RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं बोला “दादू राज से तो मैने पुछ लिया है. अब बाकी लोगों से आप कहोगे तो, वो भी तैयार हो जाएँगे.”
दादा जी बोले “ठीक है, तुम्हारे दोस्त को आने दो. फिर देखते है कि क्या किया जा सकता है. अब तुम जाओ और जल्दी से फ्रेश होकर आओ.”
मैं बोला “ओके दादू.”
इतना कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर मैने मूह हाथ धोया और फिर वापस डाइनिंग रूम मे आ गया. डाइनिंग रूम मे आते ही मैने एक नज़र सब पर डाली.
डाइनिंग टेबल की बीच वाली सीट पर हमेशा की तरह दादा जी बैठे हुए थे. दादा जी के लेफ्ट वाली सीट मे पहले आंटी, फिर रिया बैठी थी. रिया के बाद वाली सीट कहली थी. वो प्रिया की सीट थी. उसके बाद निक्की बैठी हुई थी.
मैं हमेशा की तरह दादा जी की राइट वाली सीट मे बैठ गया. मेरे बैठते ही दादा जी ने रिया और निक्की से कहा की, दोनो मे से कोई जाकर प्रिया को ले लाओ.
दादा जी की बात सुनते ही निक्की उठी और प्रिया को लेने चली गयी. कुछ ही देर बाद मुझे प्रिया और निक्की आते दिखाई दी. लेकिन प्रिया को देखते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गये.
प्रिया एक शॉल ओढ़े हुए थी और निक्की का सहारा लेकर धीरे धीरे सीडियाँ उतार रही थी. वो बहुत कमजोर लग रही थी और उसका चेहरा बहुत ज़्यादा मुरझाया हुआ था. ऐसा लग रहा था, जैसे वो बरसों से बीमार हो.
इतना तो मैं समझ गया था कि, प्रिया की ये हालत रात की बातों की वजह से हुई है और इसके लिए मेरी सुबह की बेरूख़ी भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है. मगर ये सब इतनी जल्दी हो जाएगा. इसका मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नही था.
प्रिया धीरे धीरे सीडियाँ उतरते हुए चली आ रही थी. तभी अचानक मुझे कुछ सूझा और मैने अपनी सीट से उठते हुए दादा जी से कहा.
मैं बोला “दादू, एक मिनिट मैं अभी आता हूँ”
दादा जी बोले “क्या हुआ. ये अचानक कहाँ जा रहे हो.”
मैं बोला “बस एक मिनिट. मुझे एक ज़रूरी कॉल करने की याद आ गयी और मोबाइल मेरे कमरे मे ही रखा है. मैं अभी कॉल करके आता हूँ.”
ये कह कर मैं अपने कमरे मे आ गया. कमरे मे आकर सबसे पहले मैने कीर्ति से बात की, फिर उसके बाद अजय को कॉल लगा कर, उसे यहाँ के सारे हालत बताए. अजय से बात करने के बाद, मैं वापस डाइनिंग रूम मे आ गया.
जब मैं डाइनिंग रूम मे पहुचा तो, प्रिया दादा जी के पास, मेरी वाली सीट पर बैठी थी. मैं जाकर उसके बाजू वाली सीट पर बैठ गया. फिर मैने बड़ी गौर से प्रिया की तरफ देखा. वो धीरे धीरे छोटे, छोटे निबाले बनाकर कर ऐसे खा रही थी, जैसे कि कोई उसे ज़बरदस्ती खिला रहा हो.
मुझे खाना ना खाते देख, दादा जी ने मुझे खाना खाने को कहा तो मैने दादा जी से कहा.
मैं बोला “दादू, ये प्रिया को अचानक क्या हो गया. क्या प्रिया की तबीयत खराब है.”
दादा जी बोले “हाँ बेटा, आज सुबह अचानक ही प्रिया की तबीयत खराब हो गयी है. असल मे प्रिया को ...........”
दादा जी अभी कुछ कह पाते की, प्रिया खाना खाते खाते रुक रुक गयी और दादा जी की बात को बीच मे ही काटते हुए, बड़ी ही दयनीय आवाज़ मे कहने लगी.
प्रिया बोली “दादू प्लीज़, मैने कहा ना, मुझे कुछ नही हुआ. कल स्कूल मे ज़्यादा उच्छल कूद कर लेने की वजह से, तबीयत खराब हुई है. कुछ देर आराम करूगी तो, बिल्कुल ठीक हो जाउन्गी.”
शायद दादा जी प्रिया की दिल की बीमारी के बारे मे बताने वाले थे और प्रिया नही चाहती थी की, मुझे उसकी बीमारी के बारे मे पता चले, इसलिए उसने दादा जी की बात काट दी थी.
लेकिन प्रिया का बात करने का तरीका उसकी बीमार हालत को बयान करने के लिए बहुत था. जिसे देख कर दादा जी ने प्रिया को समझाते हुए कहा.
दादा जी बोले “बेटी, तुझे मालूम है कि, ज़्यादा उच्छल कूद तेरी सेहत के लिए अच्छी नही है. फिर तू जान कर भी ऐसा क्यो करती है.”
प्रिया जिस बात को करने से बचना चाह रही थी. दादा जी वही बात किए जा रहे थे. प्रिया ने फिर बात को संभालते हुए कहा.
प्रिया बोली “ओके दादू, अब दोबारा ऐसा नही करूगी. अब आप चुप चाप खाना खाइए.”
ये कह कर प्रिया दादा जी ज़ुबान पर ताला लगाना चाहती थी. मगर मैं प्रिया की बीमारी से अंजान नही था. इसलिए मैने बात को कुरेदते हुए कहा.
मैं बोला “लेकिन दादू, इस उमर मे उच्छल कूद करने से सेहत अच्छी रहती है. फिर आप प्रिया को ऐसा करने से क्यो रोक रहे है.”
ये बात मैने दादा जी के मूह से प्रिया की बीमारी जानने के लिए कही थी और मैं अपनी कोशिश मे कुछ हद तक सफल भी हुआ. दादा जी कहने लगे.
दादा जी बोले “बेटा तुम्हारी बात सही है. लेकिन बात दरअसल ये है कि, प्रिया..........”
दादा जी अभी अपनी बात पूरी कर पाते कि, उस से पहले ही प्रिया ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.
प्रिया बोली “दादू प्लीज़, आप लोग इस बात को यही ख़तम कीजिए, नही तो मैं अभी अपने कमरे मे वापस चली जाउन्गी.”
दादा जी बोले “ओके, अब कोई इस बारे मे बात नही करेगा. लेकिन तू गुस्सा मत कर और खुशी ख़ुसी खाना खा.”
प्रिया ने अपनी हालत का फ़ायदा उठाते हुए, दादा जी को बात पूरी करने से रोक दिया था और अब मुझे भी इस बात को ज़्यादा कुरेदना अच्छा नही लगा और मैं भी चुप चाप खाना खाने लगा.
अभी हम खाना खा ही रहे थे कि, तभी एक नौकर ने आकर कहा कि, कोई अजय साहब आए है. अजय का नाम सुनते ही, मैं खाने को बीच मे ही छोड़ कर अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ. मुझे खाने से बीच मे उठते देख, दादा जी ने मुझसे कहा.
दादा जी बोले “बेटा तुम्हे खाना छोड़ कर उठने की कोई ज़रूरत नही है. अजय तुम्हारा दोस्त है. इस नाते वो भी इस घर का सदस्य ही हुआ. उसे यहीं बुला लेते है. सब से उसका परिचय भी हो जाएगा और बाकी बातें भी हो जाएगी.”
मैं बोला “ओके दादू, जैसी आपकी मर्ज़ी.”
ये कह कर मैं वापस अपनी सीट पर बैठ गया. दादा जी ने नौकर से, अजय को डाइनिंग रूम मे ले आने को कहा. फिर सब को बताया कि, अजय मेरा दोस्त है और कुछ दिन के लिए, मुझे अपने साथ, अपने घर ले जाना चाहता है.
जब दादा जी अजय के बारे मे बता रहे थे. तब सब दादा जी की ही तरफ देख रहे थे. मगर प्रिया चुप चाप खाना खा रही थी. मेरा सारा ध्यान प्रिया की तरफ ही था. मैं ये देखना चाहता था कि, मेरे जाने की बात सुनकर, प्रिया पर क्या असर पड़ता है.
जब तक दादा जी अजय के बारे मे बताते रहे. तब तक प्रिया खाना खाने मे ऐसे मगन थी. जैसे उसे किसी की कोई बात सुनाई ही ना दे रही हो. मगर जैसे ही दादा जी अजय के साथ मेरे जाने की बात कही, वैसे ही प्रिया के मूह मे जाता निबाला बीच मे ही रुक गया.
उसने निबाला धीरे से अपनी थाली मे ही वापस रख दिया. मगर अपना सर उठा कर किसी की तरफ नही देखा. बस एक तक अपनी थाली को ही घूरे जा रही थी. उसे ये बात समझ मे आ चुकी थी कि, मैं कल की बात की वजह से ही अजय के साथ जा रहा हूँ.
वो थोड़ी देर अपनी थाली को घूरती रही. फिर उसने अपना सर उठा कर दादा जी की तरफ देखा. शायद वो कुछ बोलना चाहती थी. मगर तभी अजय अंदर आ गया और उसने दादा जी से नमस्ते की तो, सबका ध्याना अजय की तरफ चला गया.
आज अजय का पहनावा रोज से ज़रा हट कर था. वो इस समय जीन्स टी-शर्ट मे किसी फिल्मी हीरो से कम नही लग रहा था. उसकी पहनी हुई हर चीज़ ब्रॅंडेड कंपनी की थी. जो उसकी असली हैसियत का बखान कर रहा था. एक पल के लिए तो सब के साथ साथ, मैं और निक्की भी अजय के इस नये रूप मे देखते रह गये थे.
दादा जी ने अजय को बैठने को कहा तो, वो उनके सामने की सीट पर बैठ गया. दादा जी ने उसे खाने के लिए भी कहा मगर उसने मना कर दिया. दादा जी ने अजय का सबसे परिचय कराया.
इसके बाद अजय दादा जी मेरे बारे मे बात करने लगा. जिसके जबाब मे दादा जी ने उस से भी वही सब बातें की, जो मुझसे की थी, मगर आख़िर मे अजय ने दादा जी से, मुझे अपने साथ ले जाने की इजाज़त हासिल कर ही ली.
इन्ही बातों के चलते सब का खाना खाना हो चुका था. प्रिया अभी भी सर झुकाए खामोश बैठी थी. कुछ देर बाद अजय ने मुझसे चलने को कहा तो, मैने कहा मैं अपना समान ले लूँ, फिर चलता हूँ.
ये कह कर मैं उठने ही वाला था कि, प्रिया ने अपना हाथ टेबल के नीचे किया और मेरी कलाई पकड़ ली. मैने प्रिया की तरफ देखा. लेकिन वो अभी भी सर झुकाए बैठी थी.
मैने अपना हाथ छुड़ाने की कोसिस की तो, प्रिया ने और भी मजबूती से मेरा हाथ पकड़ लिया. आख़िर मे मैने अपने दूसरे हाथ का सहारा लेकर, प्रिया से अपनी कलाई को छुड़ाया और उठ कर अपने कमरे मे आ गया.
मेरी पॅकिंग तो पहले से ही थी. मगर मैं कुछ देर बाद कमरे से निकलना चाहता था. ताकि सबको यही लगे कि मैने अभी पॅकिंग की है. मगर मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था की, मेरे पास ज़रूर कोई ना कोई आएगा. इसलिए मैं बॅग खोल कर अपना समान इधर उधर कर, पॅकिंग करने का नाटक करने लगा.
मेरा सोचना सही निकला था. कुछ ही देर बाद मेरे पास निक्की आ गयी. लेकिन निक्की को पॅकिंग के बारे मे पहले से ही पता था. इसलिए मैने समान पॅकिंग का, नाटक करना बंद किया और बैठ गया. निक्की ने आते ही मुझे प्रिया वाला मोबाइल वापस दिया. उस मोबाइल को देखते ही मैने निक्की से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ, आप मुझे ये मोबाइल वापस क्यों कर रही है. क्या प्रिया ने इसे लेने से मना कर दिया.”
निक्की बोली “मना तो वो तब करती. जब मैं ये मोबाइल उसको देती. मैने ये मोबाइल उसको दिया ही नही.”
मैं बोला “क्यो.”
निक्की बोली “सुबह जब मैं आपके कमरे से निकली, तभी प्रिया मुझे सीडियों पर खड़ी मिल गयी थी. उसका चेहरा मुरझाया हुआ और आँखे सूजी हुई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे वो रात भर रोती रही है.”
“उसका उदासी भरा चेहरा देख कर, मैने उस से पुछा भी कि, उसे क्या हुआ है. मगर उसने बस इतना कहा कि, मुझे बहुत बेचेनी हो रही है. इसके बाद मैं उसको, उसके रूम मे ले गयी और उसको आराम करने का बोल कर आ गयी.”
“मगर 9 बजे जब मैं उसको नाश्ते के लिए बुलाने गयी. तब देखा कि उसे बहुत तेज बुखार है. मैने फ़ौरन आकर आंटी को बताया और उन्हो ने निशा दीदी को बुलाया. निशा दीदी ने आकर प्रिया को देखा और कुछ दवाइयाँ देकर, उसको आराम करने की सलाह दी है. इसलिए उसे ये मोबाइल वापस करने की, मेरी हिम्मत ही नही हुई.”
मैं बोला “आपने ये बहुत अच्छा किया. अभी प्रिया को मोबाइल वापस करने का, ये सही समय नही है. अब मैं खुद ही कोई अच्छा सा समय देख कर, उसे ये मोबाइल वापस कर दूँगा.”
ये कहते हुए मैने निक्की के हाथ से मोबाइल वापस ले लिया. मगर निक्की का मूड कुछ ठीक नही लग रहा था तो मैने उस से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ. क्या आपको मेरी बात सही नही लगी.”
निक्की बोली “आपकी बात सही है. लेकिन आप जो कर रहे है. क्या वो करना ज़रूरी है.”
मैं बोला “मैं समझा नही आप क्या कहना चाहती है.”
निक्की बोली “क्या प्रिया की ग़लती की, उसे इतनी बड़ी सज़ा देना ज़रूरी है.”
मैं बोला “आपको ये क्यो लग रहा है कि, मैं प्रिया को उसकी ग़लती की सज़ा दे रहा हूँ. क्या प्रिया ने आपसे इस बारे मे कुछ कहा है.”
निक्की बोली “नही प्रिया ने मुझसे कुछ नही कहा. लेकिन आपके अचानक इस तरह से जाने और प्रिया के इस तरह से बीमार पड़ जाने से, सॉफ समझ मे आता है कि, प्रिया से कोई ग़लती हुई है.”
मैं बोला “नही, ना तो प्रिया ने कोई ग़लती की है और ना ही मैं उसे कोई सज़ा दे रहा हूँ. मैं तो बस वो ही कर रहा हूँ. जो प्रिया ने मुझसे करने को कहा था. अब इस से ज़्यादा, मैं अभी आपको कुछ नही बता सकता.”
निक्की बोली “मैं कुछ जानने के ज़िद भी नही कर रही हूँ. बस आपको ये समझाना चाहती हूँ कि, प्रिया ने चाहे जो भी ग़लती की हो. मगर अभी वो अपनी उस ग़लती के लिए दिल से पछ्ता रही है. यदि आप यहाँ रुक जाते है तो, मुझे यकीन है कि, वो आप से अपनी ग़लती के लिए माफी भी माँग लेगी.”
मैं बोला “मैं जानता था कि, प्रिया को इस बात का अहसास ज़रूर होगा. मगर अब मेरा यहाँ रुक पाना मुश्किल है.”
निक्की बोली “आप समझते क्यो नही, आपका जाना प्रिया को तोड़ कर रख देगा. वो आपका जाना सह नही पाएगी.”
मैं बोला “समझना तो ये बात प्रिया को चाहिए कि, आज नही तो कल मुझे जाना ही है. मेरे साथ ना तो उसका कोई मेल है और ना ही उसका कोई भविष्य है. इसलिए प्रिया को समय रहते प्रिया को खुद को संभाल लेना चाहिए.”
मेरी बात सुनकर निक्की चुप हो गयी. क्योकि मेरी बात सच थी. मगर प्रिया की हालत निक्की को मुझसे बहस करने के लिए मजबूर कर रही थी. थोड़ी देर चुप रहने के बाद निक्की ने भावुक होते हुए कहा.
मेरी बात की सच्चाई ने निक्की को कुछ देर के लिए चुप ज़रूर करा दिया. मगर प्रिया की हालत या प्रिया के दिल मे छुपे प्यार ने. निक्की को मुझसे बहस करने के लिए फिर मजबूर कर दिया. निक्की ने भावुक होते हुए कहा.
निक्की बोली “आप ठीक कहते हो पुनीत सर. प्रिया को समझना चाहिए कि, किसी को सिर्फ़ प्यार करने से, वो अपना नही हो जाता. किसी पर जान देने से, वो सच मे जान नही बन जाता. ये तो किस्मत की बात होती है कि, किसको किसका प्यार नसीब होता है.”
“मगर वो बेचारी इन सब बातों को क्या समझे. वो तो सपनो की दुनिया मे रहती है. वो इस बात को जान कर भी अंजान है कि, सपना चाहे अच्छा हो या बुरा. सपने की किस्मत तो सिर्फ़ टूट जाना होती.”
“अब यदि उसने एक ऐसे लड़के से प्यार करने का सपना सज़ा लिया है. जो उसे प्यार तो क्या, अपनी दोस्ती के काबिल भी नही समझता है तो, उसे इस सपने को देखने की सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए.”
“अब उसने आप से प्यार करने का सपना देखा है तो, सज़ा देने का हक़ भी आपका ही बनता है. आप उसे इस सपने को देखने के गुनाह की सज़ा ज़रूर देना और सज़ा भी ऐसी देना कि, वो ज़िंदगी मे फिर कभी किसी को प्यार करने का सपना देखने की हिम्मत ना कर सके.”
निक्की अपने दिल की सारी भडास निकाल कर, बिना मेरा जबाब सुने चली गयी. उसके दिल मे जो भी आया, वो मुझे बक कर गयी थी. एक तरह से, उसने मुझे बड़े प्यार से, जली कटी सुनाई थी और मैं खामोशी से सुनता रहा. उसने मुझे मखमली जूतो से मारा और मैं ख़ाता रहा.
उस समय मेरे खामोश रहने का मतलब ये नही था कि, मेरे पास निक्की की बातों का कोई जबाब नही था. बल्कि मैं खामोश इसलिए था क्योकि, उस समय निक्की जो भी बोल रही थी, वो उसके दिल मे प्रिया के लिए छुपा प्यार था. यही वजह थी कि, मैने निक्की की किसी बात का विरोध नही किया और खामोशी से सुनता रहा.
निक्की मेरे कमरे से जा चुकी थी और मुझे भी कमरे मे आए बहुत देर हो चुकी थी. मैने अपना बॅग उठाया और कीर्ति से बात करने के लिए, जैसे ही मोबाइल निकाला दरवाजे के सामने प्रिया नज़र आ गयी.
मैने मोबाइल अपनी जेब मे रखा और प्रिया की तरफ देखने लगा. मुझे लगा कि वो अंदर आएगी मगर वो दरवाजे पर ही खड़ी, उदासी भरी नज़रों से मुझे देखती रही.
वो मुझे जाने से रोकने या अपनी ग़लती की माफी माँगने आई थी. मगर शायद उसको समझ मे नही आ रहा था कि, वो अपनी बात कैसे कहे. थोड़ी देर मैं प्रिया के अंदर आने का वेट करता रहा. लेकिन जब वो अंदर नही आई तो, मैने उस से कहा.
मैं बोला “वहाँ क्यो खड़ी हो. कोई बात करना है तो, यहाँ बैठ कर आराम से कर लो.”
मगर मेरी बात सुनकर उसने नज़रें झुका ली. शायद उसमे मेरा सामना करने की या अपनी बात कहने की ताक़त नही थी. मेरी भी हालत कुछ ऐसी ही थी. मैं उस बंद कमरे मे प्रिया और उसके दर्द का सामना नही कर पा रहा था.
मुझे लग रहा था कि, यदि प्रिया थोड़ी देर ऐसे ही मेरे सामने खड़ी रही तो, उसके बिना कुछ कहे ही, मुझे अपने जाने का इरादा बदल देना पड़ेगा. इसलिए मैने प्रिया से कहा.
मैं बोला “ओके, तुम्हे कुछ नही कहना तो, मैं जाता हूँ. मुझे देर हो रही है.”
ये कहते हुए बाहर जाने के लिए, मैं दरवाजे की तरफ बढ़ा. लेकिन प्रिया ने दरवाजे की दोनो तरफ अपने हाथ रख कर मेरा रास्ता रोक लिया. प्रिया के शरीर मे उस समय इतनी ताक़त नही थी कि, वो अपने हाथों के ज़ोर पर मुझे जाने से रोक सके. मगर फिर भी उसकी इस हरकत ने मेरे बढ़ते हुए कदमो को रोक दिया था.
अब मुझे प्रिया पर गुस्सा आ रहा था. क्योकि ना वो कुछ बोल रही थी और ना मुझे जाने दे रही थी. मैने प्रिया पर झुंझलाते हुए कहा.
मैं बोला “प्रिया, ये क्या हरकत है. बाहर अजय मेरा वेट कर रहा है और यहा तुम ये नौटंकी कर रही हो. अब बहुत हो गया. दरवाजे के बीच से दूर हटो और मुझे जाने दो.”
लेकिन प्रिया पर मेरी इस झुंझलाहट का कोई असर नही पड़ा. वो अभी भी खामोश, दरवाजे पर अपने दोनो हाथ रखे, सर झुकाए ऐसे खड़ी रही. जैसे कि उसे मेरी कोई बात सुनाई ही ना दी हो.
प्रिया की इस हरकत पर मुझे और भी ज़्यादा गुस्सा आ गया. मैने गुस्से मे प्रिया पर बरसते हुए कहा.
मैं बोला “ठीक है, तुम चाहती हो कि, मैं तुम्हे धक्का दे कर, तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करके यहाँ से जाउ, तो अब यही होगा.”
ये कहते हुए मैं प्रिया को ज़बरदस्ती दरवाजे से अलग करने के लिए आगे बढ़ गया. मगर प्रिया की इस खामोशी को तूफान के गुजरने के बाद की खामोशी समझना मेरी भूल थी. क्योंकि ये तूफान के आने के पहले की खामोशी थी.
अपनी इस लंबी खामोशी के बाद प्रिया ने जो किया. उस बात की कभी मैने, अपने सपने मे भी कल्पना नही की थी. इसलिए प्रिया की इस हरकत को देख कर मेरा रोम रोम काँप गया.
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