RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग १७)
अगले कुछ दिनों तक मैंने कोई जासूसी नहीं की क्योंकि मुझे कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं दिखी | मैंने सोचा की शायद अब चाची का कोई काम नहीं रह गया है | शायद उन लोगों का मन भर गया है चाची से | पर जल्दी ही मेरा यह भ्रम टूट गया | वो कहते हैं ना कि पाप और अपराध का दलदल, शुरू में एक हरा भरा खुशबूदार मैदान/ बगीचा सा लगता है जहां जब चाहो, जैसे चाहो, घूम फिर सकते हो, टहल सकते हो पर जब तक असल सच्चाई का पता लगता है; उस दलदल में सिवाय डूबने के और कोई रास्ता नहीं रह जाता है |
रोज़ की तरह, एक शाम को छत पर टहलते हुए मैंने देखा की चाची दूर रास्ते से पैदल चलती हुई आ रही है और उनके कंधे से एक बैग भी लटक रहा है ; बैग भी शायद कुछ भारी सा रहा होगा, इसलिए चाची के चेहरे से परेशानी छलक रही थी .... चूँकि कुछ दिनों से बिल्कुल भी कोई संदिग्ध गतिविधि नहीं हुई थी, इसलिए मैंने भी कोई खास ध्यान नहीं दिया और वापस अपने सिगरेट के कश लेने और कॉफ़ी की चुस्कियाँ पर ध्यान केन्द्रित करने की सोचने लगा..... |
पर इसी तरह मैंने चाची को लगातार अगले चार दिनों तक बैग लिए आते देखा | मेरा जासूस मन फिर से हिलोरें मारने लगा --- कुछ ख़ास शक तो नहीं पर मन में बस ऐसे ही एक इच्छा हुई की
‘ ये चाची रोज़ बैग में कुछ लाती है, न जाने क्या होगा अन्दर? मुझे देखना चाहिए | ’
यही सोच कर मैंने अगले दिन के शुरुआत से ही चाची पर नज़र रखनी शुरू कर दी ... नोटिस किया की चाची अपने घर के कामों को करते हुए बीच बीच में रुक जाती और बड़ी ही परेशानी में दोनों हाथों की मुट्ठियों को आपस में भींच कर रगड़ती और फिर थोड़ी देर में दोनों हाथों की अंगुलिओं को आपस में रगड़ते खुजलाते, वो बैठ जाती और जैसे किसी गहन सोच में डूब जाती |
चेहरे पर रह रह कर उभर आती चिंता की लकीरें साफ़ इशारा करतीं की वो किसी ऐसे सोच में डूबी है जिसके बारे में वो सोचना तो नहीं चाहती पर बिना सोचे कोई उपाय भी नहीं है | फिर अचानक से सिर को झटक कर खड़ी हो जाती और अपने पल्लू से अपना चेहरा पोंछती हुई काम पर लग जाती |
कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि, वह अपने पल्लू के बिल्कुल निचले सिरे को किनारे से पकड़ कर अपने ऊँगली पर गोल गोल लपेटते हुए दूर कहीं देखते हुए किसी बहुत ही ज़बरदस्त सोच में डूब जाती और ऐसा डूबती कि कई बार तो उनको होश भी नहीं रहता की कब उनका पल्लू उनके दाएँ चूची को अनावरित करता हुआ बिल्कुल साइड में सरक गया है और कई बार तो उनका पल्लू ही पूरा का पूरा चूचियों पर से हट कर नीचे गिर चुका होता है ---
पर वो अपनी ही सोच में मगन रहती थी --- ब्लाउज के बिल्कुल बीचों-बीच से होकर सामने नज़र आता उनका पांच इंच का हेल्दी क्लीवेज और दोनों तरफ़ के ब्लाउज कप्स से ऊपर उठ कर झाँकते उनके हृष्ट पुष्ठ चूचियों के ऊपरी गोरे गोरे सुडोल उभारों को देखकर, बरमुडा के अन्दर कड़ा होकर खड़े-हाँफते मेरे लंड में एक ऐँठन सी पैदा होने लगती .... लंड भी शायद मुझे कोसते गाली देते हुए कहा होगा की, ‘साले, अब तो झड़ ले |’ पर सच कहूं तो मैंने सोच ही रखा था अपने दिमाग के किसी कोने में की जिस दिन झडूंगा, चाची के अन्दर ही झडूंगा |’
एक दिन चाची, चाचा के ऑफिस जाते ही नहाने चली गई और करीब चालीस-पैंतालीस मिनट बाद अच्छे से तैयार हो कर, मुझे दरवाज़ा अच्छे से लगा लेने और ठीक समय पर खाना खा लेने की हिदायत दे कर एक बैग उठा कर चली गई | पूछने पर सिर्फ़ इतना ही बोली कि, ‘ज़रूरी काम है.. शाम को ही आ पाऊँगी |’ अब तो मेरा शक और गहराया |
शक का बीज तो पहले ही बो गया था; अब चाची के इन बातों ने उस बीज को आवश्यक खाद-पानी भी दे गया | थोड़ी देर कुछ सोचा और फिर रोज़ की तरह अपने काम में लग गया | शाम को चाची उसी तरह एक बैग कंधे पर लिए घर आई और तुरंत अपने कमरे में घुस गई | उनकी चाल में भी कुछ परिवर्तन सा लग रहा था .... शायद लंगड़ा रही थी... दर्द से हल्का कराह भी रही थी --- मैं बिना कुछ बोले अगले दिन का इंतज़ार करने लगा |
अगले दिन चाचा के ऑफिस के लिए निकलते ही, आधे घंटे के बाद चाची नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में घुसी, मैं उनके कमरे में घुस गया और उस बैग को ढूँढने लगा | बैग का रंग ब्लैक और ग्रे के बीच का था | जिधर भी नज़र दौड़ा सकता था और जो भी उलट पुलट कर देख सकता था, मैंने सब देखा और किया पर कुछ हाथ नहीं लगा | मायूस होकर मैं लौटने ही वाला था कि मेरा नज़र एक बार के लिए पलंग पर गया और मैं झट से झुक कर पलंग के नीचे देखा ---
एक बैग नज़र आया !!
वह बैग मुझे पलंग के नीचे सिरहाने की ओर मिला --- मैंने बैग को काफ़ी सावधानी से नीचे से निकाला और खोल कर देखने लगा ... अन्दर एक कपड़े रखने वाला प्लास्टिक था ... मोटा वाला प्लास्टिक ... प्लास्टिक को खोला तो देखा वाकई उसमें कपड़े रखे थे ; पर वो साड़ी नहीं थी --- कपड़े को निकाल कर मैं देखना चाहता था पर मन हिचकिचा रहा था --- पर अगले दो मिनट में ही मेरी उत्सुकता ने मेरे मन पर विजय पाया और मैंने कपड़े बाहर निकालकर देखा और देखते ही मेरी आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई | वो कपड़े दरअसल, स्लीवलेस टॉप, (जोकि सामने से बहुत डीप नेक वाला था) और मैक्रो मिनी स्कर्ट थे !!!
क्रमशः
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