RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ६)
अगले दिन सुबह....
हमेशा की तरह चाचा ऑफिस चले गए | चाची घर के काम निपटा रही थी | मैं सुबह के एक बैच को पढ़ा चूका था और दूसरे बैच को कोई बहाना बना कर छुट्टी दे दिया | एक छोटा सा लेकिन ज़रूरी काम था मुझे | सो मैं नहा धो कर, नाश्ता कर के चाची को बाय बोल कर घर से निकल गया | कोई आधे घंटे के करीब लगा मुझे मेरा काम ख़त्म करने में | पर सच कहूं तो काम कम्पलीट नहीं हुआ था, थोड़ा बाकि रह गया था जोकि फिर कभी पूरा हो सकता था |
इसी तरह दूसरे काम निपटाते हुए शाम हो गई... कुछ काम खत्म हुए; कुछ नहीं ..
देर शाम, घर की ओर लौट आ रहा था | घर के पास पहुँचने पर देखा की एक लड़का बड़ी तेज़ी से हमारे घर के बगल वाली गली में घुसा ---
मैं चौंका और संदेह भी हुआ ;
मैं भी जल्दी से पर बिना आवाज़ किये उस लड़के के पीछे पीछे गली में घुसा --- गली बहुत संकरा सा था .... एक बार में एक ही आदमी जा सकता था .. गली के दोनों और ऊँचे ऊँचे दीवारें हैं और वो गली हमारे ही बाउंड्री में आता है --- चाची इसका इस्तेमाल बचे खुचे छोटे मोटे कूड़ा करकट फेंकने के लिए करती थी | उस गली में एक दरवाज़ा भी था जो हमारे घर के पिछवाड़े वाले दरवाज़े से सटा था | मैं जल्दी से गली में घुसा तो ज़रूर था पर क्या देखता हूँ की उस लड़के का कहीं कुछ अता पता नहीं है .... गली का दरवाज़ा भी लगा हुआ था |
मैंने और टाइम ना वेस्ट करते हुए जल्दी से पल्टा और घर के मैं डोर पे पहुँचा | डोर बेल बजाना चाहा पर वो बजी नहीं | शायद बिजली नहीं थी | फिर मैंने दरवाज़ा खटखटाया और काफ़ी देर तक खटखटाया | पर चाची ने दरवाज़ा नहीं खोला... मैं डर गया | कहीं कोई अनहोनी ना हो गयी हो | जब और कुछ सूझा नहीं तो मैं फिर से गली में घुसा और दरवाज़े तक गया |
दरवाज़ा बंद था पर पुराना होने के कारण उसमें दरारें पड़ गई थीं और उन दरारों से दरवाज़े के दूसरी तरफ़ बहुत हद तक देखा जा सकता था | मैं बिल्कुल करीब जा कर दरवाज़े से कान लगाया | आवाजें आ रही थीं | एक तो चाची की थी पर दूसरा किसी लड़के का !! कहीं ये वही लड़का तो नहीं जिसे मैंने कुछ देर पहले गली में घुसते देखा था ? क्या वो चाची को जानता है? क्या वो उनके जान पहचान का है? अगर हाँ तो फिर उसे इस तरह से यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी? वो मेन डोर से भी तो आ सकता था | पर ऐसे क्यों?
ज़्यादा देर न करते हुए मैं दरवाज़े पर पड़ी उन दरारों से अन्दर झाँकने लगा....... और जो देखा उससे सन्न रह गया | चाची तो लगभग पूरी दिख रही थी पर वो लड़का नहीं दिख रहा था..| सिर्फ़ उसका हाथ दिख रहा था.... औ...और ... उसका एक हाथ ... दायाँ हाथ चाची के बाएँ चूची पर था !! और बड़े प्यार से सहला रहा था | ये तो थी ही चौंकने वाली बात पर इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात ये थी की इस समय चाची के बदन पर साड़ी नहीं थी !!
पूरी की पूरी साड़ी उनके पैरों के पास थी... ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने या फिर चाची ने ही खड़े खड़े साड़ी खोली और हाथ से ऐसे ही छोड़ दी --- साड़ी गोल हो कर उनके पैरों के इर्द गिर्द फैली हुई थी ! लड़का प्यार से उनके बाएँ चूची को दबाता और अचानक से एक बार के लिए पूरी चूची को जोर से दाब देता ... और चाची दर्द से ‘आह्ह...’ कर के कराह देती |
“माफ़ कीजिएगा मैडम.. हमको ये करना पड़ रहा है... उन लोगों को हर बात की खबर रहती है ... अगर ऐसा नहीं किया तो वे लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे..|” लडके ने कहा |
जवाब में चाची ने सिर्फ “ह्म्म्म” कहा |
“पर एक बात बोले मैडम... बुरा मत मानिएगा ... इस उम्र में भी अच्छा मेन्टेन किया है आपने खुद को |..... ही ही ...|” बोल कर लड़का हँसा |
मैंने चाची के चेहरे की ओर देखा... दर्द और टेंशन से उनके चेहरे पर पसीने की बूँदें छलक आई थीं |
चाची – “जल्दी करो.. वो किसी भी टाइम आ जाएगा | अगर देख लिया तो मैं बर्बाद हो जाउंगी |”
लड़का – “अरे टेंशन क्यों लेती हो मैडम.. वे लोग उसका भी कोई इंतज़ाम कर देंगे |” बड़ी लापरवाही से कहा उसने |
लड़का – “ओह्हो मैडम... ये क्या... आपको जैसा करने कहा गया था आपने वैसा नहीं किया?”
चाची – “क्या करने..ओह्ह.. ह..हाँ... भूल गयी थी... मैं अभी आई |”
बोल कर चाची अन्दर जाने के लिए जैसे ही मुड़ी .. लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया... | बोला,
“अरे कहाँ चलीं मैडम जी... अन्दर नहीं जाना है |”
चाची (हैरानी से) – “तो फ़िर ?”
लड़का – “यहीं कीजिये |” लड़के के आवाज़ में कुटिलता और सफलता का अद्भुत मिश्रण था |
चाची (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) – “क्याsss… क्या.. बक रहे हो तुम..? दिमाग ख़राब है क्या तुम्हारा? इतना हो रहा है..वो काफ़ी नहीं है क्या? उसपे भी अब ये... कैसे करुँगी मैं?”
लड़का (आवाज़ में बेचारगी लाते हुए) – “वो तो आप जानिए मैडम जी.. मैं तो वही कह रहा हूँ जो उन लोगों ने तय किया था ... और उनसे कुछ भी छिपता नहीं है... आगे आप जानिए |”
मैंने देखा, चाची सोच में पड़ गयी है... किसी उधेरबुन में थीं ... पर जल्द ही कुछ फैसला किया उन्होंने मानो | लडके के पास आ कर थोड़ा दूर हट कर लडके के तरफ़ पीठ कर के उल्टा खड़ी हो गई | उससे आगे का दिख नहीं रहा था | सिर्फ चूड़ियों की खन खन और छन छन की आवाज़ आ रही थी |
ऐसा लगा जैसे की लडके ने पैंट के ऊपर से अपने लंड को पकड़ कर मसलने लगा |
लड़का (धीमे आवाज़ में) – “उफ्फ्फ़ ... क्या पीठ है यार....इतना साफ़... बेदाग ....उफ्फ्फ्फ़.. क्या माल है....! काश के कभी एक बार मिल जाए...|”
कोई दो तीन मिनट बीते होंगे... चाची वापस पहले वाले जगह पर आ गई.. लड़के ने हाथ आगे बढ़ाया ... और चाची ने उसके हाथ में कुछ सफ़ेद सा चीज़ थमा दिया | वो उनकी ब्रा थी !! लडके ने हाथ में लेकर कुछ देर तक दोनों कप्स को अंगूठे से रगड़ता रहा.. फिर नीचे फेंक कर दोनों हाथों से चाची के दोनों चूचियों को थाम लिया..और पहले के माफिक सहलाना – दबाना चालू कर दिया | रह रह कर चाची के मुँह से “म्मम्मम्म.....” सी आवाजें निकल रही थी |
शायद अब चाची को भी अच्छा/ मज़ा आने लगा था | दबाते दबाते लड़का थोड़ा रुका , अपने दोनों हाथों के अंगूठों को चूचियों के बीचों बीच लाकर गोल गोल घूमा कर जैसे कुछ ढूंढ रहा था | अचानक से रुका और “वाह!” बोलते हुए हथेलियों से चूचियों को नीचे से अच्छे से पकड़ते हुए दोनों अंगूठों को चूचियों पर दबाते हुए अन्दर करने लगा | “इस्स ... आःह्ह “ चाची दर्द से उछल पड़ी.. लडके के हँसने की आवाज़ सुनाई दी | अब लड़के ने चाची को अपने और पास खींचते हुए सामने लाया और झट से उनके ब्लाउज के पहले दो हूकों को खोल दिया और फिर अपनी एक ऊँगली से क्लीवेज पर ऊपर नीचे करने लगा |
चाची की साँसे तेज़ हो चली थी | अपने मुट्ठियों को भींच लिया था उन्होंने | लड़के ने अब क्लीवेज में ही ऊँगली को ऊपर से अन्दर बाहर करने लगा | कुछ देर ऐसा करने के बाद वो फिर से दोनों अंगूठों से चूचियों पर कुरेदने- खुरचने सा लगा | चाची फिर “आह्ह” कर उठी... लड़के ने पूछा, “क्या बात है मैडम जी.... ये दोनों कड़े क्यों होने लगे? हा हा हा |”
सुनते ही चाची का पूरा चेहरा शर्म से लाल हो गया | मैंने उनके ब्लाउज पर गौर किया... देखा, उनके दोनों निप्पल ब्लाउज के अन्दर से खड़े हो गए !! दो छोटे छोटे पर्वत से लग रहे थे --- लड़के ने चूचियों को छोड़ अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से दोनों निप्पल के अग्र भाग को पकड़ा और ऊपर बाहर की ओर खींचने लगा |
“आह्ह्हह्हssssssss... आह्हsss..धीsss...धीरेsssss....”
चाची दर्द से कराह उठी | पर वो बदमाश लड़का हँसने लगा... फिर निप्पल छोड़ कर नीचे नाभि में ऊँगली डाल कर गोल गोल घूमाने लगा... फिर पूरे पेट और कमर पर हाथ फेरा, बहुत अच्छे से सहलाया फिर दोनों हाथ पीछे कर उनके गांड के दोनों साइड पर रखा और अच्छे से मसला उन्हें...| चाची छटपटा रही थी .. उससे छूटने के लिए या जोश में.. अब ये नही पता | बहुत देर तक इसी तरह मसल के और सहला कर मज़ा लेने के बाद लड़का बोला,
“अच्छा मैडम.. अब हम चलता है...|”
“सुनो... वहां जा कर क्या बोलोगे?” चाची बहुत बेचैनी में पूछी |
“बोलूँगा की जैसा कहा गया था बिल्कुल वैसा ही मिला और हुआ...”
“अच्छा अब चलता हूँ... |”
इतना कह कर लड़का दरवाज़े की तरफ़ मुड़ा | मैं झट से दबे पाँव गली के और आगे चला गया और थोड़ा साइड हो कर छुप गया | दरवाज़ा खुला और एक पतला सा लड़का निकला... लम्बाई बहुत ज़्यादा नहीं होगी उसकी | बाहर निकलते ही तेज़ कदमों के साथ वो गली से निकल गया | उसके जाने के बाद मैं दरवाज़े के पास आया.... अन्दर झाँका... देखा की चाची साड़ी पहन रही है | और नीचे से ब्रा को उठा कर अन्दर चली गई....
मैं जल्दी से उस लड़के के, जहाँ से अभी वो गया.., उसी जाने वाले रास्ते की ओर लपका....
ये बात तो तय थी कि अभी मैं उससे भिड़ने वाला नहीं ---
फ़िर भी उस लड़के को थोड़ा और अच्छे से या करीब से देखने का अगर मौका मिल जाए तो क्या पता मेरे लिए बहुत बड़ा हेल्प हो जाए भविष्य में...
वह लड़का भी कोई कम शाणा नहीं था;
रास्ते पर चलते हुए कई बार पीछे मुड़ कर देखा...
मैं तो था ही पहले से सावधान; हर बार किसी दीवार या पेड़ का ओट ले लेता ----
धीरे धीरे हम दोनों ही रास्ते के छोर , अर्थात् मोड़ के पास पहुँच गए ... बगल में कुछ दुकानें हैं... लड़का उन्हीं में से किसी एक में घुस गया ---
मैं भी छुपते छुपाते उन दुकानों के क़रीब पहुँचा और जल्दी ही एक दुकान का ओट ले, एक दुकान में मौजूद उस लड़के को देखने लगा --- गौर किया --- वह एक आम किराना दुकान होते हुए एक फ़ोन बूथ की तरह टेलीफोन सेवा भी देता है --- लड़का वहीं उपस्थित है ---
किसी को कॉल लगा रहा है ---
शायद कॉल लग भी गया ---
तीन मिनट तक बातें हुई --- फ़िर लड़के ने फ़ोन क्रेडल पर वापस रखा और दुकानदार से बातें करने लगा --- मैं लड़के के हरेक गतिविधि को बड़ी ही सतर्कता से नोट किये जा था --- दुकान की तेज़ रोशनी में देखा --- लड़के ने शर्ट के जेब से एक बीड़ी निकाली, पहने हुए जीन्स पैंट के सामने के दाहिने पॉकेट से माचिस निकाला और --- सुलगाया ----
लड़का अभी भी दुकान की ओर मुँह किए ही फूंके जा रहा था --- और दुकानदार के साथ भी बातें कर रहा था --- दुकान में ; दुकानदार के पीछे दीवार पर कई छोटे छोटे शेल्व्स बने हुए हैं ..... जिन पर की शीशे लगे हैं ..... लड़का धुआँ उड़ाता हुआ पूरे दुकान में नज़र दौड़ा रहा था --- तभी वो एक कौने की ओर देखते हुए स्थिर हो गया एकदम से... सिर को आगे की ओर बढ़ाता हुआ थोड़ा झुका ... जैसे किसी एक चीज़ पर उसका पूरा फोकस हो गया हो --- जैसे कुछ देखने, समझने का प्रयास कर रहा हो ---
पीछे दीवार पर उन शेल्व्स के ऊपर एक ट्यूबलाईट जल रही है और एक दुकानदार के ठीक सिर के ऊपर ... और दोनों ही तेज़ रोशनी वाली ... इनके अलावा भी शायद दुकानदार के दाएँ साइड एक ट्यूबलाईट या वैसी ही कोई लाईट है ; कारण ; मेरे अनुमान मुताबिक, एक साथ दो ट्यूबलाईट से इतनी ज़्यादा रोशनी शायद नहीं होती है..
खैर,
लड़का अब धीरे से सीधा खड़ा हुआ ...
एक लम्बा कश लगाया ---
उसके कश लगाने, धुआँ छोड़ने, और अब सावधान वाले पोजीशन में खड़े रहने के तरीके से मुझे अब थोड़ा संदेह हुआ ---
कुछ गड़बड़ है ----
मैं तुरंत ही खुद के अपने छुपे हुए स्थान में और भी अच्छे से खुद को छुपाया और सिर्फ़ एक आँख भर बाहर उस दिशा में देख सकूँ ; उतना ही सिर का हिस्सा निकाले रहा ---
इधर मैं खुद को और अच्छे से छुपाया और उधर वह लड़का अचानक से अपने स्थान पर रहते हुए ही मेरी ओर घूम गया !!
तकरीबन दो मिनट मेरी ओर ही देखता और धुआँ उड़ाता रहा ---
रिस्क बड़ा था --- पर मैंने भी उसी पोज़ में छुपे रहते हुए उसे देखता रहा ---
वर्तमान में उस लड़के के अपने स्थान पर यथावत खड़े रह कर मेरे दिशा की ओर देखते हुए धुआँ उड़ाते हुए देख कर मैं यह आंकलन कर पाया कि,
जैसे वह यह तो नहीं जानता की जिस ओर वह देख रहा है, वहां पर्याप्त रोशनी नहीं है, वहां कोई है भी या नहीं ; या किसी के वहां होने का उसे भ्रम मात्र हुआ हो ;
पर,
उसने दो मैसेज साफ़ साफ़ मुझे प्रेषित कर दिया,
एक, उसे कोई परवाह नहीं की कोई उसकी जासूसी कर रहा है या नहीं ;
दूजा, अगर कोई जासूसी कर भी रहा है तो वह केवल अपने लिए मुसीबतों को ही निमंत्रण दे रहा है ---
इधर ही देखता हुआ उसने बीड़ी को ज़मीन पर फ़ेंक उसे अच्छे से पैर से कुचला और उस दुकान से थोड़ी दूर खड़ी अपने स्कूटर के पास पहुँच, उसे स्टार्ट कर वहां से रवाना हो गया ---
मैं दौड़ कर , सड़क पार कर उस दुकान में गया --- और फ़ोन उठा कर रिडायल बटन को दबाया ---
निराशा हाथ लगी ---
वह गलत नंबर था ---- उल्टे मेरे को ही दूसरी ओर से एक स्वचालित किसी लड़की की मशीनी आवाज़ से नंबर चेक करने के लिए अनुरोध किया गया ---
साफ़ है,
उस लड़के ने जहाँ बात करनी थी वहां बात करने के बाद एक गलत नंबर डायल कर के फ़ोन रखा था ---
मैं ज़्यादा देर वहां नहीं खड़ा रहना चाहता था,
इसलिए तुरंत घर की ओर रवाना हुआ ---
घर की ओर जितने कदम चलता आया ..... उतनी ही धीरे धीरे कुछ देर पहले घटी सभी घटनाएँ याद आती गईं ...
और मैं इन सभी घटनाओं को लेकर सोच में पड़ गया ---- मेरी सती सावित्री सी दिखने वाली चाची का आज ये रूप मुझे हजम नहीं हो रहा था |
क्रमशः
|