RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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हमे बैठा कर शिल्पा चाय पानी लेने चली गयी. तब कीर्ति ने मेरे पास आकर धीरे से पुछा.
कीर्ति बोली “जान, कैसी लगी मेरी पसंद. अब तो यकीन आया कि, मैने तुम्हरे लिए सही लड़की ढूंढी है. तुम चाहो तो इसके साथ अपना चक्कर चला सकते हो. मेरी तरफ से तुम्हे पूरी छूट है.”
ये कह कर कीर्ति खिलखिलाने लगी और मैने उसे आँख दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “अपनी बकवास बंद कर, वो अभी वापस आती ही होगी.
लेकिन एक बार कीर्ति यदि अपनी शरारत पर उतर आए तो, उसे रोकना इतना आसान काम नही था. वो फिर अपने चुलबुलेपन को दोहराते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “आती है तो आ जाए, मेरी बला से. मैं तो ये बात उसके सामने भी कह दूँगी.”
ये कहते हुए कीर्ति मेरी तरफ झुकी और मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ कर मेरे गालों को चूमने लगी. कीर्ति की इस हरकत से तो, मेरी हालत और भी खराब हो गयी. मैने आनन फानन मे, उस से खुद को छुड़ाया और उस से खुद को दूर करते हुए कहा.
मैं बोला “ये क्या कर रही है. उसके घर मे कोई और भी तो हो सकता है. कोई आ गया तो, हमारे बारे क्या सोचेगा.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने मुझे आँख मारी और मुस्कुराते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली ‘डरो मत, उसके घर मे अभी कोई नही है. अब तो मैं तुम्हे प्यार करके ही रहूगी.”
ये कह कर वो बड़ी कातिल अदाओं से मुझे घूरते हुए, मेरी तरफ बढ़ने लगी. मैने गुस्से मे उसे घूरा और उस से दूर खिसक कर बैठ गया. ये देख कर वो खिलखिलाकर हँसने लगी.
तभी अंकिता चाय लेकर आ गयी. उसने हमे चाय दी और फिर खुद भी चाय लेकर हमारे साथ ही बैठ गयी.
मैं चुप चाप चाय पीने लगा. लेकिन थोड़ी ही देर बाद अंकिता ने कीर्ति को अपने साथ चलने को कहा और दोनो उठ कर, मेरे राइट साइड बने डाइनिंग रूम मे चली गयी. दोनो आपस मे धीरे धीरे बात करने लगी.
वो दोनो मुझसे बहुत ज़्यादा दूर नही थी. मगर मेरी तरफ उनकी पीठ थी. जिस वजह से वो मुझे देख नही सकती थी. लेकिन मैं उसको देख भी पा रहा था और उनके बीच चल रही बातों को भी सुन पा रहा था. लेकिन शायद उन्हे इस बात का कोई अनुमान नही था.
वो दोनो एक दूसरे से हँसी मज़ाक करने मे मस्त थी. कीर्ति चाय पीते पीते अंकिता से कह रही थी.
कीर्ति बोली “अब तो तूने मेरी पसंद को देख लिया है. अब बता मेरी पसंद कैसी है.”
अंकिता ने पिछे मुड़कर मेरी तरफ देखा. मैं खामोशी से सामने की तरफ मूह करके चाय पी रहा था. उसने मुस्कुराते हुए कीर्ति से कहा.
अंकिता बोली “तेरी पसंद तो सच मे लाखों मे एक है.”
अंकिता इसके आगे कुछ और बोल पाती, उसके पहले ही कीर्ति ने अंकिता की बात को काटते हुए कहा.
कीर्ति बोली “ओये ज़रा अपनी ज़ुबान संभाल के बोल. मेरी पसंद लाखों मे नही, दुनिया मे एक है.”
कीर्ति की बात सुनकर अंकिता हँसने लगी और कहा.
अंकिता बोली “हाँ हाँ, तेरी पसंद दुनिया मे एक है. लेकिन अपनी पसंद को ज़रा संभाल कर रखना. कही कोई दूसरा उसे, तुझसे चुरा ना ले.”
कीर्ति बोली “ये सपने देखना छोड़ दे. मेरी पसंद को चुराना इतना आसान नही है.”
अंकिता बोली “ये तो तू इसलिए कह रही है. क्योकि अभी तक उस पर, किसी खूबसूरत लड़की की नज़र नही पड़ी होगी. जिस दिन किसी खूबसूरत लड़की की नज़र उस पर पड़ गयी. तू हाथ मलती रह जाएगी.”
कीर्ति बोली “एक क्या, हज़ार खूबसूरत लड़कियों की नज़र उस पर पड़ जाए. लेकिन उसे मुझसे कोई नही चुरा सकता.”
अंकिता ने एक नज़र फिर से मेरी तरफ देखा. शायद वो ये देख रही थी कि, कही मैं उनकी बात सुन तो नही रहा हूँ. जब उसने देखा कि मेरा ध्यान उनकी तरफ नही है. तब उसने कीर्ति से कहा.
अंकिता बोली “इतना ज़्यादा भी मत इतरा. तू उसे मेरा नकली बाय्फ्रेंड बना रही है. कहीं ऐसा ना हो. उसे मैं ही चुरा लूँ.”
कीर्ति बोली “तुझे ऐसा लगता है तो, तू कोशिश करके देख ले. मेरी तरफ से तुझे पूरी छूट है.”
अंकिता बोली “एक बार अच्छे से सोच ले, बाद मे कहीं ऐसा ना हो, तुझे अपनी कही बात के लिए पछ्ताना पड़ जाए. आज कल के लड़को को तू जानती नही है. ये कपड़ो की तरह अपनी गर्लफ्रेंड बदलते है.”
कीर्ति बोली “ना मुझे कुछ सोचना है और ना ही मुझे किसी बात के लिए पछ्ताना पड़ेगा. रही बात आज कल के लड़कों की तो, मुझे किसी को जानने की कोई ज़रूरत नही है. क्योकि मुझे उस पर पूरा भरोसा है.”
अंकिता बोली “तुझे उस पर बहुत भरोसा है. लेकिन तू ये बात किस भरोसे पर कह रही है. ज़रा मैं भी तो सुनू.”
अंकिता की इस बात पर कीर्ति मुस्कुराते हुए बड़े ही विस्वास के साथ कहने लगी.
कीर्ति बोली “क्योकि वो जो कुछ भी करता है. मुझे बता कर और मुझसे पुच्छ कर ही करता है. यहाँ तक कि कल रात को 3 बजे, मैने उस से मिलने की ज़िद की और वो रात को ही मुझसे मिलने के लिए मुंबई से निकल पड़ा. सुबह मेरे सोकर उठने के पहले, वो मेरे सामने था. अब बोल क्या बोलती है तू.”
ये कह कर कीर्ति अपनी कही बात पर खिलखिलाने लगी. तब अंकिता ने कीर्ति से कहा.
अंकिता बोली “तो तू सीधे ये क्यो नही कहती कि, वो तेरा गुलाम है. तेरे पिछे तेरा चमचा बन कर जी हुजूर करता फिरता है और तेरे इशारों पर बंदर की तरह नाचता है.”
ये कह कर अंकिता भी हँसने लगी. अंकिता की ये बात, तीर की तरह मेरे दिल को चुभि थी. लेकिन फिर मैने इसे, दो सहेलियों का आपसी मज़ाक समझ कर, दिल पर नही लिया और इस बात को अपने दिमाग़ से निकाल दिया.
लेकिन अंकिता की इस बात से, कीर्ति के दिल को ज़रूर चोट पहुचि थी. उसका हसना बंद हो गया था और शायद उसका चेहरा भी उतर गया था. उसके उतरे हुए चेहरे को देख कर अंकिता ने कहा.
अंकिता बोली “ये अचानक तुझे क्या हो गया. अभी तो तू अच्छी भली हंस बोल रही थी. फिर अचानक तुझे ये क्या हो गया. तेरा चेहरा इतना उतर क्यो गया.”
लेकिन कीर्ति खामोश ही रही. उसने अंकिता की बात का कोई जबाब नही दिया. तब अंकिता ने फिर उस से पुछा.
अंकिता बोली “बता ना, तुझे अचानक ये क्या हो गया. तेरा हंसता खेलता चेहरा उतर क्यो गया. क्या मैने तुझे कोई ग़लत बात कह दी है. देख जो भी बात है खुल कर बोल दे. मुझसे तेरा ऐसा उतरा हुआ चेहरा नही देखा जा रहा है. बोल ना तुझे क्या हुआ.”
अंकिता की इस बात पर कीर्ति ने अपनी खामोशी को तोड़ा. वो बहुत ही भावुक होकर, अपनी नाराज़गी जताते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “आज तूने बहुत ग़लत बात बोल दी है. तूने उसे जो कुछ भी कहा है. वो उसके प्यार को गाली देने के बराबर है. वो मेरी जान है. वो मेरा गुलाम नही, मैं उसकी गुलाम हूँ. मैं उसके पिछे चमची बनकर घूमती हूँ और उसके इशारों पर बंदरिया की तरह नाचती हूँ. अब बोल और कुछ जानना है तुझे.”
कीर्ति की नाराज़गी को अंकिता समझ चुकी थी. उसने अपनी सफाई देते हुए कीर्ति से कहा.
अंकिता बोली “यार, तू तो ज़रा सी बात का बुरा मान गयी. मैं तो सिर्फ़ मज़ाक कर रही थी. मज़ाक मे कही बात का, इतना बुरा मानने की क्या ज़रूरत है.”
लेकिन अंकिता की ये बात सुनकर भी कीर्ति के तेवर नही बदले. उसने फिर अंकिता से कहा.
कीर्ति बोली “मज़ाक तेरा और मेरा चल रहा था. तुझे मज़ाक ही उड़ाना था तो, मेरा उड़ाती. तुझे उसका मज़ाक उड़ाने का हक़ किसने दिया.”
कीर्ति की नाराज़गी ख़तम ना होते देख, अंकिता ने बड़े ही प्यार से उसे मनाते हुए कहा.
अंकिता बोली “सॉरी यार, मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. मैं नही जानती थी कि, तू उसे इतना ज़्यादा प्यार करती है कि, उसके खिलाफ एक मज़ाक भी सहन नही कर सकती. यदि मुझे इस बात का ज़रा भी पता होता तो, मैं ऐसा मज़ाक कभी नही करती. तू इस ग़लती की मुझे जो सज़ा देना चाहे, दे दे. लेकिन मुझसे नाराज़ ना हो.”
अंकिता के इस तरह मानने से कीर्ति का दिल भी पिघल गया. लेकिन साथ साथ उसकी आँखों ने भी बरसात सुरू कर दी. वो अपने आँसू बहते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “तेरे लिए ये एक ज़रा सी बात होगी. मगर मेरे लिए तो ये डूब मरने वाली बात है कि, आज मेरी वजह से उसके प्यार का मज़ाक उड़ाया गया है. मैने बहुत बड़ी बड़ी ग़लतियाँ की है. फिर भी उसने हंसते हंसते मेरी हर ग़लती को माफ़ कर दिया. सिर्फ़ मेरी आँखों मे आँसू देख कर, वो बिना एक शब्द भी कहे, अपने सब काम छोड़ कर, मुंबई से यहाँ तक आ गया. अब यदि मेरी खुशी के लिए ये सब करने पर, उसका मज़ाक उड़ाया जाए तो, ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात नही तो और क्या है. वो मेरी जान है और मैं उसका अपमान कभी नही सह सकती.”
“लेकिन आज मैं तुझसे पुछती हूँ कि, प्यार मे यदि कोई अपने हर फ़ैसले, अपने साथी से पुच्छ कर करे तो, क्या ये गुलामी कहलाती है. क्या प्यार मे अपने साथी की बात मान कर चलने वाला चमचा कहलाता है. क्या प्यार मे समर्पण नाम की कोई चीज़ नही होती. तू बता मुझे कि सच्चा प्यार करने वाले को ये गाली क्यो सुनना पड़े.”
इतना कह कर कीर्ति खामोश हो गयी. लेकिन उसकी आँखों से आँसुओं की बरसात अभी भी हो रही थी. कीर्ति की बातों से अंकिता समझ चुकी थी की, कीर्ति के दिल पर उसकी बातों से बहुत गहरी चोट लगी है.
कीर्ति की आँखों के आसुओं से अंकिता की आँखों मे नमी पैदा कर दी थी. अंकिता ने कीर्ति के आँसू पोन्छे और उस से अपनी ग़लती मानते हुए कहा.
अंकिता बोली “सॉरी मेरी बहन, तेरा कहना ठीक है. सच्चे प्यार मे समर्पण होना बहुत ज़रूरी है. मुझसे आज सच मे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी. लेकिन मैं सच मे नही जानती थी कि, तुम दोनो मे इतना ज़्यादा प्यार है. मैं तो सिर्फ़ तुम्हे बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड समझ रही थी. यदि मुझे इस बता का ज़रा भी पता होता तो, मेरा यकीन कर, मेरे मूह से ये बात कभी मज़ाक मे भी बाहर ना निकली होती. फिर भी मुझसे ग़लती तो हुई है. इसके लिए तू मुझे जो चाहे वो सज़ा दे ले. लेकिन प्लीज़ तू मुझे अपनी बहन समझ कर माफ़ कर दे. तू कहे तो, मैं अभी इस बात के लिए पुनीत से भी माफी माँग लेती हूँ.”
ये कह कर अंकिता अपनी जगह से उठ कर खड़ी हो गयी. लेकिन कीर्ति ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया और अंकिता को मुझसे कुछ कहने से रोकते हुए कहा.
कीर्ति बोली “नही, तुझे उस से कुछ कहने की ज़रूरत नही है. तू यदि उस से माफी मगेगी तो, फिर उसे इसकी वजह भी बताना पड़ेगी. मैं नही चाहती कि, उसके दिल को तेरी किसी बात से ठेस लगे. इसलिए इस बात को यही ख़तम कर दे. अब हम लोगो को जाना है. हम लोग चलते है.”
ये कह कीर्ति भी खड़ी हो गयी. कीर्ति के मूह से अचानक ही जाने की बात सुनकर अंकिता को लगा कि, कीर्ति गुस्से मे वापस जा रही है. उसने कीर्ति को रोकते हुए कहा.
अंकिता बोली “इसका मतलब तो यही हुआ कि, तूने अभी तक मुझे उस बात के लिए माफ़ नही किया.”
कीर्ति बोली “नही, ऐसी बात नही है. मैने तुझे सच मे माफ़ कर दिया.”
अंकिता बोली “यदि तूने मुझे माफ़ कर दिया है तो, फिर थोड़ी देर और रुक जा. अभी तो मेरी पुनीत से कोई बात ही नही हुई है. वो मेरे बारे मे क्या सोचेगा कि, वो मेरे घर तक आया और मैने उस से दो बात तक नही की.”
कीर्ति बोली “वो तेरे बारे मे कुछ ग़लत नही सोचेगा. मैं उसे सब समझा दुगी. लेकिन अब हमारा रुक पाना मुस्किल है. हमे सच मे जल्दी जाना है. उसकी 6 बजे की मुंबई वापसी की फ्लाइट है और उसे अभी बहुत से लोगों से मिलना है. तू उस से फोन पर बात कर लेना. मैं तुझे उसका मोबाइल नंबर दे देती हूँ. तेरा जब मन करे उस से बात कर लेना और उसे अपने बारे मे सब खुद ही समझा देना.”
ये कह कर कीर्ति ने अंकिता को मेरा मोबाइल नंबर दे दिया. अंकिता हम लोगों को छोड़ने बाहर तक आई. बाहर आकर हम लोगों ने अंकिता को बाइ कहा और फिर घर के लिए निकल पड़े.
लेकिन कीर्ति का मूड, अंकिता के किए मज़ाक की वजह से, अभी भी खराब था. जिस वजह से, वो अभी भी खामोश ही थी. मैं उसकी इस खामोशी को तोड़ना चाहता था. लेकिन मेरी समझ मे, ये नही आ रहा था कि, मैं कीर्ति को ये बात बोलूं या ना बोलू कि, मैने उसके और अंकिता के बीच हुई सारी बात सुन ली है.
मैं इस बात से भी अंजान नही था की, उसके मन मे अभी क्या चल रहा है. वो मन ही मन इस सब के लिए खुद को दोषी मान रही थी. जबकि मैं कीर्ति के इस प्यार को देख कर, मन ही मन अपनी किस्मत पर नाज़ कर रहा था.
मगर जब कीर्ति की खामोशी मुझसे सहन नही हुई. तब मैने उस से सीधे ही कहा.
मैं बोला “इतनी सी बात को अपने दिल पर लेने की क्या ज़रूरत है. जो हुआ उसे भूल जा.”
मेरी ये बात सुनकर कीर्ति चौक गयी. उसे समझ मे नही आया कि, मैं क्या कह रहा हूँ. वो मेरे से बिल्कुल सट गयी और पुच्छने लगी.
कीर्ति बोली “मैं समझी नही. तुम किस बात की बात कर रहे हो.”
मैं बोला “अंकिता ने सिर्फ़ मज़ाक ही तो किया था. इसमे इतना बुरा मानने की क्या बात थी.”
कीर्ति को अभी भी यकीन नही आ रहा था कि, मैं उसके और अंकिता के बीच हुए मज़ाक की बात कर रहा हूँ. उसने फिर से पुछा.
कीर्ति बोली “मुझे अभी भी कुछ समझ मे नही आया कि, तुम किस मज़ाक की बात कर रहे हो.”
मैं अब उसकी परेशानी को और ज़्यादा बढ़ाना नही चाहता था. इसलिए मैने सीधे ही उस से कहा.
मैं बोला “मैं उस मज़ाक की बात कर रहा हूँ. जिसकी वजह से तुम, अंकिता से नाराज़ हो गयी थी. मुझे तुम्हारी और अंकिता की, सारी बातें सुनाई दे रही थी.”
अब कीर्ति की समझ मे सारी बात आ चुकी थी. उसने बेहद रुआंसा चेहरा बना कर, मुझसे माफी माँगते हुए कहा.
कीर्ति बोली “सॉरी जान, मेरी वजह से तुम्हे ये सब सुनना पड़ा.”
मैं बोला “सॉरी किस लिए. मुझे उसकी किसी बात का बुरा नही लगा और तुझे भी नही लगना चाहिए था. वो तुझसे सिर्फ़ मज़ाक ही तो कर रही थी. तू इतनी समझदार होकर भी, उसकी मज़ाक मे कही बातों का बुरा मान गयी.”
मगर कीर्ति अभी भी इस बात को अपने दिल से निकालने को तैयार नही थी. उसने अपना गुस्सा अंकिता पर उतारते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मुझे ऐसा मज़ाक बिल्कुल पसंद नही. मज़ाक उसके और मेरे बीच मे चल रहा था. उसे जो भी कहना चाहिए था, मुझे कहना चाहिए था. तुम्हारा मज़ाक उड़ाने का उसे ज़रा भी हक़ नही था. तुम्हारा मज़ाक उड़ाने वाली, वो होती कौन है.”
मैं बोला “मज़ाक तो तूने सुरू किया था. इसलिए तुझे उसके मज़ाक को सहना चाहिए था.”
कीर्ति बोली “मज़ाक मैने सुरू किया था, इसी वजह से इतना सब सह गयी. नही तो आज के आज ही, उस से दोस्ती तोड़ कर आ गयी होती.”
मैं जानता था कि, मैं चाहे कितना भी कीर्ति को समझा लूँ. लेकिन वो अंकिता के मज़ाक को सही नही मानेगी. इसलिए मैने बात को बदलने की नियत से कहा.
मैं बोला “बाप रे बाप, किसी ने मेरा मज़ाक उड़ाया तो इतना गुस्सा और जब खुद मेरा मज़ाक उड़ाती रहती है. उसका क्या है.”
कीर्ति बोली “मैं तुम्हे जो चाहे, वो कह सकती हूँ. मुझे तुम्हे कुछ भी कहने का पूरा हक़ है. लेकिन कोई और तुम्हे कुछ कहेगा तो, मैं उसका मूह नोच लुगी. फिर चाहे वो कोई भी हो.”
कीर्ति की इन बातों को सुनकर और उसके मेरे लिए प्यार को महसूस कर, मुझे बहुत सुकून मिल रहा था. इसलिए मैने उसे छेड़ते हुए कहा.
मैं बोला “अच्छा कोई भी मुझे कुछ बोलेगा तो, तू उसका मूह नोच लेगी. फिर चाहे वो कोई भी हो.”
कीर्ति ने भी अपनी धुन मे कहा.
कीर्ति बोली “हाँ चाहे वो कोई भी हो.”
मैं बोला “तो ठीक है, तू घर चल कर छोटी माँ का मूह नोच. आज सुबह सुबह ही, उन्हो ने मुझे बहुत उल्टा सीधा बोला है.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने गुस्से मे मेरी पीठ पर एक ज़ोर का मुक्का मारा. मैने भी अपनी पीठ अकडा कर उसे ऐसा जताया, जैसे की मुझे सच मे बहुत ज़ोर से लग गया हो. जैसे ही कीर्ति को इस बात का अहसास हुआ कि, उसका मुक्का मुझे ज़ोर से लग गया है तो, वो फ़ौरन ही अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “तुम्हे शरम नही आती. मौसी के बारे मे ऐसी बात कहते हुए.”
मैं बोला “अभी तूने ही तो कहा था कि, तू किसी का भी मूह नोच लेगी. चाहे वो कोई भी हो.”
कीर्ति ने अपनी सफाई देते हुए बड़े ही भोलेपन से कहा.
कीर्ति बोली “मैने वो बात, घर वालों के लिए नही, बाहर वालों के लिए कही थी.”
मैं इसी तरह कीर्ति को छेड़ता रहा और कुछ ही देर मे वो भी, अपने पुराने रंग मे वापस आ गयी. अब उसका मूड सही हो चुका था और उसने भी अपनी शरारातें सुरू कर दी थी. एक दूसरे को छेड़ते छेड़ते, कुछ ही देर मे हम लोग घर पहुच गये.
हम जैसे ही घर के अंदर पहुचे तो, घर मे बहुत शांति थी. छोटी माँ और आंटी शायद अपने कमरे मे थी. अमि निमी दोनो सॉफ्फ़े पर चुप चाप बैठी थी और ना जाने किस ख़याल मे खोई हुई थी. अमि निमी घर मे हो और शांति रहे. ये मेरे लिए बहुत हैरत की बात थी.
मैने कीर्ति को इशारा कर के पुछा कि, इन्हे क्या हुआ. तब कीर्ति ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और वो खुद तेज़ी से बढ़ती हुई, अमि निमी के पास चली गयी. वो जाते ही उनके पास बैठ गयी और मुझ पर झूठा गुस्सा करते हुए कहने लगी.
कीर्ति बोली “अब दोबारा मैं तुम्हारे साथ कही नही जाउन्गी. तुमने मेरे साथ आज ज़रा भी अच्छा नही किया.”
मुझे कीर्ति का यू गुस्सा करने से बस इतना समझ मे आया कि, वो ये गुस्सा अमि निमी को दिखाने के लिए कर रही है. लेकिन वो क्या करना चाहती है. ये मेरी समझ के बाहर था. मगर जब अमि निमी ने कीर्ति को यू मुझ पर गुस्सा करते देखा तो, अमि ने कीर्ति से पुछा.
अमि बोली “दीदी, आप भैया पर इतना गुस्सा किस बात पर है.”
कीर्ति बोली “अमि तुम्हे मालूम नही. आज इसकी वजह से मुझे कितना ज़्यादा परेशान होना पड़ा.”
अमि बोली “क्यो दीदी. ऐसा भैया ने क्या कर दिया.”
कीर्ति बोली “ये तो पुछो ही मत अमि. बस इतना समझ लो कि, आज के बाद मैं इसके साथ कही भी नही जाउन्गी.”
कीर्ति की बात सुन सुन कर अमि निमी की बात को जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी. अमि ने फिर कीर्ति से पुछा.
अमि बोली “लेकिन दीदी, हुआ क्या है.”
कीर्ति बोली “अमि, मैं पूरे 3 घंटे अकेली खड़ी रही. मेरी सहेली को अचानक किसी काम से जाना पड़ गया. मैने इसे फोन करके कहा कि, मुझे आकर अपने साथ ले चलो. लेकिन इसने आने से सॉफ मना कर दिया. कहा कि तुम अपनी सहेली के घर के पास ही रूको. मैं 4 बजे आकर तुम्हे ले जाउन्गा. अब तुम ही सोचो ये 3 घंटे मैने कैसे अकेले खड़े खड़े बिताए होगे. यदि ये आकर मुझे अपने साथ ले जाता तो, इसका क्या बिगड़ जाता.”
कीर्ति की बात सुनते ही अमि निमी के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी. शायद उन्हे लग रहा था कि, कीर्ति मेरे साथ घूम रही है. जिस वजह से उनका मूह फूल गया था. लेकिन जब उन्हो ने सुना की, कीर्ति अकेले परेशान होती रही है तो, ये जान कर उन्हे बहुत खुशी हुई.
अमि ने कीर्ति को समझाते हुए कहा.
अमि बोली “जाने दो दीदी. भैया यहाँ अपने काम से ही तो वापस आए थे. उन्हे आपको वापस लेने आने का, समय ही नही मिल रहा होगा.”
कीर्ति बोली “नही अमि, ये जान बुझ कर मुझे अपना घमंड दिखाता है. अब मैं सच मे इसके साथ कही नही जाउन्गी.”
कीर्ति के मूह से घमंड दिखाने वाली बात सुनते ही, निमी ने हंसते हुए मुझे देखा और फिर वो कीर्ति से कहने लगी.
निमी बोली “हाँ दीदी, अब आप भैया के साथ कही मत जाना. नही तो ये आपको ऐसे ही अपना घमंड दिखाएँगे.”
ये कह कर निमी ने धीरे से मुझे आँख मारी और मैं उसकी इस हरकत पर अपनी हँसी नही रोक पाया. उधर कीर्ति निमी की इस हरकत से अंजान थी. कीर्ति ने तुरंत निमी को अपने गले से लगा लिया और कहा.
कीर्ति बोली “हाँ, तू मेरी प्यारी बहन है. मैं तेरी बात ज़रूर मानूँगी.”
इसके बाद कीर्ति ऐसे ही अमि निमी को अपनी बातों मे बहलाने लगी और दोनो कीर्ति की हाँ मे हाँ मिलाने लगी. एक तरफ कीर्ति जहाँ बातों बातों मे अमि निमी के दिमाग़ से इस बात को निकालने मे लगी थी कि, वो दिन भर मेरे साथ घूम रही थी. वही दूसरी तरफ अमि निमी बातों बातों मे कीर्ति के दिमाग़ मे ये बात डाल रही थी कि, कीर्ति को अब मेरे साथ कहीं नही जाना है.
मैं थोड़ी देर खड़ा खड़ा उन तीनो की इस बात चीत का मज़ा लेता रहा. फिर कुछ देर बाद मैने अमि निमी के सर पर हाथ फेरा और मूह हाथ धोने अपने कमरे मे आ गया.
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