RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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इस दर्द के साथ मुझे पता ही नही चला कि, कब मेरी फ्लाइट ने उड़ान भरना सुरू कर दिया और कब उसकी उड़ान ख़तम भी हो गयी. मुझे इस बात का होश तब आया, जब मोहिनी आंटी ने मुझे हिलाकर, मुझसे फ्लाइट से नीचे उतरने को कहा.
मोहिनी आंटी की बात सुनकर, मैने अपने आपको संभाला और उनके साथ प्लेन से नीचे उतर आया. एरपोर्ट टर्मिनल मे अपना समान लेने के बाद, हम वेटिंग लाउंज की तरफ बढ़ गये.
छोटी माँ हम लोगों को लेने आने वाली थी. मैं उदास मन से, वेटिंग लाउंज की तरफ, उनको यहाँ वहाँ देखने लगा. तभी मेरी नज़र हमे आते देख कर, हाथ हिलाती अमि निमी पर पड़ी और उनको देखते ही मेरे चेहरे से, उदासी के बादल ऐसे छन्ट गये, जैसे की सूरज के चमकते ही, आसमान से काले बदल छन्ट जाते है.
उन दोनो को देखते ही, मेरे दिल मे खुशी की एक लहर दौड़ गयी. मैं मुस्कुराते हुए, उनकी तरफ बढ़ने लगा और उन दोनो ने भी मेरी तरफ दौड़ लगा दी. उनके पास आते ही मैने नीचे बैठ कर गले से लगा लिया.
मैं घुटनो के बल बैठे दोनो को गले लगाए हुआ था. अमि तो मुझसे गले मिल कर अपनी खुशी जता रही थी. लेकिन निमी की तो खुशी का ठिकाना ही नही था. वो मेरे घुटने पर पैर रख कर, मेरे कंधे पर चढ़ने की कोसिस कर रही थी.
तभी मेहुल, अंकल, मोहिनी आंटी और नितिका भी हमारे पास आ गये. अंकल ने प्यार से अमि निमी के सर पर हाथ फेरा तो, अमि दादी अम्मा बन कर, उनके ऑपरेशन के बारे मे सवाल करने लगी.
मगर निमी इन सब बातों से बेफिकर, मुझसे झामा झपटी करने मे लगी थी. मोहिनी आंटी और नितिका निमी की हरकतों का मज़ा ले रही थी. लेकिन मेहुल ने मुझ टोकते हुए कहा.
मेहुल बोला “तेरा तो, अभी भी घर जाने का मन नही दिख रहा है. लेकिन अब मुझसे एक पल के लिए भी घर से दूर रहते नही बन रहा है. इसलिए अब तू इनके साथ ये लाड करना बंद कर और जल्दी से घर के लिए चल.”
मेहुल की ये बात सुनकर, मैने उसकी तरफ घूर कर देखा, लेकिन उसने मेरी तरफ ध्यान दिए बिना, अमि से कहा.
मेहुल बोला “तुम दोनो यहाँ किसके साथ आई हो और यहाँ अकेली क्यो हो.”
मेहुल की इस बात के जबाब मे अमि ने कहा.
अमि बोली “हम दीदी के साथ आए है. उनका कोई ज़रूरी कॉल आ गया था, इसलिए वो हमे यहाँ खड़ा करके बात करते करते बाहर निकल गयी.”
अमि की इस बात से, मेहुल को लगा कि, हमे लेने कीर्ति आई है. इसलिए उसने फ़ौरन अपना समान पकड़ा और हम लोगों के चलने का इंतजार किए बिना ही, बाहर की तरफ बढ़ गया.
मेहुल की घर पहुचने की बेसब्री को देख कर, मोहिनी आंटी हँसने लगी और मुझसे जल्दी घर चलने को कहने लगी. उनकी की इस बात को सुनकर, मैने अमि निमी से आगे कोई सवाल नही किया और फिर हम सबके साथ बाहर के लिए चल पड़ा.
लेकिन अभी हम बाहर निकल भी नही पाए थे कि, तभी मेहुल तेज़ी से वापस हमारे पास आते दिखाई दिया. उसने आते ही, अपना समान मुझे पकड़ाया और टाय्लेट जाने की बात बोल कर, एक बॅग अपने साथ लेकर चला गया.
उसकी इस हरकत को देख कर, सबके साथ साथ मैं भी हैरान रह गया. लेकिन इस से पहले की हम मे से कोई, उस से कुछ पुच्छ पाता, वो हमारे पास से जा चुका था. उसकी इस हरकत को सोचते सोचते, हम सब बाहर की तरफ बढ़ गये.
हम सब बाहर पहुचे तो, बाहर छोटी माँ की कार और टाटा सफ़ारी खड़ी थी. हमे देखते ही टाटा सफ़ारी का ड्राइवर, फुर्ती से हमारे पास आ गया और हमारे हाथों से समान लेने लगा.
वही दूसरी तरफ छोटी माँ की कार के पास, वाइट शॉर्ट शर्ट और ब्लॅक जीन्स पहने, एक लड़की मोबाइल पर बात कर रही थी. उसे देखते ही, मुझे मेहुल के इस तरह भागने की वजह समझ मे आ गयी थी.
लेकिन अब मेरे पास खुद को संभालने का ज़रा भी मौका नही था. क्योकि उसकी नज़र भी हम लोगों पर पड़ चुकी थी. हम पर नज़र पड़ते ही, उसने फ़ौरन ही बात करना बंद किया और मोबाइल अपने जेब मे रख कर, हमारे पास आ गयी.
उसने हमारे पास आकर, एक नज़र मेरे उपर डाली और फिर झुक कर अंकल के पैर छु लिए. अंकल ने उसे आशीर्वाद देने के बाद, उस से कहा.
अंकल बोले “वाणी बेटा, ये क्या है. मैने तुमसे कितनी बार कहा है कि, मुझे बेटियों से अपने पैर पड़वाना पसंद नही है. फिर तुम क्यो बार बार मेरे पैर छुति हो.”
अंकल की इस बात का, वाणी ने बड़ी ही सहजता से जबाब देते हुए कहा.
वाणी बोली “अंकल, आप मेरे लिए, मेरे पिता के समान है और आज कल बेटियाँ, ऐसे नालयक बेटों से कहीं ज़्यादा लायक साबित होती है.”
ये कहते हुए वाणी ने मेरी तरफ इशारा किया था. इसके बाद उसने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा.
वाणी बोली “वैसे तो मुझे आपसे बहुत झगड़ा करना था. लेकिन सोचती हूँ, पहले आपकी तबीयत सही हो जाने दूं. उसके बाद आपसे झगड़ा करूगी. लेकिन आपके अलावा किसी को भी, मैं छोड़ने वाली नही हूँ.”
ये कहते हुए वाणी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा. उसके इस तरह से, मुझे देखने से मैं समझ गया था कि, अब मेरी ही शामत आने मे ज़्यादा देर नही है. लेकिन उसकी अगली हरकत ने मुझे और भी हैरान करके रख दिया.
उसने थोड़ी देर इसी तरह अंकल से नोक झोक की और फिर वो मोहिनी आंटी और नितिका से मिलने लगी. उन से मिलने के बाद, उसने बड़े ही प्यार से, मुझसे कहा.
वाणी बोली “कैसे हो तुम.”
वाणी को इतने प्यार से बात करते देख कर, मुझे कुछ हैरानी तो ज़रूर हो रही थी. लेकिन इस बात की राहत भी महसूस हो रही थी कि, वो मुझसे नाराज़ नही है. इसी खुशी मे मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.
मैं बोला “मैं अच्छा हूँ दीदी. आप कैसी हो.”
मगर मेरी इस बात के जबाब मे, वाणी ने मुझसे उल्टा ही सवाल करते हुए कहा.
वाणी बोली “सिर्फ़ अच्छे हो या बहुत अच्छे हो.”
मुझे अभी भी उसकी इस बात मे प्यार ही नज़र आ रहा था. इसलिए मैने फिर से मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “जी बहुत अच्छा हूँ.”
मेरा इतना कहना था कि, वाणी ने बंदूक की गोली की तरह मुझ पर फटते हुए कहा.
वाणी बोली “जब बहुत अच्छे हो तो, फिर तुम्हारी शकल के12 क्यो बज रहे है. तुम्हारी शकल देख कर तो, ऐसा लग रहा है कि, जैसे तुम प्लेन मे बैठ कर नही आए हो, बल्कि प्लेन को अपने कंधे पर ढोकर लाए हो.”
लेकिन ये तो कुछ भी नही था. ये सिर्फ़ वाणी के बोलने की सुरुआत थी. उसने मेरे बालों को हाथ लगाते हुए कहा.
वाणी बोली “ये क्या लोफरो की तरह बाल इतने बड़े करके रखे है. क्या मुंबई मे कोई हज्जाम नही था या फिर अपने आपको मुंबई जाकर सलमान ख़ान समझने लगे हो.”
वाणी की ये बातें सुनकर, मेरी हँसी गायब हो गयी थी और मेरी हालत काटो तो खून नही वाली हो गयी थी. वही मोहिनी आंटी का वाणी को हैरानी से देखती रह गयी और उनका मूह खुला का खुला रह गया था.
लेकिन इतना सब सुनने के बाद, भी मैं किसी मुजरिम की तरह खामोशी से सर झुकाए खड़ा था. शायद ऐसा करने मे ही मेरी भलाई थी. क्योकि उसे किसी की सफाई सुनने की आदत नही थी.
बचपन से ही हम मे से किसी को भी, उसका नाम लेने की इजाज़त नही थी और यदि ग़लती से कोई उसका नाम ले लेता था तो, नाम लेने वाले के कान मे घंटियाँ बजने लगती थी. जिस वजह से हम मे से हर एक उसे सिर्फ़ दीदी ही कह कर बुलाता था.
वो एक बच्चो को डरने वाली डायन थी. जिसने बचपन से ही हमारे दिल मे अपने नाम की दहशत पैदा करके रखी थी. बचपन से ही वो हम सब पर किसी रानी की तरह राज़ करती आ रही थी और हम सब उसके सामने किसी गुलाम की तरह ही थे.
हम सबके उस से इतनी दहशत खाने की वजह ये थी कि, वो ताक़त मे बरखा दीदी से कहीं ज़्यादा थी और दिमाग़ मे सीरू दीदी भी उसके सामने कुछ नही थी. लेकिन इस सबसे ज़्यादा ख़तरनाक बात ये थी कि, वो ज़ुबान मे मोहिनी आंटी से भी ज़्यादा ख़तरनाक थी.
यदि मुंबई मे मोहिनी आंटी का सामना सीरू दीदी की जगह, वाणी से हो गया होता तो, वो यक़ीनन अपना मूह खोलने के लिए पछ्ताने के सिवा कुछ नही कर पाती और फिर जिंदगी भर के लिए अपने मूह को ताला लगा लेती.
वाणी पूरी हिट्लर थी और उसके सामने तो मेरे खाड़ुस बाप की ज़ुबान को भी लकवा मार जाता था. ऐसे मे मैं किस खेत की मूली था, जो उस से ज़ुबान लड़ा पाता. मैं चुप चाप सर झुका कर, खड़ा रह जाने के सिवा कुछ भी ना कर सका.
मगर शायद नितिका को मेरी इस हालत पर रहम आ गया और उसने बीच मे आते हुए वाणी से कहा.
नितिका बोली “दीदी, अभी तो हम सब आते जा रहे है. पहले आप सबको घर तो चलने दीजिए, फिर जिस जिस की खबर लेना चाहती है, ले लीजिएगा.”
नितिका कीर्ति की बचपन की सहेली थी. इसलिए वाणी और नितिका एक दूसरे को अच्छे से जानती थी. जिस वजह से नितिका की बात सुनकर, वाणी ने अपने गुस्से को दबाते हुए उस से कहा.
वाणी बोली “तुम कहती हो तो, मैं मान जाती हूँ. लेकिन ये तो एक ही दिख रहा है. वो दूसरा कहाँ है.”
वाणी का ये इशारा मेहुल की तरफ था. लेकिन इस से पहले कि नितिका उसकी इस बात का कोई जबाब दे पाती, मेहुल किसी जिन्न की तरह, हमारे पास प्रकट होते हुए कहा.
मेहुल बोला “मैं यहाँ हूँ दीदी. मुझे पता होता कि, मेरी प्यारी दीदी हमे लेने आई है तो, मैं आपसे मिलने सबसे पहले भागते हुए आ जाता.”
ये कहते हुए, मेहुल ने वाणी के पैर छु लिए. जिससे वाणी का रहा सहा गुस्सा भी शांत हो गया और उसने मेहुल की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा.
वाणी बोली “ये देखो, ये कहलाते है संस्कार. अपने से बडो से कैसे मिला जाता है. कुछ इस से सीखो और ज़रा इसकी हालत को भी देखो. ये भी तुम्हारे साथ मुंबई से ही आ रहा है. लेकिन अभी भी बिल्कुल तरो ताज़ा लग रहा है.”
वाणी की ये बात सुनकर, मैं एक बार फिर खून के घूँट पीकर रह गया. लेकिन अब मुझे वाणी से ज़्यादा मेहुल पर गुस्सा आ रहा था. कमीना मुझे फसा कर, खुद बाथरूम मे जाकर, फ्रेश होकर और कपड़े बदल कर आया था.
वाणी के अलावा हर कोई जानता था की, मेहुल अभी अभी फ्रेश होकर और कपड़े बदल कर आया है. ये ही नही, अब ये बात भी सबकी समझ मे आ चुकी थी कि, मेहुल वाणी को देख कर ही वापस भागा था.
लेकिन आगे तो मेहुल ने वाणी की चापलूसी करने की हद ही कर दी. उसने अपने बॅग मे से शिल्पा के लिए खरीदा हुआ, जीन्स और टी-शर्ट निकल कर दिखाते हुए कहा.
मेहुल बोला “दीदी, ये देखो, मैं आपके लिए मुंबई से क्या लेकर आया हूँ. मुझे पता था कि, आप सिर्फ़ ब्रॅंडेड कंपनी के कपड़े ही पहनती हो. इसलिए मैने आपके लिए ये खरीदे है. लेकिन ये उतने महँगे नही है. जितने माहगे आप पहनती हो.”
मेहुल की इस बात पर वाणी ने एक बार फिर मुझे घूरा और फिर मेहुल से कहा.
वाणी बोली “तुम्हे मैं याद रही, मेरे लिए इतना ही बहुत है और गिफ्ट की कीमत नही, बल्कि देने वाले की नियत देखी जाती है. मुझे तुम्हारा ये गिफ्ट बहुत पसंद आया है.”
वाणी को अपने गिफ्ट से खुश होते देख कर, मेहुल और भी ज़्यादा उसकी चापलूसी करने लगा. मेहुल की इस हरकत पर मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था और मेरा दिल कर रहा था कि, मैं अभी इसकी सारी पॉल वाणी के सामने खोल कर रख दूं.
लेकिन मैं अपना मन मार कर रह जाने के सिवा कुछ ना कर सका. खैर मेहुल ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से वाणी को बहला लिया था. जिसके बाद, वाणी ने किसी पर ज़्यादा गुस्सा नही किया और हमसे जल्दी घर चलने को कहने लगी.
हमारा समान तो गाड़ियों मे रखा जा चुका था. अब सिर्फ़ हम लोगों को गाड़ियों मे बैठना था. छोटी माँ की कार वाणी खुद चला रही थी. ऐसे मे मेरा उसमे बैठने का सवाल ही पैदा नही होता था.
इसलिए वाणी के गाड़ी मे बैठने की बात बोलते ही, मैने अमि निमी का हाथ पकड़ा और टाटा सफ़ारी की तरफ बढ़ने लगा. लेकिन तभी वाणी ने मुझे टोकते हुए कहा.
वाणी बोली “तुम वहाँ कहाँ जा रहे हो. सफ़ारी मे अमि निमी और औक्ले आंटी को जाने दो. तुम दोनो और नितिका मेरे साथ चलोगे.”
वाणी की ये बात सुनकर, जितना खराब मुझे लगा था, उतना ही खराब अमि निमी को भी लग रहा था. यदि ये बात वाणी की जगह किसी और ने कही होती तो, वो दोनो तुरंत ही उस से बहस करने लगती.
लेकिन वाणी की दहशत सब पर एक समान ही थी. उसकी पीठ पिछे चाहे को उसकी कितनी भी बुराई क्यो ना कर ले. मगर उसके सामने जबाब देने की हिम्मत किसी मे भी नही थी.
यही वजह थी कि, वाणी की बात सुनते ही, अमि निमी अनमने मन से टाटा सफ़ारी मे जाकर बैठ गयी और मैं कार मे पिछे की सीट पर आकर बैठ गया. मेरे बैठते ही, नितिका भी मेरे पास ही आकर बैठ गयी और मेहुल आगे वाणी के पास बैठ गया.
हमारे बैठते ही दोनो गाड़ियाँ घर के लिए निकल पड़ी. मुझे छोड़ कर बाकी सब खुश नज़र आ रहे थे. नितिका को भी इस बात की खुशी थी कि, मुंबई मे ना सही, यहाँ तो, उसे कुछ वक्त मेरे साथ बिताने के लिए मिल ही गया है.
नितिका रास्ते भर मुझसे पाटर पाटर करती रही और मैं उसकी बात का एक छोटा सा जबाब देकर चुप हो जाता था. लेकिन मेहुल से बात करते हुए भी, वाणी की नज़र मेरे उपर भी बनी हुई थी.
जिस वजह से मुझे भी अपने आपको नितिका के साथ बातों मे लगा लेना पड़ा. ऐसे ही बात करते करते हम मेहुल के घर पहुच गये. हमारी गाड़ियों की आवाज़ सुनकर, एक एक करके सब घर से बाहर निकल आए.
हम लोग अपनी गाड़ी से उतरे और अंकल के पास आ गये. अंकल के गाड़ी से उतरते ही, उनको सही सलामत देख कर सबकी खुशी का कोई ठिकाना नही था. सब से ज़्यादा खुशी रिचा आंटी के चेहरे पर झलक रही थी.
अंकल को अपने सामने सही सलामत देख कर भी, उनके आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे. हम अंकल को अपने साथ घर के दरवाजे तक लेकर गये. वहाँ आंटी ने उनकी नज़र उतारी और फिर उनसे लिपट कर रोने लगी. अंकल ने उनको दिलासा दिलाया और फिर हम सब घर के अंदर आ गये.
इस समय घर मे छोटी माँ, अनु मौसी, मौसा जी, कमाल, वाणी की मोम और शिल्पा मौजूद थी. इनके अलावा मोहिनी आंटी और नितिका भी हमारे साथ ही थी. रिचा आंटी को रोते देख कर, अनु आंटी और बाकी सब उनको समझा रहे थे.
लेकिन रिचा आंटी के आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे. रिचा आंटी को रोते देख कर, मेहुल और मेरी आँखों मे भी नमी आ गयी. मगर मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, अब आंटी रो क्यो रही है.
जिन आँखों से मेरे लिए हमेशा ही प्यार बरसता था, उन आँखों को बरसते देख, मैं भला अपनी आँखों को बरसने से कैसे रोक सकता था. ना चाहते हुए भी मेरी आँखों ने खुद बा खुद बरसना सुरू कर दिया था.
ऐसी ही कुछ हालत मेहुल की भी थी. लेकिन जब उस से रिचा आंटी का रोना नही देखा गया तो, उसने मुझे धक्का मारते हुए कहा.
मेहुल बोला “अबे साले खड़ा खड़ा तमाशा क्या देख रहा है. देख नही रहा मम्मी कितना रो रही है. उनको जाकर चुप क्यो नही करता है.”
लेकिन आज पहली बार मुझे मेहुल की किसी बात को सुनकर, गुस्सा नही, उस पर बेहद प्यार आया था और मैं खुद ही उस से लिपट कर रोने लगा. मेरा साथ पाकर, उसके भी सबर का बाँध टूट गया और वो भी मुझसे लिपट कर रोने लगा.
अपने जिस दर्द को हमने, मुंबई जाने के पहले, अपने दिल के अंदर दबा कर रखा था, वो अब अपने घर वापस आते ही, आँसू बन कर, हमारी आँखों से बाहर निकलने लगा था.
लेकिन एक माँ की ये ही ख़ासियत होती है कि, उसकी आँखों से चाहे आँसुओं की गंगा जमुना बहती रहे. लेकिन वो अपने बच्चो की आँखों मे एक आँसू नही देख सकती और ये ही रिचा आंटी के साथ भी हुआ.
उन्हो ने जैसे ही मुझे और मेहुल को रोते देखा. उनके आँसू वही के वही थम गये और उन ने हमारे पास आकर, हम दोनो को अपने गले से लगाते हुए कहा.
रिचा आंटी बोली “मेरे बाकचों, तुम क्यो रहे हो. तुम दोनो तो मेरे बहादुर बेटे हो. तुम दोनो को तो आज खुश होना चाहिए. तुमने आज अपनी माँ से किया हुआ वादा पूरा करके दिखा दिया.”
रिचा आंटी की बात सुनकर, हम दोनो उनसे लिपट कर रोने लगे. अब वाहा का नज़ारा बिल्कुल ही उल्टा हो गया था. अभी तक जिन रिचा आंटी के समझ मे किसी की बात नही आ रही थी और वो रोए जा रही थी.
अब वो ही अपने आँसू भूल कर, हम दोनो को दिलासा दे रही थी और हम दोनो रोए जा रहे थे. तभी छोटी माँ ने आकर, हम दोनो के सर पर हाथ फेरा तो, मैने पलट कर, उन्हे देखते ही कहा.
मैं बोला “मम्मी.”
इतना कह कर, मैं उनसे लिपट गया और उन्हो ने भी मुझे अपने सीने से चिपका लिया. उनकी खुद की आँखें भी आँसुओं से भीग चुकी थी. लेकिन मेरे कहे इस एक शब्द से वहाँ बिल्कुल सन्नाटा सा हो गया था. यहाँ तक की मेहुल भी अपना रोना भूल कर मुझे देखने लगा था.
सब बस हैरानी से मुझे ही देख रहे थे और मैं छोटी माँ को बार बार “मम्मी मम्मी” पुकार कर रोए जा रहा था. मैं आज अपनी बरसों की इस प्यास को बुझा लेना चाहता था. इसलिए बार बार सिर्फ़ “मम्मी मम्मी” पुकार रहा था.
ऐसा ही कुछ हाल मेरे मूह से मम्मी सुनने के बाद, छोटी माँ का भी था. वो मेरे मूह से ये शब्द सुनने के बाद, अपने आपको रोक नही पाई और उनकी आँखों ने भी बरसना सुरू कर दिया. कभी वो मुझे अपने सीने से लगा रही थी तो, कभी बार बार “मेरा बेटा” कह कर, मेरे माथे को चूम रही थी.
अमि निमी को कुछ समझ मे नही आया कि, ये क्या हो रहा है. लेकिन मुझे और छोटी माँ को रोता देख कर, उन्हो दोनो ने भी रोना सुरू कर दिया और वो दोनो भी आकर हमसे लिपट कर रोने लगी.
ये नज़ारा देख कर, वहाँ खड़े हर एक की आँखें आँसुओं से भर गयी थी. मगर इस समय कोई भी इस पल को अपनी आँखों से ओझल करना नही चाहता था. इसलिए सब अपने आँसुओं की परवाह किए बिना बस अपलक इस नज़ारे को देखे जा रहे थे.
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