RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मुंबई आने के बाद मैं एक दिन सबके साथ रहा. दूसरे दिन मैने घर वापस लौटने की बात की तो, अर्चना ने फिर रोना सुरू कर दिया. तब मैने उसे समझाया कि, अब मुझे उसके पापा और अपना दोनो का बिज़्नेस देखना है. ऐसे मे मेरा वहाँ रुकना ठीक नही है.
लेकिन मेरे समझाने पर भी वो मेरी बात मानने को तैयार नही थी. तब अमन ने उसको समझाते हुए कहा.
अमन बोला “तू अज्जि की लाडली बहन है ना, तो इसे खुशी खुशी यहाँ से जाने दे. मैं तुझसे वादा करता हूँ कि, ये वहाँ जाने के बाद रोज तुझसे फोन पर बात किया करेगा और हर सनडे तुझसे मिलने यहाँ आया करेगा. यदि इसने ऐसा नही किया तो, मैं इसे खुद वहाँ से उठा लाउन्गा. बस थोड़े दिनो की ही बात है. फिर तेरे पापा का यहाँ बिज़्नेस जमते ही, हम इसे भी हमेशा हमेशा के लिए तेरे पास यही बुला लेगे.”
अमन ने अर्चना को मेरे वापस उसके पास आने की उम्मीद दिला दी. जिस उम्मीद की वजह से मैं अर्चना को बहला कर, मुंबई से वापस अपने घर आ गया था. लेकिन यहाँ अमन का सुना पड़ा घर देख देख कर मुझे सबकी बहुत याद आ रही थी और मुझे रोना आ रहा था.
ना जाने उस छोटी सी लड़की मे ऐसा क्या था कि, वो जबसे मेरी जिंदगी मे आई थी, मेरी जिंदगी खुशियों से भर गयी थी. उसने मुझे जीना सिखाया था और उसके होते हुए मुझे कभी किसी की ज़रूरत महसूस नही हुई थी.
लेकिन आज उसके ना होने से, अब मेरा ही घर मुझे काटने को दौड़ने लगा था. मुझे अपने ही घर मे एक पल भी रहना मुस्किल सा लगने लगा था और मैं एक बार फिर से अपने आपको बिल्कुल अकेला महसूस करने था.
मैं अभी अपने इसी अकेलेपन से बाहर निकलने के बारे मे सोच रहा था कि, तभी मेरे मोबाइल की रिंग बजने लगी. मैने मोबाइल देखा तो, मेरे चेहरे पर खुद बा खुद मुस्कुराहट आ गयी. मैने कॉल उठाते हुए कहा.
मैं बोला “कैसी है तू. खाना खाया या नही.”
अर्चना बोली “मैं अच्छी हूँ. मैने खाना भी खा लिया, पानी भी पी लिया और सो भी लिया है.”
अर्चना की बात सुनकर मैं हँसे बिना ना रह सका. मैने उसकी बातों का मज़ा लेने के लिए उस से कहा.
मैं बोला “वहाँ जाकर तो तू बहुत ही फास्ट हो गयी है. इतनी जल्दी इतना सब कुछ कर लिया झुटि.”
मेरी बात सुनकर वो खिलखिलाने लगी. उसकी हँसी सुनकर मेरे दिल का बोझ कुछ कम सा हो गया. मैने उसे बातों मे लगाते हुए कहा.
मैं बोला “तू हंस क्यो रही है. झूठ बोलते हुए तुझे शरम नही आती.”
अर्चना बोली “भैया आप बात ही ऐसी कर रहे हो. आपको पता है कि इतने टाइम डिन्नर नही होता. फिर भी आप पुच्छ रहे हो कि, मैने खाना खाया या नही.”
मैं बोला “बड़ी समझदार हो गयी है. बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगी.”
मेरी बात सुनकर वो फिर खिलखिलाने लगी. फिर उसने मुझसे धीरे से कहा.
अर्चना बोली “भैया, आपको एक राज़ की बात बताना है.”
मैने भी उसकी बात मे दिलचस्पी दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “बोल जल्दी, क्या राज़ की बात है.”
अर्चना बोली “भैया आज छोटे दादू (अमन के दादा जी) बड़े दादू (मेरे दादा जी) से फोन पर बात कर रहे थे.”
मैं बोला “तो इसमे राज़ की बात क्या है. वो लोग तो रोज ही बात करते है.”
अर्चना बोली “आप पूरी बात तो सुनते नही हो और बीच मे बोलने लगते हो.”
मैं बोला “ओके, अब मैं बीच मे नही बोलुगा. अब बता इसमे राज़ की बात क्या है.”
अर्चना बोली “वो आपकी शादी की बात कर रहे थे. बड़े दादू आपकी शादी के लिए लड़की ढूँढ रहे और उन्हो ने छोटे दादू को भी लड़की देखने को कहा है. छोटे दादू ने पापा को भी कोई अच्छी सी लड़की देखने के लिए कहा है.”
मैं बोला “ये तो तूने बहुत पते की बात बताई है. लेकिन मैं तो उसी लड़की से शादी करूगा. जिसे तू पसंद करेगी.”
मेरी बात सुनकर अर्चना ने चहकते हुए कहा.
अर्चना बोली “भैया यदि ऐसी बात है तो, मैं कल से ही अपनी भाभी ढूँढना सुरू कर देती हूँ. आप देखना मैं कितनी सुंदर भाभी ढूँढती हूँ. लेकिन इस काम मे आपको भी इसमे मेरा साथ देना होगा. हम दोनो मिल कर भाभी ढूंढ़ेंगे, तो दादू लोगो से पहले ढूँढ लेगे.”
मैं बोला “ओके, तेरी भाभी को हम दोनो मिलकर ढूंढ़ेंगे. अब खुश.”
अर्चना बोली “हां, लेकिन ये हम लोगों का भाभी ढूँढने वाला राज़ किसी को पता नही चलना चाहिए.”
मैं बोला “नही पता चलेगा मेरी माँ. अब तू फोन रख, हम लोग कल बात करते है.”
इसके बाद अर्चना ने फोन रख दिया. लेकिन अर्चना की बात से मुझे इतना तो समझ मे आ गया था कि, दादा जी को मेरे अकेलेपन की वजह से मेरी शादी करने की चिंता सता रही थी.
दादा जी को इस चिंता को मिटाने के लिए मुझे खुद को अकेलेपन की इस जिंदगी से निकलना ज़रूरी हो गया था. अब मेरे पास इस अकेलेपन से बचने का एक ही रास्ता रह गया था कि, मैं अपने आपको काम मे इतना बिज़ी कर दूं कि, मेरे पास किसी बात को सोचने का टाइम ना रहे.
अगले दिन से मैने ये ही किया और अपने आपको पूरी तरह से काम मे लगा दिया. यहा मैं दादा जी सारा बिज़्नेस संभालने मे लगा था तो, वहाँ अमन के चाचा जी मुंबई मे अपना बिज़्नेस जमाने मे लगे थे.
यू ही दिन गुज़रते गये और अमन के चाचा जी का बिज़्नेस मुंबई मे अच्छी तरह से जम चुका था. मैने भी यहाँ धीरे धीरे दादा जी का सारा बिज़्नेस संभाल लिया था और अब उस बिज़्नेस को फैलाने मे लगा हुआ था.
अमन का परिवार मुंबई के माहौल मे खुद को पूरी तरह से ढल चुका था और अब मेरी उनसे कम ही बात हुआ करती थी. लेकिन अर्चना वहाँ के माहौल मे रंगने के बाद भी, मुझे एक दिन के लिए भी नही भूली थी.
वो अब भी मुझसे रोज ही फोन पर बात किया करती थी. वो कभी सीरत या सेलिना की सीकायत करती तो, कभी अपनी स्कूल की बातें बताती और जब उसके पास करने की कोई बात नही होती तो मेरी शादी की बात लेकर बैठ जाती थी.
उसके पास मुझसे करने के लिए रोज ही कोई ना कोई बात रहती ही थी. ऐसे ही उसने अपने जन्मदिन के एक दिन पहले मुझे फोन किया और अपने जनमदिन का याद दिलाने के लिए मुझसे कहा.
अर्चना बोली “भैया, क्या आपको याद है. कल क्या है.”
मुझे याद था कि, कल उसका जनम दिन है और मैं उसके जनम दिन का गिफ्ट उसे पहले ही भेज चुका था. फिर भी मैने अंजान बनते हुए कहा.
मैं बोला “नही, मुझे याद नही कल क्या है. क्यो कल क्या है.”
उसे लगा कि, मुझे सच मे उसका जनम दिन याद नही है. उसने इस बात पर मुझसे नाराज़ होते हुए कहा.
अर्चना बोली “क्या भैया, आपको इतना ज़रूरी दिन भी याद नही है. जाओ मैं आपसे बात नही करती.”
उसे नाराज़ होते देख कर, मैने हंसते हुए उस से कहा.
मैं बोला “बड़ी आई, मुझे कल दिन याद दिलाने वाली. भला मैं कभी तेरा जनम दिन भूल सकता हूँ.”
मेरे मूह से कल अपना जनम दिन होने की बात सुनते ही उसकी नाराज़गी दूर हो गयी तो, उसने मुझसे कहा.
अर्चना बोली “जब आपको मेरा जनम दिन याद था तो, झूठ क्यो बोले थे.”
मैं बोला “मैं तो बस तुझसे ज़रा सा मज़ाक कर रहा था. मैने तो तेरे जनम दिन का गिफ्ट सुबह ही भेज दिया था. कल तुझे तेरे जनम दिन का गिफ्ट मिल भी जाएगा.”
मुझे लगा था कि, मेरी ये बात सुनकर अर्चना खुश हो जाएगी. लेकिन उसने मेरे गिफ्ट को कोई अहमियत ना देते हुए कहा.
अर्चना बोली “मुझे जनम दिन पर कोई गिफ्ट विफ़्ट नही चाहिए. मेरे जनम दिन पर आप यहाँ आइए. वरना मैं कोई जनम दिन वनम दिन नही मनाउन्गी और ना ही आपसे कभी बात करूगी.”
अर्चना की ये ज़िद सुनकर, मैं परेसानी मे फस गया. क्योकि अगले दिन मेरी एक बहुत ज़रूरी बिज़्नेस मीटिंग थी. जिसकी तैयारी पहले से ही हो चुकी थी और अब इस मीटिंग को टाला नही जा सकता था.
मैने ये बात अर्चना को समझाने की कोसिस करने लगा. लेकिन उसने मेरी कोई भी बात सुनने से मना कर दिया और मेरे कल मुंबई ना आने पर, मुझसे कभी बात ना करने धमकी देकर फोन रख दिया.
मैने उसे समझाने के लिए वापस फोन किया. लेकिन उसने फोन नही उठाया. फोन चाची जी ने उठाया. मैने उनसे अर्चना से बात करवाने को कहा तो, अर्चना ने फोन पर आने से मना कर दिया.
मैं जानता था कि, वो बहुत जिद्दी है. इसलिए मैने दादा जी से कल की मीटिंग लेने को कह दिया और मैं अर्चना को मनाने के लिए अगले ही दिन मुंबई पहुच गया. लेकिन जब मैं अमन के घर पहुचा तो, अर्चना स्कूल गयी हुई थी.
मुझे अचानक आया देख कर सब चौक गये. तब मैने उनको कल अर्चना से हुई बातों के बारे मे बताया. जिसे सुनने के बाद चाची जी ने कहा.
चाची जी बोली “अब समझ मे आया कि, वो सुबह क्यो अपना जनम दिन ना मनाने की बात कह कर और सबसे झगरा करके स्कूल चली गयी. हम सब तो ये ही सोच रहे थे कि, आख़िर इसे सुबह सुबह हो क्या गया है.”
चाची जी की बात सुनकर और अर्चना का मेरे लिए प्यार देख, मेरी आँखें नम हो गयी. उसका भोला भाला चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगा और मेरा दिल उसे देखने के लिए तड़पने लगा. मैने अपनी आँखों की नमी को सबसे छुपाते हुए चाची जी से कहा.
मैं बोला “मैं उसका मूड सही करना अच्छी तरह से जानता हूँ. मैं अभी उसको स्कूल से लेकर आता हूँ.”
ये कह कर मैने सेलिना को अपने साथ अर्चना की स्कूल चलने को कहा और मैं अपनी कार की तरफ बढ़ गया. लेकिन तभी सेलिना ने मुझे टोकते हुए कहा.
सेलिना बोली “भैया, आप यदि ऐसे आरू की स्कूल पहुचे तो, आपका सर्प्राइज़ धरा का धरा रह जाएगा. आप उसे ऐसा सर्प्राइज़ दीजिए कि, उसे हमेशा याद रहे.”
मुझे सेलिना की ये बात ज़रा भी समझ मे नही आई. मैने उस से इसका मतलब पूछते हुए कहा.
मैं बोला “तू कहना क्या चाहती है.”
सेलिना बोली “भैया आप हमारी वाली कार लेकर स्कूल चलिए. जिसमे वो रोज स्कूल से घर आती है. अपनी कार देख कर उसे ज़रा सा भी शक़ नही होगा.”
मैं बोला “लेकिन इस से फ़ायदा क्या होगा. वो तो कार के पास आते ही मुझे देख लेगी.”
मेरी बात सुनकर, सेलिना मुस्कुराने लगी. उसे ये मुस्कुराते हुए देख कर, मैने उस से कहा.
मैं बोला “तू कुछ बोलती क्यो नही और खड़े खड़े हंस क्यो रही है.”
सेलिना बोली “ऐसे नही बोलुगी. आगे की बात सुनने के लिए आपको मेरी शर्त मानना पड़ेगी.”
सेलिना की बात सुनकर, मैने उसे घूर कर देखा. मेरे इस तरह देखने पर उसने हंसते हुए कहा.
सेलिना बोली “अब आपको आगे की बात सुनना है तो, इतनी रिश्वत तो देनी ही पड़ेगी.”
मेरे पास उसकी शर्त मानने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नही था. इसलिए मैने उस से कहा.
मैं बोला “ओके, मुझे तेरी सब शर्त मंजूर है. अब बोल आगे क्या करना है.”
सेलिना बोली “इतनी जल्दी भी क्या है भैया. पहले मेरी शर्त तो सुन लीजिए.”
मैं बोला “ओके, बोल तेरी क्या शर्त है.”
सेलिना बोली “मेरी शर्त है कि, आप आज हम तीनो बहनो को एस्सेल वर्ल्ड लेकर जाएगे.”
मैं बोला “ओके, मुझे तेरी शर्त मंजूर है. अब जल्दी से अपनी आगे की बात भी बोल दे.”
मेरे मूह से हां सुनने के बाद सेलिना ने अपनी आगे की बात बताते हुए कहा.
सेलिना बोली “मेरा आइडिया है कि, आप ड्राइवर काका की यूनिफॉर्म पहन कर चलिए. वो आपको बिल्कुल भी पहचान नही पाएगी.”
सेलिना का ये आइडिया सुनकर, मैने उसे गौर से देखा. मैं समझ नही पा रहा था कि, वो मेरे साथ कोई शरारत कर रही है या सच मे ही ऐसा करने को बोल रही है. जब मुझे उसके ऐसा करने की कोई वजह समझ नही आई तो, मैने बुरा सा मूह बनाते हुए कहा.
मैं बोला “ये कैसा बेहूदा सा आइडिया है. तू मुझे एक मामूली सा ड्राइवर बना कर मेरा मज़ाक बनाना चाहती है.”
मेरी बात सुनकर, सेलिना ने जो तर्क दिया. उसे सुन कर मैं कुछ भी कहने लायक नही रहा. उसने मेरी बात का तर्क देते हुए कहा.
सेलिना बोली “ये क्या भैया. क्या ड्राइवर इंसान नही होते. मुझे आपसे ऐसी बात की उम्मीद नही थी.”
अभी सेलिना अपनी बात पूरी भी नही कर पाई थी कि, सीरत ने उसकी बात को काटते हुए मुझसे कहा.
सीरत बोली “भैया आप ही हमें सिखाते थे कि, कोई भी काम बड़ा या छोटा नही होता और आज आप को ही सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए ड्राइवर बनने मे शरम आ रही है.”
मेरी दोनो बहने, मेरी ही सिखाई बातें आज मुझे याद दिला रही थी. मुझे ऐसा करने का कोई तुक समझ मे नही आ रहा था. इस पर उनके शरारत करने की आदत भी मुझे ऐसा करने से रोक रही थी. मैने उनको अपने ऐसा ना करने की बात पर अपनी सफाई देते हुए कहा.
मैं बोला “तुम लोग बेकार की बहस क्यो कर रही हो. मेरे कहने का मतलब सिर्फ़ ये था कि, वो तो मुझे देख कर वैसे ही खुश हो जाएगी. फिर तुम लोग मुझसे ऐसा क्यो करवाना चाहती हो.”
मुझे यूँ अपनी बात पर आड़े हुए देख दोनो हँसने लगी. लेकिन दोनो का मूड मुझसे अपनी बात मनवाने का था. इसलिए सीरत ने अपनी आदत के अनुसार आग लगाते हुए कहा.
सीरत बोली “रहने दे सेलू. भैया से ये सब ना होगा. वो अपनी छोटी बहन को उसके जनम दिन पर एक छोटा सा गिफ्ट भी नही दे सकते.”
सेलिना बोली “सही कहा दीदी, भैया अपनी लाडली की खुशी के लिए इतना भी नही कर सकते.”
दोनो मुझे ऐसा करने के लिए उकसा रही थी और मैं उनकी बातों मे फासना नही चाहता था. इसलिए मैने दोनो से कहा.
मैं बोला “मुझे जो गिफ्ट देना था, वो मैं उसे पहले ही दे चुका हूँ और उसकी खुशी के लिए ही यहाँ आया हूँ. अब तुम दोनो अपनी बक बक बंद करो और चुप चाप उसकी स्कूल चलो.”
मेरी बात सुनकर, सेलिना चुप चाप गाड़ी मे आकर बैठ गयी. लेकिन सीरत ने अपनी आख़िरी कोसिस करते हुए कहा.
सीरत बोली “आपका दिया हुआ गिफ्ट, उसे मिल गया था. लेकिन वो आपसे बहुत नाराज़ थी, इसलिए उसने वो गिफ्ट खोल कर भी नही देखा. अब कहीं ऐसा ना हो की, आपको देख कर वो स्कूल से आने से ही मना कर दे. उसका गुस्सा तो आप जानते ही है. मगर इस सब से मुझे क्या. चलिए आरू की स्कूल चलते है.”
इतना कह कर, सीरत भी गाड़ी मे आकर बैठ गयी. लेकिन उसकी इस बात ने मुझे सोच मे डाल दिया. क्योकि आरू बहुत जिद्दी थी और यदि एक बार किसी बात को लेकर नाराज़ हो जाए तो उसको मनाना आसान नही था.
मगर मैं ये भी अच्छी तरह से जानता था कि, आरू मुझसे ज़्यादा देर तक नाराज़ नही रह सकती थी. इसलिए मेरा इन दोनो की बात मानने का कोई सवाल ही पैदा नही होता था. मुझे इस तरह सोचता देख, सीरत ने फिर मुझे उकसाते हुए कहा.
सीरत बोली “भैया, ज़्यादा मत सोचिए. आप से ये नही होगा, इसलिए अब ऐसे ही स्कूल चलते है.”
सीरत की बात के जबाब मे मैने उस से ड्राइवर की यूनिफॉर्म लाने को कहा तो, वो भाग कर यूनिफॉर्म ले आई. कुछ ही देर मे मैं यूनिफॉर्म पहन कर तैयार हो गया. मुझे ड्राइवर की यूनिफॉर्म मे देख कर दोनो खुश हो गयी और फिर हम लोग आरू की स्कूल आ गये.
दोनो ने मुझे गाड़ी मे ही बैठे रहने को कहा और दोनो आरू को लेने स्कूल के अंदर चली गयी. थोड़ी देर बाद मुझे तीनो स्कूल से बाहर निकलती नज़र आई. गाड़ी के पास आने के बाद, सीरत आगे मेरे पास वाली सीट पर आकर बैठ गयी. सेलिना और आरू पीछे की सीट पर बैठ गयी. सबके गाड़ी मे बैठते ही सीरत ने मुझसे कहा.
सीरत बोली “काका एस्सेल वर्ल्ड चलिए.”
अपने लिए काका सुनते ही मैने सीरत को घूर कर देखा तो, उसने मुझे चुप चाप चलने का इशारा किया. उधर आरू ने एस्सेल वर्ल्ड चलने की बात सुनी तो, गुस्से मे भन्नाते हुए कहा.
अर्चना बोली “मैने कहा ना, मुझे कहीं नही जाना. सीधे घर चलो वरना अच्छा नही होगा.”
आरू को एस्सेल वर्ल्ड चलने के नाम पर गुस्सा होते देख, सीरत ने पीछे पलट कर देखते हुए उस से कहा.
सीरत बोली “आज आख़िर तुझे हुआ क्या है. आज तेरा जनम दिन है और तू सुबह से ही सब पर वेवजह गुस्सा हुए जा रही है. हम तो तेरे को जनम दिन का गिफ्ट देना चाहते है और तुझे पार्टी देने के लिए एस्सेल वर्ल्ड ले जा रहे है.”
लेकिन आरू पर सीरत की बात का कोई असर नही पड़ा. उसने फिर गुस्से मे अपनी बात को दोहराते हुए कहा.
अर्चना बोली “मुझे नही चाहिए कोई गिफ्ट विफ़्ट, मुझे जो भी गिफ्ट मिले है वो भी तुम लोग रख लो. मुझे कहीं नही जाना और ना ही कोई पार्टी चाहिए. सीधे घर चलो, नही तो मुझे यही उतार दो.”
आरू का गुस्सा शांत ना होते देख, सीरत ने उस से कहा.
सीरत बोली “चल जैसा तू कहती है, हम वैसा कर देगे. बस तू हमें इतना बता दे कि, तू इतना किस वजह से नाराज़ है.”
सीरत की ये बात सुनकर आरू कुछ शांत पड़ गयी. लेकिन कुछ बोली नही. शायद वो अपनी नाराज़गी की वजह किसी को बताना नही चाहती थी. उसे चुप देख कर सीरत ने मुझे गाड़ी आगे बढ़ाने का इशारा किया तो, मैने गाड़ी स्टार्ट की. लेकिन मेरे गाड़ी स्टार्ट करते ही आरू ने कहा.
अर्चना बोली “काका सीधे घर चलो. मुझे घर छोड़ने के बाद इनको जहाँ जाना है वहाँ ले जाना.”
अर्चना के ऐसा बोलने पर, सीरत ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए आरू से कहा.
सीरत बोली “ठीक है, जब तुझे हमारी कोई बात नही मानना तो, हम भी अब तुझसे कोई बात नही करेंगे. तू आगे आकर बैठ और मुझे सेलू के पास बैठने दे.”
ये कह कर सीरत गाड़ी से उतर गयी और पीछे का दरवाजा खोल कर आरू को आगे जाने का इशारा किया. आरू भी बिना कुछ कहे गाड़ी से उतर गयी. उसके उतरते ही सीरत पीछे उसकी सीट पर जाकर बैठ गयी और आरू आकर आगे बैठ गयी.
लेकिन आगे बैठते ही जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी तो, उसने पीछे पलट कर सीरत और सेलिना की तरफ देखा. वो दोनो उसे देख कर मुस्कुरा रही थी. उसके बाद उसने फिर से मेरी तरफ देखा तो, मैने उसे हॅपी बर्तडे कहा.
मेरे हॅपी बर्तडे बोलते ही, सीरत और सेलिना ने भी उसे हॅपी बर्तडे कहा. जिसे सुनते ही पहले आरू के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और फिर उसकी आँखों मे आँसू झिलमिलाने लगे.
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