RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मुझे उस लड़की या उसके नाम को जानने मे, कोई खास दिलचस्पी नही थी. क्योकि मुझे जिस लड़की मे दिलचस्पी थी. वो भले ही इस वक्त मुझसे नाराज़ चल रही थी, फिर भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और ये ही बात मुझे मन ही मन गुदगुदा रही थी.
लेकिन जैसे ही मैने अजय के मूह से, प्रिया का नाम सुना तो, मेरे दिमाग़ मे एक बॉम्ब सा फुट गया और एक साथ कयि सवाल मेरे दिमाग़ मे उठने लगे. मैं अपने दिमाग़ मे उठ रहे, इन सवालों का जबाब जानने के लिए, अजय की तरफ सवालिया नज़रों से देखने लगा.
अजय मेरे इस तरह से देखने का मतलब समझ चुका था. उसने मेरी इस बेचेनी को देखते हुए, मुझसे कहा.
अजय बोला “ये बात सुनकर जैसे सवाल तुम्हारे दिमाग़ मे आ रहे है. कुछ ऐसे ही सवाल, जब मुझे इस बात का पता चला था, मेरे दिमाग़ मे भी आ रहे थे. लेकिन इस बात को करने के लिए, ना तो ये समय ठीक है और ना ही ये जगह ठीक है. इसलिए अभी तो तुम सिर्फ़ खाना खाओ. तुम्हारे सारे सवालों का जबाब, मैं तुमको आज रात को हॉस्पिटल मे दूँगा.”
अजय की ये बात सुनकर, मैने भी उस से कोई सवाल करना ठीक नही समझा और खाना खाने लगा. लेकिन कीर्ति अभी भी मेरे साथ फोन पर बनी हुई थी और मैं चाहता था कि, कम से कम वो मेरे खाना खाते तक मेरे साथ फोन पर बनी रहे.
लेकिन अजय के अभी कोई भी बात बताने से मना कर देने के बाद से, ना तो अजय कुछ बोल रहा था और ना ही मुझे अजय से करने के लिए कुछ बात सूझ रही थी. जिस वजह से हम दोनो चुप चाप खाना खा रहे थे.
मगर अब मुझे अंदर ही अंदर ये डर सताने लगा था कि, कोई भी बात होती ना देख कर, कीर्ति कहीं फोन ना रख दे. इसलिए मैं अजय से बात करते रहना चाहता था और जब मुझे करने के लिए कोई बात नही सूझी तो, मैं खाना खाते से बीच मे उठा और बेड पर रखे अख़बार को उठाते हुए अजय से कहा.
मैं बोला “तुमने आज के अख़बार मे छपी ये कविता पर पढ़ी है.”
अजय बोला “नही, आज मुझे अख़बार पढ़ने का टाइम ही नही मिला. क्या तुमको कविता पढ़ने का शौक है.”
मैं बोला “नही, मुझे कविता पढ़ने का शौक तो नही है. मगर अख़बार के पन्ने पलटते पलटते मुझे ये कविता नज़र आ गयी और जब इसे पढ़ा तो, मुझे बहुत पसंद आई.”
अजय बोला “हाँ, हर सोमवार (मंडे) और बुधवार (वेडनेसडे) को इसमे बहुत अच्छी अच्छी कविताएँ और शेर-शायरी आती है. लेकिन मुझे इन सब मे कोई ज़्यादा रूचि नही है.”
मैं बोला “रूचि तो मुझे भी नही है. लेकिन मुझे ये कविता बहुत पसंद आई. तुम भी सुनो शायद तुम्हे भी पसंद आए.”
ये कह कर मैं अजय को अख़बार मे छपी कविता सुनाने लगा. असल मे मैं वो कविता कीर्ति को सुनाना चाहता था, इसलिए मैने उस कविता मे थोड़ा फेर बदल कर के, उसे एक लड़के के नज़रिए से पढ़ कर सुनाने लगा.
“प्रतीक्षा”
“बस तेरी प्रतीक्षा मे, गुज़ार दी जिंदगी हम ने.
तुम जो आई नही तो, उजाड़ ली जिंदगी हम ने.
सब्र की सीमाएँ थी, हम प्रतीक्षा कब तक करते.
काग़ज़ों को स्याहियों से, हम भरा कब तक करते.
तुमने ना भूलने की, हम से कसम ले डाली थी.
छोड़ कर ना जाउन्गी, अपनी बात भी उसमे डाली थी.
एक अगर रूठेगा तो, उसे दूसरा मनाएगा.
वादे ये प्यार के, कोई तोड़ कर ना जाएगा.
वादा निभाया मैने, और लाज बच गयी तेरी भी.
अगले जनम मे मिलने की, आस बच गयी मेरी भी.
मुक्त करता हूँ तुमको, तेरे भूले बिसरे वादों से.
मत करना तुम ग्लानि कभी, अपने अधूरे वादों से.”
अजय को पूरी कविता सुना देने के बाद, मेरे चेहरे पर खुद ही मुस्कुराहट आ गयी. मेरी इस मुस्कुराहट की वजह ये थी कि, मैने कविता के ज़रिए ही सही, मगर कीर्ति को अपने दिल की बात कह दी थी.
यदि ये ही कविता मैने कीर्ति को मेसेज मे भेजी होती तो, उसका जबाब ज़रूर आया होता. लेकिन अभी हम दोनो की ही एक दूसरे से नाराज़गी ख़तम होने का नाम नही ले रही थी. जिसकी वजह से, इस झगड़े को ख़तम करने की पहल ना तो कीर्ति की तरफ से हो रही थी और ना ही मैं कोई पहल कर रहा था.
लेकिन इस झगड़े के बाद भी हम दोनो का एक दूसरे के साथ बने रहना, इस बात का सबूत था कि, हमारे दिल मे एक दूसरे के लिए कितना प्यार है. भले ही हम एक दूसरे से कोई बात नही कर रहे थे. मगर हम एक दूसरे से बात करने और एक दूसरे की आवाज़ सुनने के लिए तड़प रहे थे.
यही वजह थी कि, अजय के अभी कोई भी बात बताने से मना कर देने के बाद भी, कीर्ति फोन पर बनी हुई थी और मेरी आवाज़ सुनकर अपने दिल की तड़प को कम कर रही थी और कीर्ति के फोन पर बने रहने से मेरे दिल को भी राहत मिल रही थी.
मेरा और अजय का खाना खाना हो चुका था और अब हम लोग यहाँ वहाँ की बातें कर रहे थे. थोड़ी देर बाद मैने अजय से जाने की इजाज़त माँगी तो, अजय ने रात के खाने के बारे मे पुछा. उसकी इस बात के जबाब मे, मैने उस से कहा.
मैं बोला “दिन का खाना तो अभी शाम को 4:30 बजे खा रहा हूँ और यहाँ से जाने के बाद मुझे जाकर सीधा सोना ही है. ऐसे मे रात को उठते ही मुझे भूख लगने का सवाल ही पैदा नही होता है. यदि फिर भी मुझे रात को भूख लगती है तो, मैं वही कॅंटीन से कुछ लेकर खा लुगा. इसलिए मेरे रात के खाने की, तुम बेकार मे चिंता मत करो.”
मेरी बात सुनने के बाद भी, अजय रात के खाने की ज़िद करता रहा. मगर बाद मे मेरे समझाने पर उसे मेरी बात समझ मे आ गयी. अब मैं जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाना चाहता था. क्योकि अब कीर्ति के कॉल को आए एक घंटा होने वाला था और एक घंटा होते ही उसका कॉल खुद ही कट जाना था.
इसलिए मैं कीर्ति के कॉल के काटने के पहले ही, घर पहुच जाना चाहता था. क्योकि कॉल काटने के बाद, कीर्ति के वापस कॉल लगाने की कोई उम्मीद नही थी और उसका कॉल काटते ही, मुझे जो सूनापन महसूस होने वाला था, मैं उस से बचना चाह रहा था.
यही सब सोचते हुए मैने अजय से रात को हॉस्पिटल मे मिलने की बात कही और फिर उसे बाइ बोल कर, मैं उसके दूसरे घर के लिए निकल लिया. लेकिन मेरी बाइक चलाते हुए भी मेरी नज़र मोबाइल पर ही थी.
मैं अभी अजय के घर से कुछ ही दूर पहुचा था कि, एक दम से मोबाइल की स्क्रीन चमकने लगी. ये देखते ही मैं उदास हो गया, क्योकि कीर्ति का कॉल कट चुका था. एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म से जान ही निकल गयी हो. मेरे अंदर का सारा जोश ठंडा पड़ गया.
लेकिन अगले ही पल मेरा चेहरा खुशी से खिल उठा. क्योकि कॉल काटने के थोड़ी ही देर बाद, कीर्ति का कॉल दोबारा आने लगा. मैने कॉल उठाया तो, कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “एक घंटा होने की वजह से कॉल कट गया था, इसलिए वापस कॉल लगाई हूँ.”
मैं बोला “ओके, अभी मैं बाइक चला रहा हूँ. यदि तुम कॉल रखना चाहती हो तो रख सकती हो. मैं मोबाइल वापस जेब मे रख रहा हूँ.”
मगर मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने कोई जबाब नही दिया. मैने मोबाइल वापस जेब मे रख लिया. लेकिन मेरी नज़र बराबर मोबाइल पर जमी हुई थी और कीर्ति ने अभी भी मोबाइल नही रखा था. मुझे समझ मे नही आया कि, कीर्ति ने अभी तक मोबाइल क्यो नही रखा है.
कीर्ति के मोबाइल ना रखने से मुझे ऐसा लगा. जैसे कि उसको अपनी ग़लती का अहसास हो गया हो और अब वो मुझसे बात करना चाह रही हो. ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैने बाइक तेज़ी से घर की तरफ बढ़ा दी और कुछ ही देर मे, मैं घर पहुच गया.
घर पहुच कर मैने बाइक रखी और सीधा अपने कमरे की तरफ भागा. कमरे मे पहुच कर मैने जल्दी से कपड़े बदले और फिर खुशी खुशी कीर्ति वाला मोबाइल बाहर निकाल कर कान पर लगाया.
लेकिन मेरे कुछ भी बोल पाने के पहले ही, मुझे कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. शायद कीर्ति अपने कमरे से निकल कर, कहीं जा रही थी. थोड़ी देर बाद, मुझे उसके सीडियों से उतरने का आभास हुआ और फिर उसके बाद मुझे कीर्ति की आवाज़ सुनाई दी. उसने छोटी माँ से कहा.
कीर्ति बोली “मौसी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक सी नही है. आज रात को मेरे लिए खाना मत बनाइए.”
कीर्ति की तबीयत सही ना होने की बात सुनकर, मेरा दिल बेचेन हो गया और मुझे उसकी तबीयत की चिंता सताने लगी. वही दूसरी तरफ छोटी माँ ने भी अपनी चिंता जाहिर करते हुए कीर्ति से कहा.
छोटी माँ बोली “ये अचानक तेरी तबीयत को क्या हो गया. सुबह भी तूने कुछ नही खाया और अब रात को भी खाने से मना कर रही है.”
कीर्ति बोली “मौसी आज सुबह से मेरा पेट खराब है, इसलिए कुछ खाने का मन ही नही कर रहा है.”
छोटी माँ बोली “तूने ज़रूर कुछ उल्टा सीधा खा लिया होगा. तभी तेरा पेट खराब हुआ है.”
कीर्ति बोली “हाँ मौसी, कल रात को मैने कुछ ज़्यादा ही खाना खा लिया था. इसी वजह से कल रात से पेट कुछ ज़्यादा ही आवाज़ कर रहा है. एक दिन इसे भूखा रखुगी तो, इसकी सारी अकल ठिकाने आ जाएगी और दोबारा मेरे सामने ऐसी ग़लती करने की हिम्मत नही करेगा.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे ऐसा लगा, जैसे वो ये बात अपने पेट के लिए नही, बल्कि मेरे लिए कह रही हो. वही उसकी बात सुनकर छोटी माँ हँसे बिना ना रह सकी और उन्हो ने कीर्ति से कहा.
छोटी माँ बोली “अच्छा तो तू भूखा रह कर, अपने पेट को आवाज़ करने की सज़ा दे रही है.”
कीर्ति बोली “हाँ, मैं खुद को भूखा रख कर इसे सज़ा ही दे रही हूँ. इसकी वजह से मैं किसी से बात भी नही कर सकती.”
कीर्ति की बात सुनकर एक बार फिर छोटी माँ की हँसी की आवाज़ गूँज गयी और उन्हो ने हंसते हुए उस से कहा.
छोटी माँ बोली “क्यो, क्या तेरा पेट तुझे किसी से बात करने से रोकता है, जो तू इसकी वजह से किसी से बात भी नही कर पा रही है.”
कीर्ति बोली “और नही तो क्या. जब भी मैं किसी से बात करने जाती हूँ, ये आवाज़ करना सुरू कर देता है. अब भला ऐसे मे किसी से बात करना अच्छा लगता है क्या.”
छोटी माँ बोली “लेकिन अभी तो तेरा पेट ज़रा भी आवाज़ नही कर रहा है.”
कीर्ति बोली “कैसे आवाज़ करेगा. भूखा रहने की वजह से अभी मूह फूला कर बैठा हुआ. मगर अंदर ही अंदर बहुत गुध्गुधा रहा है.”
कीर्ति की बातों से मुझे साफ समझ मे आ रहा था कि, वो कल रात की बातों की वजह से ही खाना नही खा रही है और अपने पेट की आड़ मे, मेरे बारे मे ही बात कर रही है. उसकी इस हरकत पर मुझे उस पर गुस्सा भी आ रहा था और हँसी भी आ रही थी.
वही छोटी माँ भी उसकी इन बातों को मज़े लेकर सुन रही थी. फिर बाद मे उन्हो ने संजीदा होते हुए कीर्ति से कहा.
छोटी माँ बोली “अब मज़ाक बहुत हो गया. ये बता तूने कोई दवाई ली या नही. यदि पेट मे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही हो तो, चल अभी चल कर दवा ले आते है. वरना तेरी तकलीफ़ बढ़ भी सकती है.”
कीर्ति बोली “मौसी चिंता की कोई बात नही है. मैने दवा खा ली है. सुबह तक बिल्कुल आराम लग जाएगा.”
छोटी माँ बोली “ठीक है, मैं तेरे रात के खाने के लिए कुछ हल्का फूलका बना दुगी. यदि तेरे पास पेट की दवा ना हो तो, अभी मॅंगा कर रख लेना. ताकि रात को परेशानी ना हो.”
कीर्ति बोली “ओके, मैं अभी दवा मॅंगा लेती हूँ मगर आप मेरे खाने की चिंता मत करो. मेरा सच मे कुछ भी खाने का मन नही है और हो सकता है कि, कुछ खाने से पेट की तकलीफ़ और भी बढ़ जाए.”
कीर्ति की बात सुनकर छोटी माँ ने उस पर गुस्सा करते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “आए लड़की, अब तू अपना ज़्यादा दिमाग़ मत चला. मुझे पता है कि, कब क्या खाना चाहिए और कब क्या नही खाना चाहिए. यदि तुझे पेट मे ज़्यादा तकलीफ़ हो रही है तो, तू अभी मेरे साथ डॉक्टर के यहाँ चल. नही तो जैसा मैं कह रही हू, वैसा कर. अब बोल तुझे क्या करना है.”
छोटी माँ को गुस्सा करते देख, कीर्ति ने भी उनकी बात मान लेने मे ही अपनी भलाई समझी. उसने बेमन से छोटी माँ से कहा.
कीर्ति बोली “ठीक है मौसी. आप को जो ठीक लगे, आप खाने मे बना दीजिएगा. लेकिन मैं रात का खाना अपने कमरे मे ही खाउन्गी.”
छोटी माँ बोली “ठीक है, तू अपने कमरे मे ही खाना खा लेना. अब तू अपने कमरे मे जाकर आराम कर और कमल को फोन करके पेट की दवा भी मॅंगा ले.”
कीर्ति बोली “जी मौसी, मैं अभी माँगा लेती हूँ.”
इसके बाद उन दोनो की आवाज़ आना बंद हो गयी. शायद कीर्ति अपने कमरे मे वापस आ रही थी. मुझे छोटी माँ का कीर्ति को इस तरह से डाटना बहुत अच्छा लगा था और इस बात की खुशी भी थी कि, छोटी माँ के सामने कीर्ति की एक नही चली और अब उसे रात को खाना खाना ही पड़ेगा.
लेकिन ये बात अभी भी मेरी समझ से बाहर थी कि, कीर्ति की तबीयत सच मे खराब है या फिर वो किसी वजह से तबीयत खराब होने का नाटक कर रही है. अब बात चाहे जो भी थी, मगर मेरे लिए जानना ज़रूरी हो गयी थी.
प्यार का रिश्ता हम दोनो के बीच भले ही कुछ समय पहले बना था. लेकिन इस प्यार का बीज तो हमारे बीच बचपन से ही पनप रहा था. बचपन से ही कीर्ति बहुत गुस्से वाली थी और उसका मुझसे बात बात पर झगड़ा होता रहता था.
मुझे उसकी ये आदत कभी भी समझ मे नही आती थी कि, वो अपने हर काम के लिए मेरा ही नाम लेती थी और फिर बाद मे किसी बात पर मुझसे ही झगड़ा कर लेती थी. कभी कभी मुझे उसकी इस हरकत पर बहुत गुस्सा आता और मैं सोच लेता कि, अब मैं दोबारा उसके घर नही जाउन्गा.
लेकिन वो इस पर भी मेरा पीछा नही छोड़ती और किसी ना किसी बहाने मेरे घर आ जाती और अपनी मीठी मीठी बातों से बहला कर मुझे मना ही लेती. शायद मुझसे झगड़ा करना ही उसके प्यार जताने का एक अंदाज़ था.
मुझे अच्छे से याद है कि, आज से 2 साल पहले कीर्ति के बर्थ’डे पर मैं छोटी मा और अमि निमी के साथ गया हुआ था. बर्थ’डे पार्टी मे कुछ खास महमानो को ही बुलाया गया था, इसलिए ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी.
कीर्ति पिंक कलर की फ्रॉक मे किसी परी की तरह लग रही थी. वो मुझे अपनी सभी सहेलियों से मिलवा रही थी. फिर बाद मे उसने केक काटा और अमि, निमी और कमल को केक खिलाने के बाद, मुझे भी केक खिलाया.
केक खाने के बाद अचानक मेरे पेट मे दर्द होने लगा और मैं एक किनारे आकर खड़ा हो गया. पार्टी मे आए सभी लोग कीर्ति को गिफ्ट दे रहे थे और मैं दूर खड़ा ये सब नज़ारा देख रहा था.
मौसा जी ने कीर्ति के बर्थ’डे गिफ्ट मे उसे एक वीडियो गेम गिफ्ट किया. लेकिन उन्हो ने कीर्ति के साथ साथ मुझे भी एक वीडियो गेम गिफ्ट किया. क्योकि वो मुझे बहुत प्यार करते थे और ये उनकी आदत थी कि, यदि वो कीर्ति के लिए कोई नया गिफ्ट लाते तो, मेरे लिए भी वो गिफ्ट लेकर आते थे.
कीर्ति ने कभी भी इस बात का बुरा नही माना था और ना ही उसे अभी इस बात का कोई बुरा लगा था. उसने खुद मेरे पास आकर मुझे मौसा जी का दिया हुआ गिफ्ट लाकर दिया और फिर मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “मेरा बर्थ’डे गिफ्ट कहाँ है.”
मैं उसकी इस बात का मतलब नही समझा और मैने उस से कहा.
मैं बोला “मुझे क्या पता. सब गिफ्ट तो, तू ही रख रही है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिला कर हँसने लगी और उसके मोतियों की तरह सफेद दाँत चमकने लगे. उसने मेरे सर पर प्यार से एक थपकी मारी और कहा.
कीर्ति बोली “बुद्धू, मैं उस गिफ्ट की बात कर रही हूँ. जो तू मुझे देने के लिए लाया है.”
लेकिन मैं कोई गिफ्ट लेकर नही गया ही नही था और ना ही मैने इसकी कोई ज़रूरत समझी थी. क्योकि छोटी माँ तो कीर्ति के लिए गिफ्ट लेकर गयी ही थी. इसलिए मैने लापरवाही से कहा.
मैं बोला “मैं कौन सा कमाता हूँ, जो मैं कोई गिफ्ट लेकर आता.”
मेरी इस बात से कीर्ति चिड गयी और उसने मुझ पर अपना गुस्सा उतारते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तो क्या मैं कमाती हूँ, जो मैने तेरे बर्थ’डे पर तुझे गिफ्ट दिया था.”
मैं बोला “अरे तो इसमे इतना गुस्सा होने की क्या बात है. मैने तो तुझसे नही कहा था कि, तू मेरे बर्थ’डे पर मुझे कोई गिफ्ट दे. अब फिर मेरा बर्थ’डे आ रहा है. तू भी मुझे कोई गिफ्ट मत देना. हिसाब बराबर हो जाएगा.”
लेकिन मेरी बात सुनकर, कीर्ति की आँखों मे आँसू आ गये. आज के दिन मुझे उसका यूँ आँसू बहाना अच्छा नही लगा और मैने उसे मनाते हुए कहा.
मैं बोला “अब तू इतनी सी बात पर रोना मत सुरू कर, सब मेहमान देखेगे तो, क्या सोचेगे. यदि मैं तेरे बर्थ’डे पर तेरे लिए कोई गिफ्ट नही लाया तो क्या हुआ. मेरे घर से छोटी माँ तो तेरे लिए गिफ्ट लेकर आई है ना.”
मैने तो ये बात कीर्ति को समझाने के लिए बोली थी. लेकिन ना जाने उसने मेरी इस बात का क्या मतलब निकाल लिया था कि, उसकी आँखे गुस्से मे लाल हो गयी और वो मेरी तरफ घूर कर देखने लगी.
थोड़ी देर तक वो मेरी तरफ गुस्से मे घूर कर देखती रही. उसके बाद उसने गुस्से मे मेरे हाथ से मौसा जी का दिया हुआ गिफ्ट छीना और वापस मूड कर पार्टी मे जाने लगी.
लेकिन अभी वो एक दो कदम ही आगे बड़ी थी कि, उसे मेरी आवाज़ सुनाई दी और उसने गुस्से मे पलट कर मेरी तरफ देखा. मगर मेरी तरफ देखते ही उसके हाथ से गिफ्ट छूट कर नीचे गिर गया और उसने घबरा कर मेरी तरफ दौड़ लगा दी.
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