MmsBee कोई तो रोक लो
09-10-2020, 01:44 PM,
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कुछ ही देर मे शिखा दीदी भागती हुई उपर आई. दीदी को देखते ही हम दोनो उठ कर खड़े हो गये. शिखा दीदी के पिछे पिछे नेहा और उसकी कुछ सहेलियाँ भी क़हक़हे लगाती उपर आ गयी.

शायद शिखा दीदी उनसे ही भाग कर उपर आई थी. लेकिन जब उन्हो ने उनको भी अपने पिछे उपर आते देखा तो, वो जल्दी से आकर बरखा के पिछे खड़ी हो गयी. उन्हे इस तरह से च्छुपते देख, बरखा ने शिखा दीदी से पुछा.

बरखा बोली “क्या हुआ दीदी, आप इस तरह से भाग क्यो रही है.”

बरखा की बात सुनकर, शिखा दीदी ने बड़ी ही मासूमियत से उसकी बात का जबाब देते हुए कहा.

शिखा बोली “देख ना, ये सब मिल कर मुझे परेशान कर रही है.”

शिखा की इस बात पर बरखा ने अपनी नज़रे तिरछी करते हुए, नेहा से पुछा.

बरखा बोली “क्या बात है. तुम सब मिलकर मेरी दीदी को क्यो परेशान कर रही हो.”

नेहा बोली “हम परेशान थोड़ी कर रहे है. हम तो बस दीदी से उनकी और जीजू की लव स्टोरी के बारे मे पुच्छ रहे थे. लेकिन ये हम लोगों को चकमा देकर यहाँ उपर भाग आ गयी.”

बरखा बोली “चलो, किसी को कुछ नही पुछ्ना. सब जाकर अपना काम करो और अब दीदी से कोई कुछ नही पुछेगा.”

लेकिन नेहा ने बरखा की इस बात को काटते हुए कहा.

नेहा बोली “बड़ी आई दीदी की चमची. हम तो आज सब कुछ पुच्छ कर ही रहेगे. हम भी देखते है, तू हमे कुछ पुच्छने से कैसे रोकती है.”

नेहा की इस बात पर एक बार फिर सभी लड़कियाँ क़हक़हे लगाने लगी. लेकिन उनकी इस बात से बरखा की भौहें तन गयी. उसने उन सबको घूर कर देखते हुए कहा.

बरखा बोली “लगता है, तुम लोग ऐसे नही मनोगी. रूको, अब मैं तुम लोगों को बताती हूँ कि, मैं तुम लोगों को कुछ पुच्छने से कैसे रोकती हूँ.”

ये कह कर वो, नेहा और उसकी सहेलियों की तरफ बढ़ने लगी. लेकिन बरखा को गुस्से मे अपनी तरफ़ आते देख कर, सभी लड़कियों ने क़हक़हे लगाते हुए, नीचे की तरफ दौड़ लगा दी.

बरखा का शरीर आत्लीट था और ये सच था कि, यदि वो उन मे से किसी का हाथ भी पकड़ लेती तो, सब मिलकर भी बरखा से उसका हाथ नही छुड़ा पाती. इसलिए सब ने वहाँ से भाग जाने मे ही अपनी भलाई समझी थी.

उन सबके नीचे चले जाने के बाद, बरखा ने हमारे पास वापस आते हुए, शिखा से कहा.

बरखा बोली “दीदी, जब तक आपका नीचे से बुलावा नही आ जाता. तब तक आप यही बैठो, वरना वो नेहा कमिनि फिर आपको परेशान करेगी. उसे आज कल बहुत मस्ती सूझ रही है. ज़रा शादी हो जाने दो, फिर मैं उसकी सारी मस्ती अच्छे से निकालती हूँ.”

बरखा को इस तरह नेहा की हरकत पर चिड़चिड़ाते देख कर, मैं अपनी हँसी ना रोक सका और मैने अपनी जगह पर बैठते हुए धीरे से बुदबूदाया.

मैं बोला “हिट्लर दीदी.”

ये बात मैने बहुत धीरे से कही थी. फिर भी ये बात शिखा दीदी और बरखा को सुनाई दे गयी. जहाँ मेरी ये बात सुनकर शिखा दीदी मुस्कुराने लगी. वही मेरी इस बात को सुनकर, बरखा ने मेरे उपर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

बरखा बोली “तुमसे उन लोगों को दीदी को परेशान करने से रोकते तो बना नही और मैने रोका तो, अब मेरा मज़ाक बना रहे हो. बड़े अच्छे भाई हो तुम और तुम्हे अपनी बहनो का कितना ज़्यादा ख़याल है.”

लेकिन मैं कुछ मज़ाक के मूड मे था और मैने बरखा की इस बात का जबाब भी मजाकिया अंदाज़ मे देते हुए कहा.

मैं बोला “जब आप झासी की रानी बन कर, दीदी के सामने खड़ी थी तो, किसकी मज़ाल थी कि, वो दीदी को कुछ कह सके. फिर भला ऐसे मे मैं बीच मे कूद कर क्या करता.”

हमे लगा कि, वो मेरे इस मज़ाक के जबाब मे, फिर से कुछ बोलेगी. लेकिन वो सर झुकाए चुप चाप बैठी रही. जब उसने कोई बात नही की और ऐसे ही मूह फूला कर बैठी रही तो, शिखा दीदी ने उसे समझाते हुए कहा.

शिखा बोली “अरे तुम भैया की इतनी सी बात का बुरा क्यो मानती हो. वो तो तुमसे सिर्फ़ थोड़ा सा मज़ाक कर रहे थे. यदि तुम ऐसे ही मूह फूला कर बैठी रही तो, भैया को बुरा लगेगा.”

शिखा दीदी की इस बात पर ना जाने क्यो, बरखा की आँखे छलक आई और उसने भड़कते हुए कहा.

बरखा बोली “मैं क्यूँ इसकी किसी बात का बुरा मानने लगी और मैं कौन सा इसकी सग़ी बहन हूँ, जो इसे मेरे मूह फूलने का बुरा लगेगा.”

बरखा की इस बात को सुनते ही शिखा दीदी को एक झटका सा लगा. उन्हे समझ मे नही आया कि, ये अचानक बरखा को क्या हो गया. उन्हो ने फ़ौरन मेरी तरफ देखा कि, कही मुझे बरखा की ये बात बुरी तो नही लग गयी.

लेकिन मैं बरखा की ये बात सुनकर भी मुस्कुराता ही रहा और शिखा दीदी को भी चुप रहने का इशारा कर दिया. मुझे बरखा की इस बात का ज़रा भी बुरा नही लगा था. क्योकि अब मैं उसकी इन बेसर पैर की बातों का मतलब अच्छी तरह से समझ चुका था.

मैं भी कुछ दिन पहले ऐसे ही एक दौर से गुजरा था. जब मुझे छोटी माँ की कमी का अहसास हो रहा था और फिर मैं उनसे बिना बात के ही झगड़ा करने लगा था. ऐसा ही कुछ आज शायद बरखा के साथ भी हो रहा था. इस खुशी के मौके पर उसे शायद अपने भैया की कमी बहुत अखर रही थी.

मगर चाहते हुए भी वो अपनी इस बात को किसी के सामने जाहिर नही कर पा रही थी. इसलिए उसने मेरी एक ज़रा सी बात को इतना बड़ा बना दिया था और मेरे अंदर अपने उस भाई को तलाश करने की कोसिस कर रही थी, जो अब इस दुनिया मे नही था.

शायद ये दुनिया की हर बहन की खूबी होती है कि, वो चाहे कितनी ही बड़ी और समझदार क्यो ना हो जाए. लेकिन उसके अंदर एक बच्पना और एक मासूमियत हमेशा छुपि हुई होती है. जिसे वो तभी बाहर लाती है, जब उसे अपने हिस्से का प्यार हासिल करना होता है.

ऐसा ही कुछ अभी बरखा भी कर रही थी. जो अभी कुछ देर पहले इतनी समझदारी की बातें कर रही थी. वो ही अब किसी मासूम बच्चे की तरह मूह फूला कर, आँखों मे नमी लिए बैठी थी और बेमतलब की बातें कर रही थी.

उसके इस दर्द को महसूस करके, मैं भी अपनी आँखें भीगने से ना रोक पाया और मैं उठ कर बरखा के पैरो के पास जाकर, ज़मीन पर घुटनो के बल बैठ गया. मैने उसके हाथों को अपने हाथों मे पकड़ते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी दीदी, मुझे नही पता था कि, मेरी ये बात आपको इतनी ज़्यादा बुरी लग जाएगी. यदि मुझे ऐसा ज़रा भी पता होता तो, मैं अपनी दीदी को नाराज़ करने की ग़लती कभी नही करता. प्लीज़ दीदी, अपने इस छोटे भाई को माफ़ कर दो.”

मेरी बात सुनकर, भी बरखा का गुस्सा कम नही हुआ. उसने मेरे हाथ से अपने हाथ छुड़ाते हुए, गुस्से मे मेरी तरफ देखा. लेकिन मेरे चेहरे पर नज़र पड़ते ही, मेरी आँखों मे आँसू देख कर, एक पल मे ही बरखा का दिल पिघल गया. उसने फ़ौरन अपने हाथों से मेरे आँसू पोछ्ते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी भाई, मैने बेवजह की बातों को लेकर तुम पर गुस्सा किया और अपने साथ साथ तुमको भी रुला दिया.”

मैं बोला “दीदी, आपके आँसू बेवजह नही थे. मैं इनका मतलब अच्छी तरह से समझता हूँ. वो भाई ही क्या, जो अपनी बहन के बहते आँसुओं का मतलब भी ना समझ सके.”

मेरी ये बात सुनकर, बरखा के साथ साथ शिखा दीदी भी मुझे गौर से देखने लगी. मैने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.

मैं बोला “मगर दीदी, मेरी मोम कहती है की, उस उपर वाले ने, हमे अपने दिल का दर्द कम करने के लिए बेशुमार आँसू दिए है. जब ये आँसू बहते है तो, हमारे दिल का दर्द कम हो जाता है और जब हमारा कोई अपना इन आँसुओं को पोन्छ्ता है तो, हमे एक सुकून मिलता है. लेकिन यदि कोई हमारा अपना, हमारे ये आँसू बहते देख कर भी, इन्हे ना पोन्छ पाए तो, उसके दिल को इतना दर्द होता है कि, वो फिर कितने भी आँसू बहा ले, मगर उसका दर्द कम नही होता. क्या ये सब जानने के बाद भी, आपको ये लगता है कि, आपको इस तरह आँसू बहाना चाहिए.”

अपनी इतनी बात कह कर, मैं चुप हो गया. मेरी इस बात को सुनते ही बरखा समझ गयी की, मेरा इशारा उसके भाई की तरफ ही है और ये बात समझ मे आते ही, उसने फ़ौरन अपने आँसू पोछ्ते हुए मुझसे कहा.

बरखा बोली “सॉरी भाई, आज के बाद मेरी आँखों मे, उस वजह से कभी आँसू नही आएगे, जिस वजह से आज आए थे.”

मेरी बात बरखा के समझ मे तो आ गयी थी. लेकिन शिखा दीदी को कुछ समझ मे नही आया तो, उन्हो ने चिड़चिड़ाते हुए कहा.

शिखा बोली “अरे आप लोग, ये क्या वजह बेवजह लगाए हुए है. मुझे तो कुछ समझ मे नही आ रहा है.”

मैने शिखा दीदी की बात सुनी तो, मुस्कुराते हुए कहा.

मैं बोला “दीदी, सीधी सी बात तो है. बरखा दीदी मेरे मूह से अपने लिए हिट्लर दीदी सुनकर नाराज़ हो गयी थी और आँसू बहाने लगी थी. क्या कोई इतनी सी बात पर भी इस तरह से नाराज़ होता है. बस इसी बात को मैं बेवजह की बात कह रहा हूँ.”

मेरी इस बात को शिखा दीदी ने सच मानते हुए, बरखा से कहा.

शिखा बोली “आपने बिल्कुल सही कहा. क्या भला कोई इतनी सी बात पर भी अपने भाई से नाराज़ होता है.”

शिखा दीदी की इस बात के जबाब मे बरखा ने अपनी ग़लती मानते हुए कहा.

बरखा बोली “सॉरी दीदी, अब मैं आगे से ऐसी ग़लती कभी नही करूगी.”

बरखा की बात सुन कर, शिखा दीदी ने राहत की साँस ली और फिर उसे इसी बारे मे समझाती रही. थोड़ी देर बाद एक लड़की आई और शिखा दीदी को बुला कर नीचे ले गयी. उनके जाने के बाद मैने बरखा से कहा.

मैं बोला “दीदी, आपकी तरह शिखा दीदी को भी शेखर भैया की कमी सता रही है. इसी वजह से वो मुझे हमेशा अपने पास रखती है और मेरा इतना ख़याल रखती है. वो ना जाने किस तरह शेखर भैया की कमी के अहसास को अपने दिल के अंदर दबाए हुए है और बड़ी मुस्किल से इस शादी के लिए तैयार हुई है. यदि उनका ये अहसास फिर से जाग गया तो, मुझे डर है कि, ये शादी कभी भी नही हो पाएगी.”

मेरी बात को सुनकर, बरखा ने गंभीर होते हुए कहा.

बरखा बोली “तुम ठीक कहते हो. लेकिन ये भी तो नामुमकिन है कि, इस पूरी शादी मे दीदी को भैया की कमी का ज़रा भी अहसास ना हो. भैया ने दीदी की शादी को लेकर बहुत से सपने सजाए थे और इसलिए उन ने दीदी से पहले अपनी शादी करने से भी इनकार कर दिया था.”

ये कहते कहते एक बार फिर बरखा की आँखों मे नमी छा गयी. लेकिन उसने फ़ौरन ही अपनी आँखों की इस नमी को पोन्छ कर हटा दिया. मैं मन ही मन उसकी इस हिम्मत की दाद दिए बिना ना रह सका और मैने उस से कहा.

मैं बोला “दीदी, आप सच मे बहुत अच्छी हो. बाहर से देखने मे आप जितनी सख़्त नज़र आती हो. अंदर से आपका मन उतना ही कोमल है. आपका कहना बिल्कुल सही है कि, हम भैया की कमी को दीदी के दिल से कभी नही मिटा सकते. क्योकि दीदी उन्हे अभी भी बहुत प्यार करती है.”

“लेकिन दीदी, एक भाई का भला इस से बाद क्या सपना हो सकता है कि, उसकी बहन की शादी एक बड़े घर मे, एक बहुत अच्छे लड़के से हो. जो उसकी बहन को हमेशा खुश रखे और आज भैया का यही सपना पूरा होने जा रहा है. इसके बाद भी भैया की इस शादी को लेकर, जो खावहिशे थी, उन्हे हम पूरा करने की कोसिस करेगे.”

बरखा ने जब मेरी ये बात सुनी तो, वो गौर से मेरा चेहरा देखने लगी. शायद उसे समझ मे नही आया कि, मैं क्या कहना चाहता हूँ. उसने मुझसे सवाल करते हुए कहा.

बरखा बोली “तुम क्या कहना चाहते हो.”

मैं बोला “दीदी, मैं बस इतना कहना चाहता हूँ की, हम दीदी की शादी उसी तरह से करेगे, जिस तरह से भैया ने सोचा था.”

मेरी बात सुनकर, बरखा के दिल मे एक दर्द सा फिर जाग गया. वो चाह कर भी अपनी आँखे छलकने से नही रोक पाई. उसने अपने आपको संभालते हुए कहा.

बरखा बोली “मेरे भाई, तू ये सब मत सोच. तू जैसा सोच रहा है, वैसा कुछ भी नही हो सकता. इसलिए जैसा हो रहा है, वैसा होने दे. ये ही हम सब के लिए अच्छा है.”

मैं बोला “लेकिन क्यो दीदी, भैया की सोच को हम पूरा क्यो नही कर सकते.”

बरखा बोली “अब मैं तुझे कैसे समझाऊ. बस इतना समझ ले कि, अब ऐसा कुछ भी नही हो सकता.”

लेकिन मैने फिर ज़िद करते हुए अपनी बात को दोहरा कर कहा.

मैं बोला “दीदी आप मुझे इस बात को समझाइये कि, ऐसा क्यो नही सकता. आप मुझे समझाती हो तो, सच मे मुझे सब कुछ बहुत आसानी से समझ मे आ जाता है.”

मेरी इस बात पर बरखा ने मुस्कुराते हुए कहा.

बरखा बोली “देख, भैया का सपना था कि, वो दीदी की शादी बहुत धूम धाम करेगे और बारातियों का स्वागत ऐसे करेगे कि, वो भी अपना स्वागत देख कर दंग रह जाएगे. दीदी को दहेज मे हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज़ देगे. ताकि दीदी को अपनी ससुराल मे, किसी के सामने कभी किसी बात के लिए, सर ना झुकाना पड़े.”

ये कहते हुए बरखा मुझे शेखर भैया की, शिखा दीदी की शादी से जुड़ी हर छोटी बड़ी सोच के बारे मे बताने लगी. जिसे सुनने के बाद, मैं भी सोच मे पड़ गया.

अभी मैं बरखा से कुछ बोल पाता कि, तभी उसका नीचे से बुलावा आ गया और वो मुझसे थोड़ी देर बाद वापस आने की बोल कर नीचे चली गयी. उसके जाने के बाद, मैने कीर्ति वाला मोबाइल निकाला और जैसे ही हेलो कहा, कीर्ति ने मुझ पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अच्छा नाटक है तुम्हारा. मुझे कॉल मे रख कर, सब से आराम से बातें करते रहते हो. इस से समझ मे आता है कि, तुम्हे मेरी और मेरी तबीयत की कितनी फिकर है.”

मैं उसकी इस नौटंकी को समझ रहा था. इसलिए मैने उसको उसी के अंदाज मे जबाब देते हुए कहा.

मैं बोला “सॉरी, मैं तो भूल ही गया था कि, तेरी तबीयत खराब है. ऐसी हालत मे तुझे आराम करना चाहिए. ठीक है, मैं अभी कॉल रखता हूँ. तू अभी आराम कर, हम लोग कल बात करते है.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति को झटका सा लगा. उसे लगा कि मैं कॉल रखने वाला हू. उसने फ़ौरन मुझे रोकते हुए कहा.

कीर्ति बोली “अरे अरे, मैं तो मज़ाक कर रही हूँ. मेरी तबीयत बिल्कुल थी है. प्लीज़ अभी कॉल मत रखना. मुझे तुमसे बात करनी है.”

मैं बोला “अब आई ना सीधे रास्ते पर, क्या तुझको मुझे परेशान किए बिना चैन नही मिलता है. जो रोज एक नया नाटक लेकर आ जाती है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने खिलखिला कर हँसते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या करू, मैं जब तक तुमको परेशान ना कर लूँ, मेरा खाना ही हजम नही होता है.”

मैं बोला “अरे मैं तो भूल ही गया. तू ये बता कि, तूने खाने मे क्या खाया है.”

कीर्ति बोली “कुछ मत पुछो. मुझे तो खाने के नाम से उल्टी आ रही है.”

मैं बोला “क्या हुआ. क्या तूने अभी तक खाना नही खाया.”

कीर्ति बोली “खाना तो खा लिया है. लेकिन खाना ऐसा था कि, बड़ी मुस्किल से हलक के नीचे उतरा है.”

मैं बोला “ऐसा क्या खाना था, जो तेरे हलक से ही नही उतरा.”

कीर्ति बोली “उबली हुई पालक, चपाती, मूली का रस और इसके बाद एक ग्लास दूध मे शहद मिलकर पिया है.”

मैं बोला “चल ठीक है. इस सब से तेरे लिवर की कमज़ोरी दूर होगी और तू जल्दी ठीक हो जाएगी.”

कीर्ति बोली “मुझे कोई ठीक वीक नही होना. तुम्हारे आते ही मैं सीधे घर की दौड़ लगाउन्गी.”

मैं बोला “क्यो क्या हुआ. क्या छोटी माँ तेरा अच्छे से ख्याल नही रखती.”

कीर्ति बोली “उन्ही के ख़याल रखने की वजह से तो यहाँ से भागना चाहती हूँ. पता नही नानी ने उनको क्या क्या बनाना सिखाया है. इतना तो मम्मी को भी नही आता. सुबह उठते ही सबसे पहले गरम पानी मे निंमबू निचोड़ कर देती है.”

“उसके बाद नाश्ते मे अंगूर, पपीता और गेंहू का दलिया. दोपहर को खाने मे पालक, मेथी, गाजर और एक ग्लास छाछ. रात को खाने मे उबली हुई सब्ज़ियों का सूप, चपाती, उबले आलू और हरी सब्ज़ियाँ जैसे पालक, बथुआ, मेथी ये सब खाना पड़ता है.”

“मैं तो ये सब खा खा कर पहले ही पागल हो गयी हूँ. उपर से आज मौसी कह रही थी कि, मूली के पत्ते पीलिया मे फ़ायदा करते है और इस से भूख भी बढ़ती है. मैं कल से तुझे इसका भी रस निकाल कर दूँगी.”

“इतना ही नही, वो दोनो छिप्कलिया भी मुझ पर नज़र रखी रहती है कि, मैं ये सब खा रही हूँ या नही खा रही हूँ. मेरा ख़याल रखने के बहाने दोनो मुझसे गिन गिन कर बदला ले रही है. मैं तो इस सब से बहुत तंग आ गयी हूँ और अब घर जाना चाहती हूँ. वहाँ कम से कम इतना सख्ती तो नही झेलना पड़ेगी.”

कीर्ति की इस बात को सुनकर, मुझे हँसी आ गयी और वो मेरे इस तरह से उसकी हालत पर हँसने की वजह से नाराज़ होने लगी. मैने उसे समझाते हुए कहा.

मैं बोला “देख, गुस्सा मत कर, छोटी माँ जो भी कर रही है. तेरी भलाई के लिए ही कर रही है. तू मेरी खातिर उनकी बात मानती जा. तू नही जानती कि, तेरी तबीयत की मुझे कितनी फिकर है. यदि मैं वहाँ होता तो, तुझे अपने हाथ से ये सब बना कर खिलाता.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हैरान होते हुए कहा.

कीर्ति बोली “क्या तुम्हे भी ये सब बनाना आता है.”

मैं बोला “हां क्यो नही आता. छोटी माँ से मैने हर तरह का खाना बनाना सीखा है.”

मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने अपना सर पीटते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मर गये, अब तो जिंदगी भर ही ये सब खाना पड़ेगा.”

मैं बोला “ऐसा क्यो सोचती है. तू जल्दी ठीक हो जाएगी और अबकी बार जब मैं मुंबई आउगा तो, तुझे भी साथ लेकर आउगा. तेरे लिवर का इलाज यही करवा लेगे.”

कीर्ति बोली “अरे मेरे कहने का मतलब ये नही है. मैं तो बस ये कहना चाहती थी कि, मौसी को ये सब तुमको सिखाने की क्या ज़रूरत थी. ये सब तो अमि निमी को सिखाना चाहिए था.”

मैं बोला “मुझे अपनी किसी बात का मतलब मत समझा. मैं तेरी बात का मतलब अच्छी तरह से समझ गया हूँ कि, तू क्या कहना चाहती है. तू यही कहना चाहती है ना कि, तुझे मेरे साथ जिंदगी भर रहना है और अब तुझे ये सब जिंदगी भर झेलना पड़ेगा.”

मेरी बात सुनते ही कीर्ति फिर से खिल खिला कर हँसने लगी और फिर उसने बात को बदलते हुए कहा.

कीर्ति बोली “मौसी ठीक कहती कि, मुंबई जाकर तुम बहुत समझदार हो गये हो. बहुत बड़ी बातें करने लगे हो.”

मैं बोला “क्या छोटी माँ ने तुझे ऐसा कहा.”

कीर्ति बोली “मुझसे नही, आंटी से बोल रही थी कि, दीदी पुन्नू मुंबई जाकर बहुत समझदार हो गया और बहुत बड़ी बड़ी बातें करने लगा है. लेकिन अभी भी जब परेशान होता है तो, अपनी माँ की गोद ढूंढता है. मुझे लगता है कि, अब उसे एक माँ की गोद की नही बल्कि एक सच्चे दोस्त की ज़रूरत है. जो उसे जीवन के इस सफ़र मे चलने का सही रास्ता बता सके. क्या मैं अपने बेटे की दोस्त नही बन सकती.”

मैं बोला “फिर आंटी ने क्या कहा.”

कीर्ति बोली “आंटी ने उनसे कहा कि, पुन्नू को तुझसे अछा दोस्त मिल ही नही सकता. लेकिन ये ज़रूरी नही कि, पुन्नू भी तुझे अपना दोस्त बनाए. यदि तू सच मे ऐसा चाहती है कि, तेरा बेटा तेरा दोस्त बने तो, तुझे भी सुनीता नही सोनू बनकर रहना होगा. तब शायद उसे भी तेरा दोस्त बनने मे कोई परेशानी ना हो.”

“उनकी ये बात चल ही रही थी कि, तभी मैं उन्हे घर वापस आते दिख गयी और उनकी बात वही पर रुक गयी. इसलिए मैं सीधे अपने कमरे मे आ गयी. फिर पता नही मौसी ने उनकी बात का क्या जबाब दिया था.”

कीर्ति की इस बात से मुझे छोटी माँ के अंदर आ रहे बदलाव का कुछ कुछ पता चल गया था. लेकिन उनको ऐसा करना क्यो ज़रूरी लग रहा था. ये बात मुझे समझ मे नही आ रही थी. इसलिए मैने कीर्ति से पुछा.

मैं बोला “तू ये कब की बात बता रही है.”

कीर्ति बोली “ये तेरे बर्थ’डे के दिन की बात है. उस दिन जब मैं शाम को यहाँ वापस आई थी, तब ये बात चल रही थी.”

कीर्ति के इतना बोलते ही मुझे सारी बात समझ मे आ गयी. उन्हो ने उस दिन मुझे किसी लड़की के लिए इतना परेशान और टूटा हुआ देखा था. जिसकी वजह से शायद उन्हे ये लग रहा था कि, मैं कहीं रास्ता ना भटक जाउ. इसलिए अब वो मुझसे एक दोस्त की तरह बर्ताव करने लगी थी. ताकि मैं अपनी परेशानियाँ उन्हे बेजीझक बता सकूँ.

ये बात समझ मे आते ही पहले तो मुझे छोटी माँ की इस हरकत पर हँसी आ गयी. लेकिन अगले ही पल, मैं सोच मे पड़ गया कि, क्या दुनिया की हर माँ के दिल मे अपने बच्चों के लिए इतना ही प्यार होता है. क्या कोई माँ अपने बेटे से इतना प्यार भी कर सकती है कि, उसके लिए अपने आपको ही बदल दे.

ये सब सोच कर और अपने लिए छोटी माँ का प्यार महसूस कर, मेरी आँखें छल छला गयी. आज पहली बार मेरा दिल उस उपर वाले से लड़ने को कर रहा था और आज पहली बार मुझे उस उपर वाले से कोई शिकायत हो रही थी.

मैं चीख चीख कर, उस उपर वाले से पुच्छना चाहता था कि, जब तुझको मेरे नसीब मे छोटी माँ का इतना ज़्यादा प्यार लिखना ही था तो, मुझे उनका सौतेला बेटा बना कर क्यो पैदा किया. मैं पुच्छना चाहता था कि, जब मुझे छोटी माँ का बेटा कहलाना ही था तो, तूने मुझे उनकी कोख से ही जनम क्यो नही दिया.
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RE: MmsBee कोई तो रोक लो - by desiaks - 09-10-2020, 01:44 PM
(कोई तो रोक लो) - by Kprkpr - 07-28-2023, 09:14 AM

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