RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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लेकिन मैं इस समय पापा की हरकतों को लेकर परेशान था. ऐसे मे मैं उनकी बात मे उलझ कर अपना दिमाग़ और ज़्यादा खराब करना नही चाहता था. इसलिए उनके कुछ कहने से पहले ही मैने उन से सीधे कहा.
मैं बोला "क्या हुआ. क्या मुझसे कोई काम है."
मेहुल बोला "हमें तुझसे ज़रूरी बात करना है."
मैं बोला "मुझे मालूम है तुझे क्या बात करनी है. लेकिन अभी मेरा हॉस्पिटल जाने का टाइम हो चुका है."
मेहुल बोला "तेरे थोड़ी देर से हॉस्पिटल पहुचने से कोई फरक नही पड़ेगा."
मैं बोला "ये मैं भी जानता हूँ. लेकिन राज को वहाँ वेट करवाना मुझे पसंद नही है. हम बाद मे भी बात कर सकते है."
मेहुल बोला "ठीक है, तू जा मैं रात को जल्दी आ जाउन्गा."
मैं बोला "तू अभी दिन मे जाग रहा है. तुझे रात को हॉस्पिटल मे नींद आएगी. यदि तू कहे तो, मैं रात को हॉस्पिटल मे रुक जाता हूँ. तू अभी दिन मे रुक जा."
मेहुल बोला "नही यार, मुझे रात को रुकने मे कोई परेशानी नही है. मैं अभी 3 बजे सो जाउन्गा और 7 बजे उठ जाउन्गा. मेरी नींद तो वैसे भी पूरी हो चुकी है. इतना और सो लेने के बाद, मुझे रात को
बिल्कुल नींद नही आएगी."
मैं बोला "ये तो अच्छी बात है. यदि तुझे सुबह की मेरी बात बुरी लगी हो तो, उसके लिए सॉरी."
मेहुल बोला "अबे ये कैसी बात कर रहा है. मैने आज तक तेरी किस बात का बुरा माना है. जो तेरी इस सड़ी सी बात का बुरा मानूँगा."
मैं बोला "मैं जानता हूँ कि, तुझे मेरी बात का बुरा नही लगा होगा. लेकिन मेरी बात का मतलब, तू समझ भी नही रहा था. मैं चाहता था कि, जब तक अंकल पूरी तरह से ठीक नही हो जाते. तब तक हम से कोई एक, उन पर हमेशा नज़र रखा रहे. मुझे ये भी मालूम है कि, डॉक्टर ने कहा है कि, अब वो पूरी तरह से ठीक है. मगर यदि हम अपनी तरफ से, कुछ दिन और सावधानी रख ले तो, इसमे क्या बुराई है. हो सकता है कि, मेरा ऐसा सोचना ग़लत हो. लेकिन जो मेरे दिल मे था. वो मैने तुझे बता दिया."
मेरी बात सुन कर मेहुल थोड़ा भावुक हो गया और उसने मुझे गले से लगा लिया और कहने लगा.
मेहुल बोला "भाई तू कभी ग़लत सोच ही नही सकता. लेकिन मेरा यकीन कर. कल मैं सोना नही चाहता था. मगर जब पापा सो गये तो, मैं भी ऐसे ही आँख बंद करके लेट गया. फिर पता ही नही चला कि मुझे कब नींद आ गयी. मगर अब से ऐसा नही होगा. हम दोनो मिलकर उनका पूरा ख़याल रखेगे. अब तुझे मुझसे कोई शिकायत नही होगी."
मैं बोला "चल जो हुआ. उसे भूल जा. तुझे मेरी बात समझ मे आ गयी. इतना ही बहुत है. अब 2 बजने वाले है और राज मेरा वहाँ वेट कर रहा होगा. इसलिए उसे ज़्यादा वेट करना ठीक नही है. मैं निकलता हूँ. तुझे रात को जितने समय भी आना हो, आ जाना. तुझे जल्दी आने की चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. मैं वहाँ हूँ."
ये कहते हुए मैने प्रिया वाला मोबाइल भी अपने साथ रख लिया. क्योकि मैं प्रिया से बात करके, पार्टी मे जाने से लेकर कल मेरे मिलने तक की सारी बातें जानना चाहता था. मोबाइल रखने के बाद मैं मेहुल और निक्की को बाइ बोल कर कमरे से बाहर निकल आया.
मैं अभी घर से बाहर निकला ही था कि, तभी मुझे प्रिया टॅक्सी से उतरते दिखी. वो इस समय ब्लॅक स्कर्ट और वाइट टॉप पहने थी. जो हमेशा की तरह ही छोटे ही थे. मैने अपने मन मे सोचा कि "ये लड़की कभी नही सुधर सकती."
प्रिया टॅक्सी से अपना समान उतार रही थी. शायद वो अपनी सहेली के साथ कुछ खरीदारी करके लौटी थी. मैं टॅक्सी के पास गया और टॅक्सी वाले से हॉस्पिटल चलने के बारे मे पुछा तो, उसने हाँ कहा. फिर मेरी प्रिया से एक दो बातें हुई और फिर मैं उसे बाइ करके हॉस्पिटल के लिए निकल गया.
मैं बिल्कुल सही समय पर हॉस्पिटल पहुच गया था. वहाँ पहुचते ही मैने राज को घर भेज दिया. फिर मैं 1 घंटे तक अंकल के पास ही बैठा रहा. उसके बाद 3 बजे मैं नीचे आया.
नीचे आकर मैने प्रिया को कॉल लगाया और उस से बातों बातों मे पार्टी से लेकर कल तक की सारी बातें पता करता रहा.
प्रिया को मुझसे बात करके अच्छा लग रहा था. उसके मन मे एक पल के लिए भी, इन बातों को लेकर ये सोच नही आई कि, मैं ये सब बातें उस से क्यों मालूम कर रहा हूँ. वो मुझे सब बातें बताती चली गयी. जब मैने उस से सारी बातें पता कर ली. तब मैने उस से बाद मे बात करने का कह कर फोन रख दिया और मैं वापस अंकल के पास आ गया.
उसके बाद 5 बजे राज आ गया. राज के आने के बाद हम दोनो बारी बारी से उपर नीचे होते रहे. जब मैं 9 बजे नीचे आया. तब मैं घर फोन लगा कर अमि, निमी, छोटी माँ और आंटी से बात करने लगा. मेरी उनसे बात चल ही रही थी. तभी 9:30 बजे मेहुल भी आ गया. उसने भी सब से बात की और फिर 10 बजे वो उपर चला गया.
उसके उपर जाने के बाद राज नीचे आया और फिर हम दोनो घर वापस आ गये. घर आकर हम सब ने एक साथ खाना खाया. जिसमे 11 बज गये. फिर सब एक दूसरे को गुड नाइट बोल कर अपने अपने कमरे मे चले गये.
आज मुझे बहुत थकान हो रही थी और रात को नींद पूरी ना होने की वजह से आँखे भी नींद से भरी हुई थी. लेकिन मुझे आज कीर्ति से बात भी करना था. इसलिए मैं बिस्तर पर लेट कर, कीर्ति के कॉल आने का वेट करने लगा. लेकिन थकान और नींद पूरी ना होने की वजह से, पता ही नही चला कि कब मेरी नींद लग गयी.
ना जाने मैं कितनी देर तक सोता रहा और फिर अचानक ही मेरी नींद खुल गयी. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी झपकी लग गयी हो. क्योकि अभी भी मेरी आँखों मे नींद भरी हुई थी. मैने अल्साते हुए टाइम देखा. लेकिन टाइम देखते ही, एक पल मे मेरी सारी नींद भाग गयी.
अभी रात के 2 बजे का टाइम हुआ था. टाइम देखने के बाद ही मैने नया वाला मोबाइल उठा कर देखा. मुझे लग रहा था कि, उसमे कीर्ति के बहुत से कॉल आए होंगे. लेकिन उसे देखते ही मुझे निराशा हुई. क्योकि उसमे कीर्ति के सिर्फ़ 2 कॉल थे और दोनो 12 बजे के पहले के थे.
मैने सोचा शायद उसने दूसरे मोबाइल पर कॉल किए होगे. ये सोच कर मैं दूसरे मोबाइल को देखने लगा. लेकिन उसमे भी कीर्ति का सिर्फ़ एक कॉल 12 बजे का था. उसके तीनो ही कॉल 12 बजे के आस पास के थे. जिस से सॉफ पता चल रहा था कि, शायद इसके बाद वो सो गयी थी.
मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि, यदि मेरी नींद लग गयी थी तो, उसे कम से कम कॉल करके मुझे जगाने की कोशिस तो करना चाहिए थी. उसके इस बर्ताव से ना जाने क्यो मुझे बहुत दुख हो रहा था.
कीर्ति के मुझे जगाने के लिए कोशिस ना करने से मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे उसे मुझसे बात करने के लिए, कोई बेचैनी नही थी. इस बात को सोचते ही मेरा दिल बैठ गया और मैं उदास हो गया. अब मेरी कीर्ति को कॉल करने की हिम्मत भी जबाब दे गयी.
फिर भी मैं उसे इस बात का अहसास तो, कराना चाहता था कि, मैं उस से बात करने के लिए रात को जागता रहा. इसलिए मैने मोबाइल पर एक छोटा सा मेसेज टाइप किया "सॉरी जान, मेरी नींद लग गयी थी." और उसे सेंड कर दिया.
लेकिन मेसेज सेंड करने के दूसरे ही पल मेरी सारी उदासी गायब हो गयी और मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा. क्योकि मेरे मेसेज भेजने के बाद ही कीर्ति का कॉल आने लगा. मगर अब मैं उस पर झूठा गुस्सा दिखाना चाहता था. इसलिए मैने कॉल नही उठाया.
उसने दो तीन बार कॉल किया पर मैं खामोशी से कॉल आते देखता रहा. जब मैने कॉल नही उठाया तब कीर्ति ने मुझे मेसेज किया.
कीर्ति का मेसेज
"तुमको पा कर अब खोना नही चाहती.
इतना खुश हो कर अब रोना नही चाहती.
ये हाल है मेरा तुम्हारे इंतजार मे.
नींद है आँखों मे पर सोना नही चाहती."
मैने मेसेज पढ़ा तो, मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी. लेकिन मैने उसके इस मेसेज का कोई जबाब नही दिया. क्योकि मैं उस से बात करना चाहता था और उसके कॉल का आने का इंतजार कर रहा था. उसके कॉल का मुझे ज़्यादा इंतजार नही करना पड़ा. उसने मेसेज करने के कुछ देर बाद ही कॉल लगा दिया.
मैने खुशी खुशी उसका कॉल उठाया और झूठा गुस्सा करते हुए कहा.
मैं बोला "क्यो कॉल लगा रही है. मैने तुझसे बात करने के लिए मेसेज नही किया था. मैने सिर्फ़ ये बताने के लिए मेसेज किया था कि, मेरी नींद लग गयी थी और अभी मैं इतने समय नींद से जागा हूँ."
अपना झूठा गुस्सा दिखाने के बाद, मैं कीर्ति के जबाब का इंतजार करने लगा. मैने सोचा था कि, कीर्ति मुझे गुस्सा होते देख कर मुझे मनाने की कोसिस कारगी. लेकिन यहा तो उल्टे लेने के देने पड़ गये. वो मुझे मनाने की जगह खुद ही गुस्सा करते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली "मैने भी तुमसे बात करने के लिए कॉल नही किया. तुम्हारा मेसेज आया था तो, ये बताने के लिए कॉल किया था कि, मैं अभी जाग रही हूँ."
मैं बोला "अब तूने बता दिया ना. अब तू फोन रख."
कीर्ति बोली "आए तुम ये मुझसे किस तरह से बात कर रहे हो. मैं तुम्हे कोई कुत्ति उत्ती समझ मे आ रही हूँ कि, जो तुम्हारे मन मे आया, बके जा रहे हो."
उसकी ये बात सुन कर तो मेरा सर ही घूम गया. मुझे लगा कि उसका पारा बहुत ज़्यादा गरम है. अब ज़्यादा मज़ाक करना बहुत महगा पड़ सकता है. इसलिए मैने अपनी कही बात को समझाते हुए कहा.
मैं बोला "मैं ऐसा कुछ नही समझ रहा हूँ. मेरे कहने का मतलब था कि, तूने अपनी बात बता दी और मैने सुन भी ली. अब तू फोन रख सकती है."
कीर्ति बोली "मैं क्यो फोन रखूं. तुमने मुझे नौकर वौकर समझ के रखा है क्या. जब तुम्हारी मर्ज़ी हो मैं फोन लगाऊ और जब तुम्हारी मर्ज़ी हो मैं फोन रख दूं. मैं कोई फोन वोन नही रखने वाली. यदि तुम्हे परेशानी है तो, तुम फोन रखो."
मैं बोला "फोन तूने लगाया है. मैं क्यो फोन रखूं. तू फोन रख."
कीर्ति बोली "मैं किसी भी हालत मे फोन नही रखुगी. फोन तो तुमको ही रखना पड़ेगा."
अब भला मैं कैसे फोन रख सकता था. मुझे तो उस से बात करना था. लेकिन अपना झूठा गुस्सा दिखा कर मैं खुद फस गया था. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला "तो फिर पकड़ी रहो फोन. क्योकि मैं भी फोन नही रखुगा."
कीर्ति बोली "ओके, मत रखो. मैं भी नही रखुगी."
इसके बाद हम दोनो ही चुप हो गये. लेकिन उसके फोन ना रखने से, मैं ये तो समझ गया था कि, वो भी मेरी तरह झूठा गुस्सा दिखा रही है. लेकिन शायद वो भी मेरी तरह यही चाहती थी कि, मैं उसे मनाऊ. मगर ना तो मैं उस से कुछ कह रहा था और ना वो कुछ कह रही थी. बस हम दोनो फोन पकड़ कर चुप चाप बैठे रहे.
कुछ देर तक तो मैं मोबाइल पकड़ कर ऐसे ही चुप बैठा रहा. लेकिन जब कीर्ति की तरफ से, बात करने की कोई पहल नही हुई. तब मैने अपना दूसरा मोबाइल उठाया और कीर्ति के पुराने मेसेज पढ़ने लगा. मगर कीर्ति को शायद इस बात का अहसास हो गया था कि, मैं कुछ कर रहा हूँ.
क्योकि उसकी तरफ से भी कुछ करने की आवाज़ आने लगी. मैने ध्यान से सुना तो ऐसा लगा. जैसे वो किसी किताब के पन्ने पलट रही हो. मैने सोचा कि, वो कोई किताब पढ़ रही है. लेकिन कुछ ही पल बाद उसके पन्ने पलटने की आवाज़ तेज हो गयी.
तब मुझे समझ मे आया कि, वो किताब नही पढ़ रही. बल्कि मोबाइल के सामने किताब को रख कर उसके पन्ने पलट कर, मुझे परेशान कर रही है. उसकी इस हरकत पर मुझे फिर हँसी आ गयी. लेकिन मैं चुप ही रहा.
मगर अचानक ही पन्ने पलटने की आवाज़ तेज हो गयी और मुझे उनकी खरखराहट से परेशानी होने लगी. तब मैने गुस्सा करते हुए कहा.
मैं बोला "ये तू मोबाइल मे खर खर क्यो कर रही है. मुझे परेशानी हो रही है."
कीर्ति बोली "मैं किताब पढ़ रही हूँ. यदि तुम्हे परेशानी हो रही है. तो तुम मोबाइल एक किनारे रख दो."
मैं बोला "ठीक है."
ये कह कर मैने मोबाइल को पलटा कर कान मे लगा लिया. ताकि उसे लगे कि मैने मोबाइल नीचे रख दिया. वो थोड़ी देर तो किताब के पन्ने पलटती रही. लेकिन जब उसे लगा कि, मैने सच मे मोबाइल नीचे रख दिया है. तब उसने ना जाने क्या सोचा और कॉल काट दिया.
मुझे लगा कि शायद वो गुस्सा हो गयी है. लेकिन दूसरे ही पल फिर से उसका कॉल आ गया. मैने कॉल उठाते हुए कहा.
मैं बोला "अब क्या है. कॉल काट कर क्यो लगा रही हो."
कीर्ति बोली "मैने कॉल नही काटा. कॉल खुद कट गया था."
मैं बोला "यदि कॉल कट गया था, तो तुझे कॉल वापस लगाने की क्या ज़रूरत थी."
कीर्ति बोली "मेरी मर्ज़ी."
मैं बोला "देख मुझे बेकार मे परेशान करना बंद कर दे."
कीर्ति बोली "मैं तुम्हे परेशान कर रही हूँ, या तुम मुझे परेशान कर रहे हो."
मैं बोला "मैने तुझे क्या परेशान किया."
कीर्ति बोली "एक तो मैं तुमसे बात करने के लिए इतनी रात तक जागती रही. उपर से तुमने कॉल उठाते ही मुझ पर गुस्सा करना शुरू कर दिया."
मैं बोला "मैं गुस्सा क्यों ना करूँ. जब मैने तुझसे कहा था कि, मुझे तुझसे रात को बात करना है. तब तूने मुझे कॉल क्यो नही लगाया."
कीर्ति बोली "ज़रा अपने मोबाइल मे देखो. मैने तुम्हे कॉल लगाया है कि नही लगाया."
मैं बोला "मुझे कुछ देखने की ज़रूरत नही है. मैं सब देख चुका हूँ. तूने मुझे सिर्फ़ 3 कॉल लगाए है और तीनो के तीनो कॉल 12 बजे के पहले के है. यदि तू जाग रही थी. तो फिर तूने मुझे
उसके बाद जगाने की कोशिस क्यो नही की थी."
मेरी इस बात का जबाब कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से दिया. उसने मुझे समझाते हुए कहा.
कीर्ति बोली "मुझे लगा कि तुम्हे थकान की वजह से नींद आ गयी है. इसलिए मैने सोचा कि तुम्हे थोड़ा सो लेने दूं. फिर 3 बजे जगा दुगी. लेकिन तुम उसके पहले ही जाग गये."
उसकी ये बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी और मैने उस से कहा.
मैं बोला "यदि तुझे मेरा इतना ही ख्याल है तो, फिर अभी वो बकवास की बात क्यो कर रही थी."
कीर्ति बोली "कौन सी बात."
मैं बोला "वही कुत्ति उठी, नौकर वौकर समझने वाली बात. मैने तुझे ऐसा कब समझा."
कीर्ति बोली "वो मैं सच मे थोड़ी ही बोल रही थी. वो तो मैं तुमको परेशान करने के लिए बोल रही थी."
मैं बोला "मैं तेरे उपर गुस्सा कर रहा था और तू मुझे मनाने की जगह मुझे और गुस्सा दिला रही थी."
कीर्ति बोली "मैं समझ गयी थी कि, तुम मेरे उपर झूठा गुस्सा दिखा रहे हो. इसलिए मैं भी तुम पर झूठा गुस्सा करने लगी."
उसकी बात सुन कर मुझे हँसी भी आई और उस पर बहुत प्यार भी आया. मैने उस से कहा.
मैं बोला "अच्छा ये बता, तू इतनी देर से जाग रही है. इतनी देर तक तू जाग कर क्या करती रही."
कीर्ति बोली "कुछ नही बस डाइयरी लिख रही थी."
मैं बोला "तू डाइयरी लिखती है और मुझे कभी बताया भी नही."
कीर्ति बोली "ये भी कोई बताने की बात है. ये तो मेरी फालतू की आदत है. जो भी उल्टा सीधा मन मे आता है. लिख देती हूँ."
मैं बोला "अभी क्या लिखा. मुझे भी पढ़ के सुना."
कीर्ति बोली "छोड़ो ना. जब यहाँ आना तो, खुद पढ़ लेना."
मैं बोला "क्या तुझे अभी पढ़ कर सुनाने मे कुछ परेशानी है."
कीर्ति बोली "परेशानी नही है मगर तुम सुनकर हँसोगे."
मैं बोला "चल मैं नही हँसुंगा. अब तो पढ़ कर सुना."
कीर्ति बोली "ठीक है, सुनाती हूँ मगर हँसना मत."
मैं बोला "ओके, अब सुना."
कीर्ति डाइयरी पढ़ने लगी
"लफ़्ज़ों की चाँदनी भी
फीकी फीकी लगती है.
आज शाम की पलक भी
भीगी भीगी लगती है.
एक तेरे ना होने के कारण
मेरे इस पागल मन को.
ये सारी की सारी दुनिया भी
सूनी सूनी लगती है."
इतना सुना कर वो चुप हो गयी. लेकिन उसकी इन लाइन को सुन कर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि, उसको इस समय मेरी कमी कितनी अखर रही है. मैने उसका दिल बहलाने के लिए कहा.
मैं बोला "मुझे तो पता ही नही था कि, तू इतना अच्छा लिखती है. भला इतना अच्छा सुनने के बाद कोई क्यो हँसेगा. चल अब आगे सुना."
कीर्ति बोली "अब आगे क्या. ये तो यही ख़तम हो गया."
मैं बोला "ये तो मुझे भी मालूम है. मेरा मतलब है कि, अब जो तूने आगे लिखा है. वो सुना."
कीर्ति बोली "अब रहने दो ना. मुझे अच्छा नही लग रहा है."
मैं बोला "लेकिन मुझे अच्छा लग रहा है. तू आगे सुना."
कीर्ति बोली "ठीक है सुनाती हूँ. लेकिन ये आख़िरी है. इसके बाद तुम और सुनने की ज़िद नही करोगे."
मैं बोला "ओके बाबा. मैं इसके बाद कोई ज़िद नही करूगा. अब तू सुना."
कीर्ति फिर पढ़ने लगी.
"किस्मत के सितारों पर,
ज़माने के इशारों पर,
उदासी के किनारों पर,
कभी वीरान शहरों पर,
कभी सुनसान राहों पर,
कभी हैरान आँखों मैं,
कभी बेजान लम्हों मैं,
तुम्हारी याद चुपके से,
जब करवट बदलती है,
ये पलकें भीग जाती हैं,
दो आँसू टूट गिरते हैं,
मैं पलकों को झुकाती हूँ,
बाहर से मुस्कुराती हूँ,
सिर्फ़ इतना ही बोल पाती हूँ,
मुझे तुम कितना सताते हो,
मुझे तुम याद आते हो,
मुझे तुम याद आते हो."
इस कविता की आख़िरी कुछ पंक्तियाँ पढ़ते पढ़ते, कीर्ति की आवाज़ भर्रा गयी थी. शायद उसकी आँखों मे आँसू आ गये थे. मैं ये बात इस लिए इतने यकीन से कह सकता हूँ, क्योकि उन्हे सुनते सुनते खुद मेरी आँखों मे नमी छा गयी थी.
मुझे उन पंक्तियों मे उसका वो उदास चेहरा नज़र आ रहा था. जो चेहरा अब तक वो मुझसे भी छुपाये रखी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसने इन थोड़ी सी पंक्तियों मे, अपने दिल का सारा दर्द निचोड़ कर रख दिया हो. उसके उस दर्द को महसूस कर, मैं अपने आँसुओं को निकलने से ना रोक सका.
कीर्ति की कविता ने अंजाने मे, मेरे अंदर की उस तड़प को हवा दे दी थी. जो उस से जुदा होने के बाद, अब तक किसी चिंगारी की तरह मेरे अंदर दबी हुई थी. मेरे अंदर जुदाई की एक ऐसी आग जल उठी थी. जिसका धुआँ आँसू बन कर मेरी आँखों से निकल रहा था.
मैं कीर्ति का नाम पुकारना चाहता था. मगर मेरे आँसुओं ने मेरे होंठों को सील दिया था. मेरी आँखें आँसुओं की बरसात किए जा रहे थी, और मेरे होंठ उन्हे पीते जा रहे थे. मुझे बस कीर्ति का उदास चेहरा दिखाई दे रहा था. जो बार बार मुझसे कह रहा था. "मुझे तुम कितना सताते हो. मुझे तुम याद आते हो, मुझे तुम याद आते हो."
मैं उस समय अपने आपको बहुत बेबस महसूस कर रहा था. अजीब सा हाल हो गया था मेरा. लेकिन जो हाल मेरा यहाँ था. शायद वही हाल, वहाँ पर कीर्ति का भी था. वो भी खामोशी से अपने आँसू रोकने की कोशिस कर रही थी. हम दोनो ही एक दूसरे से अपना दर्द छुपाने मे लगे थे.
लेकिन अचानक ही मुझे ऐसा लगा. जैसे कीर्ति उठ कर कहीं जा रही है. मेरी ये सोच मुझे तब सही लगी. जब मुझे दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. मैने भर्राई हुई आवाज़ मे उस से कहा.
मैं बोला "जान, क्या हुआ. तुम कहाँ जा रही हो."
लेकिन उसकी कोई आवाज़ नही आई. शायद वो मोबाइल कान मे नही लगाई थी. मैने फिर कहा.
मैं बोला "हेलो हेलो जान. तुम कहाँ हो. मेरी बात का जबाब क्यो नही दे रही."
लेकिन तभी मुझे कोई दूसरा दरवाजा भी खुलने की आवाज़ आई. मुझे कुछ समझ मे नही आया कि, ये इतनी रात को उठ कर कहाँ जा रही है. मैं बस हेलो हेलो कर रहा था. मगर उसकी तरफ से कोई जबाब नही आ रहा था.
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