MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:34 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मेरी हँसती खेलती दुनिया, मेरे माता पिता के साथ ही जल कर रख हो गयी. मैं हसना भूल गया, खेलना भूल गया. मुझे हर जगह, हर चीज़ मे मेरे माता पिता की कमी नज़र आती और मैं अकेले मे मूह छुपा कर घंटो रोता रहता.

मैने खेलना कूदना, स्कूल जाना सब बंद कर दिया था और अपने आपको अपने घर मे क़ैद कर लिया था. मैं हर समय उदास रहने लगा. मुझे उदास देख कर मेरे दादा जी और नाना की को भी मेरी चिंता सताने लगी थी.

उनकी इतनी दौलत होने के बाद भी वो मुझे खुश नही रख पा रहे थे. दौलत से वो मुझे हर चीज़ खरीद कर दे सकते थे. मगर मुझे जो चाहिए था, उनकी सारी दौलत भी मुझे खरीद कर नही दे सकती थी. उन्हे भी अपनी इस बेबसी पर रोना आ रहा था.

लेकिन उनकी मजबूरी ये थी कि, मुझे संभालने के लिए वो लोग दिल खोल कर रो भी नही सकते थे. वो बस रात दिन उपर वाले से मेरी खुशियों की दुआ करते रहते थे. ऐसे ही वक्त बीतता रहा और दिन गुज़रते रहे.

लेकिन कहते है कि उपर वाले के घर देर है पर अंधेर नही है. वो सच्चे दिल से की हुई फरियाद ज़रूर सुनता है. उसने देर से ही सही मगर मेरे दादा जी और नाना जी की फरियाद भी सुन ली. मेरे पड़ोस मे धरम पाल खन्ना अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहने आ गये.

धरम पल खन्ना के परिवार मे उनकी पत्नी दिल्प्रीत खन्ना, बड़ी बहू अरुणा खन्ना और छोटा बेटा सुमित पाल खन्ना, छोटी बहू समरीत खन्ना थे. उनके बड़े बेटे का देहांत हो चुका था और उनकी बेटी नलिना खन्ना की शादी मुंबई मे हुई थी और वो अपनी ससुराल मे ही रहती थी.

उनके बड़े बेटे अमित पाल का एक बेटा अमन खन्ना था. छोटे बेटे सुमित पाल के तीन बेटियाँ सीरत खन्ना, सेलिना खन्ना और और अर्चना खन्ना थे.

धरम पल खन्ना के हमारे पड़ोसी होने की वजह से जल्दी ही उनकी दादा जी के साथ दोस्ती हो गयी और फिर दोनो का एक दूसरे के घर मे आना जाना भी होने लगा. एक दिन दादा जी धरम पाल जी के घर गये.

उस समय धरम पाल जी और उनका पोता अमन दोनो मिलकर, उनकी पोती अर्चना के साथ खेल रहे थे. अर्चना उस समय दूदमूहि बच्ची थी. धरम पाल जी को इस तरह अपने पोता पोती के साथ खेलते देख कर दादा जी आँखें भर आई. जब धरम पाल जी ने इसकी वजह पूछी तो दादा जी उन्हे मेरे बारे मे बताया.

मेरे माता पिता की मौत और मेरी हालत के बारे सुनकर धरम पाल जी को बहुत दुख हुआ. उन्हो ने दादा जी की परेसानी को देखते हुए उनको सलाह दी कि, अजय को कुछ दिनो के लिए शहर से बाहर भेज दीजिए. अपने घर से दूर रहने से अजय को अपने माता पिता की यादों से बाहर निकलने का मौका मिलेगा.

दादा जी को उनकी ये सलाह पसंद आई. लेकिन अपने बिज़्नेस की वजह से उन के लिए एक दो दिन से ज़्यादा शहर से बाहर रह पाना मुमकिन नही था. जबकि मेरे लिए कम से कम दस पंद्रह दिन बाहर रहना ज़रूरी थी.

दादा जी की इस समस्या का समाधान भी धरम पाल जी ने कर दिया. उन्हो ने बताया कि अगले हफ्ते वो अपने परिवार के साथ अपनी बेटी की ससुराल मुंबई एक समारोह मे शामिल होने जा रहे है. आप भी अजय को लेकर हमारे साथ चलिए. यदि अजय वहाँ रुकने को तैयार हो जाए तो, उसे हमारे साथ वही छोड़ दीजिएगा.

दादा जी को उनकी ये बात जम गयी. मगर अब भी उनके सामने ये परेसानी बनी हुई थी कि, यदि मैं वहाँ रुकने को तैयार ना हुआ तो, उनकी सारी कोसिस बेकार हो जाएगी. अब दादा जी और धरम पाल जी इस परेसानी का हल भी ढूँढने मे लगे हुए थे कि, मुझे वहाँ रुकने के लिए कैसे तैयार किया जाए.

अमन अभी भी अपनी बहन अर्चना के साथ वही खेल रहा था. उसने अपने दादा जी और मेरे दादा जी की सारी बातें सुनी थी. जब उसने मेरे मुंबई मे रुकने की बात को लेकर उन दोनो को परेशान होते देखा तो, अमन ने मेरे दादा जी से कहा.

अमन बोला “दादा जी, आप इस बात के लिए ज़रा भी परेशान मत होइए. अजय को मुंबई मे रोकने की जबाब्दारी मैं लेता हूँ. आप बस एक बार मेरी अजय से मुलाकात करवा दीजिए.”

अमन की बात सुनकर दादा जी ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए रात को उसे डिन्नर पर आने को कह दिया.

रात को मैं दादा जी के साथ डिन्नर कर रहा था. तभी अमन आ गया. मैं उसे देख कर समझ नही पाया कि ये कौन है. दादा जी ने मेरा उस से परिचय करवाया. फिर वो भी हमारे साथ डिन्नर करने लगा.

अमन ने मेरे से बात करने की कोसिस की लेकिन मैने उन से ज़्यादा बात नही की और खामोशी से डिन्नर करता रहा. डिन्नर करने के बाद मैं अपने कमरे मे आ गया. अमन के जाने के बाद दादा जी मेरे पास आए.

उन्हो ने मुझे बताया कि अमन हमारा पड़ोसी है. वो भी हमारी तरह किस्मत का मारा हुआ है. उसके पिताजी का देहांत 2 साल पहले हो गया था. अभी यहाँ नया होने की वजह से उसका कोई दोस्त नही है. इसलिए मैने उसे अपने घर कभी भी आने जाने के इजाज़त दे दी है.

कुछ दिन बाद उसका नाम भी तुम्हारे स्कूल मे लिख जाएगा. मुझे लगता है कि वो एक अच्छा दोस्त साबित होगा. यदि वो तुमको भी ठीक लगे तो उस से दोस्ती कर लेना. इतना कह कर दादा जी मेरे पास से चले गये.

अगले दिन अमन लंच टाइम मे अपनी छोटी बहन अर्चना को लेकर हमरे घर आया. दादा जी ने उसको भी लंच करने को कहा तो, वो भी हमारे साथ बैठ गया. लेकिन अर्चना के गोद मे होने की वजह से वो लंच नही कर पा रहा था.

मैं लंच करके अपने कमरे मे जाने लगा तो, दादा जी ने कहा कि, मैं अर्चना को भी अपने साथ ले जाउ. ताकि अमन लंच कर सके. मैने बिना कोई जबाब दिए अर्चना को गोद मे ले लिया और अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आकर मैं अर्चना को बेड पर बैठाने लगा. लेकिन गोद से नीचे उतरते ही वो रोने लगी. मैं उसे गोद मे लेकर चुप कराने लगा. थोड़ी ही देर मे वो मेरे साथ हिल मिल गयी और मेरे साथ खेलने लगी.

अर्चना के साथ खेलते खेलते कुछ देर के लिए मैं अपने सारे दुख दर्द भूल गया. मैं उसको खिलाने मे इस तरह खो गया कि, मुझे पता ही नही चला कि, अमन कब मेरे कमरे मे आ गया.

वो खामोशी से दरवाजे पर खड़ा, मुझे अर्चना के साथ खेलते देख रहा था. जब मेरी नज़र अमन पर पड़ी तो मैने अर्चना को उसकी गोद मे देते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैने तुम्हे देखा ही नही. तुम्हारी बहन सच मे बहुत प्यारी है.”

मेरी बात सुनकर अमन ने मुस्कुराते हुए कहा.

अमन बोला “मेरी 3 बहने है. उसमे ये सब से छोटी और सबसे प्यारी है. मगर ये हर किसी के साथ इतनी जल्दी हिलती मिलती नही है. पता नही तुमसे ये इतनी जल्दी कैसे हिल मिल गयी.”

अमन की बात सुनकर ना जाने क्यो मुझे अच्छा सा लगा था. इसके बाद अमन अर्चना को लेकर वापस अपने घर चला गया. लेकिन वो रात को फिर डिन्नर के टाइम पर आया. डिन्नर के टाइम वो अकेला ही था. उसने हमारे साथ डिन्नर किया और अपने घर चला गया.

दूसरे दिन वो सुबह सुबह ही अर्चना के साथ हमारे घर आ गया. मुझे अपने कमरे मे दादा जी और अमन की आवाज़ सुनाई दी तो, मैने अपने कमरे से बाहर निकल कर देखा. बाहर हॉल मे दादा जी और अमन अर्चना के साथ खेल रहे थे.

अर्चना को खेलते देख कर मैं भी उनके पास आ गया. थोड़ी देर बाद दादा जी ने नाश्ता का बोला तो अमन उनके साथ नाश्ता करने लगा और मैं अर्चना के साथ खेलने लगा. कुछ देर बाद अमन किसी काम का कह कर अपने घर चला गया.

लेकिन अर्चना को ये कह कर मेरे पास छोड़ गया कि, वो अभी वापस आकर अर्चना को ले जाएगा. उसके जाने के कुछ देर बाद दादा जी भी अपने काम पर निकल गये. मगर मुझे किसी के भी जाने से कोई फरक नही पड़ा. मैं अर्चना के साथ खेलने मे मगन रहा.

फिर काफ़ी देर बाद अमन आया और मुझसे थोड़ी बहुत बात करने के बाद अर्चना को लेकर चला गया. दोपहर और रात को भी कल की तरह सब कुछ होता रहा. बस फ़र्क इतना था कि अब मेरी अमन से बात चीत होने लगी थी.

अब अमन रोज मेरे घर अर्चना को लेकर आता और मैं घंटो उसके साथ खेलता रहता. मेरी खोई हुई मुस्कान एक बार फिर अर्चना के रूप मे वापस लौट आई थी. लेकिन मेरा घर से बाहर जाना अभी भी बंद ही था.

मैं बस रोज अर्चना के घर आने का वेट करता रहता था. अर्चना के घर आते ही मेरा घर उसकी मासूम किल्कारियों और मेरी हँसी से गुज़्ने लगता था. मुझे वापस खुश देख कर दादा जी की भी खुशी का कोई ठिकाना नही था.

ये सिलसिला चार दिन तक यूँ ही चलता रहा. इन चार दिनो मे मुझे अर्चना की इतनी ज़्यादा आदत हो गयी थी कि, जब पाँचवे दिन अमन उसे लेकर मेरे घर नही आया तो मैं उसे देखने के लिए तड़प उठा.

मैं पाँचवे दिन भी रोज की तरह सुबह अर्चना के आने का वेट कर रहा था. लेकिन अमन अर्चना को लेकर नही आया. दादा जी नाश्ता करने के बाद काम के लिए जाने लगे तो, मैने उनसे कहा.

मैं बोला “दादा जी, आज अमन हमारे घर क्यो नही आया.”

दादा जी ने मेरी तरफ देखा. उनकी पारखी नज़र एक बार मे ही ये ताड़ चुकी थी कि, मैं अमन को क्यो पुच्छ रहा हूँ. उन्हो ने भी मुझे मेरी ही तरह जबाब देते हुए कहा.

दादा जी बोले “हो सकता है कि, वो आज किसी काम मे फस गया हो. इसलिए नही आ सका हो.”

दादा जी के ये कह देने के बाद मेरे पास पूछने के लिए कुछ बचा ही नही था. मैं चुप होकर रह गया और दादा जी काम पर चले गये. दोपहर लंच मे भी अमन नही आया तो, मैने दादा जी के सामने वो ही सवाल दोहराया और दादा जी ने फिर अपना वो ही जबाब दोहरा दिया.

लंच के बाद दादा जी वापस काम पर चले गये. लेकिन अब मुझे अर्चना की कमी बहुत अखर रही थी. आख़िर मे जब मुझ से अर्चना को देखे बिना नही रहा गया तो, मैने अमन के घर जाने का फ़ैसला किया और अमन के घर की तरफ बढ़ गया.

अमन के घर पहुचते ही बाहर आँगन मे उसके दादा जी बैठे मिल गये. उन्हे देखते ही मैने उन से नमस्ते किया और अमन को पूछा. उन्हो ने मुझे बैठने को कहा और अंदर अमन को आवाज़ लगाई तो, उनकी बड़ी पोती सीरत अर्चना को गोद मे लिए बाहर आई.

उसने आकर बताया कि, अमन अपना कमरा साफ कर रहा है. अर्चना ने मुझे अपने सामने देखा तो, वो सीरत की गोद मे से मेरे पास आने के लिए मचलने लगी. मैने उठ कर उसे अपनी गोद मे ले लिया और फिर मैं उसे खिलाने लगा.

इसके बाद धीरे धीरे घर के बाकी लोग भी वहाँ आने लगे और दादा जी सब से मेरा परिचय कराते रहे. कुछ ही देर मे अमन भी वहाँ आ गया और मुझसे अपना कमरा देखने को चलने के लिए कहने लगा.

मैं अमन के साथ जाने के लिए अर्चना को अपनी गोद से उतारने लगा तो, वो मेरी गोद से उतरने को तैयार नही थी. तब मैं उसे भी अपने साथ लेकर अमन का कमरा देखने चला गया.

इस तरह मेरा अमन के आना जाना और उसके बाकी परिवार से भी मेल जोल हो गया. अब मुझे अमन के घर आने जाने मे कोई हिचक नही होती थी और मैं जब चाहे तब अर्चना के साथ खेलने उसके घर जाने लगा.

अभी इन सब बातों को 8 दिन ही हुए थे कि, एक दिन मेरे दादा जी से अमन के दादा जी ने कहा कि “वो लोग कुछ दिनो के लिए मुंबई जा रहे है. यदि हम लोग भी उनके साथ चले तो, बहुत अच्छा रहेगा.”

उनकी बात सुनकर मेरे दादा जी ने कहा कि “वो मुंबई मे कुछ ज़मीन खरीदना चाहते है. यदि अजय वहाँ जाने को तैयार है तो, उन्हे मुंबई जाने मे कोई परेसानी नही है.”

दादा जी की बात सुनकर अमन के दादा जी ने मुझसे चलने के बारे मे पूछा तो, मैने भी चलने की हां कह दी और फिर इसके तीसरे दिन हम सब मुंबई के लिए निकल गये.

दादा जी वहाँ 2 दिन रुके और इन 2 दिन मे वो बस वहाँ कोई अच्छा सा बंग्लो ही देखते रहे. उन्हे एक बॉग्लो पसंद भी आ गया और उन्हो ने वहाँ सच मे ही एक बंग्लो खरीद लिया.

वहाँ 2 दिन रुकने के बाद दादा जी वहाँ मुझे अमन लोगो के साथ ही छोड़ कर वापस आ गये. मैने दादा जी के साथ वापस लौटने की बात भी की थी, मगर अमन ने अर्चना का वास्ता देकर मुझे वहाँ रोक लिया. अमन के परिवार से मुझे बहुत अपनापन मिल रहा था. इसलिए मुझे वहाँ रुकने मे ज़रा भी परेसानी नही हुई.

हम लोग 10 दिन मुंबई मे रुके और वहाँ खूब मस्ती करते रहे. मुंबई से वापस आने के बाद मैं बिल्कुल बदल गया था. मेरा घूमना फिरना, खेलना कूदना, स्कूल जाना, सब कुछ सुरू हो गया.

बस यदि कुछ नही बदला था तो, वो था अर्चना के साथ मेरा खेलना और उसके लिए मेरा लगाव. उसने अभी बोलना सुरू नही किया था. फिर भी मैं उस से ढेर सारी बातें करता रहता था और वो भी मेरी बातें सुनकर कभी खिलखिलाने लगती तो, कभी अपने कोमल हाथों से ताली बजाने लगती.

मेरे लिए वो किसी नन्ही परी से कम नही थी. जिसने मेरे जीवन मे आकर मुझे मेरी सारी खुशियाँ वापस दे दी थी. मैं जब तक उसको देख नही लेता था. मेरे दिल को चैन नही पड़ता था. उसे देखते ही मेरे चेहरे पर खुद ब खुद मुस्कान आ जाती थी.

मेरे लिए सबसे खुशी का दिन वो था जब उसने अपने कोमल हाथों से मेरी कलाई पर राखी बाँधी थी. उस दिन खुशी के मेरे मेरे आँसू छलक आए थे. उसके बाद दूसरा खुशी का दिन वो था जब उसने मुझे भैया कह कर पुकारा था. उस दिन मुझे लगा था कि, मेरा खोया हुआ सब कुछ एक बार फिर मुझे वापस मिल गया है.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 02:34 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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