RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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कुछ देर के लिए, वक्त जैसे थम सा गया था. लेकिन अमि का रोना और निमी की सिसकियाँ सुनकर, छोटी माँ ने मुझे अपने सीने से अलग किया और फिर उन दोनो को समझाने लगी.
मेरी मासूम बहनें, जो अभी अच्छी तरह से सुख दुख का मतलब भी नही जानती थी. मुझे ज़रा सी भी तकलीफ़ मे देख कर, बिलख पड़ती थी. मेरी दोनो बहने फूल से भी ज़्यादा नाज़ुक थी और उनके आँसू मेरे दिल पर तेज़ाब की तरह असर करते थे.
अमि तो फिर भी थोड़ी बहुत समझदार थी. लेकिन निमी तो अभी बिल्कुल ही ना समझ थी. फिर भी मेरी किसी तकलीफ़ के अहसास से ही, उसकी सिसकियाँ चलना सुरू हो जाती थी. उसे सिसकियाँ भरते देख कर, मेरी जान निकलने लगती थी.
ऐसा ही कुछ अभी भी मेरे साथ हुआ. मैने दोनो को रोते देखा तो, घुटने के बल, उनके सामने बैठ कर, दोनो को अपने गले से लगा लिया और उन्हे समझाने लगा कि, मैं क्यो रो रहा था.
मेरी बात उनके समझ मे आते ही, अगले ही पल दोनो का रोना रुक गया और इसकी जगह उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. अमि निमी को फिर से हंसते खिलखिलाते देख, रिचा आंटी ने छोटी माँ के कंधे पर हाथ रखते हुए, उन से कहा.
रिचा आंटी बोली “सोनू, मैं इतने दिन तुम्हारे पास रही. लेकिन तुमने मुझे बताया नही कि, ये पुन्नू का तुम्हे मम्मी कहने वाला कमाल कब और कैसे हो गया.”
आंटी की ये बात सुनकर, छोटी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “दीदी, ये पिच्छले सनडे की बात है.”
ये कहते हुए छोटी माँ ने आंटी को प्रिया के हॉस्पिटल मे भरती होने वाली घटना के बारे मे बता दिया. जिसे सुनने के बाद, मेहुल ने थोड़ा हैरान होते हुए, छोटी माँ से कहा.
मेहुल बोला “लेकिन आंटी, ये पिच्छले सनडे की बात है तो, फिर ये शिखा दीदी की शादी मे, आपको मम्मी कह कर क्यो नही बुला रहा था.”
मेहुल की इस बात को सुनते ही, हम सबकी नज़र मेहुल पर से हट कर, अमि निमी की तरफ चली गयी. निमी को तो इस बात मे कुछ खास नज़र नही आ रहा था. लेकिन अमि ज़रूर इस बात को सुनने के बाद, छोटी माँ की तरफ गौर से देखने लगी थी.
लेकिन छोटी माँ ने अमि के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए, मेहुल की बिगड़ी इस बात को, बड़ी ही आसानी से संभालते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “फोन पर तो इसने मुझे उसी दिन से मम्मी कहना सुरू कर दिया था. लेकिन मैं इस पल के लिए बरसों से इंतेजार कर रही थी और इसके मूह से मम्मी सुनकर मैं थोड़ी सी स्वार्थी हो गयी थी.”
“मैं चाहती थी कि, ये तब मुझे मम्मी कह कर पुकारे, जब गले लगाने के लिए, ये मेरे सामने हो और इस पल मे मेरे सभी अपने भी मेरे पास हो. मेरी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए, इसने अभी तक अपने आपको मम्मी कहने से रोका हुआ था और घर वापस आने का इंतजार कर रहा था.”
छोटी माँ की ये बात सुनकर, अमि के चेहरे की मुस्कुराहट वापस आ गयी. शायद उसे बिना पुच्छे ही, उसके मन मे उठ रहे सवाल का जबाब मिल गया था. वही मेहुल ने भी इस बात से राहत की साँस ली कि, उसकी वजह से छोटी माँ के शिखा दीदी की शादी मे होने का भेद खुलने से बच गया.
छोटी माँ को इस बात से इतना ज़्यादा खुश देख कर, रिचा आंटी ने उन्हे अपने गले से लगा लिया और फिर आंटी ने मुझसे कहा.
आंटी बोली “तो तू आज से सोनू को छोटी माँ की जगह, मम्मी कह कर पुकारा करेगा.”
आंटी की इस बात के जबाब मे मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “नही आंटी, ऐसा कुछ भी नही है. मैं तो इनको हमेशा ही छोटी माँ कह कर बुलाउन्गा.”
मेरी इस बात को सुनकर, रिचा आंटी ने थोड़ा हैरान होते हुए कहा.
आंटी बोली “लेकिन ऐसा क्यो, अब तो तू सोनू को मम्मी कहने लगा है ना.”
मैं बोला “आंटी, बचपन मे आपने ही, मुझे इनको नयी माँ की जगह छोटी माँ बोलने को कहा था. तब मुझे लगा था कि, ये मेरी माँ से छोटी है, इसलिए आपने इनको छोटी माँ कहने को कहा है. मुझे भी ये नाम अच्छा लगा था और मैं इनको छोटी माँ कहने लगा.”
“लेकिन जब मैने इनको मम्मी कह कर पुकारा, तब मुझे पता चला कि, छोटी माँ तो माँ से भी बड़ी है. मैं जब इनको मम्मी कहता हूँ तो, मुझे इनमे सिर्फ़ मेरी माँ नज़र आती है.”
“मगर जब मैं इनको छोटी माँ कहता हूँ तो, मुझे इनमे एक माँ, एक दोस्त, मेरा सारा बचपन और मैं खुद भी नज़र आता हूँ. दुनिया मे माँ से बढ़कर, कुछ नही होता. लेकिन मेरी छोटी माँ के सामने तो, माँ शब्द भी छोटा पड़ जाता है.”
मेरी बात सुनकर, वहाँ खड़े सबके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. इसके बाद, सब अंकल के पास आकर, उनका हाल चाल पुच्छने लगे और मेरी नज़र यहाँ वहाँ कीर्ति को तलाश करने लगी.
कीर्ति को यहाँ वहाँ तलाश करते करते, मेरी नज़र मेहुल के कमरे के सामने आकर रुक गयी. कीर्ति सबसे अलग थलग, वही पर, कमरे के दरवाजे से टिक कर खड़ी, अपने आँसू पोन्छ रही थी. शायद यहाँ का नज़ारा देख कर, वो अपने आँसू रोक नही पाई थी.
लेकिन उस पर नज़र पड़ते ही, मेरा दिल धक्क करके रह गया. उसका चेहरा बिल्कुल पीला पड़ा हुआ था और वो बहुत ही ज़्यादा कमजोर नज़र आ रही थी. उसे देख कर, ऐसा लग रहा था, जैसे कि उसके अंदर, इतनी भी ताक़त नही है कि, वो अपने बल पर ठीक से खड़ी हो सके.
उसकी इस हालत को देख कर मेरा दिल रो उठा. उसकी तबीयत सही नही है, ये बात तो मैं पहले से जानता था. लेकिन उसकी हालत इतनी ज़्यादा गिर गयी है, इसका अंदाज़ा तो मुझे भी नही था.
उसकी इस हालत ने तो मेरी जान ही निकाल कर रख दी थी. वो पिच्छले दो दिन से, मुझसे सही से बात नही कर रही थी और मुझे लग रहा था कि, वो मेरे घर आने के इंतजार मे ऐसा कर रही है. लेकिन यहाँ तो बात ही कुछ अलग थी.
मैं अभी उसकी इस हालत को देख कर गहरे सदमे मे था और उधर कीर्ति ने अपने आँसू पोंछने के बाद, जैसे ही अपना सर उठा कर, मेरी तरफ देखा तो, उसकी नज़र मुझसे टकरा गयी.
मुझसे नज़र मिलते ही, उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. लेकिन उसकी इस हालत को देख कर, मैं ना तो मुस्कुराने की हालत मे था और ना ही उस पर गुस्सा कर पाने की हालत मे था.
मैं भाग कर फ़ौरन उसके पास पहुच गया. वो अभी भी मुझे देख कर, मुस्कुराए जा रही थी और मैं उसको लाचार सा बस देखा जा रहा था. मैं उस से पुच्छना चाहता था कि, उसने मेरे साथ ऐसा क्यो किया.
लेकिन मैं ना तो उस से कुछ बोल पा रहा था और ना कुछ पुछ पा रहा था. मैं कुछ देर तक बस उसे चुप चाप खड़ा देखता रहा और फिर बिना कुछ कहे, उसका हाथ पकड़ कर, उसे सहारा देकर, अपने साथ सबके बीच लाने लगा.
वो भी मुस्कुराती हुई मेरे साथ आ गयी. मैने उसे सबके बीच से लाते हुए, सोफे पर लाकर बैठा दिया. कीर्ति को आते देख कर, सबकी नज़र हम दोनो पर ही आकर ठहर गयी थी.
मेहुल और अंकल ने भी जब कीर्ति को देखा तो, वो भी उसकी इस हालत को देख कर, हैरान रह गये. मेहुल फ़ौरन ही, कीर्ति के पास आकर बैठ गया और फिर कुछ परेशान सा होकर, आंटी और छोटी माँ की तरफ देखते हुए कहा.
मेहुल बोला “क्या कोई मुझे बताएगा कि, इसको क्या हुआ है और इसकी ये हालत कैसे हो गयी है.”
मेहुल की इस बात को सुनकर, रिचा आंटी ने उसे कीर्ति की इस हालत के बारे मे बताते हुए कहा.
आंटी बोली “इस को कुछ दिन पहले पीलिया हो गया था. जिसका इलाज चल रहा था और डॉक्टर ने इसको खाने पीने मे परहेज करने को कहा था. लेकिन दो दिन पहले इसने अपनी मम्मी की चोरी से तेल मसाले वाला खाना खा लिया. उसके बाद से ही इसकी हालत ऐसी हुई है.”
रिचा आंटी की ये बात सुनकर, मेहुल ने उनसे कहा.
मेहुल बोला “आप लोगों ने इसका ये क्या हाल बना कर रख दिया है. हम तो इसे हंसता खेलता छोड़ कर गये थे. लेकिन इस से तो अब, ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा है. इसकी ऐसी हालत हो गयी और किसी ने हमे बताने तक की भी ज़रूरत नही समझी.”
आंटी बोली “इसी ने हमे अपनी कसम देकर, तुम लोगों को ये बात बताने से रोक दिया था. ताकि तुम लोग इसकी तबीयत को लेकर परेशान ना हो.”
लेकिन कीर्ति की इस हालत को देख कर, अब मेहुल को भी गुस्सा आ रहा था. उसने रिचा आंटी पर अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा.
मेहुल बोला “इसने कहा और आप लोगों ने इसकी ये बात मान भी ली. आप लोगों ने ये भी नही सोचा कि, हम जब यहाँ आकर इसकी ये हालत देखेगे तो, हमे कितना बड़ा झटका लगेगा. आप लोगों से एक लड़की भी नही संभाली गयी.”
मेहुल की ये बात सुनकर, रिचा आंटी से कोई जबाब देते नही बना. लेकिन कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.
कीर्ति बोली “अरे मुझे कुछ नही हुआ है. बस थोड़ी सी कमज़ोरी है. वो भी दो तीन दिन मे दूर हो जाएगी.”
लेकिन कीर्ति की ये बात सुनते ही, मेहुल ने उस पर भड़कते हुए कहा.
मेहुल बोला “तुम तो अपना मूह बिल्कुल ही बंद रखो. रोज मुझसे बात करती थी और यहाँ सब ठीक होने की बात कहती थी. लेकिन एक बार भी अपनी ऐसी हालत के बारे मे नही बताया और अब मुझे समझाने चली हो.”
मेहुल को भड़कते देख, कीर्ति भी चुप करके रह गयी. लेकिन वाणी को मेहुल का इस तरह से गुस्सा करना सही नही लगा और उसने मेहुल पर भड़कते हुए कहा.
वाणी बोली “तुम उसको समझदारी की नसीहत करने से पहले, खुद के गिरेबान मे झाँक कर देख लो कि, तुम लोगों ने क्या किया है. यदि तुम लोगों ने अपने मुंबई जाने की बात मुझसे छुपा कर सही किया है तो, उसने भी अपनी तबीयत की बात तुमसे छुपा कर कुछ ग़लत नही किया है.”
वाणी की ये बात सुनकर, होना तो ये चाहिए था कि, मेहुल को चुप हो जाना चाहिए था. क्योकि ये बात सभी अच्छे से जानते थे कि, वाणी कभी भी कीर्ति के खिलाफ कुछ सुनना पसंद नही करती है.
वो कीर्ति की बड़ी से बड़ी ग़लती को भी अनदेखा कर देती थी. लेकिन उसके सामने यदि को कीर्ति को एक शब्द भी कह दे तो, वो उस से उलझ जाती थी. फिर वो चाहे मौसा मौसी ही क्यो ना हो.
लेकिन इस समय कीर्ति की हालत देख कर मेहुल को दिमाग़ ठिकाने नही था और उसने वाणी से उलझते हुए कहा.
मेहुल बोला “दीदी, क्या सही है और क्या ग़लत है. मैं ये सब नही जानता और ना ही मैं ये सब जानना चाहता हूँ. मैं तो बस इतना जानता हूँ कि, जितनी तकलीफ़ आपको हमारे मुंबई जाने की बात छुपाने से हुई है. उस से भी कही ज़्यादा तकलीफ़ मुझे कीर्ति की ये हालत देख कर हो रही है.”
मेहुल को लगा था कि, अपनी ग़लती मान लेने से, वाणी भी कीर्ति की इस ग़लती को मान लेगी. लेकिन इतनी सी बातों से बहाल जाने वाली वाणी नही हो सकती थी. उसने फिर कीर्ति की तरफ़दारी करते हुए कहा.
वाणी बोली “ये तो जिंदगी का उसूल है कि, जिंदगी मे जो भी तुम दूसरों के साथ करोगे, वो तुम्हे कही ना कही से, किसी ना किसी रूप मे वापस ज़रूर मिलेगा. जब तुम्हे अपने करनी पर कोई पछ्तावा नही हुआ तो, फिर कीर्ति की करनी पर दुख क्यो हो रहा है. कीर्ति ने कुछ भी ग़लत नही किया है.”
वाणी की इस बात ने मेहुल को चुप करा कर रख दिया. लेकिन वो एक तरह से मेरे ही दिल की बात कर रहा था. जो मैं कीर्ति की कसम की वजह से, नही कर पा रहा था. इसलिए उसके चुप होते ही, पहली बार मैने इस बात पर अपना मूह खोलते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, आप भले ही मेहुल को ग़लत बोलो. लेकिन मेहुल ज़रा भी ग़लत नही है. आप लोगों को सोचना चाहिए था कि, हम मुंबई मे इतने बड़े बड़े डॉक्टर के बीच मे है. यदि हमे इसकी तबीयत का पता होता तो, हम उनसे इसकी तबीयत की सलाह ले सकते थे.”
“फिर निशा भाभी तो खुद इतनी बड़ी डॉक्टर थी. वो हमे ज़रूर कोई ना कोई सही सलाह देती. उनकी सलाह से इसकी ऐसी हालत नही हो पाती और ये जल्दी ही ठीक हो जाती. लेकिन आप सब ने इस बात को छुपा कर, सिर्फ़ इसकी तबीयत ही खराब नही की है, बल्कि एक बहुत गैर ज़िम्मेदारी वाला काम भी किया है.”
“मेहुल ठीक ही तो कह रहा है कि, आप लोगों से एक लड़की भी नही संभाली गयी. खुद ही देख लो, एक हफ्ते मे इसकी ऐसी हालत करके रख दी है कि, इस से अपने बल पर खड़े तक होते नही बन पा रहा है.”
मेरी इस बात ने ठंडे इस ठंडी सी चल रही बात चीत मे गर्मी लाने वाला काम कर दिया था. अभी तक जो वाणी सिर्फ़ कीर्ति का बचाव करती नज़र आ रही थी. अब उसने सीधे हम पर वार करते हुए कहा.
वाणी बोली “तुम लोग मौसा जी का मुंबई से इलाज करा कर आए हो तो, खुद को बहुत बड़ा तीस मार ख़ान मत समझो. तुम्हे तो हॉस्पिटल मे मौसा जी को एक बार दवा तक नही खिलाना पड़ी होगी.”
“वहाँ मौसा जी की देख भाल के लिए नर्स और डॉक्टर थे. तुम्हारा काम सिर्फ़ मौसा जी के पास बैठे रहने का था और ये करके तुमने कोई बड़ा भारी तीर नही मार दिया. ये काम तो वहाँ कोई भी कर सकता था.”
“अब रही कीर्ति की तबीयत की बात तो, ये मत भूलो कि, जिन लोगों को तुम ये बातें सुना रहे हो. उन्हो ने ही तुम्हे इतना बड़ा किया और ना जाने कितनी बार तुम्हे बीमारी से ठीक करके खड़ा कर दिया है.”
“इसलिए इनको ये सिखाने की कोसिस मत करो कि, इन्हे क्या करना चाहिए था और क्या नही करना चाहिए था. इन्हो ने जो ठीक समझा, वो ही किया और इसके लिए इन्हे तुम लोगों को सफाई देने की कोई ज़रूरत नही है.”
“अपनी सलाह अपने पास ही रखो. वो लड़की बीमार है और तुम दोनो यहाँ उसकी ग़लती ढूँढने मे लगे हो. अब यदि इसके बाद, किसी ने भी कीर्ति को एक शब्द कहा तो, उसका मूह तोड़ कर उसके हाथ मे रख दुगी. ये मत भूलो कि, मुझसे बुरा ना कोई था और ना कोई होगा.”
वाणी की इस बात ने वहाँ के पूरे माहौल मे ही आग लगा दी थी. उसकी ये बात सुनकर, मुझे भी बहुत ज़्यादा गुस्सा आ गया था. लेकिन मैं अपने गुस्से की आग मे अपने अंदर ही अंदर जल कर रह गया.
क्योकि वाणी की बात सुनकर, कीर्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और मुझे कुछ बोलने से रोकने के लिए, वो मेरी कलाई पर बड़ी ज़ोर से अपने नाख़ून गढ़ाए जा रही थी. जिस वजह से मुझे अपना गुस्सा पी जाना पड़ा.
हमारी इस बहस को देख कर, मोहिनी आंटी भी सन्न रह गयी थी. वही छोटी माँ और रिचा आंटी ने इस माहौल को फ़ौरन संभालने की कोसिस करते हुए हम लोगों से कहा.
आंटी बोली “अरे तुम लोग क्यो बेकार की इस बहस मे फँस रहे हो. तुम लोग थके हुए सफ़र से आए हो और आते ही आपसा मे लड़ने लगे. जाओ और जाकर फ्रेश हो जाओ. तब तक मैं सबके खाने की तैयारी करती हूँ.”
वही दूसरी तरफ छोटी माँ ने वाणी को समझाते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “वाणी बेटा, तू तो समझदार है. तू क्यो इनके साथ बेकार की बातों मे उलझ रही है. अपना दिमाग़ खराब मत कर और जाकर मूह हाथ धो ले. तब तक हम लोग, तुम सबके लिए खाना लगाने की तैयारी करते है.”
लेकिन शायद वाणी का दिमाग़ अभी भी गरम था. उसने छोटी माँ की इस बात के जबाब मे उन से कहा.
वाणी बोली “नही मौसी, मैं खाना नही खाउन्गी. मैं मामा के साथ एक पार्टी मे जा रही हूँ. मेरी तरफ से आप इन दोनो को पेट भर कर खाना खिलाइए.”
वाणी की इस बात से सॉफ समझ मे आ गया था कि, उसका हमारे उपर गुस्सा अभी ख़तम नही हुआ है. उसका गुस्सा कम करने के लिए छोटी माँ ने उस से कहा.
छोटी माँ बोली “तू भी किन की बातों का बुरा मान रही है. ये तो मेरे साथ भी ऐसे झगड़ा करते रहते है. तू इनकी बात का बुरा मत मान और अपना गुस्सा ख़तम कर दे. ये भी तो तेरे छोटे भाई ही है ना.”
छोटी माँ की इस बात ने वाणी के दिल पर थोड़ा बहुत असर किया और उसने कुछ नरम पड़ते हुए कहा.
वाणी बोली “छोटे भाई है, इसलिए छोड़ देती हूँ. वरना इनकी क्या मज़ाल कि, बित्ते भर के छोकरे और मुझसे ज़ुबान लड़ा सके. एक कान के नीचे जमाती तो, सीटियाँ बजने लगती.”
वाणी की बात को सुनकर, मैं एक बार फिर तिलमिला कर रहा गया. लेकिन कीर्ति अभी भी मेरे हाथ को पकड़े, मुझे अपने नाख़ून गढ़ाए जा रही थी. वो बेचारी भी अजीब परेशानी मे फँसी हुई थी.
जिन दो लोगों को वो सबसे ज़्यादा प्यार करती थी. वो दोनो ही आज आपस मे एक दूसरे से, उसके लिए ही लड़े जा रहे थे और वो चाह कर भी दोनो मे से किसी का भी साथ नही दे सकती थी.
ये उसका हम दोनो के लिए प्यार ही था, जो वो मुझे वाणी से, कुछ भी बोलने से रोक रही थी और उसकी ये कोसिस कामयाब भी हो रही थी कि, तभी इतनी देर से शांति से सब कुछ देख रही नितिका ने, वाणी की बात सुनकर, एक ऐसा बॉम्ब फोड़ दिया. जिसकी गूँज से मेरा और मेहुल का चेहरा भी, कीर्ति की तरह पीला पड़ गया.
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