RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अपनी आख़िरी बात कहते कहते मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मेरी बात के जबाब मे, कीर्ति कुछ कहने को हुई. लेकिन मैने उसकी बात सुने बिना ही, कॉल काट दिया और दोनो मोबाइल बंद कर दिए.
मगर मोबाइल बंद करते ही, मुझे अपने अंदर, बहुत कुछ टूटता सा महसूस होने लगा. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे मैने अपना मोबाइल नही बल्कि अपने दिल की धड़कनो को बंद कर दिया हो. बंद मोबाइल को देख देख कर, कीर्ति की कमी के अहसास से मेरी जान निकली जा रही थी और मेरे आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे.
एक तरफ कीर्ति की कही बातों से, मेरे सीना छल्नि हो गया था तो, दूसरी तरफ उनकी कमी का अहसास मुझे खून के आँसू रोने को मजबूर कर रहा था. मैं ना तो उसकी उन बातों का दर्द मैं सह पा रहा था और ना ही उसकी जुदाई का दर्द सह पा रहा था.
कल तक जो लड़की मेरे लिए, सारी दुनिया से लड़ने को तैयार थी. आज वो ही किसी तीसरे के लिए, मुझसे ही लड़ गयी थी. मैं अभी भी इस बात का यकीन नही कर पा रहा था और मेरे दिल, बार बार कीर्ति से बस एक ही सवाल करना चाह रहा था कि, “जान तुमने ऐसा क्यो किया. क्या यही तुम्हारा प्यार था. क्या तुम्हारे लिए मेरी बस इतनी ही अहमियत थी.”
मेरा दिल कीर्ति से हज़ारों सवाल करना चाह रहा था मगर मेरे दिल के इन सवालों का जबाब देने के लिए कीर्ति मेरे पास नही थी. कीर्ति के इस बर्ताव की वजह से ना तो मेरी उस से नाराज़गी कम हो पा रही थी और ना ही इस की वजह से, मेरे दिल मे उसके लिए प्यार कम हो पा रहा था. मैं क्या करूँ या क्या ना करूँ, कुछ समझ मे नही पा रहा था और बस रोए जा रहा था.
मैं चाह कर भी कीर्ति के इस बर्ताव को, ना तो भुला पा रहा था और ना ही अपने आपको उस से बात करने के लिए तैयार कर पा रहा था. मगर उसके बिना गुजरने वाला हर पल, मेरे उपर मौत से भी बदतर कर गुजर रहा था और उसके बिना मेरी जान निकली जा रही थी.
मेरी बेचेनी हद से ज़्यादा बढ़ गयी थी और अब मेरे पास इस सब से बाहर निकलने के, बस दो ही रास्ते बचे थे. एक तो ये कि मैं अभी अपने मोबाइल चालू करके, कीर्ति से बात कर लूँ या फिर दूसरा ये कि मैं अपने आपको शराब मे इतना डुबो दूं कि, कीर्ति को याद ही ना कर सकूँ.
लेकिन कीर्ति के बर्ताव ने मुझे इतनी बुरी तरह से तोड़ दिया था कि, अब मेरे अंदर उस से बात करने की ताक़त ही नही बची थी. इसलिए मैने खुद को शराब मे डुबो देने का फ़ैसला किया और बाहर हॉल से, उस दिन की आधी बची हुई ओल्ड मॉंक रूम की बोतल, सोडा और कुछ ड्राइ फ्रूट ले लाया.
मैं बेड पर बैठ गया और पेग बनाने लगा. मैने पेग बनाया और एक बार मे ही पूरा पेग पी लिया. जिस से मुझे मेरे सीने मे कुछ जलन सी हुई. लेकिन इस जलन से मेरे दिल को कुछ राहत सी महसूस हुई.
फिर मैने एक बाद एक, दो पेग पिए, जिस से मुझे कुछ हल्का हल्का सुरूर महसूस होने लगा. मगर इस नशे के सुरूर मे भी, कीर्ति मेरे दिल और दिमाग़ पर छाई हुई थी. मैं अभी भी उसी के बारे मे सोच रहा था.
इस नशे की हालत मे, कीर्ति की याद ने मुझे कुछ ज़्यादा ही पागल कर दिया और अब मुझे कीर्ति की उस दिन की बात याद आने लगी थी, जब मैं शराब के नशे मे चूर था और वो मुझे किसी छोटे बच्चे की तरह सुलने की कोसिस कर रही थी.
कीर्ति का वो प्यार भरा पल याद आते ही, मेरी आँख एक बार फिर छलक उठी, अब मेरी कीर्ति की जुदाई सहने की ताक़त जबाब दे चुकी थी. मुझे लग रहा था कि यदि मैने अभी कीर्ति से बात नही की तो, मैं तड़प कर मर जाउन्गा.
आख़िर मे मैने खुद से हार मानते हुए, कीर्ति से बात करने का फ़ैसला किया और अपने दोनो मोबाइल चालू कर दिए. मोबाइल चालू करते ही, दोनो मोबाइल पर कीर्ति का एक ही मेसेज आया.
कीर्ति का मेसेज “तुमने मेरे मूह पर मोबाइल बंद करके अच्छा नही किया. तुम अपने आपको समझते क्या हो. तुमको इतना घमंड किस बात का है. अपना घमंड अपने पास ही रखो. मुझे अपना घमंड दिखाने की कोशिश मत करो. यदि तुम मेरे बिना रह सकते हो तो, मैं भी तुम्हारे बिना रह सकती हूँ. अब मैं तुमसे कभी बात नही करूगी.”
कीर्ति का मेसेज पढ़ कर, मेरा दिल एक बार फिर छल्नि छल्नि हो गया. मैने कीर्ति को कॉल लगाने का अपना फ़ैसला, ये सोच कर बदल दिया कि, यदि वो मेरे बिना रह सकती है तो, फिर मैं भी उसे, उसके बिना रह कर दिखाउन्गा.
मगर कीर्ति के बिना रहने की सोच कर ही, एक बार फिर मेरा दिल रो उठा. अब मेरे पास खुद को शराब के नशे मे पूरी तरह से डुबो देने के सिवा, कोई दूसरा रास्ता नही बचा था और मेरे हाथ खुद ही उस चौथे पेग की तरफ बढ़ गये, जो मैने बना कर रखा था.
अभी मैने पेग उठाया ही था कि, तभी कीर्ति का फोन आने लगा. शायद मेरे पास उसका मेसेज पहुचते ही, वो समझ गयी थी कि, मैने मोबाइल चालू कर दिए है. इसलिए उसने मोबाइल चालू होने के, कुछ ही देर बाद कॉल लगा दिया था. मैने भी बिना कुछ सोचे उसका कॉल उठाते हुए, उस कहा.
मैं बोला “हाँ बोलो.”
कीर्ति बोली “तुम्हे मेरा मेसेज मिल गया.”
मैं बोला “हाँ मिल गया.”
कीर्ति बोली “बस यही पुच्छने को कॉल किया था.”
मैं बोला “और कुछ बोलना है.”
कीर्ति बोली “नही और कुछ नही बोलना.”
मैं बोला “ठीक है और कुछ नही बोलना तो, अब फोन रखो.”
कीर्ति बोली “मैं ही क्यो फोन रखूं. तुम मेरे मूह पर फोन काट सकते हो तो, फोन रख भी सकते हो.”
मैं बोला “मुझे तुमसे फालतू की बहस नही करना. यदि तुम्हे कुछ बोलना है तो बोलो, वरना फोन रखो.”
कीर्ति बोली “मुझे कुछ नही बोलना. लेकिन मैं फोन नही रखुगी. फोन तुमको ही रखना पड़ेगा.”
मैं बोला “फोन तुमने लगाया है, इसलिए फोन तुम ही रखो.”
कीर्ति बोली “मैं तुम्हारी नौकर नही हूँ, जो तुम कहो उठो तो, उठ जाउ और तुम कहो बैठो तो, बैठ जाउ. मैं एक बार फोन नही रखुगी तो, मतलब की मैं फोन नही रखूँगी. फोन तुमको ही रखना पड़ेगा.”
मैं बोला “ना मैने फोन लगाया है और ना मैं फोन रखुगा.”
कीर्ति बोली “तो ठीक है, फोन चालू रहने दो. एक घंटा पूरा होने पर फोन खुद ही कट जाएगा.”
मैं बोला “मैं बेकार मे एक घंटे तक फोन पकड़ कर बैठा नही रह सकता.”
कीर्ति बोली “मैने तुमसे कब कहा की, तुम फोन पकड़ कर बैठे रहो. तुम फोन एक किनारे रख दो.”
अब मैने उस से बेकार मे बहस करना ठीक नही समझा. मैने हाथ मे पकड़ा हुआ पेग टेबल पर रख कर, मोबाइल को कान से लगाए लगाए ही लेट गया और आँखे बंद करके, कीर्ति को महसूस करने की कोशिश करने लगा.
लेकिन कीर्ति की तरफ से, उसकी सासों के सिवा कोई आवाज़ नही आ रही थी. शायद वो भी मेरी हरकत को महसूस करने की कोसिस कर रही थी. लेकिन ना तो वो मुझसे कुछ बोल रही थी और ना ही मैं उस से कुछ बोल पा रहा था.
इसकी वजह ये थी कि, अभी तक हम दोनो की, दूसरे से नाराज़गी ख़तम नही हुई थी. उसे मुझसे बहुत सी शिकायत थी तो, मुझे भी उस से बहुत सी शिकायत थी. जिस वजह से हम दोनो एक दूसरे से कोई बात नही कर पा रहे थे.
लेकिन कीर्ति के मेरे पास होने के अहसास से ही, मेरे दिल को जो राहत मिली थी. उस राहत से मेरी उड़ी हुई नींद फिर से वापस आ गयी और मुझे पता ही नही चला कि, मैं फोन पकड़े पकड़े, कब गहरी नींद की आगोश मे चला गया.
सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो, मुझे याद आया कि, रत को मैं चालू मोबाइल पकड़े पकड़े ही सो गया था. ये बात याद आते ही मैने फ़ौरन मोबाइल को उठा कर रात का कॉल देखा तो, पाया कि रात को मोबाइल पूरे एक घंटे तक चलने के बाद बंद हुआ था.
जिसका मतलब यही था कि, कीर्ति मेरे सो जाने के बाद भी, कॉल काटने का इंतजार करती रही. लेकिन ये जानने के बाद भी, मेरी नाराज़गी उस से ख़तम नही हुई थी और उसकी रात की बातें मेरे दिमाग़ मे घूम रही थी. उसने जिस तरह से मेरी बेज़्जती की थी, वो मैं चाह कर भी भूल नही पा रहा था.
यही वजह थी कि, आज सुबह उठने के बाद, मैं रोज की तरह, उसे कॉल लगाने की ताक़त नही जुटा पा रहा था. मैं इस बात को भी अच्छी तरह से जानता था कि, यदि मैं उसे सुबह कॉल नही लगाता हूँ तो, हो सकता है कि वो भी मुझे दिन भर या रात को कोई कॉल ना करे.
इस सब के बाद भी, मैं अपने आपको, कीर्ति को कॉल लगाने के लिए तैयार नही कर पा रहा था. क्योकि मेरे दिमाग़ मे बार बार, कीर्ति की बस ये ही बात घूम रही थी कि, “तुम्हे इस तरह मुझ पर उंगली उठाने का कोई हक़ नही है. अपनी हद पार मत करो.”
यदि मुझे कीर्ति को कुछ कहने का हक़ नही था तो, फिर उस से बात करने का या इस रिश्ते को आगे बढ़ाने का कोई मतलब ही नही रह जाता था. क्योकि मेरे प्यार की तो, कोई हद ही नही थी. मेरा सोना जागना, खाना पीना, हसना रोना सब कीर्ति से ही था और अब वो ही मुझे मेरी हद दिखा रही थी.
आख़िर मे मैने सब कुछ कीर्ति के उपर ही छोड़ते हुए, भारी मान से उसे कॉल ना लगाने का फ़ैसला किया और उठ कर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद, मैं हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार होने लगा और तैयार होते होते मुझे 7:15 बज गया.
मैं तैयार होने के बाद, घर को लॉक करके बाहर निकला ही था कि, तभी अजय की टॅक्सी मेरे सामने आकर रुकी. उसकी टॅक्सी मे शिखा बैठी हुई. जिस से समझ मे आ रहा था कि, वो शिखा को छोड़ने घर जा रहा था. लेकिन शायद उसे कोई काम याद आ गया और वो शिखा को लेकर यहाँ आ गया.
अजय ने टॅक्सी से नीचे उतरते हुए शिखा से कुछ देर इंतजार करने को कहा और फिर मुझे आँखों से अंदर चलने का इशारा किया. मुझे कुछ समझ मे तो नही आ रहा था. फिर भी उसके इशारे को समझते हुए मैं चुप चाप अंदर आ गया.
अंदर आते ही अजय एक दूसरा गॅरेज खोलने लगा. मुझे लगा कि शायद वो अपनी कोई दूसरी कार निकलेगा. लेकिन गॅरेज खुलते ही मुझे वहाँ पल्सार, यूनिकॉर्न, करिज़्मा और स्प्लेनडर+ बाइक नज़र आई. इस से पहले कि मैं कुछ समझ पाता, अजय ने मुझसे कहा.
अजय बोला “इन मे से जो भी बाइक तुम्हे पसंद हो, तुम उसे इस्तेमाल कर सकते हो.”
मैं बोला “लेकिन इसकी क्या ज़रूरत है. मैं तो टॅक्सी से आता जाता हूँ और मुझे हॉस्पिटल के सिवा कहीं आना जाना भी नही रहता है.”
अजय बोला “बहुत ज़रूरत थी. घर मे मे चार चार बाइक होते हुए भी, तुम्हारा टॅक्सी से आना जाना मुझे अच्छा नही लग रहा था. रात को मैं जल्दी मे तुम्हे ये बताना भूल गया था और अब तुम्हारा हॉस्पिटल जाने का टाइम हो रहा था. इसलिए मुझे शिखा को घर छोड़ने से पहले तुम्हारे पास आना पड़ा है.”
मैं बोला “क्या शिखा को मालूम है कि, ये तुम्हारा घर है.”
अजय बोला “नही, अमन और निशा के सिवा इस घर के मालिक को कोई नही जानता. क्योकि मैं यहाँ बहुत कम रहता हूँ. अभी भी मैने शिखा से यही कहा है कि, मुझे डॉक्टर अमन के फरन्ड को एक ज़रूरी मेसेज देना है और वो डॉक्टर अमन के दूसरे बंगलो मे ठहरा है.”
मैं बोला “लेकिन शिखा तो, ये जानती है कि, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ. फिर वो अब मुझे यहाँ देख कर, तुमसे कुछ पुछेगि नही.”
अजय बोला “वो ऐसा कुछ नही पुछेगि. क्योकि उसने तुम्हे उपर अंकल के पास देखा था और अमन ने शिखा से अंकल को अपने दोस्त का पिता बताते हुए, उनका खास ख़याल रखने को कहा था. कल सुबह जब शिखा ने तुम्हे मेरे साथ देखा था. तब वो तुम्हे पहचान नही पाई थी.”
“उसके बाद उसने मुझसे तुम्हारे बारे मे पुछा तो, मैने उसे बताया कि, तुम डॉक्टर अमन के दोस्त हो और डॉक्टर अमन ने मुझसे तुम्हारा ख़याल रखने को कहा है और अब मेरी भी तुमसे दोस्ती हो गयी है.”
मैं बोला “लेकिन शिखा से ये झूठ बोलने की ज़रूरत क्या थी. यदि वो ये सब जान भी लेती तो क्या फरक पड़ जाता.”
मेरी बात सुनकर अजय को हँसी आ गयी. उसने मुस्कुराते हुए, मेरी बात का जबाब देते हुए कहा.
अजय बोला “ये सब बातें हम फ़ुर्सत मे बैठ कर लेगे. अभी तो मुझे जाना होगा, क्योकि बाहर शिखा मेरा इंतजार कर रही है. उसे ज़्यादा इंतजार करवाना अच्छा नही होगा. तुम ज़्यादा सोचना मत और जिस बाइक को ले जाने का मन करे, अपनी ही समझ कर ले जाना. मुझे तुम्हारे ऐसा करने से बहुत खुशी होगी. अब मैं चलता हूँ.”
ये कह कर अजय मेरा कोई जबाब सुने बिना ही वापस चला गया. मैं हैरानी से उसे जाता हुआ देखता रहा. मैं समझ नही पा रहा था कि, कोई एक दो दिन की मुलाकात मे ही, किसी के लिए इतना सब कुछ कैसे कर सकता है.
मैं अजय की सोच मे गुम था और तभी मुझे उसकी टॅक्सी के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी और फिर धीरे धीरे उसकी टॅक्सी की आवाज़ आना बंद हो गयी. वो जिस काम से आया था, उसे पूरा कर के जा चुका था.
मैने एक नज़र चारों बाइक पर डाली. चारों ही बाइक एक से बढ़ कर एक थी. लेकिन मैने अपने लिए स्प्लेनडर+ को चुना. क्योकि मेरे पास घर मे भी स्प्लेनडर+ ही थी. मैने बाइक को बाहर निकाला और गॅरेज को बंद करने के बाद, मेन गेट को लॉक करके बाहर आ गया.
पहली बार मुंबई की सड़क पर, बाइक चलाने मे कुछ घबराहट सी हो रही थी. लेकिन फिर मैने बाइक को स्टार्ट किया और बाइक आगे बढ़ा दी. कुछ दूर बाइक चलाने के बाद, मेरी घबराहट खुद ही दूर हो गयी और फिर मैं कुछ ही समय बाद हॉस्पिटल पहुच गया.
मैने बाइक पार्क की और समय देखा तो, अभी सिर्फ़ 7:45 बजे थे. मैने मेहुल को कॉल लगाया और अपने आ जाने की खबर दे दी. फिर उसके बाद मैं प्रिया के पास चला गया.
प्रिया के पास अभी भी निक्की ही थी. मैने उस से राज के बारे मे पुछा तो, उसने बताया कि, राज सुबह 7 बजे ही घर चला गया था और अब घर से किसी के आने के बाद ही वो घर जाएगी.
प्रिया की हालत पहले से बहुत अच्छी नज़र आ रही थी. मेरी उस से भी थोड़ी बहुत बात हुई. तब तक मेहुल भी हमारे पास आ चुका था. फिर 8:15 बजे रिया और अंकल आ गये. अंकल ने निक्की से घर जाने को कहा तो, मैं निक्की और मेहुल के साथ बाहर आ गया.
मेहुल टॅक्सी देखने लगा तो, मैने उसे बाइक ले जाने को कहा. मेरी बात सुनकर निक्की को तो, कोई आश्चर्य नही हुआ. लेकिन मेहुल चौक कर मुझे देखने लगा. तब मैने उसे बताया कि, मैं जिस दोस्त के पास रुका हूँ, ये उसकी ही बाइक है. इसके बाद मेहुल 3 बजे तक आने की बोल कर, निक्की को बाइक पर लेकर घर चला गया.
मेहुल के जाने के बाद मैं अंकल के पास आ गया. इसके बाद का मेरा सारा समय कभी अंकल के पास तो, कभी प्रिया के पास रहते गुजर गया. इस बीच दादा जी और आंटी भी आ चुके थे और अंकल अपने ऑफीस जा चुके थे.
आंटी ने 12 बजे मुझसे खाने के लिए पुछा तो, मैने कह दिया कि, मैं नाश्ता करके आया हूँ और अब अपने दोस्त के साथ ही खाना खाउन्गा. जबकि हक़ीकत तो ये थी कि, आज मैने सुबह से एक चाय तक नही पी थी.
सुबह से मेरी कीर्ति से कोई बात नही हुई थी. जिस वजह से मेरी भूख प्यास दोनो मर चुकी थी और मेरा कुछ भी खाने पीने का मन नही कर रहा था. जिस वजह से मुझे आंटी से झूठ बोलना पड़ा था.
लेकिन कुछ ही देर बाद अजय का कॉल आ गया. वो शायद नींद से अभी अभी जागा था. उसने अल्साते हुए, मुझसे कहा.
अजय बोला “यार, तुम्हारे खाने का क्या सोचा है.”
मैं बोला “मेरे खाने के चिंता मत करो, मैं किसी रेस्टोरेंट मे खा लुगा.”
अजय बोला “ऐसे कैसे तुम किसी रेस्टोरेंट मे खाना खा लोगे. जब तक तुम मेरे घर मे हो. तुम्हारे खाने पीने की जबाब दारी मेरी है.”
मैं बोला “यार तुम क्यो बेकार मे परेशान होते हो. तुम भी तो मुझे बाहर से ही खाना मंगवा कर खिलाओगे ना. ऐसे मे यदि मैं खुद ही बाहर खाना खा लेता हूँ तो, इसमे बुरा क्या है.”
मेरी बात सुनकर, अजय हँसने लगा और फिर उस ने मुझसे मज़ाक करते हुए कहा.
अजय बोला “भाई, हम ग़रीब लोगों को कभी कभी ही किसी होटेल मे खाना खाना नसीब होता है. बाकी दिन तो घर के खाने से ही गुज़ारा करना पड़ता है. वैसे भी तुमने मुझसे वादा किया था कि, किसी दिन मेरे साथ खाना ज़रूर खाओगे तो, समझ लो वो दिन आज आ गया.”
अजय और अजय की बातें, दोनो ही मेरे सर के उपर से गुजर रहे थे. इसलिए मैने उस से ज़्यादा बहस करना ठीक नही समझा और उसे खाने के लिए हाँ कर दिया. मेरे मूह से हाँ सुनते ही, उसने खुश होते हुए मुझसे कहा.
अजय बोला “तुम हॉस्पिटल से कितने बजे फ़ुर्सत होगे.”
मैं बोला “3 बजे.”
अजय बोला “तो क्या तुम 3 बजे तक भूखे ही रहोगे.”
मैं बोला “नही, ऐसी बात नही है. मैं यहाँ चाय नाश्ता कर चुका हूँ. वैसे तो मैं 12 बजे घर चला जाता था. लेकिन आज से मैं रात को हॉस्पिटल मे रूकुगा. इसलिए आज 3 बजे तक यहाँ रुका हूँ.”
अजय बोला “ठीक है, मैं 3 बजे घर पहुचो, मैं तुमको वही मिलता हूँ.”
मैं बोला “ओके.”
इसके बाद अजय ने कॉल रख दिया और मैं फिर से हॉस्पिटल मे बिज़ी हो गया. लेकिन मुझे रह रह कर कीर्ति की याद सता रही थी. मगर ना तो मैं उसको कॉल लगा रहा था और ना ही उसकी तरफ से कोई कॉल आ रहा था.
आख़िर कीर्ति को याद करते करते किसी तरह बाकी का समय भी गुजर गया. फिर 3 बजे मेहुल और राज आ गये. मेरी उनसे थोड़ी बहुत बात हुई और फिर रात को 10 बजे आने की बोल कर मैं वहाँ से घर के लिए निकल गया.
मैं 3:15 बजे घर पहुचा तो, अजय मुझे घर के बाहर ही, मेरा इंतजार करते हुए मिल गया. वो इस समय बिल्कुल साधारण से कपड़ो मे था और एक ऐक्टिवा पर बैठा मेरा इंतजार कर रहा था.
मुझे समझ मे नही आया कि, अब ये अक्तिवा कहाँ से आ गयी और ये घर के बाहर बैठ कर मेरा इंतजार क्यो कर रहा है. बस यही सोचते हुए मैने अपनी बाइक अजय के पास रोक दी.
लेकिन मुझे आता देखते ही अजय ने अपनी अक्तिवा स्टार्ट कर ली थी और मेरे उसके पास पहुचते ही, उसने मुझसे कहा.
अजय बोला “यहाँ रुकने की ज़रूरत नही है, मेरे पिछे पिछे आओ और रास्ता अच्छे से याद कर लेना.”
मुझे उसकी बात समझ मे नही आई. लेकिन मैने चुप चाप बाइक उसके पिछे लगा दी और रास्ते को याद रखते हुए, उसके पिछे पिछे चलने लगा. करीब 5 मिनिट अजय के पिछे चलने के बाद, हम लोग बड़ी बड़ी इमारतों को पिछे छोड़ते हुए, छोटे छोटे घर मकानो की तरफ आ गये.
कुछ दूर चलने के बाद अजय ने अपनी अक्तिवा एक गली के अंदर डाल दी. मैं भी उसके पिछे पिछे चल रहा था. उस गली मे कुछ दूर तक चलने के बाद, अजय ने अपनी अक्तिवा एक दो मंज़िला मकान के सामने रोक दी.
मकान देख कर ही समझ मे आ रहा था कि, वहाँ कोई मध्यम वर्गिया परिवार (मिड्ल क्लास फॅमिली) रहता है. लेकिन उसी मकान से थोड़ी दूरी पर, खाली पड़े मैदान मे अजय की टॅक्सी खड़ी थी. जिसे देख कर, मुझे लगा कि, शायद ये अजय का दूसरा मकान है.
उस मकान के सामने एक छोटा सा आँगन था. जो कि तीन तरफ दीवारों से घिरा हुआ था और जिसके सामने एक छोटा सा गेट लगा हुआ था. अजय ने गेट खोल कर अपनी अक्तिवा को आँगन मे रखा और फिर बाहर आकर मुझे भी बाइक अंदर रखने को कहा.
अजय के कहने पर मैने बाइक लाकर अंदर आँगन मे खड़ी कर दी और फिर घर के आँगन को देखने लगा. आँगन ज़्यादा बड़ा तो नही था, लेकिन बहुत ही सॉफ सुथरा था और उसकी चार दीवारी (बाउंड्री वॉल) के किनारे किनारे फूलों के पौधे (प्लॅंट्स) लगे हुए थे. जिनमे रंग बिरंगे फूल खिले होने के कारण, वो बहुत ही सुंदर लग रहे थे.
इसके बाद मैने एक नज़र घर की तरफ डाली तो, घर की निचली मंज़िल (ग्राउंड फ्लोर) के सामने के, कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. मगर दरवाजे पर पर्दे लगे हुए थे. जिस वजह से अंदर का कुछ भी नज़र नही आ रहा था.
मगर घर को इस तरह से खुला हुआ देख कर, मैं ये सोचने पर मजबूर हो गया कि, अजय तो अभी मेरे साथ, बाहर से आ रहा है. लेकिन घर पहले से ही खुला हुआ है. तो क्या इस घर मे अजय के साथ और कोई भी रहता है. यदि कोई रहता है तो, उसका अजय से रिश्ता क्या है और अजय ने इस बात को अभी तक राज़ क्यों रखा है.
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