RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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चंदा मौसी ने भी छोटी माँ के सूट की बहुत तारीफ की और उनसे कहा.
चंदा मौसी बोली “बहूरानी, पुन्नू बाबा सच मे आपके लिए बहुत सुंदर सूट लाए है. आप अपने जनमदिन मे ये ही सूट पहनना.”
चंदा मौसी की बात सुनकर, कीर्ति भी छोटी माँ के पिछे पड़ गयी और उन्हे इसके लिए हां कहना ही पड़ गया. सब छोटी माँ के सूट मे खोए हुए थे. लेकिन अमि निमी को इन बातों मे ज़रा भी मज़ा नही आ रहा था.
उन्हो ने देखा कि, सब छोटी माँ के सूट की बातों मे ही उलझ कर, रह गये है तो, दोनो आपस मे कुछ ख़ुसर फुसर करने लगी और फिर अमि ने मुझे टोकते हुए कहा.
अमि बोली “भैया, एक एक चीज़ दिखाने मे इतना समय क्यो लगा रहे है. अभी तो बहुत सी चीज़ें दिखाना बाकी है.”
अमि की बात सुनकर सब हँसने लगे और मैं फिर से सबको अपने लाए गिफ्ट दिखाने लगा. मौसी, आंटी, वाणी दीदी की मम्मी के लिए लाई हुई साड़ियाँ और कमल, मौसा जी, अंकल के लिए लाए हुए कपड़े दिखाने के बाद मैं रुक गया.
अभी मेरे बॅग मे कुछ और कपड़े थे. लेकिन मैं कीर्ति की वजह से वो दिखाना नही चाहता था. मगर वाणी दीदी मेरे पास ही बैठी थी. उन्हो ने मुझसे कपड़े दिखाने से हिचकते देखा तो, मुझसे कहा.
वाणी बोली “क्या हुआ, ये कपड़े क्यो नही दिखा रहे हो. क्या ये अपनी गर्लफ्रेंड के लिए लाए हो.”
वाणी की इस बात को सुनकर, मैने हड़बड़ाते हुए कहा.
मैं बोला “नही दीदी, ऐसी कोई बात नही है. ये तो मैं शीन बाजी, शेज़ा और उनकी अम्मी के लिए लाया हूँ.”
ये कहते हुए, मैं वो कपड़े भी सबको दिखाने लगा. शीन बाजी का नाम सुनकर भी, कीर्ति के मूड मे कोई खास फरक पड़ते ना देख कर, मुझे बड़ी राहत महसूस हुई और इसी के साथ मेरा दूसरा बॅग भी खाली हो गया.
उस बॅग के खाली होते ही, मैं आराम से सोफे पर बैठ गया. मुझे आराम से बैठते देख कर, अमि ने फ़ौरन मुझे टोकते हुए कहा.
अमि बोली “भैया, आप आराम से क्यो बैठ गये. अभी तो बहुत कुछ बाकी है.”
मैं अमि की बात का मतलब अच्छी तरह से समझ गया था. उसे बाकी के बॅग्स मे अपने मतलब की कोई चीज़ निकलने की उम्मीद थी और इसी वजह से वो बेसब्री से उनके खुलने का इंतजार कर रही थी. लेकिन मैने उसे परेशान करते हुए कहा.
मैं बोला “अब तो कुछ बाकी नही है. मैं जो जो लाया था, सब दिखा चुका हूँ.”
मेरी बात सुनकर, अमि ने सच मे परेशान होते हुए कहा.
अमि बोली “लेकिन भैया, अभी तो तीन बॅग खुलना बाकी है.”
मैं बोला “वो बॅग मेरे नही है. वो तो मुंबई वालों के बॅग है.”
ये बात सुनते ही, अमि का चेहरा उदास हो गया. निमी जो अभी सब कुछ कमोशी से देख रही थी. उसने बड़ी ही मासूमियत से कहा.
निमी बोली “भैया, तो क्या सब ख़तम हो गया. आप हमारे लिए बस इतना ही लाए है.”
निमी की बात सुनकर, एक बार फिर सबकी हँसी गूँज गयी और दोनो का चेहरा छोटा सा हो गया. मुझे उन दोनो को और परेशान करना ठीक नही लगा और मैने उठ कर एक बॅग उठाते हुए कहा.
मैं बोला “फिकर मत करो, मुंबई वालों ने भी तुम्हारे लिए बहुत कुछ भेजा है. लेकिन पहले मैं वो दिखाता हूँ, जो मुझे वहाँ से मिला है.”
ये कहते हुए, मैने एक बॅग खोला. उसमे वो कपड़े थे, जो अमन, निशा भाभी, अजय और शिखा ने मुझे दिए थे. फिर मैने बरखा दीदी और अलका आंटी के कपड़े दिखाए. उसके बाद, सीरू दीदी और राज लोगों ने जो गिफ्ट दिखाए थे, वो सबको दिखाने लगा.
लेकिन इस बॅग मे अमि निमी के मतलब की कोई चीज़ नही थी. इसलिए वो लोग इसमे कोई दिलचस्पी नही ले रही थी. मगर जैसे ही मैने अगला बॅग उठाया, दोनो मेरे पास आकर खड़ी हो गयी.
ये बॅग शिखा दीदी लोगों के अमि निमी और छोटी माँ के लिए दिए गये समान से भरा हुआ था. निशा भाभी, शिखा दीदी, बरखा दीदी और सीरू दीदी लोगों ने अमि निमी और छोटी माँ के लिए कोई ना कोई गिफ्ट दिया था.
उस बॅग के खुलते ही, अमि निमी के चेहरे खुशी से खिल उठे. उसमे उनके मतलब के बहुत से खिलोने और कपड़े थे. मेरे कुछ निकालने के पहले ही, वो दोनो खुद ही, बॅग मे से समान निकाल निकाल कर सबको दिखाने लगी.
इसके बाद मैने आख़िरी बॅग खोला. ये वो बॅग था, जो रिया ने मुझे एरपोर्ट पर दिया था. इसमे बॅग मे क्या था, ये मैं खुद भी नही जानता था. मुझे बस इतना पता था कि, इस बॅग मे रिया, प्रिया, राज और निक्की के दिए हुए गिफ्ट है.
मैने जैसे ही इस बॅग को खोला, इसमे भी अमि निमी और छोटी माँ के लिए गिफ्ट नज़र आए. जिसे देखते ही, अमि निमी की खुशी दुगनी हो गयी और वो फिर गिफ्ट निकाल निकाल कर सबको दिखाने लगी और मैं बताने लगा कि, किसने क्या गिफ्ट दिया है.
जब सारे बॅग खुल गये तो, मैं आराम से बैठ गया. मैने छोटी माँ की तरफ देखा तो, उनके चेहरे पर मुस्कान थी. शायद सब बॅग के बारे मे पता चलने से, उनके मन से ये बात निकल चुकी थी कि, मैने मुंबई मे बहुत फ़िजूल खर्ची की है.
वही दूसरी तरफ छोटी माँ की मुस्कान को देख कर, कीर्ति भी सुकून की साँस लेती नज़र आ रही थी. मैने वाणी की तरफ देखा तो, उसने मुस्कुराते हुए मुझे आँख मार दी. उसकी इस हरकत से मेरे चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी.
अमि निमी सबको अपने खिलोने और कपड़े दिखाती रही. थोड़ी देर मैं सबके साथ बैठा रहा और फिर मैं उठ कर, अपने कमरे मे आ गया. मैं अभी कमरे मे पहुचा ही था कि, तभी प्रिया का एस एम एस आ गया.
प्रिया का एस एम एस
“अब तुम्हारी दोस्ती मे ये नौबत भी आ गयी.
ठंडी हवा भी मुझे जला गयी.
कहती है तुम यहा तरसती ही रह गयी.
मैं तुम्हारे दोस्त को छु कर भी आ गयी.”
प्रिया का एस एम एस देखते ही, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी और मैने भी उसे एक एस एम एस भेज दिया.
मेरा एस एम एस
“कितना खूबसूरत तुम्हारा अंदाज़ है.
हक़ीकत है या फिर ख्वाब है.
खुशनसीबों के पास तुम रहती हो.
मेरे पास तो सिर्फ़ तुम्हारी आवाज़ है.”
मेरा एस एम एस जाते ही, प्रिया का कॉल आने लगा. मेरे कॉल उठाते ही, उसने कहा.
प्रिया बोली “वाह वाह, वहाँ जाते ही, तुम तो पूरे शायर बन गये.”
मैं बोला “ऐसा कुछ नही, तुम लोग ही ज़बरदस्ती मुझे मार मार कर शायर बनाने पर तुली हो.”
मेरी बात सुनकर, प्रिया हँसने लगी. फिर उसने बातों बातों मे बताया कि, आज से राज ने कॉलेज जाना और रिया, निक्की ने स्कूल जाना सुरू कर दिया है. निक्की अभी एक हफ्ते उसके साथ ही रहेगी.
फिर वो मुझे वहाँ सबका हाल चाल बताती रही और थोड़ा बहुत हँसी मज़ाक करने के बाद, उसने कॉल रख दिया. उसके कॉल रखने के थोड़ी ही देर बाद, कीर्ति आ गयी. उसे देखते ही, मैने मुस्कुराते हुए, उस से कहा.
मैं बोला “आग लगा कर तेरे दिल को शांति मिल गयी.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने हैरानी से कहा.
कीर्ति बोली “तुम कहना क्या चाहते हो. मैने कौन सी आग लगाई.”
मैं बोला “अब ज़्यादा भोली बनने का नाटक मत कर, मुझे वाणी दीदी ने तेरी हरकत के बारे मे सब बता दिया है कि, तुझसे ज़रा भी सबर नही हुआ और तूने बॅग खोल कर छोटी माँ को सारे गिफ्ट दिखा दिए थे.”
मेरी बात सुनते ही, कीर्ति को सारी बात समझ मे आ गयी. लेकिन उसने पहले कब अपनी ग़लती मानी थी, जो वो अभी अपनी ग़लती मान लेती. उसने अपनी इस ग़लती पर परदा डालते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मैं तुम्हारे गिफ्ट देखने के लिए कोई बेसबर नही हो रही थी. मैं तो सबसे छुप कर ये देख रही थी कि, कहीं मेहुल की तरह, तुम भी मेरे लिए कुछ उल्टा सीधा ना ले आए हो. मैं तो बस उसे सबकी नज़र बचा कर, वहाँ से अलग करना चाह रही थी.”
“लेकिन तभी मौसी आ गयी और मजबूरी मे मुझे उन्हे वो गिफ्ट दिखाना पड़ गये. इसी बीच वाणी दीदी भी आ गयी और मुझे इस बात के लिए गुस्सा करने लगी. जिसके बाद मैने बाकी के बाग नही खोले.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मैने हंसते हुए कहा.
मैं बोला “मेहुल तो अभी बचा है. तूने क्या मुझे मेहुल की तरह पागल समझा है, जो तू उन बॅग मे वो फालतू की चीज़ें ढूँढ रही थी.”
मेरी बात सुनकर कीर्ति ने तुनक्ते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मेहुल कुछ भी हो, लेकिन तुम्हारी तरह बच्चा नही. वो कम से कम शिल्पा के लिए कुछ ढंग की चीज़ लाया तो था. लेकिन तुमसे तो किसी बात की उम्मीद करना ही बेकार है.”
ये कह कर, वो पैर पटकते हुए, मेरे कमरे से जाने लगी. लेकिन मैने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा.
मैं बोला “अरे, मैं तेरे लिए तेरी पसंद के ड्रेस लेकर तो आया हूँ. क्या तुझे वो पसंद नही आई.”
कीर्ति बोली “हां, हां, मुझे वो बहुत पसंद आए. लेकिन तुम ये बताओ कि, मेरे और बाकी सबके लिए लाए हुए ड्रेस मे अलग ही क्या है. मुझे तो, मुझसे अच्छी मौसी की ड्रेस लगी, कम से कम उसमे तुम्हारा प्यार तो, नज़र आ रहा था.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैने अपना सर पीटते हुए कहा.
मैं बोला “हे भगवान, अब मैं इस लड़की का क्या करूँ. मैं इतने प्यार से इसके लिए ड्रेस लेकर आया और इसे उसमे मेरा प्यार ही नज़र नही आया.”
कीर्ति बोली “हाँ, मुझे उन मे तुम्हारा कोई प्यार नज़र नही आया. अब मेरा हाथ छोड़ो और मुझे जाने दो.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैने उसका हाथ छोड़ा और बाहर जाकर देखने लगा. वो मेरी इस हरकत को देख कर, वही की वही खड़ी रह गयी. मैं बाहर से आया तो, मैने अपना बॅग बेड पर रखा और उसे खोलने लगा.
ये मेरे कपड़ो का बॅग था, जो मैं अपने साथ अपने कमरे मे ले आया था. मैने उस बॅग मे से अपने कपड़ों के नीचे से, एक नाइट ड्रेस बाहर निकाला. जिस पर नज़र पड़ते ही, कीर्ति ने फ़ौरन बाहर की तरफ दौड़ लगा दी.
उसने कमरे के बाहर जाकर, एक नज़र नीचे की तरफ देखा और फिर फ़ौरन मेरे पास वापस आकर, मेरे हाथ से उस नाइट ड्रेस को अपने हाथ मे लेकर देखने लगी. वो एक सिल्क की ब्लॅक कलर की शॉर्ट नाइटी थी.
वो बड़ी हैरानी से उस नाइटी को देखने मे लगी थी. तभी मैने अपने कपड़ों के नीचे से एक डेनिम का ब्लू शॉर्ट्स और एक मिनी टॉप भी निकाल कर उसके हाथ मे पकड़ा दिया और मुस्कुराते हुए उसे देखने लगा.
ये सब देख कर, कीर्ति की आँखें हैरानी से फटी की फटी रह गयी. उसे शायद अब भी यकीन नही आ रहा था कि, ये सब मैं ही लेकर आया हूँ. उसने बड़े ही भोलेपन से कहा.
कीर्ति बोली “क्या सच मे ये सब तुम ही लाए हो.”
मैं बोला “मैं नही तो और कौन लाया है. अब ये बता कि, इसमे से तुझे कुछ पसंद आया भी है या नही.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने वो ड्रेस अपने सीने से लगाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मुझे तो तुम्हारे दिए सभी ड्रेस बहुत पसंद आए है.”
मैं बोला “तो फिर अभी क्यो कह रही थी कि, तेरे लिए लाए किसी भी ड्रेस मे तुझे मेरा प्यार नज़र नही आ रहा था.”
कीर्ति बोली “वो तो मैं….”
इतना कह कर कीर्ति अपनी बात कहते कहते रुक गयी. मैने उसे टोकते हुए कहा.
मैं बोला “हां, बोल बोल, चुप क्यो हो गयी.”
कीर्ति बोली “कुछ नही, वो तो मैं ऐसे ही कह रही थी.”
मैं बोला “मुझे चराने की कोसिस मत कर, मैं तेरी सब हरकत को अच्छी तरह से जानता हूँ. वो तू सिर्फ़ अपनी ग़लती पर परदा डालने के लिए कह रह रही थी.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिला कर हंसते हुए मेरे कमरे से जाने लगी. मैने उसे रोकते हुए कहा.
मैं बोला “अरे अब कहाँ जा रही है.”
कीर्ति बोली “मैं इसे अपने कमरे मे रख कर आती हूँ.”
मैं बोला “ज़रा रुक, अभी तेरे लिए और भी कुछ है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति रुक गयी और मैने अपने कपड़ों के नीचे से उसके नाम का एक ब्रेस्लेट निकाल कर उसके हाथ मे थमा दिया. अपने नाम का ब्रेस्लेट देखते ही, वो खुशी से उछल पड़ी.
उसे ब्रेस्लेट पहनने का बहुत ही ज़्यादा शौक था और उसके पास तरह तरह के ब्रेस्लेट थे. उन मे से कुछ ब्रेस्लेट मैने भी उसे लाकर दिए थे. लेकिन उसे वाणी दीदी का दिया हुआ, सोने का ब्रेस्लेट सबसे ज़्यादा पसंद था.
उस ब्रेस्लेट मे चमकदार नगो की नक्कासी की गयी थी. जिससे उसकी चमक दमक और सुंदरता देखते ही बनती थी. उसे वो बहुत संभाल कर रखती थी और किसी खास मौके पर ही पहना करती थी.
मेरे दिए, ब्रेस्लेट को देखने के बाद कीर्ति ने उसे चूमा और फिर मुस्कुराते हुए कहा.
कीर्ति बोली “ये तो मेरे सोने के ब्रेस्लेट से भी अच्छा है.”
उसकी इस बात के जबाब मे मैने अपना चेहरा उतारते हुए, उस से कहा.
मैं बोला “इरादा तो, मेरा भी तुझे सोने का ब्रेस्लेट देने का है. लेकिन मेरे पास इतने पैसे ही नही हो पाते कि, तुझे सोने का ब्रेस्लेट दे सकूँ.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति ने मुझे समझाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “पागल मत बनो. तुम्हारा दिया हुआ, एक धागा भी, मेरे लिए सोने से कहीं ज़्यादा कीमती है.”
मैं बोला “तू कुछ भी बोल, लेकिन मैं तुझे सोने का ब्रेस्लेट देकर ही रहूँगा.”
कीर्ति बोली “अच्छा बाबा, दे लेना. लेकिन अभी तो तुम अपनी फिकर करो. मेरी ग़लती की वजह से मौसी ने तुम्हारे सारे पैसे छीन लिए है.”
कीर्ति की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “मुझे इसकी फिकर करने की ज़रूरत नही है. फिकर तो अब छोटी माँ कर रही होगी कि, उन्हो ने बेवजह मेरे पैसे छीन लिए है. अब वो किसी ना किसी बहाने से, मुझे पैसे वापस करने की कोसिस ज़रूर करेगी.”
कीर्ति बोली “और यदि ऐसा नही हुआ तो, फिर क्या करोगे.”
मैं बोला “यदि ऐसा नही हुआ, तब भी कोई बात नही है. वो पैसे तो, मैं छोटी माँ के जनमदिन मे गिफ्ट देने के लिए ही जोड़ रहा था. अब वैसे नही तो, ऐसे ही सही, लेकिन पैसे तो, उन्ही के पास गये है.”
“पहले मुझे इस बात से मेरा मूड खराब ज़रूर हुआ था. लेकिन जब वाणी दीदी से पता चला कि, छोटी माँ ने ऐसा क्यो किया है. तब मुझे अहसास हुआ कि, छोटी माँ ने कुछ ग़लत नही किया है और मेरा मूड खुद ही सही हो गया.”
कीर्ति बोली “लेकिन अब उनके जनमदिन के गिफ्ट का क्या करोगे.”
मैं बोला “अभी मुझे कुछ नही पता. लेकिन अब तू ये बातें छोड़ और ये सब अपने कमरे मे रख कर आ. वरना अभी अमि निमी मे से कोई टपक पड़ेगा.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति हंसते हुए, वो सब समान अपने कमरे मे रखने चली गयी. उसके जाने के कुछ ही देर बाद, अमि मुझे खाने के लिए बुलाने आ गयी और मुझे खाने के लिए बोल कर, वो कीर्ति को बुलाने चली गयी.
अमि के जाने के बाद, मैं मूह हाथ धोने चला गया. मैं मूह हाथ धोकर आया तो, कीर्ति मेरे कमरे मे ही बैठी थी. मैं तैयार होकर, उसके साथ खाने के लिए नीचे आ गया.
हम नीचे पहुचे तो, सब खाने पर हमारा ही इंतजार कर रहे थे. हमारे पहुचते ही, सबने खाना खाना सुरू कर दिया. खाने के बाद, हम सब बैठ कर, बातें करने लगे.
हमारी आपस मे बातें चल रही थी. तभी वाणी दीदी ने वो ही डेढ़ लाख का चेक मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा.
वाणी बोली “मैं तुम्हारे जनमदिन मे तुम्हे कोई गिफ्ट नही दे पाई थी. इसलिए मेरी तरफ से ये चेक रख लो और तुम्हे अपने लिए जो कुछ अच्छा लगे, तुम वो खरीद लेना.”
मैं बोला “दीदी, आप को जो भी देना हो, आप खुद ही खरीद कर दे दीजिए. लेकिन ये चेक़ मुझे मत दीजिए. मैं अपने जनमदिन के गिफ्ट मे चेक़ नही लूँगा.”
मेरी बात सुनकर, छोटी माँ ने मुझ पर गुस्सा करते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “वो तुम्हारी बड़ी बहन है. उसको किसी बात के लिए ना करते हुए, तुमको शरम नही आती.”
मैं बोला “छोटी माँ, ये मेरी बड़ी बहन है. इसलिए मैं गिफ्ट मे पैसे लेने से मना कर रहा हू. मुझे यदि पैसे की ज़रूरत हुई तो, मैं हक़ के साथ, बिना किसी जीझक के इनसे माँग लुगा.”
“लेकिन ये मुझे जनमदिन का गिफ्ट देना चाहती है और गिफ्ट वो ही अच्छा लगता है, जिसे देखते ही, देने वाले का चेहरा नज़र आए. इनका चेक़ तो मैं बॅंक मे डाल दूँगा. फिर भला उस से खरीदी हुई चीज़ मे मुझे इनका चेहरा कैसे नज़र आ सकता है.”
मेरी बात सुनकर, वाणी दीदी मुस्कुराने लगी. लेकिन छोटी माँ तो, मेरी माँ थी और मैं उनकी सिखाई बातों से ही भला उन्हे कैसे हरा सकता था. उन ने मेरी बात को काटते हुए कहा.
छोटी माँ बोली “बड़े जब कुछ देते है तो, उसमे उनके प्यार के साथ साथ, उनका आशीर्वाद भी छुपा होता है. प्यार नज़र आता है, लेकिन आशीर्वाद कभी नज़र नही आता. मगर वो आशीर्वाद हमेशा साथ बना रहता है. इसलिए इसे वाणी का प्यार नही, बल्कि आशीर्वाद समझ कर रख लो.”
छोटी माँ ने मुझे अपनी बातों मे बुरी तरह से उलझा दिया था और अब मुझे उनकी इस बात का कोई जबाब नही सूझ रहा था. आख़िर मे ना चाहते हुए भी, मुझे वाणी दीदी का वो चेक़ लेना ही पड़ गया.
कीर्ति और अमि निमी, मुझे पैसे मिल जाने की वजह से खुश नज़र आ रही थी. वही वाणी के चेहरे पर भी मुस्कान थी. लेकिन छोटी माँ के चेहरे से कुछ पता नही चल रहा था. वो कहीं खोई खोई सी नज़र आ रही थी.
मैने उनको खोया खोया सा देखा तो, उनसे बात करने लगा. कुछ देर उनसे बात करने के बाद, मैने उन्हे मेहुल के घर जाने की बात जताई और मैं फिर मेहुल के घर के लिए निकल गया.
मेहुल के घर पहुच कर, मैने अंकल और रिचा आंटी को उनके लिए लाए कपड़े दिए. फिर मेरी उनसे यहाँ वहाँ की बातें होती रही और 5 बजे के बाद, मैं वही से शीन बाजी के घर जाने के लिए निकल गया.
रास्ते से मैने आफ्तारी के लिए कुछ फल खरीदे और उन्हे लेकर मैं बाजी के घर पहुच गया. लेकिन घर पर इस समय शीन बाजी की अम्मी के अलावा कोई नही था.
मैं भी उन्हे अम्मी ही कहता था.
अम्मी ने मुझे बताया कि शीन बाजी और शेज़ा के साथ, उसकी किसी सहेली के घर गयी और रात तक वापस आएगी. मैने उनको आफ्तारी के लिए लाए फल दिए और फिर सबके लिए लाए कपड़े दिखाने लगा.
इसके बाद, रोज़ा खोलने का समय होने लगा तो, वो रोज़ा खोलने की तैयारी करने लगी. मेरे फल भी, उन्हो ने आफ्तारी मे लगा दिए. रोज़ा खोलने का समय होने पर, मैं भी उनके साथ आफ्तारी करने लगा.
आफ्तारी के बाद, अम्मी से मेरी थोड़ी बहुत बातें हुई और फिर मैं उनसे कल शाम को आने की बात बोल कर, घर के लिए निकल पड़ा. लेकिन अम्मी के घर से निकलते ही, रास्ते मे मुझे, मेरा दोस्त राहुल मिल गया.
उसने मिलते ही मेरे उपर सवालों की बौछार कर दी और बिना कुछ बताए मुंबई चले जाने की बात पर फटकार लगाने लगा. उस से बात चीत मे बहुत समय लग गया और फिर मुझे घर पहुचते पहुचते 7:30 बज गये.
मैं घर पहुचा तो, अमि, निमी, कीर्ति, चंदा मौसी, और छोटी माँ सब बैठ कर, शिखा दीदी की शादी का वीडियो देख रहे थे. मैं कीर्ति के पास जाकर बैठ गया और मैं भी शादी का वीडियो देखने लगा.
वीडियो मे अभी शिखा दीदी की बारात आई थी और मैं बारातियों का स्वागत कर रहा था. उस वीडियो मे छोटी माँ सॉफ नज़र आ रही थी. छोटी माँ के वीडियो मे नज़र आते ही, मैने अमि निमी की तरफ देखा.
लेकिन दोनो का ही मन वीडियो देखने मे लगा हुआ था. मुझे ये देख कर हैरत हो रही थी कि, छोटी माँ को उस वीडियो मे देख लेने के बाद भी, अमि निमी इस बारे मे कोई सवाल क्यो नही कर रही है.
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