RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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मेरे पूरे कमरे मे पानी भरा हुआ था. जब मुझे इसकी वजह समझ मे नही आई तो, मैने कीर्ति से पुछा.
मैं बोला “ये सब क्या है.? ये किसने किया है.?”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुस्कुराते हुए कहा.
कीर्ति बोली “ये सारी करामात तुम्हारी लाडली निमी की है. उसने ही सारे घर को पानी से भर कर रख दिया है.”
कीर्ति की बात सुनकर मैने चौुक्ते हुए कहा.
मैं बोला “लेकिन निमी मेरे कमरे मे क्या कर रही थी और उसने ये सब क्यो किया.”
कीर्ति बोली “आज उसे स्विम्मिंग पूल मे नहाने का शौक चढ़ा था. वो अपने बाथरूम मे स्विम्मिंग पूल बनाना चाहती थी. लेकिन अमि ने उसे ऐसा नही करने दिया. मैं अपना मोबाइल तुम्हारे कमरे मे भूल गयी थी और उसी समय अपना मोबाइल लेकर तुम्हारे कमरे से निकल रही थी.”
“निमी ने मुझे तुम्हारे कमरे से बाहर निकलते देख लिया और मेरे बाद वो तुम्हारे कमरे मे घुस गयी. फिर उसने तुम्हारे बाथरूम मे पानी की निकासी को कपड़े से बंद कर दिया और बाथरूम को पानी से भर कर नहाने लगी.”
“उसने सोचा होगा कि, कपड़े लगा देने से, पानी बाहर नही आएगा. लेकिन पानी पहले तुम्हारे कमरे मे फैला और फिर धीरे धीरे तुम्हारे कमरे से बाहर निकल कर सीडियों से नीचे जाने लगा. नीचे पानी आता देख कर, चंदा मौसी भागती हुई उपर आ गयी.”
“उसी समय मैं भी अपने कमरे से बाहर निकल कर आ गयी. मैने चंदा मौसी को उपर आते देखा और तुम्हारे कमरे से पानी बाहर निकलते देखा तो, चंदा मौसी के साथ मैं भी तुम्हारे कमरे मे आ गयी. तुम्हारे कमरे मे आकर हम ने देखा कि, पानी तुम्हारे बाथरूम से निकल रहा है और बाथरूम के अंदर कोई है.”
“हम लोगों ने आवाज़ लगा कर दरवाजा खुलवाया और निमी के दरवाजा खोलते ही, बहुत सारा पानी बाहर निकल कर तुम्हारे कमरे मे भर गया. तभी मौसी भी उपर आ गयी थी और गुस्से मे निमी को पकड़ कर नीचे ले गयी है.”
कीर्ति की ये बात सुनते ही, मैं फ़ौरन उठ कर खड़ा हो गया और कमरे से बाहर जाने लगा. मुझे कमरे से बाहर जाते देख, कीर्ति ने कहा.
कीर्ति बोली “अब तुम कहाँ जा रहे हो.”
मैं बोला “मैं उस निमी की बच्ची की खबर लेने जा रहा हूँ. उसने मेरे कमरे का क्या हाल बना कर रख दिया है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “रहने दो, ये तुमसे नही होगा. तुम्हारे जाने से मौसी भी उसे कुछ नही बोल पाएगी.”
लेकिन मैने कीर्ति की बातों को अनसुना कर दिया और कमरे से बाहर जाने लगा. मुझे नीचे जाते देख कर, कीर्ति भी भागते हुए, मेरे पिछे पिछे आ गयी. हम दोनो नीचे पहुचे तो, छोटी माँ निमी पर गुस्सा कर रही थी.
निमी सिर्फ़ एक अंडरवेर मे उनके सामने सर झुका कर खड़ी छोटी माँ की डाँट सुन रही थी. लेकिन जैसे ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, वो भागते हुए मेरे पास आ गयी. मेरे पास आते ही, उसने सिसकना सुरू कर दिया.
अपनी मासूम बहन को सिसकते देख, मेरा दिल भर आया और मैं अपना सारा गुस्सा भूल गया. मैने फ़ौरन उसे अपनी गोद मे उठा लिया और उसे बहलाते हुए चुप कराने की कोसिस करने लगा.
छोटी माँ ने मुझे निमी को चुप करते देखा तो, वो निमी का गुस्सा मुझ पर उतारने लगी. लेकिन मैं उनके गुस्से को अनदेखा करके, निमी को अपने साथ अपने कमरे मे लेकर आ आया.
मेरे साथ साथ कीर्ति और अमि भी उपर आ गयी. उपर आकर मैने किसी तरह निमी को चुप कराया और फिर उसे बहला कर अमि के साथ उसके कमरे मे भेज दिया. उनके मेरे कमरे से जाने के बाद, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मुझे पहले ही पता था कि, तुम निमी को कुछ नही कह पाओगे और तुम्हारे नीचे पहुच जाने से मौसी भी निमी को कुछ नही कह पाएगी.”
कीर्ति की इस बात पर मैने उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “ये सब तेरा ही किया हुआ है. ना तू निमी के सामने मेरे कमरे से बाहर निकलती और ना ही ये सब हुआ होता.”
मेरी इस बात पर कीर्ति ने तुनकते हुए कहा.
कीर्ति बोली “उल्टा चोर, कोतवाल को डान्टे. तुम्हारे कमरे मे इतना सब होता रहा और तुम बड़े घोड़े बेच कर, आराम से सोते रहे. अब सारा दोष मुझको दे रहे हो. यदि ये सब मेरे तुम्हारे कमरे मे आने की वजह से हुआ है तो, मैं आज के बाद तुम्हारे कमरे मे नही आउगि.”
मैने कीर्ति की इस बात को सुनकर, अपनी सफाई देना चाहा. लेकिन वो मेरी बात को अनसुना करके, मेरे कमरे से बाहर निकल गयी. मैं तो मज़ाक मे उसे छेड़ रहा था. लेकिन वो सच मे नाराज़ हो गयी थी.
कुछ देर मैं कीर्ति की नाराज़गी के बारे मे सोचता रहा और फिर उठ कर फ्रेश होने चला गया. मैं फ्रेश होकर आया तो, चंदा मौसी चाय नाश्ता लेकर आ गयी. चाय नाश्ता करने के बाद, मैं तैयार होकर नीचे आ गया.
मैं नीचे पहुचा तो, कीर्ति अकेली बैठी थी. मुझे देखते ही, उसने मूह फूला लिया. छोटी माँ किचन मे कीर्ति का नाश्ता बनाने की तैयारी का रही थी. मैने उनके पास आकर उन से कहा.
मैं बोला “छोटी माँ, आज कीर्ति का नाश्ता मैं तैयार करूगा. आप जाकर बाहर बैठिए.”
मेरी बात सुनकर, छोटी माँ हँसने लगी और मुझे बाहर जाने के लिए समझने लगी. लेकिन मैने उनकी कोई बात नही सुनी और उन्हे किचन से जाना ही पड़ गया. उनके जाने के बाद, मैं नाश्ता तैयार करने मे लग गया.
छोटी माँ ने शायद, बाहर जाकर ये बात कीर्ति को बता दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर बाद, वो किचन मे आ गयी. उसने अपनी नाराज़गी को भुला कर मुस्कुराते हुए कहा.
कीर्ति बोली “क्या मौसी के नाश्ते से मैं कम परेशान थी, जो अब तुम भी मुझे परेशान करने के लिए नाश्ता बनाने मे लग गये.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “कभी तूने मेरे हाथ का बना नाश्ता नही किया है. इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है. आज तू मेरे हाथ का बना नाश्ता करके देख, तुझे तेल मसाले वाला खाना भी फीका लगने लगेगा.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति हँसने लगी. फिर वो मेरे पास ही बैठ गयी और मुझे नाश्ता बनाते हुए देखने लगी. कीर्ति से बात करते करते, मैने नाश्ता तैयार कर लिया और फिर कीर्ति को बाहर चल कर बैठने को कहा.
कीर्ति के बाहर जाने के बाद, मैने नाश्ता लगाया और नाश्ता लेकर बाहर आ गया. कीर्ति, छोटी माँ और वाणी के साथ बैठी थी. मुझे नाश्ता लाते देख कर, कीर्ति और छोटी माँ हँसने लगी.
उसी समय चंदा मौसी उपर से अमि निमी को लेकर आ गयी. वो दोनो हुम्हारे पास चुप चाप खड़ी होकर देखने लगी कि, यहाँ पर क्या चल रहा. वही वाणी ने जब मुझे नाश्ता लाते देखा तो, मुझे फटकारते हुए कहा.
वाणी बोली “क्या तुम मुंबई ये सब ही सीखने गये थे, जो वहाँ से आते ही नयी बहू की तरह किचन संभाल लिया. एक लड़का होकर, लड़कियों वाले काम करते, तुमको शरम आनी चाहिए. लेकिन तुम तो अपनी सारी शरम बेच खाई है.”
वाणी की बात सुनकर, मैने नाश्ता कीर्ति के सामने रख कर, उसे नाश्ता करने को कहा और फिर वाणी की इस बात का जबाब देते हुए कहा.
मैं बोला “दीदी, जब लड़कियों के लड़कों वाले काम करने मे कोई शरम वाली बात नही होती है तो, फिर लड़कों के लड़कियों वाले काम करने मे शरम वाली बात कैसे हो गयी.”
“वैसे भी छोटी माँ कहती है कि, लड़का हो या लड़की दोनो एक समान है. जब लड़कियाँ लड़कों के काम करने मे पिछे नही रहती है तो, फिर लड़कों को भी किसी काम मे लड़कियों से पिछे नही रहना चाहिए.”
“मैने ये सब मुंबई से नही, बल्कि छोटी माँ से सीखा है. मुंबई जाकर तो, मैने सिर्फ़ इतना जाना है कि, मेरी छोटी माँ दुनिया की सबसे अच्छी माँ है और उनकी सिखाई किसी बात के लिए, मुझे शरम महसूस करने की ज़रूरत नही है.”
इतना कह कर मैं मुस्कुराते हुए, वाणी के पास बैठी छोटी माँ के पास आ गया और उनके गले मे बाहें डाल कर उन से लिपट गया. वाणी ने मेरी बात सुनने के बाद, एक नज़र नाश्ते की तरफ देखा और फिर मुझसे कहा.
वाणी बोली “लेकिन तुमको मालूम है कि, अभी कीर्ति की तबीयत सही नही है और उसके लिए ये सब खाना माना है. ऐसे मे तुमको उसके लिए, ये सब नही बनाना चाहिए था.”
वाणी की बात सुनते ही, अमि की समझ मे आ गया कि, कीर्ति का नाश्ता मैने बनाया है और उसी बात पर वाणी मुझे फटकार लगा रही है. ये बात समझ मे आते ही, अमि नाश्ते के उपर झुक कर, उसकी खुश्बू लेने लगी.
अमि की इस हरकत से, सब हैरानी से उसकी को देखने लगे. अमि ने नाश्ते की खुश्बू को सूँघा और फिर वाणी से मेरा बचाव करते हुए कहा.
अमि बोली “दीदी, ये तो दलिया, पपीता और नीबू पानी है. मम्मी भी तो कीर्ति दीदी को नाश्ते मे ये ही सब बना कर खिलाती है. भैया ने इनको दूसरे तरीके से बनाया है. इसलिए ये ऐसे दिख रहे है.”
“हम लोग तो इसे बहुत बार खा चुके है और हमें ये बहुत ज़्यादा पसंद है. आप भी यदि एक बार भैया के हाथ का बना दलिया खा लोगि तो, आप अपनी बिरयानी को खाना भूल जाओगी.”
अमि की बात सुनकर, वाणी गौर से अमि का चेहरा देखने लगी. सभी जानते थे कि, वाणी को बिरयानी बहुत पसंद है. इसलिए अमि ने उसे बिरयानी की मिसाल दी थी. लेकिन अब जब अमि मेरे बनाए नाश्ते की तारीफ कर रही थी तो, ऐसे मे निमी का इस काम मे पिछे रहने का सवाल ही पैदा नही होता था.
निमी ने भी फ़ौरन अमि की तरह आगे आकर, पहले नाश्ते की खुश्बू लेने का नाटक किया और फिर वाणी से कहा.
निमी बोली “दीदी, भैया के हाथ का बना दलिया इतना टेस्टी होता है कि, उसके सामने हलवा भी फैल है. मैं तो अपने जनमदिन मे सबको यही दलिया बनवा कर खिलाउन्गी.”
निमी की ये बात सुनते ही, सबके साथ साथ वाणी की भी हँसी छूट गयी. लेकिन निमी मे इतना दिमाग़ नही था कि, वो हमारे हँसने का मतलब समझ सके. इसलिए उसने हमारी हँसी को अनदेखा कर, कीर्ति के पास बैठते हुए, उस से कहा.
निमी बोली “दीदी, मुझे भी आपका नाश्ता करना है.”
निमी की बात सुनकर, कीर्ति उसकी तरफ नाश्ता बढ़ाने लगी. लेकिन मैने कीर्ति को ऐसा करने से रोकते हुए कहा.
मैं बोला “तू इनकी फिकर मत कर, मुझे पहले से ही पता था कि, ये दोनो ज़रूर ऐसा कुछ करेगी. इसलिए मैने इनके लिए भी नाश्ता बना लिया था. तू अपना नाश्ता कर, मैं इनके लिए नाश्ता लेकर आता हूँ.”
ये कहते हुए मैं अमि निमी के लिए नाश्ता लेने जाने लगा. लेकिन तभी वाणी ने मुझे टोकते हुए कहा.
वाणी बोली “अभी मैने भी नाश्ता नही किया है. मेरे लिए भी थोडा नाश्ता ले आना.”
वाणी की बात सुनते ही, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैं नाश्ता लेने किचन मे चला गया. मैने सबको नाश्ता लाकर दिया और फिर छोटी माँ के पास बैठ कर, सबको नाश्ता करते देखने लगा.
अमि, निमी और कीर्ति ने तो, नाश्ता मूह मे रखते ही, नाश्ते की तारीफ करना सुरू कर दिया. अमि निमी तो ऐसी थी कि, यदि मैं उन्हे नमक का पानी भी शरबत बोल कर दे देता तो, वो दोनो इसी बात पर बहस करती नज़र आती की, उन दोनो मे से किसका शरबत ज़्यादा मीठा है.
इसके बाद रही कीर्ति की बात तो, उसके लिए, ये ही बहुत खुशी की बात हो गयी थी कि, मैने उसके लिए अपने हाथों से नाश्ता तैयार किया है. वो तो मेरे दिए दर्द मे भी, कभी कोई नुखश नही निकालती थी, फिर मेरी दी हुई खुशी मे उसके कोई नुखश निकालने का सवाल ही पैदा नही होता था.
इन तीनो से ही, मेरे बनाए नाश्ते मे कोई कमी जान पाना, बिल्कुल समुंदर मे गिरी पानी की बूँद को दूधने जैसा था. जिस वजह से इन तीनो से अपने नाश्ते की तारीफ सुन लेने के बाद भी, मेरी नज़र वाणी पर ही टिकी हुई थी.
मगर जब नाश्ता हो जाने के बाद भी वाणी ने नाश्ते के बारे मे कुछ नही बोला तो, मैने खुद ही वाणी से कहा.
मैं बोला “दीदी, आपको नाश्ता कैसा लगा.”
मेरी बात सुनकर, वाणी ने अपने चेहरे पर बिना किसी भाव को लाए, एक नज़र मेरी तरफ देखा और फिर खड़े होते हुए कहा.
वाणी बोली “ठीक ही है, मेरे जाने के पहले मुझे बिरयानी बना कर भी खिला देना.”
इतना बोल कर वाणी अपने कमरे की तरफ चली गयी. लेकिन वाणी के मूह से इतना सुनते ही, मेरा चेहरा खिल उठा. क्योकि वाणी एक हंसनी की तरह थी. जो दूध मे मिले पानी मे से सिर्फ़ दूध को ही पीटी थी और पानी को छोड़ देती थी.
वो चाँद मे भी दाग ढूँढ निकालने वाली थी. ऐसे मे उसके मूह से मेरे हाथ के नाश्ते का ठीक होना और मेरे हाथ की बिरयानी खाने की बात निकलना भी, किसी तारीफ से कम नही था.
मैं तो वाणी की इतनी ही बात से खुश हो गया था. वाणी के हमारे पास से जाने के बाद, मैने पलट कर कीर्ति की तरफ देखा. लेकिन वो अमि निमी को गौर से देखने मे लगी थी. कीर्ति के साथ साथ मेरी नज़र भी अमि निमी की तरफ चली गयी.
अमि निमी गुस्से मे वाणी को जाते हुए देख रही थी. उनको शायद वाणी की बात पसंद नही आई थी. वाणी के जाते ही, छोटी माँ ने अमि निमी को टोकते हुए, तैयार होने को कहा और अपने साथ ले गयी.
उनके जाने के बाद, कीर्ति उठ कर मेरे पास आ गयी और फिर छोटी माँ के कमरे मे जाती, अमि निमी की तरफ देखते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुमने अमि निमी का गुस्सा देखा. वो वाणी दीदी को कैसे गुस्से मे घूर कर देख रही थी.”
कीर्ति की इस बात पर मैने हंसते हुए कहा.
मैं बोला “इसमे इतना हैरान होने वाली कोई बात नही है. उन दोनो के सामने यदि कोई मुझसे अकड़ दिखा कर बात करता है या फिर मेरी बात का सही से जबाब नही देता है तो, उनको गुस्सा आ ही जाता है.”
“लेकिन हमारे लिए खुशी की बात ये है कि, अब वो दोनो पहले वाली अमि निमी नही रह गयी है. उन्हे अपने गुस्से पर काबू पाना आ गया है. वरना यदि वो पहले वाली अमि निमी होती तो, अभी तक वाणी दीदी से झगड़ना सुरू कर देती.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम जैसा सोच रहे हो, वैसा कुछ भी नही है. वो दोनो अभी भी तुम्हारे खिलाफ कुछ नही सुन सकती है. लेकिन ये उन दोनो की मजबूरी है कि, वो चाह कर भी वाणी दीदी से झगड़ा नही कर पा रही है.”
कीर्ति की इस बात पर मैने हैरान होते हुए उस से कहा.
मैं बोला “क्यो, क्या हुआ. क्या किसी ने उनसे कुछ कहा है.”
कीर्ति बोली “वाणी दीदी ने यहाँ आते ही, गुस्से मे तुम्हे बहुत भला बुरा बोलना सुरू कर दिया था. ये बात अमि निमी को सहन नही हुई. उन दोनो ने वाणी दीदी से झगड़ा करना सुरू कर दिया.”
“मौसी दोनो को चुप करने की कोसिस करती रही. लेकिन जब दोनो चुप नही हुई तो, मौसी ने गुस्से मे उन पर हाथ उठा लिया. लेकिन वाणी दीदी ने मौसी को निमी पर हाथ उठाने से रोक दिया.”
“इसके बाद वाणी दीदी ने उन दोनो को धमकी दी कि, अब यदि दोनो मे से किसी ने भी, उनके साथ बदतमीज़ी करने या उन से ज़ुबान लड़ाने की कोसिस भी की तो, वो उन दोनो को तो, कुछ नही कहेगी. लेकिन तुम्हे अपने साथ पूना लेकर चली जाएगी.”
“उस समय मौसी ने भी वाणी दीदी की हां मे हां मिलते हुए उनसे कह दिया कि, अब यदि वो दोनो वाणी दीदी के साथ कोई बदतमीज़ी करती है तो, वाणी दीदी को तुम्हे अपने साथ पूना ले जाने की पूरी छूट है.”
“इसी वजह से वो दोनो वाणी दीदी की किसी बात को सुनकर भी उनके साथ कोई बदतमीज़ी नही कर रही है और ना ही उन से ज़ुबान लड़ने की ग़लती कर रही है.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मैं सोच मे पड़ गया. मुझे सोच मे पड़ा देख कर कीर्ति ने इसकी वजह पुछि तो, मैने उस से कहा.
मैं बोला “अब मुझे समझ मे आ रहा है कि, एरपोर्ट से लेकर अभी तक अमि निमी, वाणी दीदी की हर बात को सुनकर भी चुप क्यो है. लेकिन ये सिर्फ़ तूफान के आने के पहले की शांति है. वो इतनी जल्दी हार मानने वालों मे से नही है.”
मेरी इस बात पर कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम बिल्कुल सही सोच रहे हो. मैने उन दोनो की बातें सुनी थी. वो दोनो सिर्फ़ तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी और अब तुम्हारे साथ मिल कर वाणी दीदी को सबक सिखाएगी.”
“अभी उनको तुमसे बात करने का मौका नही मिला है. इसलिए वो अभी तक शांत चल रही है. लेकिन तुमसे बात होते ही, वो तुम्हारे सामने सबसे पहले वाणी दीदी को सबक सिखाने वाली बात रखने वाली है.”
इतनी बात बोल कर कीर्ति फिर से खिलखिलाने लगी. लेकिन उसकी इस बात ने मुझे और भी ज़्यादा सोच मे डाल दिया था. मुझे सोच मे पड़ा देख कर, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “अभी तो जंग सुरू भी नही हुई और तुम अभी से सोच मे पड़ गये.”
मैं बोला “तुझे मज़ाक सूझ रहा है. तू नही जानती कि, अमि निमी मुझे वाणी दीदी को सबक सिखाने के लिए किस किस तरीके से तैयार करेगी और क्या तू वाणी दीदी के गुस्से को नही जानती कि, वो ज़रा सी बदतमीज़ी सहन नही करती है.’
“तूने देखा तो था कि, कैसे उन्हो ने मेहुल को पता चले बिना ही, उसे धूल चटा दी. अब पता नही मेरा क्या हाल होने वाला है. मैं तो यहाँ वापस आकर फस गया हूँ. इस से अच्छा तो ये ही होता कि, मैं कुछ दिन मुंबई मे और रुक जाता.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति फिर से खिलखिला कर हँसने लगी. लेकिन मैं उसे कुछ बोल पाता, उस से पहले ही, मेहुल का कॉल आने लगा. मैने अपना गुस्सा उस पर उतारना चाहता था. मगर मेरे कुछ बोल पाने के पहले ही, उसने मुझसे कहा.
मेहुल बोला “सुन, मैं कुछ दिन के लिए मामा के घर जा रहा हूँ और मेरा नंबर बंद रहेगा.”
मेहुल की बात सुनकर, मुझे समझ मे आ गया कि, वो अचानक मामा के घर क्यो भाग रहा है. मैने कीर्ति को मेहुल के जाने की बात बताई तो, उसने मेरे हाथ से मोबाइल ले लिए और मेहुल से बात करने लगी.
कीर्ति ने मेहुल को समझा दिया कि, उसने वाणी दीदी को सब समझा दिया. वो उनसे फोन पर बात करके उनसे सॉरी बोल दे तो, वाणी का रहा सहा गुस्सा भी ख़तम हो जाएगा और उसे उनसे मूह नही छुपाना पड़ेगा.
मेहुल की वाणी को कॉल करने की हिम्मत तो नही हो रही थी. फिर भी कीर्ति के समझाने पर उसने ऐसा करने की हामी भर दी. मेहुल के कॉल रखने के बाद, कीर्ति ने हंसते हुए कहा.
कीर्ति बोली “वाणी दीदी को देखते ही, सब के सब घर छोड़ कर भागने की क्यो सोचने लगती है.”
मैं कीर्ति की बात सुनकर, उस पर गुस्सा करने लगा और वो मुझे इसी बात को लेकर परेशान करने लगी. तभी छोटी माँ अमि निमी के साथ आ गयी. वो शायद कहीं जाने की तैयारी मे थी.
अभी मैं उनसे इसके बारे मे पुच्छ पाता कि, तभी वाणी भी नीचे आ गयी. वो भी कहीं जाने की तैयारी मे लग रही थी. वाणी को आते देख कर छोटी माँ ने मुझसे कहा.
छोटी माँ बोली “मैं अमि निमी के साथ कीर्ति को डॉक्टर को दिखाने ले जा रही हूँ. वाणी अपने काम से बॅंक जा रही है. तुम भी वाणी के साथ बॅंक चले जाओ और तुम्हारे खाते मे, जितने भी पैसे है. उनमे से दस हज़ार छोड़ कर, बाकी सब मेरे खाते मे डाल दो.”
छोटी माँ की ये बात सुनकर, मैने चौकते हुए उनसे कहा.
मैं बोला “लेकिन छोटी माँ मेरे खाते में पहले से ही डेढ़ लाख रुपये से ज़्यादा थे. मैं ऐसा करता हूँ कि, डेढ़ लाख रुपये अपने खाते मे छोड़ कर, बाकी आपके खाते मे डाल देता हूँ.”
लेकिन छोटी माँ ने मेरी बात को काटते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “मैने तुमसे जितना करने को कहा है, सिर्फ़ उतना करो. मुझे कुछ समझाने की कोसिस मत करो.”
मैं बोला “लेकिन छोटी माँ….”
मगर छोटी माँ ने मेरी बात को बीच मे ही काटते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “तुमने सुना नही, मैने क्या कहा. अब इसके बाद मैं कुछ भी सुनना नही चाहती.”
छोटी माँ की ये बात सुनकर, मैं चुप करके रह गया. अपनी बात कहने के बाद, छोटी माँ, कीर्ति लोगों को लेकर चली गयी. लेकिन जाते जाते वो मेरा सारा मूड खराब कर गयी थी और एक पल मे ही मुझे कॅंगाल बना गयी थी.
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