MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:36 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मैं अब खुश रहना सीख गया था. वक्त तेज़ी से गुजरने लगा. इसी बीच मेरे नाना जी का देहांत हो गया. मगर जो अपने माता पिता की मौत को सह गया हो. उसके लिए इस दर्द को सह लेना कोई बड़ी बात नही थी. जल्दी ही मैने इस दर्द से उबर कर वापस अपनी जिंदगी जीना सुरू कर दिया.

दिन, महीने, साल गुजर गये. हम सब धीरे धीरे करके बड़े हो गये. मैने और अमन ने 12थ भी पास कर ली. अमन 12थ के एग्ज़ॅम के बाद छुट्टियों मे अपनी बुआ के पास मुंबई गया. वही निशा को देख कर, पहली ही नज़र मे वो उसे अपना दिल दे बैठा.

जब वो मुंबई से वापस लौटा तो बस रात दिन निशा की ही बातें करता रहता और हर समय निशा के ख़यालों मे ही खोया रहता. मुझे भी इस बीच एक लड़की पसंद आई थी. मगर उस लड़की के लिए दीवाना बनने से पहले ही मुझे पता चल गया था कि, वो लड़की किसी और लड़के से प्यार करती है. मेरी लव स्टोरी सुरू होने के पहले ही ख़तम हो चुकी थी.

जिसके बाद से मैने किसी भी लड़की के लिए पागल ना बनने का फ़ैसला कर लिया था. लेकिन अमन का निशा के लिए दीवानापन देख कर, मुझे लगा कि अमन को उसका प्यार मिलना चाहिए. इसलिए मैने अमन को सलाह दी कि, वो अपनी आगे की पढ़ाई, मुंबई मे अपनी बुआ के पास रहकर कर ले, ऐसा करने से उसे अपना प्यार हासिल करने मे आसानी होगी.

अमन को मेरी बात जम गयी और उसने अपने घर वालों से बात की, मगर कोई भी इसके लिए तैयार नही था. तब मैने उसके घर मे बात की और समझाया कि, अमन डॉक्टर. बनना चाहता है. उसकी पढ़ाई के लिए मुंबई ही सबसे ठीक जगह है.

मेरी बात को सुनकर अमन के घर वाले उसे मुंबई भेजने को तैयार हो गये. मेरे दादा जी ने भी अमन को कह दिया कि, वो यदि चाहे तो मुंबई मे हमारे बंग्लो मे भी रह सकता है. उस दिन अमन की खुशी का ठिकाना ही नही था.

कुछ दिन बाद अमन ने सूरत छोड़ दिया और मुंबई मे अपनी बुआ के पास रहने लगा. अमन के जाने के बाद मैं एक बार फिर से अकेलापन महसूस करने लगा. ऐसा नही था कि, अमन के अलावा मेरा कोई दोस्त नही था. मेरे बहुत से दोस्त थे मगर अमन और उसके परिवार से मेरा जो दिल का रिश्ता था. वो शायद किसी से भी नही था.

अमन तो मुंबई चला गया था. फिर भी उसके परिवार के साथ मेरा मेल जोल बना रहा और इसकी वजह मेरी नन्ही परी अर्चना थी. उस से भले ही मेरा खून का रिश्ता नही था. फिर भी वो मेरे लिए सब कुछ थी. उसकी मासूम मुस्कान मेरी कमज़ोरी बन गयी थी.

इधर मैं एक बेमकसद जिंदगी जी रहा था तो, वहाँ मुंबई मे अमन के दो ही मकसद थे. एक तो निशा का प्यार हासिल करना और दूसरा डॉक्टर बनना. धीरे धीरे अमन अपने एक मकसद मे कामयाब हो गया. कुछ समय बाद निशा को भी अमन से प्यार हो गया. निशा जितनी सुंदर थी, उस से भी ज़्यादा खूबसूरत उसका दिल था.

मुझे शुरू मे ये ज़रूर लगता था कि, निशा एक घमंडी लड़की है. लेकिन उस से मिलने के बाद मैने जाना कि वो बाहर से जितनी कठोर दिखती है. उसका दिन उतना ही कोमल है और वो हर रिश्ते को अच्छी तरह से निभाना जानती है.

कुछ ही समय मे वो मेरी अच्छी दोस्त बन गयी. मैं जब कभी अमन से मिलने मुंबई जाता और निशा से मिले बिना वापस आ जाता. तब वो मुझसे फोन पर इस बात को लेकर बहुत झगड़ा करती थी और अमन उसको मेरे खिलाफ भड़का कर इस झगड़े के मज़े लेता रहता था.

यू ही हँसी मज़ाक से दिन गुजर रहे. कुछ समय बाद अमन और निशा की मेहनत रंग लाई और वो दोनो डॉक्टेर बन गये. मैं भी एक साइकिट्रिस्ट बन चुका था. लेकिन दादा जी के कहने पर मैने उनका बिज़्नेस संभाल लिया था.

अभी तक सब ठीक चल रहा था और सबको अब अमन के घर वापस आने का इंतजार था. लेकिन अमन के एक फ़ैसले ने सबको चौका दिया. अमन ने घर वापस आने की जगह, मुंबई मे ही एक हॉस्पिटल मे जॉब जाय्न कर लिया.

अमन के इस फ़ैसले का सारे घर ने विरोध किया. यहाँ तक की अमन की माँ ने भी अमन को इस बात के लिए बहुत बातें सुनाई और उसको सूरत वापस आने के लिए कहा. लेकिन अमन ने उनकी बात को मानने से इनकार कर दिया.

अमन के ऐसा करने की वजह ये थी कि, वो चाहता था कि, उसका परिवार भी अब मुंबई आकर उसके साथ रहने लगे. लेकिन अमन ने अपना ये फ़ैसला बहुत जल्दबाज़ी मे और अपने घर वालों की राय सुने बिना ले लिया था. जिस वजह से अब उसे सबका विरोध सहना पड़ रहा था.

अमन की बुआ ने भी अमन को समझाने की कोसिस की थी और उसे सूरत वापस लौट जाने की सलाह दी थी. जिस वजह से अमन ने उनका घर छोड़ दिया था और अब वो मुंबई वाले हमारे बंग्लो मे आकर रहने लगा था.

अमन की इस बात ने मुझे भी परेसानी मे डाल दिया था. एक तरफ अमन और निशा मुझ पर, अमन के परिवार को मुंबई आकर रहने के लिए मनाने का दबाव डाल रहे थे तो, दूसरी तरफ अमन का परिवार मुझ पर अमन को सूरत वापस आने के लिए समझाने का दबाव डाल रहे थे.

अमन के चाचा जी का कहना था कि, उन के परिवार सारा बिज़्नेस सूरत मे है और वो चाहे तब भी उनके लिए अपना बिज़्नेस सूरत से समेट कर, उसे मुंबई मे जमा पाना मुमकिन नही है.

वही दूसरी तरफ अमन का कहना था कि, अब वो डॉक्टर बन गया है. ऐसे मे उसके परिवार मे किसी को काम करने की कोई ज़रूरत ही नही है. वो अपने परिवार की हर ज़िम्मेदारी उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

एक तरफ अमन था और दूसरी तरफ अमन का परिवार था. दोनो अपनी अपनी जगह सही थे. लेकिन मैं दोनो मे से किसी की भी तरफ़दारी करने की स्थिति मे नही था. क्योकि अमन के वापस आने का मतलब, उसके और निशा के देखे हुए सपनो को मिटाना था. जो अमन के लिए सही नही था.

वही अमन की बात मानने का मतलब अमन के परिवार का यहाँ से जाना था. जो मेरे लिए सही नही था. क्योकि अमन के परिवार ने मेरे अधूरे परिवार को पूरा किया था. अमन के चाचा चाची हो या फिर अमन की माँ हो. उन्हो ने मुझे अमन से कम प्यार नही दिया था. अमन की तीनो बहने भी मुझे अमन से कम प्यार नही करती थी.

ऐसे मे उनके जाने के बारे मे सोचने से भी मेरी जान निकलने लगती थी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, मैं क्या करूँ और क्या ना करूँ. एक तरफ मेरे दोस्त की खुशियाँ थी और दूसरी तरफ मेरी खुद की खुशियाँ थी. दोनो की खुशियाँ मेरी मुट्ठी मे बंद थी और फ़ैसला मुझे करना था कि, मैं किसकी खुशियाँ चाहता हूँ.

आख़िर मे मैने अपने दिल पर पत्थर रख कर अपने दोस्त की खुशियों को चुन लिया. मैने एक एक करके सबको मुंबई जाने के लिए मनाने का फ़ैसला किया और इस काम की सुरुआत मैने अमन के चाचा जी को मनाने से सुरू की. उनको मनाना सबसे ज़्यादा मुस्किल काम था. क्योकि मुंबई मे रहने के लिए, उन्हे अपना जमा जमाया बिज़्नेस बंद करना पड़ रहा था.

मैने उनसे जब मुंबई जाने की बात की तो, उन्हो ने अपने बिज़्नेस का हवाला देते हुए इस बात से साफ इनकार कर दिया. लेकिन जब मैने उनको समझाया कि, उनको अपना बिज़्नेस यूँ आनन फानन मे बंद करने की ज़रूरत नही है. वो पहले अपना बिज़्नेस मुंबई मे जमाने की कोसिस करे. जब तक उनका बिज़्नेस मुंबई मे नही जम जाता, तब तक मैं यहाँ उनके बिज़्नेस की देख भाल करता रहुगा.

मेरी इस बात को सुनने के बाद उन ने पहली बार अमन की बात पर गंभीरता से विचार किया. लेकिन अंत मे उन्हो ने इसका फ़ैसला अपने पिता जी और बाकी परिवार की मर्ज़ी पर छोड़ते हुए, मुझसे रात को डिन्नर पर सबसे बात करने को कह दिया. मैं उसी रात डिन्नर के समय अमन के घर पहुच गया. घर के सभी लोग डिन्नर पर मौजूद थे. मैं भी उनके साथ डिन्नर मे शामिल हो गया.

अब सीरत 12थ मे और सेलिना 10थ क्लास मे आ गयी थी. अर्चना भी अब बड़ी हो चुकी थी और अब वो 8थ क्लास मे आ गयी थी. तीनो बहनो मे सेलिना बहुत नटखट थी और शरारती थी. वो बात बात पर मुझे परेशान करती थी. ये बात अर्चना को ज़रा भी पसंद नही आती थी और वो उस से लड़ने लगती थी.

कहने को सीरत दोनो से बड़ी और समझदार थी. लेकिन वो भी इन दोनो की लड़ाई का मज़ा लेने का कोई मौका हाथ से नही जाने देती थी और आग मे घी डालने का काम करती रहती थी. लेकिन दिखाती ऐसा था, जैसे उसने कुछ किया ही ना हो.

मेरा डिन्नर अक्सर उनके साथ ही होता था. इसलिए मेरा आज डिन्नर पर रहना उनके लिए कोई नयी बात नही थी. मगर मेरा खामोश रह कर डिन्नर करना सबके लिए नया ज़रूर था. मैं डिन्नर मे सब के साथ होते हुए भी मेरा ध्यान उन सबकी बातों मे नही था. मैं बस इस बात मे खोया हुआ था कि, मैं सब से अमन की बात कैसे करूँ.

सब को मेरा यू खामोशी के साथ डिन्नर करना कुछ अजीब ज़रूर लग रहा था. मगर कोई कुछ बोल नही रहा था. सब आपस मे बात करते हुए बस मुझे देखते जा रहे थे. जब कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा तो, सेलिना को शरारत सूझी और उसने बड़ी ही मासूमियत से मुझसे कहा.

सेलिना बोली “भैया, ज़रा मुझे चपाती देना.”

सेलिना की बात सुनकर मैं अपने ख़यालों से बाहर आ गया और डाइनिंग टेबल पर यहाँ वहाँ नज़र घूमने लगा. मुझे ऐसा करते देख सेलिना और सीरत हँसने लगी. वही अर्चना ने चिड-चिड़ाते हुए मुझसे कहा.

अर्चना बोली “भैया, खाने मे चपाती कहाँ है. दीदी ने आपको बुद्धू बनाया और आप बुद्धू बन कर चपाती ढूँढ रहे हो.”

अर्चना की बात से मुझे याद आया कि आज खाने मे पराठे थे. मैने बनावटी गुस्से मे सेलिना को घूरा तो, वो मुझे देख कर और ज़ोर से हँसते हुए कहने लगी.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

सेलिना को इस तरह मुझे परेशान करते देख, अर्चना को गुस्सा आ रहा था. उसे गुस्सा आते देख, सीरत को भी उनके झगड़े की आग मे घी डालने का मौका मिल गया और उसने अर्चना को भड़काने के लिए, सेलिना को समझाते हुए कहा.

सीरत बोली “रहने दे, भैया को ज़्यादा परेशान मत कर, कही भैया की लाडली को गुस्सा आ गया तो, वो अभी बेलन से तेरी पिटाई कर देगी.”

सीरत की बात सुनकर, जहाँ एक तरफ अर्चना का गुस्सा बढ़ गया था. वही दूसरी तरफ सेलिना ने अपना अगला निशाना अर्चना को बनाते हुए कहा.

सेलिना बोली “बड़ी आई भैया की चमची. क्या इसी बस के भैया है. मेरे भी भैया है और मैं जैसे चाहू, वैसे बात करू. इसमे किसी को जलना है तो जलता रहे. ठीक कहा ना भैया मैने.”

इतना कह कर सेलिना फिर से हँसने लगी. उसे हँसता देख अर्चना गुस्से मे अपनी जगह से खड़ी हो गयी. उनकी इन हरकतों का मज़ा घर के सभी लोग ले रहे थे. इसलिए कोई उनको नही रोक रहा था.

लेकिन मुझे लगा कि अब यदि मैने बीच मे ना बोला तो, सच मे दोनो के बीच झगड़ा हो ही जाएगा. इसलिए मैने अर्चना को समझाते हुए कहा.

मैं बोला “आरू, अपना गुस्सा थूक दे. ये दोनो तुझे गुस्सा दिला रही है. तू इन की बातों मे मत आ और चुप चाप खाना खा.”

मेरी बात सुनकर अर्चना वापस बैठने को हुई. लेकिन उसे बैठते देख सेलिना ने फिर से अपनी बात दोहराते हुए कहा.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

इतना कह कर वो फिर हंस दी. लेकिन इस बार उसकी हँसी को सुनकर अर्चना उठ कर किचन की तरफ जाने लगी. उसे किचन की तरफ जाते देख, सीरत ने सेलिना से कहा.

सीरत बोली “सेलू अब तू यहाँ से भाग ले. लगता है वो भैया की चमची किचन मे बेलन लेने गयी है और आज वो तेरी पिटाई किए बिना नही मानेगी.”

ये बोल कर सीरत हँसने लगी. लेकिन सेलिना की हँसी गायब हो गयी थी और सब के साथ साथ उसकी नज़र भी अब किचन की तरफ ही लगी थी. थोड़ी ही देर बाद सबको अर्चना किचन से बाहर आती हुई दिखी. उसने अपने दोनो हाथ पिछे छुपा रखे थे. इसलिए किसी को नही दिखा की उसके हाथ मे क्या है.

वो चुप चाप आई और अपनी सीट पर बैठ गयी. अर्चना मेरे और चाची के बीच की सीट पर बैठी थी. इसलिए मेरे और चाची के अलावा किसी के समझ मे नही आया कि अर्चना किचन मे क्यूँ गयी थी. अर्चना की हरकत देखते ही मेरे और चाची के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.

वही बाकी सब लोग कुछ भी समझ ना आने के कारण सोच मे पड़े हुए थे और अर्चना के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे. लेकिन वो मुस्कुराती हुई चुप चाप खाना खा रही थी. उसे चुप चाप खाना खाते देख, सेलिना से नही रहा गया और उसने मुझे छेड़ते हुए फिर कहा.

सेलिना बोली “भैया चपाती दो ना.”

सेलिना के इतना बोलने की देर थी कि, अर्चना ने मेरी तरफ देखते हुए बड़ी ही मासूमियत से कहा.

अर्चना बोली “भैया, दीदी कितनी भूखी है. बेचारी कब से चपाती माँग रही है. उसको चपाती दे दो ना.”

मैने भी मुस्कुराते हुए अर्चना से कहा.

मैं बोला “ओके आरू, तू कहती है तो मैं सेलू को चपाती दे ही देता हूँ.”

ये कहते हुए मैने टेबल के नीचे से हाथ उपर उठाया और दो चपाती सेलिना की तरफ बढ़ा दी. मेरे चपाती देते ही सब की हँसी छूट गयी और सेलिना का मूह छोटा सा हो गया. लेकिन उसने अपनी खिज को निकालते हुए कहा.

सेलिना बोली “ये तो सुबह की चपाती है. ये आप खाओ और अपनी लाडली को खिलाओ. मुझे नही खाना ये चपाती.”

ये बोल कर वो अपनी हार से भन-भनाइ खाना खाने लगी और अर्चना अपनी जीत पर मुस्कुरा रही थी. असल मे अर्चना किचन से सुबह की चपाती ले कर आई थी और उसने वो लाकर मुझे पकड़ा दी थी. जो सेलिना के चपाती का बोलते ही मैने उसके सामने रख दी थी.

इस तरह हँसी मज़ाक करते करते सब का डिन्नर हो गया. डिन्नर हो जाने के बाद मैने अपनी बात रखते हुए दादा जी से कहा.

मैं बोला “दादा जी, आज मैं आप सब से अमन के बारे मे कुछ बात करना चाहता हूँ.”

मेरी ये बात सुनते ही सब मेरी तरफ गौर से देखने लगे. क्योकि सबने अमन को समझाने का काम मुझे दिया था. उन्हे ऐसा लग रहा था कि, मैं शायद अमन के वापस आने के बारे मे कुछ कहना चाहता हूँ.

सबकी आँखों मे अमन के वापस आने की एक उम्मीद और मेरी बात सुनने की उत्सुकता साफ नज़र आ रही थी. वही मेरी आँखों मे अभी कुछ देर पहले का हँसी खुशी का माहौल घूम रहा था. जो मुझे अपनी बात कहने से रोक रहा था. मुझे आगे कुछ ना कहते देख कर, दादा जी ने मुझे टोकते हुए कहा.

दादा जी बोले “हां बेटा बोलो, तुम अमन के बारे मे हम सब से क्या बात करना चाहते हो.”

दादा जी की बात सुनकर मैने एक बार सबके चेहरे की तरफ देखा. सबके चेहरे को देख कर मेरी कुछ भी कहने की हिम्मत जबाब दे गयी. ऐसे मे मेरी हिम्मत बढ़ाते हुए चाचा जी ने कहा.

चाचा जी बोले “बाबू जी, मैं बताता हूँ कि, अजजी आप सब लोगो से क्या बात करना चाहता है.”

चाचा जी की बात सुनकर, सब हैरानी से चाचा जी को देखने लगे. चाचा जी सबकी हैरानी को दूर करते हुए, दिन मे मुझसे मुंबई जाने को लेकर हुई बात बता दी. जिसे सुनते ही अमन की मम्मी ने सबसे पहले इस बात का विरोध करते हुए और मुझे लताड़ते हुए कहा.

मम्मी बोली “अजजी तुमको हम लोगों से ऐसी बात करते हुए ज़रा भी शरम नही आई. हम ने तो तुमको उस नलायक को समझाने बोला था. लेकिन तुम उसको समझाने की जगह उसकी ही तरफ़दारी कर रहे हो. आज तुमने ग़लत बात मे उसकी तरफ़दारी करके हम सब का दिल दुखाया है. हमें तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी.”

“आख़िर तुम्हे उस से इतनी हमदर्दी किसलिए हो रही है. जो तुम हम लोगों को हमारा घर छोड़ कर उसके पास जाने को कह रहे हो. क्या हम सब अब तुम्हारी आँखों मे चुभने लगे है. जो तुम हुमको अपनी आँखों की किरकिरी की तरह निकाल फेक देना चाहते हो.”

अमन की मम्मी बहुत गुस्से मे थी और उनके दिल मे अमन को लेकर जितनी भी भडास थी. उन्हो ने सब की सब भडास मेरे उपर निकाल दी. उन्हो ने कभी भी मुझसे इतने गुस्से मे बात नही की थी.

इस सबके बाद भी मुझे उनकी किसी भी बात का बुरा नही लगा था. क्योकि वो मुझे अमन से कम प्यार नही करती थी और आज अपने उसी हक़ से वो मुझे भला बुरा बोले जा रही थी. जब वो बोलते बोलते शांत हुई तो, मैने उनसे कहा.

मैं बोला “मोम, आपका गुस्सा अपनी जगह सही है. मगर आप ऐसा कैसे सोच सकती है कि, आप सब मेरी आँखों की किरकिरी है. आप सब तो मेरा परिवार है. मैं ही जानता हूँ की, आप सब को जाने के लिए बोल कर मेरा दिल कितना रोया है. आप सब मुंबई जाएगे तो, आपका परिवार पूरा हो जाएगा.”

“लेकिन आप सब के जाने से मेरा परिवार तो हमेशा के लिए दूर हो जाएगा. मुझसे तो आप जैसी माँ की ममता, ये चाचा चाची का प्यार और इन जान से प्यारी बहनो की प्यार भरी नोक झोक सब कुछ ही छिन जाएगी. मेरा तो सब कुछ ही आपके जाते ही ख़तम हो जाएगा.”

अपनी बात बोलते बोलते मेरे आँसू बहने लगे और मैं चाह कर भी अपने आँसू रोक नही पा रहा था. मुझे रोते देख, मम्मी का गुस्सा भी ख़तम हो गया. उन्हो ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे समझाते हुए कहा.

मम्मी बोली “तू क्यो रोता है. हम लोग तुझे छोड़ कर कहीं नही जा रहे है. तेरा कुछ भी ख़तम नही होगा. मुझे तो ये समझ मे नही आता कि, तूने उसकी ये बात मानी क्यो. जो लड़का अपने बाप समान चाचा का सगा नही हुआ. वो भला तुम्हारा सगा कैसे हो सकता.”

मम्मी की प्यार भरी बातों से मेरा मन हल्का हो गया था. मैने अपने आपको संभालते हुए उनसे कहा.

मैं बोला “मोम, आप अमन के बारे मे ग़लत सोच रही हो. अमन चाचा जी को अपने पापा का ही दर्जा देता है और ये तीनो बहने तो उसकी जान है. यदि ऐसा ना होता तो, उसने सिर्फ़ आपको ही मुंबई लाने के लिए सोचा होता. लेकिन उसने एक बार भी ऐसा नही कहा. उसने जब भी मुंबई आने की बात कही. तब भी उसने अपने पूरे परिवार के मुंबई आने की बात कही है और उसका पूरा परिवार आप सब है.”

मेरी इस बात का समर्थन चाचा जी ने भी किया. चाचा जी का साथ मिलते ही मेरे लिए सबको समझाना आसान हो गया था. मैं एक एक करके अपनी बात सबको समझाता रहा और आख़िर मे सब मुंबई जाने के लिए तैयार हो गये.

कुछ ही दिनो की तैयारी के बाद सब लोग मुंबई जाने के लिए तैयार हो गये. मैं सबको स्टेशन तक छोड़ने आया. मुझे छोड़ कर जाते हुए, सबकी आँखें नम थी. कोई भी जाना नही चाहता था. लेकिन फिर भी जाना पड़ रहा था.

अर्चना का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया था. वो बस एक ही रट लगाए हुई थी कि, मैं आपको छोड़ कर नही जाउन्गी. मैं उसको समझाने की जितनी भी कोसिस करता, वो उतना ही ज़्यादा रोती जा रही थी.

आख़िर मे अर्चना की ऐसी हालत देख कर, चाचा जी ने मुझसे कहा कि तुम भी साथ चलो, वरना ये रो रो कर अपनी तबीयत खराब कर लेगी. मुझसे भी उसका इस तरह से रोना देखा नही जा रहा था. इसलिए मुझे भी सब के साथ मुंबई आना पड़ गया.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-09-2020, 02:36 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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