. मैं तो अकेले मे ही मस्त रहता हूँ. हाँ कभी कोई अच्छी लड़की दिख गयी तो, उसे देख ज़रूर लेता हूँ."

राज बोला "तुम्हारी बात मेरे समझ मे नही आई. एक तरफ कह रहे हो कि, इन सब बातों से दूर रहते हो और दूसरी तरफ कह रहे हो कि, कोई अच्छी लड़की दिखी तो उसे देख लेते हो. फिर हम लोगों और तुम मे फरक क्या है."

मैं बोला "बहुत फरक है. तुम लोग हर आती जाती लड़की को देखते रहते हो और मैं सिर्फ़ अच्छी लड़कियों को देखता हूँ."

राज बोला "यार तुम्हारी ये बात ग़लत है. लड़कियाँ तो सभी अच्छी और सुंदर होती है. किसी का रंग काला भी हो तो, उस से क्या फरक पड़ता है. उनकी सुंदरता तो उनके उभरे हुए बूब्स और नितंबो मे होती है."

मैं बोला "बस यही तो फरक है. मैं ये सब नही देखता. मुझे जिस लड़की के हाव भाव और उसका चाल चलन अच्छा लगता है. मैं उसे देखता हूँ."

काफ़ी देर हम लोगों मे इसी तरह की बात चीत चलती रही. फिर 11 बजे मैं उपर अंकल के पास चला गया. मेरे जाने के बाद दादा जी घर जाने का बोल कर वहाँ से उठ गये और नीचे आ गये. उनके जाने के बाद अंकल मुझसे कहने लगे.

अंकल बोले "बेटा राज और उसके परिवार वालों ने हमारी बहुत मदद की है. यदि ये ना होते तो, हमें यहाँ बहुत परेशानी उठानी पड़ती."

मैं बोला "हाँ अंकल, आप सही बोल रहे है. सच मे राज और उसके परिवार के सभी लोग बहुत अच्छे है. सब हमारा बहुत ख़याल रखते है. लेकिन मैने राज के पापा को कभी आपके पास आते नही देखा."

अंकल बोले "नही बेटा, वो भी शाम के समय एक बार मुझसे मिलने ज़रूर आते है. वो ज़्यादा बात चीत नही करते. लेकिन फिर भी उनका व्यवहार उनके घर के बाकी लोगों की तरह ही है. शायद उन्हे किसी के साथ ज़्यादा बातें करना पसंद ही ना हो."

मैं बोला "हाँ अंकल, शायद आप ठीक ही बोल रहे है. मैने भी उन्हे कम ही बात करते देखा है और वो वेवजह की कोई बात नही करते."

मेरी अंकल से राज और राज के परिवार को लेकर बहुत देर तक बातें होती रही. फिर 12 बजे राज उपर आ गया. उसने मुझे खाना खाने घर जाने को कहा तो, मैने अंकल को बताया और फिर मैं घर के आने के लिए वहाँ से निकल गया.

मैं 12:30 बजे घर पहुचा तो खाने की तैयारी चल रही थी. मैं भी मूह हाथ धोकर खाने के लिए आ गया. मुझे खाने पर दादा जी, निक्की और मेहुल ही दिखाई दिए. रिया और प्रिया वहाँ नज़र नही आई. तब मैने दादा जी से पुछा.

मैं बोला "दादू, रिया और प्रिया दिखाई नही दे रही. क्या वो कहीं गयी है."

दादा जी बोले "वो दोनो घर मे नही है. रिया तुम्हारे पापा के साथ गयी है और प्रिया अपनी सहेली के घर गयी है."

मैं बोला "रिया पापा के साथ कहाँ गयी है."

दादा जी बोले "ये तो पता नही है. मगर कल उसकी हॉस्पिटल मे तुम्हारे पापा से किसी बात को लेकर बात चल रही थी. तभी उसने मुझसे आज उनके साथ जाने की इजाज़त माँगी थी. मैने उस से पुछा भी था कि, तुम कहाँ जा रही हो. लेकिन उस ने ये कह कर बताने से इनकार कर दिया था कि, जब उसका काम हो जाएगा. तब वो खुद ही बता देगी. इसके बाद आज सुबह जब मैं हॉस्पिटल के लिए निकल रहा था. तभी तुम्हारे पापा आए थे और वो उनके साथ चली गयी. उसने बताया भी था कि, उसे आने मे देर होगी और वो खाना बाहर ही खा लेगी."

ये कह कर दादा जी तो चुप हो गये. लेकिन उनकी इस बात ने मेरे अंदर एक तूफान मचा दिया. मुझे पापा के सुबह सुबह जल्दी, हॉस्पिटल आने की वजह समझ मे आ चुकी थी. उन का रिया के साथ जाने का प्रोग्राम पहले से ही तय था. इसलिए उन्हो ने हॉस्पिटल मे अपनी हाज़िरी पहले ही लगा दी थी.

मैं अपनी इसी सोच मे खोया हुआ था. तभी दादा जी ने कहा.

दादा जी बोले "क्या सोचने लगे बेटा. खाना खाओ."

मैं बोला "कुछ नही दादू. लेकिन ये प्रिया को तो, अब तक आ जाना चाहिए था."

दादा जी बोले "लगता है तुमको उन दोनो की कमी अखर रही है. अरे प्रिया भी बोल कर गयी है कि, उसे आने मे देर हो जाएगी. अब तुम ये सब बेकार की बातें छोड़ो और खाना खाओ."

दादा जी की बात सुन कर मैं खाना खाने लगा. लेकिन मेरा दिमाग़ सिर्फ़ पापा के उपर उलझा हुआ था. पापा का रिया के साथ होना मुझे पसंद नही आ रहा था. इस बात ने मेरे अंदर हज़ारों सवाल उठा दिए थे. आख़िर रिया पापा के साथ क्यो गयी है. भला उसे ऐसा क्या काम आ गया. जिसके लिए उसने पापा को चुना.

यही सब सोचते सोचते मैने अपना खाना ख़तम किया और अपने रूम मे आकर लेट गया. मैं अब शांति से कीर्ति से बात करना चाहता था. क्योकि मेरी सुबह से, उस से बात नही हो पाई थी. जबकि मैने उस से सुबह उठते ही बात करने का वादा किया था.

मेरे सुबह उठते ही कॉल ना करने की वजह से, शायद वो नाराज़ हो गयी थी. इसी वजह से उसका अभी तक कोई कॉल नही आया था. मैने इसलिए मैने बिना कोई देर किए हुए, कीर्ति को कॉल लगा दिया. मेरे कॉल लगते ही कीर्ति का कॉल दूसरे मोबाइल पर आने लगा.

मेरे कॉल उठाते ही कीर्ति ने कहा.

कीर्ति बोली "तुम्हे कॉल करने का अब टाइम मिल रहा है. अभी भी क्यो कॉल किया. सीधे रात को सोते समय ही कॉल करना था."

मैं बोला "यार तू समझती क्यो नही है. मुझे सच मे ही कॉल करने का समय नही मिल सका. सारे समय कोई ना कोई मेरे पास बना ही रहता है. अब मैं तुम्हे कॉल करता भी तो, कैसे करता."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ नही सुनना. तुम्हारे पास सिर्फ़ मुझसे बात करने का समय नही है. बाकी सब से बात करने का समय है."

अब मैं उसे कैसे समझाता की, मैं इधर किन किन परेशानियों मे उलझा हुआ हूँ. मैने उस से सीधे से एक बात कही.

मैं बोला "देख तू अपना लड़ना झगड़ना रात मे कर लेना. अभी मेरे पास सच मे टाइम नही है. मुझे तुझसे बहुत सी ज़रूरी बातें करना है. लेकिन मेरी तुझसे बात ही नही हो पा रही है. मगर आज रात को मैं तुझसे सारी बातें करूगा. इसलिए तुझे यदि अभी सोना हो तो, तू सो लेना. लेकिन रात को तुझे जागना पड़ेगा."

मेरी इस बात का कीर्ति पर असर पड़ा और वो अपनी बात को भूल कर, मुझसे कहने लगी.

कीर्ति बोली "क्या बात करना है. क्या अभी नही कर सकते."

मैं बोला "अभी मुझे 2 बजे फिर हॉस्पिटल वापस पहुचना है. अब 1:30 बज चुका है. तू ही सोच ऐसे मे कैसे बात हो सकती है. मैं तुझे इसी वजह से कॉल नही लगा पाया. क्योकि मैं तुझसे आराम से बात करना चाहता था. लेकिन अब लगता है कि, रात से पहले ऐसा नही हो पाएगा."

कीर्ति बोली "कोई बात नही जान. तुम इसकी ज़रा भी चिंता मत करो. मुझे तुमसे कोई शिकायत नही है. वो तो मैं तुम पर ऐसे ही गुस्सा कर रही थी."

मैं बोला "तेरा गुस्सा करना ग़लत नही है. मगर क्या करूँ. मैं इधर आकर बहुत बुरी तरह से उलझ गया हूँ. अब जब तक तुझसे सारी बात नही हो जाती. तब तक मुझे शांति नही मिलेगी."

कीर्ति बोली "जान रात को हम बात करेगे ना. तब तुम आराम से अपने दिल की हर बात कर लेना. लेकिन अभी अपना चेहरा मत उतारो. ऐसे तुम ज़रा भी अच्छे नही लगते."

मैं बोला "ठीक है. तू साथ है तो, मुझे भी किसी बात की कोई चिंता नही है. बस तू ऐसे ही मेरा साथ देती रहना."

कीर्ति बोली "मरते दम तक मैं तुम्हारा साथ देती रहूगी. अब तुम खुशी खुशी हॉस्पिटल जाओ. मैं रात को तुम्हारे कॉल का इंतजार करूगी."

मैं बोला "ओके, अब तू कॉल रख सकती है. मुऊऊऊहह."

कीर्ति बोली "जान तुम बहुत समझदार होते जा रहे हो. फोन रखवाना था तो, बिना माँगे ही क़िस्सी दे दी. हा.. हा.. हा.. मुऊऊउऊहह."

इसके बाद उसने कॉल रख दिया और मैं हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा. मैं तैयार होकर हॉस्पिटल के लिए निकलने ही वाला था. तभी मेहुल और निक्की मेरे कमरे मे आ गये. उनको एक साथ आया देख कर मुझे ज़रा भी अजीब नही लगा. मैं जानता था कि, वो दोनो क्या बात करने मेरे पास आए है.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 01:52 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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