RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग १४)
शाम का समय | अपने छत पर खड़ा, छत की छोटी सी बाउंड्री वाल पर कॉफ़ी का मग रखकर, टी शर्ट – बरमुडा पहने, कश लगाते हुए दूर क्षितिज़ में अस्त होते सूर्य और उसके प्रकाश से आसपास आसमान में फ़ैली लालिमा को निहार रहा था | मंद मंद हवा भी चल रही थी | दूर कहीं शायद चमेली का पौधा होगा, जिसकी खुशबू, नथुनों से टकरा कर मन को शांत और आह्लादित कर दे रही थी | भोर और शाम ... इन दोनों में एक बात कॉमन ज़रूर है.. इन दोनों ही समय में, कोई एक पॉइंट ऐसा ज़रूर होता है जब आस पास की चीज़ें अचानक से स्थिर हुई सी प्रतीत होती है.. सबकुछ शांत.. रुका रुका सा लगता है ... | लगता है जैसे समय भी अपनी धुरी पर घूमना भूल कर, इस समय की अद्वितीय सुन्दरता और शांत खड़ी सी प्रकृति की प्रशंसा हेतु शब्द ढूँढ रहा हो और शब्दों के मिलते ही वो वातावरण नुमा धागे में उन्हें पिरोकर उस समय की महत्ता, सुंदरता और अद्वितीयता को कई गुना बढ़ा देता है |
तीन सिगरेट ख़त्म कर चूका हूँ अब तक... चौथा अभी अभी सुलगाया... कॉफ़ी लगभग ख़त्म होने को आ गई है | मन अब मेरा प्रकृति की सुंदरता से हट कर जीवन के संघर्षों में आ गया है | और फ़िलहाल कुछ समय से जीवन में रहस्य, रोमांच, भ्रांति, चिंता, संदेह और दुविधाओं के चक्रव्यूह वाला एक अलग अध्याय शुरू हो गया है | जिन्में मुख्य पात्र मेरी खुद की चाची ही है... (अभी तक) ... और रहस्य, रोमांच और भय वाले इस अध्याय / इस कहानी का ताना बाना बुना जा रहा है चाची के इर्द गिर्द... पर यह बात दावे के साथ कहा जा सकता है की इस कहानी का केन्द्रीय पात्र कोई और है ... और वो जो कोई भी है वो विक्टिम भी हो सकता है या विलेन भी | हो सकता है वो इन सभी बातों से अनजान हो .. या हो सकता है की ये सब कुछ उसी के इशारों पर हो रहा हो |
इतनी सारी बातों का दिमाग में बार बार चलने के कारण सिर भारी सा होने लगा | अंतिम कश ख़त्म कर बची खुची कॉफ़ी गटक गया | अपने रूम में जा कर आराम करने का विचार आ ही रहा था कि तभी देखा, घर से दूर.. सड़क के मोड़ वाले जगह पर एक टैक्सी आ कर रुकी... कुछ देर... तकरीबन छह सात मिनट... या शायद दस मिनट तक टैक्सी वैसी ही खड़ी रही... आस पास थोड़ा अँधेरा हो चुका था और शायद टैक्सी के शीशे पर भी काली फिल्म चढ़ाई हुई थी.. | इसलिए बहुत साफ़ कुछ भी नहीं दिख रहा था | जल्द ही पीछे का दरवाज़ा खुला और और उसमें से एक महिला निकली... हाथ में एक मीडियम साइज़ का बैग लिए... | निकलने के बाद दरवाज़ा लगाई और झुक कर अन्दर बैठे किसी से बातें करने लगी | करीब दस और मिनट और बीत गया.. | टैक्सी आगे बढ़ी और फिर टर्न हो कर जिस रास्ते से आई थी.. उसी रास्ते से वापस चली गई | न अनजाने क्या मन हुआ जो मैंने खुद को एक कोने में खड़ा कर छुप गया पर नज़र बराबर सड़क पर ही थी मेरी | वो औरत धीरे धीरे चलते हुए हमारे ही घर के तरफ़ आ रही थी | कुछ करीब आते ही मैं पहचान गया उसे... वो चाची थी ! पर.. पर.. ये क्या... इनकी ड्रेस तो बदली सी है.. | सुबह जैसा देखा था अभी उसके एकदम उलट ... !
वेल्वेट मिक्स्ड डीप ब्लू रंग की साड़ी और मैचिंग ब्लाउज में बिल्कुल किसी घरेलू गृहिणी जैसी ... पर साथ ही अत्यंत सुन्दर एक अप्सरा सी लग रही थी | सड़कों के दोनों तरफ़ लगे बिजली के खंभों पर लगे बल्बों से आती सफ़ेद रोशनी से नहाई चाची की ख़ूबसूरती को जैसे पंख लग गए हो | साड़ी को अच्छे से लपेटे, चेहरे पर थकान का बोझ लिए चाची गेट तक पहुँच गई थी... इसलिए मैं भी जल्दी से नीचे चला गया... दरवाज़ा खोलने |
---------------------
तीन घंटे बाद,
चाची अपने रूम में है... और मैं अपने रूम में.. कुछ देर पहले फ़ोन आया था चाचा का .. आज आने में लेट होगा उनको.. ग्यारह बजे तक आयेंगे .. मुझे खाने का मूड नहीं था और चाची तो चाचा के आने बाद ही खाएँगी | बिस्तर पर लेटे लेटे पूरे दिन के घटनाक्रमों के बारे में सोच रहा था ... ‘माल की डिलीवरी.. ‘एक्सचेंज’... ‘डेमो’, ‘कोड’.... ये सब जितना सोचता उतना ही मेरे सिर पर किसी हथोरे की तरह चोट करते | बिस्तर पर से उठा.. पास के टेबल से बोतल उठाई और पूरा पानी गटक गया | पानी खत्म करते ही सिगरेट की तलब हो आई.. टेबल के दराज से ‘किंग साइज़’ और लाइटर निकाला और चल दिया ऊपर छत की तरफ़ .. कुछ कदम अभी चढ़ा ही था की सोचा एक बार चाची को बता दूं ..की ‘मैं छत पर जा रहा हूँ कोई काम होगा तो बुला लेना’ | साथ ही मुझे ये भी पता चल जाएगा की चाची अभी क्या कर रही है...
कोई पदचाप किये बिना मैं धीरे धीरे उनकी रूम की तरफ़ बढ़ा | दरवाज़ा पूरी तरह लगा नहीं था... हल्का सा सटा कर रखा गया था .. मैंने दरवाज़े को हल्का सा खोल कर अन्दर झाँका.. और झांकते ही आँखें चौड़ी हो गई..
चाची अन्दर अपने बदन पर सिर्फ़ एक टॉवल लपेटे आदमकद आइने (ड्रेसिंग टेबल) के सामने खड़ी थी | टॉवल भी सिर्फ़ उनके गांड से थोड़ी सी नीचे ही थी... बाकी सब साफ़ दिख रहा था .. चाची दूसरे टॉवल से अपने गीले बाल पोंछ रही थी और आईने में खुद को निहारते हुए मंद मंद मुस्कुरा रही थी | लगता है अभी अभी नहा कर निकली है |
पूरा बदन चमक सा रहा था.. ख़ास कर उनका चेहरा.. काली आँखें, धनुषाकार आई ब्रो, लाल लिप्स, और उसपे भी रह रह कर आँखों और चेहरे पर गिर आते बालों के लट.. उन्हें और भी सम्मोहक और किसी काम मूर्ति की भाँती बना रही थी | कसम से, आज पहली बार उनको देख कर मन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे.. और वो सभी नेक ख्याल नहीं थे इस बात का प्रमाण मेरे बरमुडा में उभर आया तम्बू साफ़ दे रहा था | बाल पोंछ कर चाची कमरे के दूसरी तरफ़ चली गई | मैं वहीँ अपने यथास्थान पर खड़ा रहा | मन और लंड अभी बहुत कुछ देखना चाहते थे शायद.. खैर, थोड़ी ही देर में चाची फिर से आईने के सामने आई ...औ..औरर... और.. जो मैंने देखा वो देखकर मुझे अपने आँखों पर यकीं ही नहीं हो रहा था !!
चाची एक अजीब सी .. अलग ही सी ड्रेस में आईने के सामने खड़ी थी.. ये कहने में कोई भूल नहीं होगी की उस ड्रेस ने चाची की यौवन को जितना निखार कर सामने लाने का बढ़िया काम कर रही थी उतना ही मेरे अन्दर काम ज्वाला को धधकाने में भी कर रही थी | किसी छोटे बच्ची की स्कर्ट जैसी लग रही थी ... अंतर सिर्फ़ इतना है की कन्धों पर पूरे कपड़े होने के बजाए वहां सिर्फ एक एक धागे की डोरी जैसी थी जो नीचे उतरता हुआ उनके स्तनों के पास छोटे और तंग कप्स जैसे बन गए थे जो उनकी चूचियों को बड़ी ही खूबसूरती से ऊपर की ओर धकेल रही थी और नतीजतन, दोनों चूचियों के बहुत सा भाग सफ़ेद सा होकर ऊपर उठा हुआ दिख रहा था और दोनों के इस तरह से आपस में सट कर लगे होने से दोनों के बीच की गहरी घाटी (क्लीवेज) भी बहुत ही उत्तेजक रूप से सामने प्रदर्शित हो रही थी | चाची खुद को निहारती, मुस्कराती हुई, अपनी ही खूबसूरती पर मंत्रमुग्ध होती हुई अपने बदन पर क्रीम/ लोशन लगा रही थी | अपनी ही चाची के उस अर्धनग्न; यौवन से भरपूर रूप लावण्य के सौन्दर्य में मैं अपनी सुध-बुध खोता सा चला जा रहा था |
क्रीम/लोशन लगाने के बाद चाची फिर पलटी और कमरे के दुसरे तरफ़ चली गई.. स्टील वाली आलमारी खुलने की आवाज़ आई ... फिर बंद होने की... थोड़ी सी खटपट और चूड़ियों की छन छन की आवाज़ आई ... दो मिनट बाद ही चाची फिर से आईने के सामने आई... इसबार अपने ऊपर एक नाईट गाउन जिसे अक्सर, अंग्रेजी में रोब (Robe) भी कहते हैं, ली हुई थी...|
शिट..!! नयनाभिराम दृश्य का बहुत जल्दी अंत हो गया !.. मन दुखी हो गया.. लंड की बात छोड़ देता हूँ फिलहाल के लिए... अब तो कुछ भी नहीं दिख रहा था | दुखी मन से चाची को अच्छे से देखा... सब ढका हुआ था सही पर नितम्ब और वक्षों के आस पास का क्षेत्र पूरे गर्व के साथ उठे हुए से थे | थोड़ा और निहारता की तभी टेलीफ़ोन की घंटी सुनाई दी... दिमाग को एक झटका सा लगा.. वासना वाली सपनों की दुनिया से बाहर निकला...
पर अधिक सोचने का समय नहीं था अभी.. इसलिए जल्दी से भागा वहां से.. इस बात का पूरा ध्यान रखते हुए की मेरे से किसी तरह की कोई आवाज़ न हो जाए | अपने रूम के पास जा कर रुका और फिर दो मिनट रुक कर सीढ़ि से थोड़ा नीचे उतर कर नीचे बज रहे टेलीफोन पर नज़र रखा |
चाची आई और रिसीवर कानो से लगाईं.. थोड़ी ‘हूँ हाँ’ कर के बातचीत हुई... मेरे कान खड़े हो गए.. ये ज़रूर उन्ही लोगों का फ़ोन है.. मैं पूरे ध्यान से आगे की बातचीत सुनने के लिए तत्पर था कि तभी चाची की मखमली सी आवाज़ आई .. ‘अभय...! ओ अभय... देख किसका फ़ोन है.. तुझे ढूँढ रहा है ...!!’
अजीब था.. मेरा कोई भी परिचित नॉर्मली रात के टाइम फ़ोन नहीं करता.. सबको मना कर रखा था मैंने.. कोई तभी फ़ोन करता था मुझे जब कुछ बहुत बहुत ही अर्जेंट हो और कल पर टाला ना जा सके |
“कौन है .. चाची?” मैं सीढ़ियों से उतरते हुए पूछा |
“पता नहीं.. पहले तो बोला की मिस्टर एक्स है... फिर कहने लगा की उसे कहिये मिस्टर है.. उससे बात करना चाहता है..|” चाची ने थोड़ी बेफिक्री से कहा.. | ये कोई बम सा मेरे सिर पर गिरा | मिस्टर एक्स ?!! अब ये कौन है भला.. ज़रूर मेरा ही कोई दोस्त मस्ती कर रहा होगा... ये सोचते हुए मैं आगे बढ़ा और बे मन से धीरे से कहा, “पता नहीं कौन है... मैं तो ऐसे किसी को नहीं जानता...|” कहते हुए मेरी नज़र चाची पर गई.. वो मुझे ही देखे जा रही थी और संदेहयुक्त नज़रों से मेरी ओर देखते हुए, शरारती मुस्कान लिए फ़ोन का रिसीवर मेरी ओर बढाते हुए बोली, “हाँ जी.. आप तो किसी को नहीं जानते.. बस किसी ने ऐसे ही फ़ोन घूमा दिया और आपको पूछने लगा... भई हम कौन होते हैं ये पूछने वाले की कौन है,क्या चाहता है .... या क्या चाहती है...?” “चाहती है” कहते हुए आँखों में चमक लिए, चाची के चेहरे पर शर्म की लालिमा छा गई और साथ ही होंठों पर शरारती मुस्कान और गहरी होती चली गई | मैंने इशारे में बताने की कोशिश की कि ‘सच में.. मैं किसी को नहीं जानता..|’ पर चाची ने ध्यान न देकर रिसीवर मुझे थमा कर अपने कमरे की ओर चल पड़ी | पीछे से उनकी उभरी हुई सुडोल गांड देख कर मन एक बार फिर मचल सा गया | चाची... को पीछे से मंत्रमुग्ध सा देखता हुआ रिसीवर कानों से लगा कर माउथपीस में अनमने भाव से कहा, “हेलो, कौन....?”
उधर से आवाज़ आई, “हेलो अभय... मिस्टर एक्स बोल रहा हूँ |”
क्रमशः
*************************************
|