MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 02:39 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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अब आगे की कहानी पुन्नू की ज़ुबानी….

अजय अभी अपनी आगे की बात बता पाता कि, एक दम से मेरे मोबाइल की स्क्रीन चमकने लगी. एक घंटा पूरा हो जाने की वजह से कीर्ति का कॉल कट गया था. अजय के सामने मैं कीर्ति को कॉल नही लगा सकता था. इसलिए मैने अजय की बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.

मैं बोला “बात को बीच मे ही काटने के लिए सॉरी. लेकिन मुझे थोड़ी देर के लिए उपर अंकल को देखने जाना होगा. मुझे उनके पास ने आए बहुत देर हो गयी है.”

मेरी बात सुनकर अजय ने मुझे अंकल के पास जाने को कहा और मैं उपर अंकल के पास चला गया. अंकल आराम से सो रहे थे. मैं वापस नीचे आया और कीर्ति को कॉल लगाने के बाद, प्रिया को देखने उसके रूम मे चला गया.

मैं जब प्रिया के कमरे मे पहुचा तो, वो सो रही थी और निक्की उसके पास बैठी नॉवेल पढ़ रही थी. मेरे आने की आहट से उसका ध्यान नॉवल पढ़ने से हट गया. उसने मुस्कुराते हुए कहा.

निक्की बोली “आपको सोना नही है क्या या सारी रात उधर बैठ कर गॅप सॅप करने का ही इरादा है.”

मैं बोला “मैं तो रात भर जागता हूँ. लेकिन आप क्यो जाग रही है. यदि आपको सोना है तो, सो जाइए. मैं बाहर ही बैठा हूँ. बीच बीच मे आकर प्रिया को देखता रहूँगा.”

निक्की बोली “मुझे सच मे बहुत नींद आ रही है. क्या मैं सच मे सो जाउ.”

मैं बोला “हां, आप सो जाइए और प्रिया की फिकर मत कीजिए. मैं उसे देखता रहूँगा.”

मेरी बात सुनकर, निक्की के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गयी. उसने नॉवेल बंद करते हुए कहा.

निक्की बोली “ओके, मैं अभी थोड़ी देर बाद सो जाउन्गी. कोई बात हो तो आप मुझे जगा देना.”

मैं बोला “ओके.”

इतना बोल कर मैं बाहर अजय के पास आ गया. अजय अभी भी वही बैठा हुआ था. मैं उसके पास जाकर बैठा तो, उसने कहा.

अजय बोला “तुमको आने मे बड़ी देर लग गयी. क्या अंकल जाग गये थे.”

मैं बोला “नही, अंकल सो रहे थे. लेकिन मैं नीचे आकर प्रिया को देखने चला गया था. निक्की अभी भी जाग रही थी तो, उसे सोने का बोल कर आ रहा हूँ.”

अजय बोला “ये तुमने अच्छा किया. उसे रात को जागने की आदत नही है.”

अजय की इस बात से, मुझे याद आया कि, अजय निक्की को अपनी बहन मानता है. लेकिन अभी मुझे निक्की से ज़्यादा अजय की अधूरी बात को सुनने की उत्सुकता थी. इसलिए मैने बात को आगे बढ़ाते हुए अजय से कहा.

मैं बोला “उस दिन अमन ने फोन पर क्या बात कही थी. जिसे सुनकर तुम्हे झटका लगा था और मोबाइल तुम्हारे हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया था.”

मेरी बात सुनकर अजय ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.


*******************

अब आगे की कहानी अजय की ज़ुबानी….

अमन की बात सुनते ही मुझे ऐसा झटका लगा कि, मेरे हाथ से मोबाइल छूट कर नीचे गिर गया. मैने हड़बड़ा कर मोबाइल उठाया तो अमन हेलो हेलो कर रहा था. मैने घबराकर उस से कहा.

मैं बोला “आरू कहाँ है. वो ठीक तो है ना.”

अमन बोला “अभी आरू का कोई पता नही है. हम लोग यहीं है. यहाँ के हालात बहुत खराब हो गये है.”

मैं बोला “तू फिकर मत कर, आरू को कुछ नही होगा. मैं अभी वहाँ के लिए निकलता हूँ.”

मेरी बात सुनकर अमन ने कॉल रख दिया. कहने को तो मैने अमन से कह दिया था कि, आरू को कुछ नही होगा. लेकिन यहाँ मैं खुद अमन की बात को सुनकर डर गया था. मैं जल्द से जल्द मुंबई पहुचना चाहता था.

लेकिन ट्रेन और कार से मुंबई जाने मे 4 से 5 घंटे का समय लगना था और इस समय सूरत से मुंबई के लिए कोई सीधी फ्लाइट भी नही थी. मेरे पास जल्दी मुंबई पहुचने का सिर्फ़ एक रास्ता था और मैने वही रास्ता अपनाया.

मैने मॅनेजर को फ़ौरन मुंबई के लिए एक प्राइवेट प्लेन का इंतेजाम करने को कहा. मेरी बात सुनते ही मॅनेजर मेरे रूम से बाहर चला गया. मैं बेचेनी से उसके वापस आने का इंतजार करने लगा.

करीब 15 मिनट बाद मॅनेजर ने आकर बताया कि, उसने एक प्राइवेट प्लेन बुक कर लिया है. मैं जब चाहे तब मुंबई के लिए निकल सकता हूँ. उसकी बात सुनकर मैने उस से कहा.

मैं बोला “मैं अभी ही मुंबई के लिए निकल रहा हूँ. हुमारे सभी कारखानो के सभी कर्म-चारियों को छुट्टी दे दो और उन से कहो कि, वो मेरी बहन की सही सलामती के लिए दुआ करे.”

इतना कह कर मैं ऑफीस से ही एरपोर्ट के लिए निकल गया. एरपोर्ट पहुचने मे मुझे करीब 10 मिनट लगे और फिर प्लेन से मुंबई पहुचने मे मुझे करीब 45 मिनट लगे. एक घंटे के अंदर मे मुंबई पहुच गया.

मुंबई पहुचते ही मैने अमन को कॉल किया. उसने बताया कि वो अभी आरू के स्कूल मे ही है और आरू का अभी भी कोई पता नही चल सका है. मैं टॅक्सी लेकर सीधे आरू की स्कूल पहुच गया.

लेकिन वहाँ का माहौल देख कर मेरा दिल दहल गया. जहाँ आरू की स्कूल की इमारत थी. वहाँ अब मलबे का ढेर नज़र आ रहा था. आधे से ज़्यादा इमारत बॉम्ब के धमाके से धराशायी हो चुकी थी और मलबे से स्कूल के बच्चों को निकालने का काम चल रहा था.

मैं अमन को यहाँ वहाँ देख रहा था. तभी अमन की नज़र मुझ पर पड़ गयी और वो मेरे पास आ गया. उसने बताया कि, आरू के स्कूल के अलावा मुंबई के एक हॉस्पिटल और एक सिनिमा हॉल मे भी बॉम्ब ब्लास्ट हुआ है. हज़ारों लोग घायल हुए और सैकड़ों लोगों की जान गयी है.

मुंबई के हॉस्पिटल घायलों से भरे पड़े है. ये धमाके हुए 2 घंटे से ज़्यादा का समय हो चुका है. अब मलबों से घायलो और जिंदा इंसानों की जगह सिर्फ़ लाशें निकल रही है. पता नही हमारी आरू अब जिंदा भी है या….”

अमन की आख़िरी बात पूरी होने के पहले ही मैने उसकी कॉलर पकड़ ली और उस से कहा.

मैं बोला “तू कहना क्या चाहता है. तेरा कहना है कि, अब हमे हमारी आरू नही, उसकी लाश मिलेगी.”

मेरी बात सुनकर अमन का सबर का बाँध टूट गया और वो रो पड़ा. उसने मेरे गले से लगते हुए कहा.

अमन बोला “तो और क्या बोलू मैं. मेरी फूल जैसी बहन इस मलबे मे कहीं दबी पड़ी है और मैं खुद को उसके सही सलामत होने का दिलासा देने के सिवा कुछ नही कर पा रहा हूँ.”

मैं बोला “ये दिलासा नही है. मेरा दिल कहता है कि, हमारी आरू को कुछ नही होगा. तू हिम्मत मत हार, सब ठीक हो जाएगा.”

अभी मैने इतनी बात बोली थी कि, तभी चाचा जी भागते हुए आए और हम से कहा.

चाचा जी बोले “आरू मिल गयी. लेकिन उसकी हालत बहुत खराब लगती है. हमे उसे जल्दी हॉस्पिटल ले जाना होगा.”

चाचा जी की बात सुनते ही हम ने उस तरफ दौड़ लगा दी, जहाँ चाचा जी ने बोला था. वहाँ पहुचते ही आरू की हालत देख कर मेरा दिल रो पड़ा. वो पूरी तरह खून से लथ पथ थी और उसकी ये हालत देख कर, मैं अपने आँसू ना रोक सका.

अमन ने आनन फानन मे उसे हॉस्पिटल ले जाने का इंतज़ाम किया. हम आरू को ढूँढने और उसे समय पर हॉस्पिटल ले जाने मे तो कामयाब हो गये. लेकिन आरू का खून बहुत बह चुका था और उसकी हालत बहुत नाज़ुक बनी हुई थी.

उसकी नाज़ुक हालत को देखते हुए डॉक्टर. ने खून चढ़ाए जाने की ज़रूरत बताई. मगर आरू का ब्लड ग्रूप ए बी- (एबी नेगेटिव) था. जो घर मे किसी का भी नही था. किसी जान पहचान वाले से भी उसका ब्लड ग्रूप मेल नही खा रहा था.

डॉक्टर. ने साफ कह दिया था कि, यदि समय रहते आरू को ब्लड नही चढ़ाया गया तो, उसकी जान भी जा सकती है. अमन शहर के सभी ब्लड बॅंक मे कॉल करके ब्लड का पता कर रहा था. लेकिन अभी हाल मे हुए हादसे की वजह से अब- ब्लड किसी भी ब्लड बॅंक मे मौजूद नही था.

निशा भी रक्त-दान करने वाले ऐसे लोगों से संपर्क करने की कोशिस मे लगी थी, जिनका ब्लड ग्रूप एबीमाइनस था. लेकिन दोनो मे से किसी को भी सफलता नही मिली थी. इधर आरू की हालत और भी खराब होती जा रही थी.

तभी अमन को एक ब्लड बॅंक मे बात करते हुए पता चला की, उनके पास एबी माइनस ब्लड है पर अभी अभी उनकी वो ब्लड किसी को देने की बात हो चुकी है. अमन की ये बात सुनकर मुझे आशा की एक किरण नज़र आई.

मैने निशा से उस ब्लड बॅंक चलने को कहा और मैं निशा के साथ वहाँ पहुच गया. लेकिन उस ब्लड बॅंक वाले ने ब्लड देने से सॉफ मना कर दिया. उसने कहा कि ये ब्लड जिसको देने के लिए, रखा है, वो अभी ब्लड लेने आने ही वाले है. उनके मरीज की हालत बहुत नाज़ुक है.

मैं उसे समझाने की कोसिस करता रहा कि, मेरी बहन की हालत भी नाज़ुक है. मगर वो किसी की अमानत मे खयानत ना करने की बात कह कर ब्लड देने से मना करता जा रहा था. मैने उस से ये भी कहा कि, हम ब्लड का इंतज़ाम करने मे लगे है. जैसे ही हमे ब्लड मिलता है, वो ब्लड हम उस मरीज को उपलब्ध करवा देगे. मगर वो हमारी कोई बात सुनने को तैयार नही था.

मैं किसी भी हालत मे वो ब्लड हासिल करना चाहता था और जब मुझे वो किसी तरह से मानता ना दिखा तो, मैने अपने जेब से 1000 के नोट की एक गॅडी निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “उस एक बॉटल ब्लड की कीमत मेरे लिए ये भी कम है. तुम चाहो तो मुझसे और भी पैसे ले लो. लेकिन वो ब्लड मुझे दे दो.”

मेरी बात सुनकर वो सोच मे पड़ गया. लेकिन निशा ने मुझे टोकते हुए कहा.

निशा बोली “ये तुम क्या कर रहे हो. वो यदि हमारे इतना कहने पर भी ब्लड नही देने को तैयार नही है तो, इसका मतलब ये ही है कि, उस मरीज की हालत सच मे ही बहुत ज़्यादा खराब है. ऐसे मे इस तरह ब्लड हासिल करना सही नही है.”

निशा की ये दलील सुनकर, मुझे उस पर गुस्सा आ गया. मैने उस पर झल्लाते हुए कहा.

मैं बोला “तुम अपना मूह बंद रखो. मुझे तुम्हारी सलाह की ज़रूरत नही है. यहाँ सवाल मेरी बहन की जिंदगी का है और इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ.”

ये कहते हुए मैने अपने हाथ की डाइमंड रिंग उतारकर उसके सामने रखते हुए कहा.

मैं बोला “ये डाइमंड रिंग है. अभी इस रिंग की कीमत कम से कम सवा लाख रुपये होगी. अब यदि तुम्हे सही लगे तो, वो ब्लड मुझे दे दो. मैं तुमसे वादा करता हूँ कि, जल्दी ही मैं ब्लड का इंतेजाम करके तुम्हे लाकर दे दूँगा. फिर तुम वो ब्लड उस मरीज को दे देना.”

मेरी इस बात के जबाब मे उसने जल्दी से मेरी दी हुई नोटों की गॅडी और रिंग को उठा लिया. फिर बिना कुछ बोले अंदर गया और ब्लड लाकर हम को दे दिया. निशा मेरी इस हरकत से खुश नही थी. लेकिन मुझे भी निशा की कोई परवाह नही थी.

मैं ब्लड लेकर हॉस्पिटल पहुचा और ब्लड अमन को देने के बाद निशा से कहा.

मैं बोला “तुम आराम से मत बैठो. अभी हमे उस मरीज के लिए ब्लड का इंतज़ाम करना है. तुम रक्त-दान करने वालो को ढूँढती रहो. जैसे ही ब्लड मिले, उसे ब्लड बॅंक मे देने की जगह, सीधे उस मरीज तक पहुचा देना.”

मेरी बात सुनकर, निशा ने मुझे गुस्से मे देखा और फिर से कॉल करने मे बिज़ी हो गयी. इधर आरू को ब्लड चढ़ाया जा चुका था. उसके शरीर पर बहुत ही गंभीर चोटे लगी थी. जिनसे उबरने के लिए उसे ब्लड की सख़्त ज़रूरत थी और अब ब्लड चढ़ जाने से डॉक्टर. को उम्मीद बँध गयी थी, कि जल्दी ही आरू की नाज़ुक हालत पर काबू कर लिया जाएगा.

उधर निशा ने भी आधे घंटे की मेहनत के बाद एक रक्त-दाता को ढूँढ निकाला था. उसने ब्लड बॅंक वाले से उस मरीज की हॉस्पिटल का पुछा और उस रक्त-दाता को वहाँ लेकर चली गयी. मुझे निशा की ये बात बहुत अच्छी लगी थी कि, उसके लिए सब मरीज एक बराबर है और वो उस रक्त-दाता को खुद ही उस मरीज के पास लेकर गयी है.

लेकिन जब निशा उस मरीज के पास से वापस लौटी तो, उसका चेहरा लटका हुआ था. उसने आकर बताया कि, उसके पहुचने के पहले ही, वो मरीज समय पर ब्लड ना मिलने की वजह से दम तोड़ चुका था.

मुझे उस मरीज की मौत का बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन मुझे अपनी की हुई हरकत पर कोई पछ्तावा नही था. क्योकि सवाल मेरी बहन की जिंदगी का था और यदि मैं ऐसा नही करता तो, हो सकता था कि, उस मरीज की जगह मेरी बहन दम तोड़ देती.

उस समय मुझे जो ठीक लगा वो मैने किया था. लेकिन निशा को मेरी ये बात इतनी बुरी लगी कि, उसके बाद से उसने मेरे साथ बात करना बंद कर दिया और मुझसे कटी कटी रहने लगी. मुझे उसकी इस नाराज़गी का अहसास उसकी बोल चाल से होने लगा था.

मगर उस समय मुझे निशा की नाराज़गी से ज़्यादा, अपनी उस बहन की फिकर थी. जिसे हॉस्पिटल मे रहते 24 घंटे से ज़्यादा हो गया था, मगर अभी तक उसने आँख नही खोली थी. डॉक्टर. का कहना था कि, यदि इसे 48 घंटे के भीतर होश नही आया तो ये कोमा मे भी जा सकती है.
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(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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