RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग १२)
फ़्लैशबैक ---
मोहित – “क्या बात कर रहा है यार... तुझे इन चीज़ों की ज़रुरत क्यों है?”
मैं – “यार, है तभी तो माँग रहा हूँ ...”
“तो बता न, क्या है ऐसी ज़रुरत?”
“अभी बता नहीं सकता...”
“कमाल है... जिससे सहायता माँग रहा है भाई ; उसे ये बताना तुझे गवारा नहीं की तेरी ज़रुरत क्या है?”
“ओफ्फ़ ... यार तुझे वो सब सामान देना है या नहीं...?”
“देना चाहता हूँ मेरे भाई... वो क्या है की ऐसे ही कोई इन सामानों की माँग तो नहीं करता है ना... इसलिए थोड़ा अजीब लग रहा है.. पर यदि तू ये बता दे की तेरी एक्साक्ट्ली ज़रुरत क्या है --- मेबी आई कैन डू समथिंग मोर तो हेल्प यू --- दैट्स इट !”
“ह्म्म्म ... तो सुन.. पर ध्यान रहे की जो बात मैं अभी तुझे बताने जा रहा हूँ... ये किसी को पता न चले ... अगर किसी को पता चल गया तो मेरा जो होगा सो बाद में, पहले तेरा ही पत्ता कट जाएगा... और वो भी ऐसा की ख़ुद तुझे ही पता न चले ...”
“यार , तू तो डराने लगा ---”
“डरा नहीं रहा --- हकीकत साझा कर रहा हूँ --- अब सुन, पिछले कुछ दिनों से कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं ... अक्सर मेरे घर का एक राउंड लगा जाते हैं ... मैं जैसे ही खिड़की या अपने रूम की बालकनी के पास पहुँचता हूँ तो वह तुरंत ही वहां से रवाना हो जाते हैं ... उनके बारे में कुछ और भी पता चला है, पर कन्फर्म नहीं हूँ --- इसलिए कंफर्म होने के लिए थोड़ा रिस्क लेना चाहता हूँ ... और इसलिए तेरा मेकअप सामान चाहता हूँ ... तू तो यार, ड्रामा और थिएटर वगेरह से तो क़रीब छ: - सात सालों से जुड़ा है --- लोगों का हुलिया बदल देना तेरा बाएँ हाथ का काम है... इसलिए तेरे पास आया हूँ... प्लीज़ भाई, हेल्प मी |”
पूरी बात सुनकर मोहित थोड़ा गंभीर होकर सोचने लगा ....
दो ही मिनट बाद हाँ में सिर हिलाते हुए कहा,
“ठीक है यार... तेरा हेल्प करूँगा... अच्छा हुआ जो तूने मुझे ये सब खुल कर बताया... अब देख, मैं तेरा ऐसा हुलिया बदलूँगा कि दूसरे तो क्या... साला तू ख़ुद अपने को नहीं पहचान पायेगा... लेकिन हाँ, अपना ध्यान रखना... और मेरा भी... तेरी बातों को सुनकर लग रहा है की कोई बहुत बड़ी बात है... और इसमें मैं फंसना नहीं चाहता... तू समझ रहा है न यार मेरी बात... मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ...”
“ऑफ़ कोर्स समझता हूँ ... तू निश्चिन्त रह... तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा --- |”
बात खत्म होते ही दोनों ने हाथ मिलाया और मुस्कराए...
शायद कामयाबी की खुशबू अभी ही मिल गयी थी दोनों को .... ख़ास कर ‘मुझे!’
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एक टैक्सी में बैठा हुआ हूँ मैं... और मेरा टैक्सी वाला अपने सामने के टैक्सी को फॉलो कर रहा है ... बराबर दूरी बना कर.. समान गति से.. खुद के पकड़े जाने का डर नहीं है.. मेकअप कर के बैठा हूँ.. एक मित्र है मेरा.. अच्छा काम करता है मेकअप का.. नकली दाढ़ी मूँछ लगा कर... हेयर स्टाइल बदल कर .. एक लम्बा..फ्री स्टाइल ट्राउजर .. पिंक कलर का शर्ट और उसपे ट्राउजर से मैच करता ग्रे कलर का ब्लेज़र डाला हुआ है मैंने..
दाएँ हाथ की तीन उँगलियों में तीन बेशकीमती (पर नकली) रत्न लगे अंगूठियाँ.. दाएँ हाथ की ही कलाई में एक चैन वाली घड़ी ...
बाएँ हाथ की अँगुलियों ; तर्जनी और मध्यमा के बीच एक सुलगता सिगार ... और साथ में पेपर.. आँखों पर काला चश्मा..
गारंटी दे कर कह सकता था की कोई माई का लाल मुझे नहीं पहचान सकता था |
करीब पैंतालीस मिनट का सफ़र तय करते हुए आगे वाली टैक्सी शहर के ही एक महँगे होटल के सामने रुकी | मैंने भी अपने टैक्सी को थोड़ी ही दूरी पर रुकवा दिया | आगे वाली टैक्सी का पीछे वाले दोनों दरवाज़े एक साथ खुले .. दाएँ तरफ़ से एक लम्बा सा आदमी निकला.. पठानी सूट में...
तो वहीं दूसरी तरफ़ से बाहर निकली थी कुछ समय पहले तक आदर्श गृहिणी का तमगा रखने वाली मेरी प्यारी चाची... आज चाची को भी पहचानना मुश्किल था .. हल्का आसमानी रंग की साड़ी और ब्लाउज के नाम पर बिकिनी ब्लाउज... जिसमें दो अत्यंत छोटे ब्लाउज कप्स थे..जिनका काम था चाची की उन्नत, परिपुष्ट चूचियों में से थोड़े हिस्से को कवर करना और बाकि के हिस्से को जबरदस्त प्रभाव के साथ ऊपर की ओर उठाये रखना | बस.... बाकि सब पतली रस्सियों की डोरी सी थी | और माँ कसम.... कमाल की पीस लग रही थी |
पीले गोल्डन जैसे चमकते हील वाले सेंडल पहने इठलाती , मटकती , आहिस्ते, शौख से गांड हिलाती वो उस लम्बे से आदमी के साथ अन्दर उस होटल में दाखिल हुई.. मैंने उस टैक्सी वाले को एक पचास का नोट थमाते हुए आँखों से कुछ इशारा किया ...
वो मुस्कुरा कर हाँ में सर हिलाया और मैं इतने में ही टैक्सी से उतर कर रोबीले अंदाज़ में उस होटल की ओर बढ़ चला... इधर मेरे टैक्सी वाले ने चाची वाले टैक्सी के साथ अपनी गाड़ी पार्क की और उधर ठीक उसी समय मैं उस आलिशान होटल के सुन्दर नक्काशी वाले और एक दो जगह से कांच लगे दरवाज़े को हल्का धक्का देते हुए अन्दर घुसा |
क्रमशः
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