RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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उसे इस तरह से देख कर, मेरी मुस्कुराहट और भी गहरी हो गयी. मैने वापस उसके पास आते हुए कहा.
मैं बोला “तो तुम जाग रही थी और चुपके चुपके मेरी बातें सुन रही थी.”
मेरी बात के जबाब मे प्रिया फिर से मुस्कुरा दी और उसने मुस्कुराते हुए कहा.
प्रिया बोली “नही, सच मे ही मेरी नींद लग गयी थी. मगर मुझे नींद मे ऐसा महसूस हुआ कि, तुम मेरे पास आए हो और फिर खुद ही मेरी नींद खुल गयी. जब मेरी नींद खुली तो, तुम निक्की को बाइ करके जाने ही वाले थे और मैने तुम्हे रोक लिया.”
मैं बोला “चलो अच्छा हुआ कि, तुम्हारी नींद खुल गयी. कम से कम जाने से पहले तुम से बात तो गयी. वरना तुम कहती कि, तुमसे मिले बिना ही चला गया.”
मेरी बात सुनकर प्रिया थोड़ा सा संजीदा हो गयी और फिर उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा.
प्रिया बोली “नही, मैं ऐसी बात नही है. मैं ये ज़रूर चाहती थी कि, तुम्हारे जाने से पहले मैं तुमसे मिल सकूँ. लेकिन तुम ऐसा नही भी करते, तब भी मैं तुमसे कुछ नही कहती. क्योकि मुझे मालूम है कि, मेरी वजह से तुम दिन भर परेशान हुए हो और रात से ज़रा भी सोए नही हो.”
“यदि ऐसी बात नही होती तो, मैं तुम्हे यहाँ से, हरगिज़ जाने नही देती और तुम्हे रात को मेरे पास ही रुकने को बोलती. मगर तुम्हे मेरी वजह से, दिन भर हुई परेसानी को देखते हुए, मैं खुद चाहती थी कि, अब तुम जाकर आराम कर लो.”
प्रिया की बात सुनकर, मुझे उसकी बात की गहराई महसूस हुई. क्योकि नींद की वजह से मेरा वहाँ रुक पाना मुस्किल हो रहा था और इसी वजह से, मैने एक बार भी, वहाँ रत को रुकने की बात नही की थी.
मगर मुझे मन ही मन, ये डर भी सता रहा था की, मेरे एक बार भी रात को रुकने के लिए ना कहने से, पता नही प्रिया मेरे बारे मे क्या सोचेगी. लेकिन ये जानकर मेरे मन का बोझ उतर गया की, प्रिया को मेरी परेसानी का अहसास पहले से ही था.
मैं थोड़ी देर प्रिया और निक्की के साथ हँसी मज़ाक करता रहा. फिर प्रिया ने खुद ही, मुझे 10 बजने की बात कहते हुए जाने को कहा. मैने प्रिया और निक्की को बाइ कहा और मैं राज को भी बाइ करके नीचे आ गया.
मैं नीचे आया तो, अजय अपनी टॅक्सी मे ही बैठा था. मुझे आते देख वो टॅक्सी से उतर कर बाहर आ गया. मैं उसके पास पहुचा तो, उसने कहा.
अजय बोला “खाना खा लिया या अभी खाना खाने चले.”
मैं बोला “मेरा खाना तो, तभी हो गया था. जब मैं तुम्हारे पास से आया था.”
अजय बोला “तो चलो, मैं तुम्हे घर छोड़ देता हूँ.”
मैं बोला “तुम क्यो परेशान होते हो. मैं कोई टॅक्सी पकड़ कर निकल जाउन्गा.”
लेकिन मेरे बहुत मना करने पर भी अजय नही माना और फिर मुझे उसकी टॅक्सी मे बैठना ही पड़ा और फिर घर के लिए निकल पड़े. अजय को लेकर, मेरे मन मे बहुत से सवाल थे. लेकिन जब भी मैं उसके साथ अकेला होता था. किसी ना किसी परेसानी मे घिरा रहता था. जिस वजह से मैं चाह कर भी उस से कुछ नही पुच्छ पाता था.
ऐसा ही कुछ अभी भी मेरे साथ था. अभी मुझे नींद परेशान कर रही थी और मैं घर जाकर सीधे सोना चाहता था. इसलिए अभी मुझे, अजय से उसके बारे मे, कोई बात करना ठीक नही लगा और.मैं खामोशी से उसकी बातें सुनता रहा.
थोड़ी देर वो इधर उधर की बात करता रहा. फिर उसने राज की बात छेड़ते हुए कहा.
अजय बोला “क्या राज तुमसे शिखा के बारे मे कुछ बोल रहा था.”
अजय की ये बात सुनकर, मैं चौके बिना ना रह सका. क्योकि जब मेरी और राज की बात चल रही थी. उस समय अजय अपनी टॅक्सी मे था और हम से बहुत दूर था. मैने अजय की बात का जबाब देने की जगह, उस से उल्टा सवाल करते हुए कहा.
मैं बोला “तुमको ऐसा क्यो लगा कि, राज मुझसे शिखा के बारे मे कुछ बात कर रहा था.”
अजय बोला “जब मैं शिखा को लेकर, यहा पहुचा तो, मेरी तुम पर नज़र नही पड़ी थी. लेकिन शिखा ने तुम्हे देख लिया था. उसी ने मुझे बताया था कि, तुम्हारा सुबह वाला दोस्त खड़ा है. जब मैने तुम्हारी तरफ देखा तो, मुझे तुम्हारे साथ राज भी दिखाई दिया.”
“राज की वजह से मैने तुम्हारे पास आना ठीक नही समझा और मैं टॅक्सी मे ही बैठा रहा. लेकिन मेरा ध्यान तुम लोगो पर ही था. राज शिखा को तब तक घूरता रहा था. जब तक कि वो अंदर नही चली गयी. उसके बाद वो तुमसे बात करने लगा था. इसी वजह से मुझे ऐसा लगा, जैसे वो शिखा के बारे मे ही, कोई बात कर रहा हो.”
मैं बोला “मैं तो शिखा को जानता ही नही था. बस इसके पहले 2 बार उसे देखा था. लेकिन उसका नाम नही जानता था. जब उसे राज ने उसे टॅक्सी से उतरते देखा तो, उसने ही मुझे बताया कि, ये शिखा है, जिसकी ड्यूटी रात को प्रिया के पास लगी है.”
अजय बोला “बस इतना ही या और कुछ भी बोला है.”
अजय को शिखा मे इतनी दिलचस्पी लेते देख, मैने अजय को घूर कर देखते हुए कहा.
मैं बोला “सब ठीक तो है. तुम्हे शिखा मे इतनी दिलचस्पी क्यो है. कही कोई लफडा तो नही है.”
मेरी बात सुनकर अजय को हँसी आ गयी. उसने एक नज़र मेरी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए कहा.
अजय बोला “भाई, वो रोज की सवारी है. सुबह शाम मेरी टॅक्सी मे आती जाती है. अब शिखा जैसी सीधी साधी लड़की को कोई घुरे तो, क्या मुझे उसमे दिलचस्पी नही होना चाहिए.”
मुझे अजय की ये बात बिल्कुल सही लगी. जब एक ज़रा सी मुलाकात मे ही, शिखा से मुझे अपनापन सा लगा था और मैने उसके लिए राज से इतना बड़ा झूठ बोल दिया था. फिर अजय का तो, उसके साथ रोज का आना जाना था. उसे तो राज के घूर्ने का बुरा लगना ही था.
इसलिए अब मैने इस बात को ज़्यादा घुमाना ठीक नही समझा और अपने शब्दों मे, अजय की बात का जबाब देते हुए कहा.
मैं बोला “शिखा की सुंदरता पर राज का दिल आ गया था और वो उसे पटाना चाहता था. लेकिन मैने भी उसे ऐसी पट्टी पढ़ाई है की, अब वो शिखा के साए से भी दूर भागेगा.”
मेरी बात सुनकर, अजय ने हैरत भरी नज़रों से मेरी तरफ देखते हुए कहा.
अजय बोला “क्यो, तुमने राज को ऐसी क्या पट्टी पढ़ा दी की, अब वो शिखा के साए से भी दूर भागेगा.”
अजय की बात सुनकर, मैने शिखा के भाई के गुंडा होने वाली, जो बात राज को बोली थी. वही बात अजय को बता दी. जिसे सुनकर अजय अपनी हँसी नही रोक पाया और हंसते हुए मुझे कहा.
अजय बोला “लेकिन शिखा का तो, कोई भाई ही नही है.”
मैं बोला “अब शिखा का भाई है या नही है, इस से क्या फरक पड़ता है. राज कौन सा, उस से इस बात की सच्चाई पुच्छने जाएगा.”
अजय बोला “मगर शिखा के लिए, तुम्हे राज से झूठ बोलने की ज़रूरत क्या थी. क्या तुम शिखा को जानते भी नही हो.”
मैं बोला “हाँ, मैने शिखा को सिर्फ़ एक बार अंकल के पास देखा था. तब के बाद से, आज सुबह वो दूसरी बार, मुझे तुम्हारी टॅक्सी के पास दिखी थी.
तब के बाद से वो, आज सुबह तुम्हारी टॅक्सी के पास दिखाई दी. लेकिन उसकी ज़रा सी बात मे ही, मुझे उसकी सादगी नज़र आ गयी थी. जिसकी वजह से मुझे राज का वो सब कहना अच्छा नही लगा और मुझे राज को शिखा से दूर रखने के लिए ये झूठ कहना पड़ गया.”
मेरी बात सुनकर अजय ने मुझे छेड़ने हुए, मेरी बात का मुझ पर ही पलटवार करते हुए कहा.
अजय बोलो “सब ख़ैरियत तो है ना. कही शिखा की सादगी पर दिल तो नही लूटा बैठे.”
अजय की बात सुनकर, मुझे हँसी हा गयी. मगर मैने उसकी बात को काटते हुए कहा.
मैं बोला “इस जनम मे तो, मैं अपना दिल पहले ही किसी के नाम कर चुका हूँ. शिखा तो क्या, अब किसी को भी अपना दिल देने के लिए, मुझे दूसरा जनम लेना पड़ेगा.”
बस इसी तरह की बात करते हुए हम घर पहुच गये. घर पहुच कर अजय ने घर का लॉक खोला और हमारे अंदर पहुचने पर उसने मुझे मेरा बॅग दिया. इसके बाद मेरी उस से थोड़ी बहुत बातें हुई और फिर वो टॅक्सी लेकर वापस चला गया.
अजय के जाने के बाद मैने कपड़े बदले और समय देखा तो, 10:45 बज चुके थे. मुझे अब बहुत ज़्यादा नींद आ रही थी. इसलिए मैने कीर्ति के कॉल का इंतजार करना ठीक नही समझा और खुद ही उसे कॉल लगा दिया.
लेकिन कीर्ति का फोन बिज़ी बता रहा था. मुझे लगा कि शायद वो मौसी से या अपनी किसी सहेली से बात कर रही है. इसलिए मैने उसको कॉल लगाना बंद किया और उसके कॉल आने का इंतजार करने लगा.
मगर जब 10 मिनिट तक इंतजार करने के बाद भी कीर्ति का कॉल नही आया तो, मैने फिर उसे कॉल लगाया, पर अभी भी उसका फोन बिज़ी बता रहा था. मैने सोचा शायद किसी से कोई ज़रूरी बात चल रही है. इसलिए मैने उसके कॉल आने का इंतजार करना ही ठीक समझा.
मुझे कीर्ति के कॉल का इंतजार करते करते 11:15 बज गये. लेकिन उसका कॉल नही आया तो, मैने फिर उसे कॉल किया. मगर अभी भी उसका फोन बिज़ी ही बता रहा था. वो किस से इतनी देर से बात कर रही है, ये जानने के लिए मैने उसके दूसरे मोबाइल पर कॉल लगाया. लेकिन उसने दूसरे मोबाइल पर कॉल नही उठाया.
एक तो मुझे नींद परेशान कर रही थी. ऐसे मे कीर्ति का फोन पर किसी के साथ बिज़ी रहना और मेरा कॉल ना उठाना, इस बात से मेरा मूड बहुत ज़्यादा खराब हो गया था. मुझे उस पर बहुत ज़्यादा गुस्सा आ रहा था और इसलिए अब मैने उसे कॉल ना लगाने का फ़ैसला किया.
अब मेरी आँखों से नींद उड़ चुकी थी और मैं सिर्फ़ कीर्ति के कॉल आने का इंतजार कर रहा था. मुझे समझ नही आ रहा था कि, किस से इतनी ज़रूरी बात चल रही है. जो मेरा कॉल आते देख कर भी, कीर्ति की बातें ख़तम नही हो रही थी.
फिर 11:30 बजे कीर्ति का कॉल आने लगा. मैने बुझे मन से उसका कॉल उठाया तो, उसने कॉल उठाते ही कहा.
कीर्ति बोली “सॉरी जान, वो जीत से बात कर रही थी ना, इसलिए तुम्हे कॉल लगाने मे देर हो गयी.”
कीर्ति के मूह से जीत नाम सुनकर, मैं समझ नही पाया कि, वो किसकी बात कर रही है. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “तू किस जीत की बात कर रही है. मैं तो किसी जीत को नही जानता.”
कीर्ति बोली “अरे वो मेरी बुआ की बड़ी नंद (फूफा की बहन) का लड़का जीतेन है ना. मैं उसी की बात कर रही हूँ. तुम तो उसे अच्छे से जानते हो.”
मैं बोला “तो जीतेन बोल ना. उसने तुझे क्यो कॉल किया था.”
कीर्ति बोली “वो अगले सनडे को बुआ और वाणी दीदी के साथ यहाँ आ रहा है. यही बताने के लिए उसने कॉल किया था.”
एक तो कीर्ति के मेरा कॉल ना उठाने की वजह से पहले ही मेरा मूड खराब था. उस पर जीतेन का नाम सुनकर और भी मेरे तन बदन मे आग लग गयी. क्योकि जीतेन भले ही कीर्ति का दूर का रिश्तेदार था. मगर मौसी उसे बहुत पसंद करती थी.
लेकिन यदि एक ये ही वजह होती तो, मुझे उस से इतनी चिड नही होती. मगर वो हर किसी के सामने मुझे छोटी माँ का सौतेला बेटा होने का अहसास दिलाता रहता था. इसके अलावा वो जब भी आता था, पूरे समय कीर्ति के आस पास मंढराता रहता था.
जो मुझे पहले से ही अच्छा नही लगता था तो, अब अच्छा लग सकने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था. बस इसी बात की चिड मैने कीर्ति पर उतारते हुए, उस से कहा.
मैं बोला “अभी सिर्फ़ जीतेन का कॉल आया तो, तेरा ये हाल है कि, तू मेरा कॉल देख कर भी अनदेखा कर रही है. जब वो खुद आ जाएगा, तब तो तू मुझे पहचानने से भी इनकार कर देगी. आख़िर वो तेरी बुआ की नंद का लड़का जो है.”
मैने अपनी बात के आख़िरी शब्द पर कुछ ज़्यादा ज़ोर दिया था. जिसे सुनकर कीर्ति को इस बात का अहसास हो गया कि, मुझे उसका जीतेन से बात करना पसंद नही आया है. उसने इस बात पर अपनी सफाई देते हुए कहा.
कीर्ति बोली “ये तुम कैसी बात कर रहे हो. यदि जीतेन ने अपने आने की खबर देने के लिए, मुझे फोन लगाया और मैने उस से थोड़ी सी बात कर ली तो, इसमे इतना बुरा मानने की बात क्या है.”
मगर कीर्ति की इस सफाई को सुनकर मेरा मूड सुधरने की जगह और भी बिगड़ गया. मैने उस पर अपनी खीज निकलते हुए कहा.
मैं बोला “ये थोड़ी सी बात है. मैने तुझे 10:45 पर कॉल लगाया था. तब तेरी उस से बात चल रही थी और अब पूरे 45 मिनिट बाद, तू 11:30 बजे मुझे कॉल लगा रही है. मेरे कॉल लगाने के, पता नही कितनी देर पहले से, तेरी उस से बात चल रही थी और तू इसे थोड़ी सी बात करना कह रही है. यदि ये थोड़ी सी बात है तो, फिर ज़्यादा बात करना किसे कहते है.”
मेरी इस बात से कीर्ति का मूड भी खराब हो गया. उसे लगा कि, मैं उसके किसी से बात करने पर उंगली उठा रहा हूँ. इसलिए उसने भड़कते हुए मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “यदि मैने उस से एक घंटे भी बात कर ली तो, कौन सा पहाड़ टूट गया. तुम भी तो फोन पर, किसी के भी साथ, घंटो लगे रहते हो, लेकिन मैं तो तुमसे इस बात कि, कभी कोई शिकायत नही करती हूँ. जब मुझे तुम्हारे किसी से बात करने मे कोई परेसानी नही होती है तो, फिर तुम्हे मेरे किसी से बात करने मे परेशानी क्यो हो रही है. क्या मैं अपने किसी रिश्तेदार से बात भी नही कर सकती.”
कीर्ति का मेरे उपर ये इलज़ाम लगाना, मुझे हजम नही हुआ. क्योकि मैं उसके सिवा किसी से भी फोन पर इतनी देर बात नही करता था. मैने कीर्ति से इस बात की सफाई माँगते हुए कहा.
मैं बोला “तू ये क्या बके जा रही है. मैने कब तुझे किसी से बात करने से रोका है और मैं तेरे सिवा किसके साथ, फोन पर घंटो बात करता रहता हूँ.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने, ना आव देखा, ना ताव और झट से मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.
कीर्ति बोली “क्यो मैने तुम्हे जब शाम को फोन लगाया था. तब तुमने मौसी से कितनी देर तक बात की थी. क्या मैने तुम्हारी इस बात का कोई बुरा माना था. जो तुम्हे मेरे जीतेन से बात करने का इतना बुरा लग रहा है.”
कीर्ति के इस बेतुके से जबाब को सुनकर, मुझे उस पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन मैने अपने दिमाग़ को शांत रखने की कोसिस करते हुए, उस से कहा.
मैं बोला “तेरा दिमाग़ तो ठिकाने है. तुझे पता भी है कि, तू क्या कह रही है. छोटी माँ से जीतेन की बराबरी करने की, तेरे अंदर सोच भी कैसे आई. वो मेरी माँ है और उनसे मैं चाहे कितनी देर भी बात करूँ. मुझे इसके लिए, तेरे सामने कोई सफाई देने की ज़रूरत नही है.”
मगर अब शायद कीर्ति का दिमाग़ सच मे ठिकाने नही था. उसने मेरी इस बात का बड़ा ही दिल दुखाने वाला जबाब देते हुए, मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “यदि तुम्हे किसी अपने से बात करने मे, मुझे सफाई देने की ज़रूरत नही है तो, फिर मुझे भी मेरे किसी रिश्तेदार से बात करने मे, तुम्हे सफाई देने की, कोई ज़रूरत नही है और मैं कौन सा उस से फोन पर इश्क़ लड़ा रही थी. सिर्फ़ उसका और उसके घर वालों का हाल चाल ही तो पुच्छ रही थी. ऐसा करके मैने कौन सा बड़ा भारी गुनाह कर दिया.”
कीर्ति से मुझे ऐसे जबाब की उम्मीद कभी नही थी. उसकी ये बात मेरे दिल मे तीर की तरह चुभ गयी. क्योकि वो अपने रिश्तेदार की बराबरी मेरी माँ से कर रही थी. जिसे सहन कर पाना मेरे बस मे नही था.
मेरे गुस्सा अब सातवे आसमान पर पहुँच चुका था. अब अपने गुस्से पर काबू रख पाना मेरे बस मे नही था. मैने अपना सारा गुस्सा कीर्ति पर उतारते हुए कहा.
मैं बोला “तेरा जिस से मन करे, तू उसके साथ इश्क़ लड़ा ले. मुझे इस से कोई फरक नही पड़ता. लेकिन उसके पहले, मेरी एक बात, अच्छी तरह से कान खोल कर सुन ले. दोबारा अपने किसी रिश्तेदार की बराबरी, मेरी माँ बहनो से करने की कोशिश मत करना. वरना मुझसे बुरा कोई नही होगा.”
मगर शायद कीर्ति को मेरे गुस्से का अहसास नही हुआ था या फिर शायद आज वो मुझसे किसी भी बात मे, हार ना मानने की ज़िद किए बैठी थी. इसलिए उस पर मेरी इस बात का भी उल्टा ही असर पड़ा. उसने मुझे, मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम्हारे जो मूह मे आ रहा है, तुम बकते जा रहे हो. मैं तुम से प्यार करती हूँ तो, इसका मतलब ये नही है कि, तुम जब चाहे तब, मुझ पर उंगली उठाते रहो और मैं चुप चाप सुनती रहूं. तुम्हे इस तरह मुझ पर उंगली उठाने का कोई हक़ नही है. अपनी हद पार मत करो.”
लेकिन अब मेरे उपर गुस्से का जुनून सवार था और कीर्ति की बातें उस जुनून को और भी बढ़ा रही थी. मैने कीर्ति की बात को बीच मे काटते हुए कहा.
मैं बोला “अपने दो कोड़ी के रिश्तेदार से मेरी माँ की बराबरी करके, आज सारी हदें तो तूने पार की है. मेरे लिए, मेरी माँ बहनों से बढ़कर दुनिया मे कोई भी नही है. यहाँ तक कि तू भी नही.”
“तू अपना प्यार अपने पास ही रख. मुझे तेरे प्यार की कोई ज़रूरत नही है. अब तू जा और जिस से, जितनी देर बात करना चाहती है, कर सकती है. अब मुझे इस से कोई परेशानी नही है. क्योकि आज से तू मेरे लिए मर चुकी है और ये मेरी तुझसे आख़िरी बात थी.”
अपनी आख़िरी बात कहते कहते मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मेरी बात के जबाब मे, कीर्ति कुछ कहने को हुई. लेकिन मैने उसकी बात सुने बिना ही, कॉल काट दिया और दोनो मोबाइल बंद कर दिए.
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