RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २०)
अगले दिन,
पूरा दिन संदेह, संशय और घबराहट के बादलों के बीच बीता ......
शरीर का रोम रोम अत्यंत रोमांच से भरा हुआ रहा ....
आज जिस तरह का जासूसी मैं करने वाला था, वो पहले कभी नहीं किया था मैंने .....
पहली बार ऐसे किसी प्लान का हिस्सा बन कर बड़ा ही अजीब वाला ख़ुशी मिल रहा था ....
दिल ज़ोरों से धड़के जा रहा था और मन बार बार कई तरह के आशंकाओं से भरे जा रहा था --- चाचा के ऑफिस निकल जाने के बाद चाची थोड़ी देर के लिए मार्किट के लिए निकली थी , जब आई तब उनके हाथ में कुछ प्लास्टिक बैग्स थे --- मैंने ध्यान नहीं देने का नाटक किया और अपने काम में लगे रहा ; पर चाची के नहाने के लिए बाथरूम घुसते ही मैं दौड़ कर उनके कमरे में गया और उन बैग्स को चेक किया | सब में तरह तरह के कपड़े थे,.... किसी में टॉप नुमा तो किसी में नई साड़ी ब्लाउज, इत्यादि --- | मेरे मतलब का कुछ खास नहीं मिलने पर मैं चुपचाप उनके कमरे से निकल आया | पूरा दिन हम दोनों का किसी न किसी काम में व्यस्त रहते हुए बीत गया | बीच बीच में रह रह कर चाची के चेहरे पर चिंता की कुछ लकीरें उभर आती थीं पर साथ ही उन्हें किसी बात को लेकर बहुत कन्फर्म भी दिखाई दे रहा था | दोपहर में चाचा को उनके ऑफिस फ़ोन कर अपने किसी सहेली के यहाँ जाने का बहाना कर दी, ये भी कहा की उन्हें शायद पूरी रात अपनी सहेली के यहाँ ही बीतनी पड़े; इसलिए वो (चाचा) कोई चिंता नहीं करे |
शाम पाँच बजे से ही तैयार होने लगी चाची ....
मेरे पूछने पर भी उन्होंने वही सब कुछ दोहराया जो उन्होंने चाचा को सुनाया था ....
ठीक ठाक ही मेकअप किया उन्होंने --- एक अच्छी सी साड़ी पहनी , बढ़िया परफ्यूम लगाया --- वक्ष: स्थल पर नज़र डालने पर ऐसा प्रतीत होता था कि शायद उन्होंने आज अन्दर एक पुश-अप ब्रा पहना है | देखने में बहुत हसीं लग रही थी .... ठीक सवा छ: बजे वो घर से निकल गई | मैंने छत पर से देखा, घर से दूर, वह ठीक मोड़ वाले वाले रास्ते को क्रॉस कर एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई | मुश्किल से पाँच मिनट हुए होंगे कि एक काली वैन आ कर रुकी चाची के सामने और चाची के उसमें सवार होते ही वो वैन चल पड़ी |
अब तैयार होने की बारी मेरी थी ....
मैंने उस कागज़ में लिखे बातों को एक बार फिर से पढ़ा और तय किये गए समय के मुताबिक घर से निकल गया ठीक पौने सात बजे | मैं भी उसी मोड़ वाले रास्ते को पार कर रोड के दूसरी तरफ़ खड़ा हो गया | कुछ सेकंड्स में ही वही वैन (पहले वाले दिन) आकर रुकी --- मैं उसमें सवार हो गया --- घर से वही बैग लेकर निकला था --- गाड़ी में बैठे बैठे ही मैंने वेटर वाले कपड़े पहन लिए और दूसरे कपड़े को उसी बैग में रख कर सीट के नीचे रख दिया --- चेहरे पर कुछ मेकअप पोता और एक घनी पर पतली मूंछ लगाया और थोड़ी बड़ी हुयी नकली दाढ़ी भी | इसके बाद मैंने अपना हेयर स्टाइल भी बदला .... अब मेरा हुलिया बिल्कुल बदल गया ... कोई माई का लाल मुझे पहचान पाने में सक्षम नहीं था --- |
अब इंतज़ार था असल एक्शन का |
कुछ ही देर में होटल के सामने था |
गाड़ी कुछ दूरी पर रुकी थी ...
मैं वैन से उतर कर मन ही मन भगवान को याद करता हुआ पूरे आत्म-विश्वास के साथ होटल की ओर बढ़ गया --- कागज़ में लिखे मुताबिक मेरे ब्लेजर के अंदरूनी पॉकेट में एक कागज़ सा टोकन होगा --- उस टोकन को होटल के मुख्य द्वार पर खड़े दरवान को दिखा कर अन्दर घुसना था .... मैंने ऐसा ही किया --- दरबान ने टोकन देखते ही बड़े ही आदर से तुरंत ही गेट खोल कर हाथ सीधा कर अन्दर जाने का इशारा किया | अन्दर जा कर मैं सीधे ड्रिंक्स वाले काउंटर में चला गया | वहां नीली शर्ट पहने, आँखों में चश्मा लगाए एक आदमी ड्रिंक कर रहा था --- मैं उसके बगल में जाकर खड़ा हुआ और थोड़ा अदब के साथ सिर को झुकाते हुए बोला,
“एनीथिंग एल्स यू वुड लाइक टू हैव ........सर?” ‘सर’ शब्द पर मैंने एक खास लहजे से जोर डाला |
सुनते ही वह आदमी एकदम से मेरी ओर पलटा ओर ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखने के बाद हल्का सा मुस्कराया और अपने दायें हाथ की तर्जनी उंगली दिखाते हुए ‘ना’ का इशारा किया |
मैं समझ गया |
ये इशारा है....! मतलब की कोई खतरा नहीं... काम पर लग जाओ .... मैं तुरंत वहां ऑर्डर्स लेने लगा | एक से ढेर घंटे इसी तरह काम करता रहा | नौ बजने में कुछ मिनट्स बाकी होंगे ... की तभी एक आदमी ने एक ऊँचे से जगह से माइक के सहारे ये अनाऊंस किया कि, ‘अब कुछ ही देर में हमारे स्पेशल गेस्ट्स आने वाले हैं, प्लीज़ शांति बनाये रखें |’
थोड़ी देर में वहां बहुत से अमीर आदमियो का जमावड़ा लग गया | एक से एक स्मार्ट तो एक से एक भद्दे से शकल सूरत वाले लोग थे | जितने भी लड़के वेटर थे उन लोगों को कुछ समय के लिए काउंटर के साइड या पीछे तरफ़ खड़े होने को कहा गया | मैं किसी के नज़रों में आने से बचने के लिए सब के पीछे जा कर खड़ा हो गया | करीब दस मिनट बाद वहां बहुत सी लड़कियाँ और औरतें आ कर खड़ी हो गई और जो काम हम कर रहे थे, मतलब वेटर का वो काम अब वो लोग करने लगी --- सब के ड्रेस बहुत ही बेशर्मी से बहुत खुले खुले से थे --- किसी के शर्ट के बटन सारे खुले थे तो किसी ने बिना साड़ी पहने बड़े गले का ब्लाउज-पेटीकोट पहन रखे थे --- कई ऐसी भी लड़कियां थीं जो सिर्फ ब्रा-पैंटी में ही लोगो से ऑर्डर ले रही थीं ; पर मुझे इन सब में सभी कोई रूचि नहीं थी ... मेरी आँखें बेसब्री से चाची को ढूँढ रही थी ..... बैकग्राउंड में गाना बज रहा था, ‘रात बाकी, बात बाकी ... होना है जो... हो जाने दो...’ कुछ लडकियां और औरतें नाचते हुए उन अमीर लोगों के पास जाती है और उनको पकड़ कर डांस फ्लोर पर ले गई | थोड़ी देर के डांस के बाद उनके हाथ पकड़ कर सीढ़ियों से ऊपर ले जाने लगी | बगल वाले एक वेटर से पता चला की आज रात ये लडकियां और औरतें इन्हीं अमीरजादो के बिस्तर गर्म करेंगी --- इन अमीरजादों में कई विदेश में बसे दो नंबर का धंधा करने वाले बड़े बिजनेसमैन या फिर गैंगस्टर्स हैं | यहाँ इस होटल में जब मन करे आ जा सकते हैं .... किसी न किसी पुख्ता कारण से पुलिस भी इनपर हाथ नहीं डालती है |
मैं अभी इन सभी बातों को सुन ही रहा था की मेरी नज़र सीढ़ियों पर चढ़ते एक आदमी और एक औरत पर ठहर गई | आदमी कोई शेख़ सा लगा | मैंने औरत पर गौर किया और ऐसा करते ही दिमाग घूम गया मेरा ... वो औरत और कोई नहीं, मेरी चाची ही थी ...! और...और..ये क्या ड्रेस में?? एक सफ़ेद शर्ट जिसके बटन सारे खुले थे और शर्ट के निचले दोनों सिरे आपस में एक गाँठ देकर बंधे हुए थे ... पेट और कमर का थोड़ा सा हिस्सा दिख रहा था .... कमर पर उन्होंने एक मैक्रो मिनी स्कर्ट भी पहन रखा था ... पक्की स्लट लग रही थी |
मैं सबकी नज़र बचाते हुए फ़ौरन उनके पीछे पीछे सीढ़ियों पर चढ़ने लगा ...
काफ़ी लम्बी और घुमावदार सीढ़ी थी --- सीढ़ियों के ख़त्म होते ही एक लम्बा सा कॉरिडोर शुरू हुआ जिसके दोनों तरफ़ कमरे थे --- थोड़ी चहल पहल भी थी ... | बहुत सावधानी से चाची के पीछे पीछे चलते हुए, दूसरे लोगों को हाई हेल्लो करता हुआ आगे बढ़ रह था मैं --- इस पूरे दौरान वह आदमी कभी चाची को चूमने की कोशिश करता तो कभी उनके पिछवाड़े पर अपना दायाँ हाथ रख कर हलके से मसल देता --- उसके हरेक बेहूदी हरकत को चाची हँस कर टालने की कोशिश कर रही थी | थोड़ी ही देर में दोनों एक कमरे एक आगे आ कर रुके ... चाची ने उस आदमी की ओर बड़ी कामुक मुस्कान देते हुए अपनी क्लीवेज की गहराइयों में दो ऊँगली डाली और एक चाबी निकाल ली और फ़िर उसी चाबी से उस कमरे का दरवाज़ा खोल कर उसमें घुस गई .... वह आदमी भी चाची के पीछे पीछे अन्दर घुसा और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर दिया --- उस कमरे के दरवाज़े के आगे पहुँच कर मैं बड़ी आतुरता से इधर उधर देखने लगा | मुझे कमरे के अन्दर होने वाली हरेक गतिविधि के बारे में जानना था और इसके लिए मेरा, उस कमरे के अन्दर देख पाने के लिए सक्षम हो पाना अत्यंत आवश्यक था --- अधिक समय नहीं लगा --- एक चीज़ पर नज़र पड़ते ही आँखें चमक उठी मेरी |
कमरे में एक सॉफ्ट इंस्ट्रुमेंटल थीम सोंग बज रहा है और चाची अपनी सेक्सी अदाओं से एक शेख़ टाइप के आदमी को रिझाने का प्रयास कर रही है ...
शेख़ एक बड़े से आरामदायक सोफ़े पर बैठ कर एक हाथ में ड्रिंक का ग्लास और दूसरे में सिगार लिए चाची के भरे जिस्म के हरेक कटाव को बड़े चाव और खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था .... |
चाची अलग अलग नृत्य मुद्राएँ दिखाते हुए थोड़े देर में उस शेख़ के करीब आई और थोड़ा सा आगे झुक कर शेख़ को अपने हृष्ट क्लीवेज का दीदार कराते हुए, अपने पेट पर बंधी शर्ट की गाँठ खोल कर धीरे धीरे अपने जिस्म से अलग कर एक ओर उछाल दी | चाची के गोरे से शरीर पर अब केवल एक छोटी साइज़ की ब्रा और कमर पर भी एक छोटी साइज़ की पैंटी रह गई थी जो ढकने से ज़्यादा दिखाने का काम अधिक कर रही थी ... चाची के जिस्म के ऊपरी हिस्से में रह गई छोटी काली रंग की ब्रा भी कुछ ऐसी थी कि उनमें उनके यौवन के भारी दो कबूतर (चुचियाँ) समा नहीं पा रहे थे | मध्य आयु का शेख़ आँखें फाड़े चाची के अर्ध नग्न जिस्म को मानो आँखों से ही निगल जाने के लिए बुरी तरह बेताब हो चुका था ... साला वो खूंसट सा शेख़, काली ब्रा की सीमाओं को तोड़कर खुले में उड़ पड़ने को तैयार ब्रा कप्स में कैद उन दो सफ़ेद से कबूतरों को ललचाई नज़रों से देख देख कर अपने होंठों पर हवसी पागलों जैसे जीभ फिराने लगा ... उस कमीने की हालत ऐसी थी जैसे वो खुद बहुत मैच्यौर किस्म का हो जिसे ऐसे बातों से जल्दी फर्क नहीं पड़ता ... पर सच्चाई तो यह थी की लाख कोशिश करने के बावजूद भी वो खुद को चाची के भरे यौवन के मोहपाश से छुड़ा नहीं पा रहा था | वो अपनी आँखें चाची के जिस्म के दूसरे जगहों पर देना चाहता था पर ब्रा कप्स में कैद उन्नत यौवन उसे ऐसा करने की हरगिज़ कोई इजाज़त नहीं दे रहे थे |
चाची की चमकदार आँखों में खूबसूरती से लगे काले रंग की मसकरा (काजल) रह रह कर उस आदमी को जैसे अपनी ओर दौड़ कर आने का खुला निमंत्रण दे रही थी ; लाल लिपस्टिक से पुते उनके होंठ तो जैसे उस आदमी को मार देने का सुपारी लिए थी... |
चाची की बीच बीच में लचकाती – बलखाती कमर शेख़ के दिल के धड़कन को बार बार कई गुना अधिक बढ़ा दे रही थी और सच कहूं तो मैं भी चाची के इस कातिलाना रूप के मोहपाश से अछूता नहीं रह गया था |
उस चोर खिड़की से देखते देखते न जाने कब मेरा एक हाथ पैंट के ऊपर से अपने हथियार को रगड़ने लगा था ; और मेरा हथियार कोई ऐसा वैसा हथियार न होकर एक जहरीले नाग में बदल चुका था जिसे मानो अब सांस लेने बहुत दिक्कत हो रही थी और अब वह किसी भी तरह कैद से आज़ाद हो कर ; बाहर आ कर अपना कहर बरपाना चाहता था | वह शेख़ अपने सिगार के कश लगाना और ग्लास में बची खुची ड्रिंक को ख़त्म करने के बारे में कब का भूल चुका था ... वह मंत्रमुग्ध सा एकटक चाची के हरेक कमसिन हरकत को देख रहा था | चाची को उसे अपनी तरफ़ यों देखते हुए शायद बहुत अच्छा लगा था क्योंकि उस शेख़ को देखते हुए वो भी अब हलकी हलकी विजयी मुद्रा वाली स्माइल देने लगी | शेख़ की हालत देख कर वो समझ चुकी है की शेख़ अब और कुछ भी ज़्यादा सोचने समझने की शक्ति को खो चुका है और यही बात शायद चाची को एक गर्व से परिपूर्ण मुस्कराहट देने के लिए विवश कर रहा था | चाची के चेहरे पर ऐसे गर्वित भाव और मुस्कान मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था |
वो शेख़ अपनी सुध बुध खो चुका था इसलिए वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा है --- वह पूरी तरह से चाची के रूप यौवन के समुंदर में डूब चुका था --- चाची शायद इसी पल के इंतज़ार में थी --- वह इठलाती-बलखाती अपने नाज़ुक पैरों को सामने की ओर आरी तिरछी रखते हुए उस शेख़ के पास आई और आकर आँखों और चेहरे में कामुकता लिए उस शेख़ के आँखों में आँखें डाल कर देखने लगी मानो कह रही हो कि ‘क्या मैं ही सब करुँगी, तुम कुछ नहीं करोगे?’ ..... | वह आदमी चुपचाप एकटक चाची को देखता रहा ... | चाची ने उसके दोनों हाथों से सिगार और ग्लास लेकर बगल के टेबल पर रखा और फिर दोनों हाथ पकड़ कर सहारा देते हुए उस आदमी को उठाई --- वह आदमी चुपचाप उठ कर चाची को देखे ही जा रहा था, ऊपर से नीचे, वक्षों की गोलाईयाँ, कमर का कटाव, हृष्ट पुष्ट पिंडलियाँ, सुंदर गोरे तराशे हुए पैर .... सबको को निगल जाने वाली नज़रों से देख रहा था .... ऐसा लग रहा है मानो उसके होंठों के एक किनारे से लार की एक पतली सी धार बह रही है | चाची को इतने पास पाकर अब तो जैसे उसके सब्र का बांध टूट ही गया --- बरबस ही उसके हाथ चाची के जिस्म के चारों ओर लिपट गये | साथ ही चाची को खिंच कर अपने जिस्म से कस कर सटा लिया --- चाची के सिर को किस करने के बाद हलके से दोनों गालों को चुमा और फिर बड़े प्यार से चाची के होंठों से अपने होंठों को रगड़ने लगा .... |
कुछ मिनट प्यार से होंठों से होंठों को रगड़ते हुए अपने दोनों हाथों को पीछे ले जा कर चाची की गदराई पीठ का मसल मसल कर आनंद लेने लगा और फ़िर अपने जीभ को थोड़ा सा निकाल कर चाची के होंठों पर चलाने लगा | कुछ सेकंड्स में ही चाची ने आँख बंद करते हुए अपने होंठों को खोल दिया और उनके ऐसा करते ही उस आदमी की जीभ चाची के मुँह में घुस गई --- जीभ को कुछ देर तक अन्दर घुसाए चाची के पूरे मुँह का जाएजा लेता रहा | फ़िर अचानक से ही जीभ निकाल कर चाची की ओर कातर दृष्टि से देखने लगा मानो किसी बात की विनती कर रहा हो | चाची ने भी जैसे अपने मदहोश कर देने वाले नैनों से उसे उसकी मौन विनती की स्वीकृति दे दी और साथ ही अपनी नंगी कलाइयाँ उस आदमी के गले में हार बना कर रख दी |
और ऐसा होते ही दोनों एक दूसरे पर टूट से पड़े --- दोनों एक दूसरे को अपने बहुत पास खिंच कर चुम्बनों की जैसे वर्षा ही कर दी ... अधिक समय नहीं लगा दोनों के जीभ एक दूसरे के अन्दर जाने में .... अब तो दोनों ही बहुत उत्तेजित नज़र आने लगे थे | दोनों ही को अब अपने आस पास की कोई सुध बुध ना रही --- मिस्टर एक्स के कहे मुताबिक चाची वाकई में एक बहुत ही बेहतरीन मेहमान नवाजी कर रही है .. ! अपने काम को बखूबी करना कोई चाची से सीखे ! देख कर लग ही नहीं रहा है कि वो ये सब किसी मजबूरी से कर रही है ... चाची के इस रूप को देख कर अब तो मैं भी उनका दीवाना सा बन कर रह गया --- और विशेषकर उनके कामेच्छा से भरी काम क्रियाओं ने उनके प्रति मेरी कामासक्ति को और कई गुना अधिक से अधिक बढ़ा दिया | इधर उस शेख़ ने अपने जीभ को अलग करके धीरे धीरे चाची के उन्नत वक्षों की ओर बढ़ा और दोनों उन्नत उभारों के बीच से सुस्पष्ट रूप से नज़र आने वाली घाटी अर्थात क्लीवेज के ऊपरी सिरे पर प्यार से एक किस किया | फ़िर थोड़ा रुक कर तीन – चार चुम्बन लिया उसी जगह पर और फ़िर खुद को और न रोक पाते हुए उसने अपने होंठ उस पांच इंच झांकती क्लीवेज में रख दिया और धीरे धीरे होंठों के साथ साथ पहले उसका नाक और फ़िर उसका आधा से थोड़ा ज़्यादा तक का मुँह उस क्लीवेज में समा गया और बड़े प्यार से, हौले हौले, दोनों चूचियों को दाबते हुए अपने चेहरे पर साइड से दबाव बढ़ाने लगा | ये शायद चाची के कामाग्नि में घी डालने जैसा ही था |
चाची के मुँह से ‘आह..उह्ह्ह...’ की सिसकारी छूट निकली ... वह अधेड़-सा शेख़ सा दिखने वाला आदमी लगातार अपने मुँह को क्लीवेज में घुसाए, चेहरे के दोनों ओर से चूचियों को दबा कर उनकी नरमी और गर्मी का एहसास किये जा रहा था और इधर चाची धीरे धीरे ही सही, पर भरपूर गरम हुए जा रही थी | इधर वो शेख़ क्लीवेज में मुँह घुसाए, ‘चुक..चुक’ सी आवाजें ऐसे निकाल रहा था जैसे मानो वो पूरे क्लीवेज का ही रसास्वादन चूस चूसकर कर लेना चाहता हो .... अपने रूखे हाथों से वह चाची की कोमल गदराई पीठ पर हाथ फिरा-फिरा कर उस पीठ का मस्ती से आनंद लेता हुआ ब्रा के हुक खोल दिया और फ़िर पागलों की तरह पूरे पीठ पर बेरोक-टोक हाथ घुमाने लगा | ब्रा स्ट्रैप्स को धीरे धीरे अलग करते हुए, गले को चाटते हुए, कोमल, स्मूथ कन्धों के ऊपर से नीचे सरकाने लगा --- चाची किसी भी तरह की कोई बाधा नहीं दी --- काले ब्रा स्ट्रैप्स आधे गोरी बाँहों तक आ गए थे --- ब्रा कप्स तो जैसे चाची के वक्षों से चिपक ही से गए हों --- हद से ज़्यादा, बहुत ही कमसिन लग रही थी चाची --- अभी तो पोर्न स्टार्स भी फ़ेल लग रहे थे चाची के सामने ... ब्रा स्ट्रैप्स को वैसे ही छोड़ वह आदमी फ़ौरन अपने दोनों हाथ चाची के कमर पर ले गया और वहां से सीधे उनके नितम्बों पर, पैंटी के ऊपर हाथ रख कर नितम्बों को ज़ोर से मसल कर दबाने लगा |
“आह्ह्ह्ह.....” चाची मारे दर्द के कराह उठी |
अभी मैं कुछ और देखता की तभी एक जोड़ी जूतों की आवाज़ आई .... मैं जल्दी से स्टूल से उतर कर, स्टूल को एक तरफ़ रख, बाथरूम में घुस कर दरवाज़ा लगा दिया .... वह जूतों का मालिक सधे क़दमों से चलता हुआ बाथरूम के बंद दरवाज़े के पास आ कर कुछ देर के लिए रुका ; और फिर आगे बढ़ गया --- मैं दरवाज़े से कान लगाए उसके कदमों के आहट को सुनता रहा --- धीरे धीरे उन कदमों की आवाज़ मंद होती चली गई .... जब आवाज़ आनी बिल्कुल बंद हो गई तब मैं धीरे से बाथरूम का दरवाज़ा खोला और बाहर आ गया ... चाची की काम क्रियाएँ देखने का समय नहीं था मेरे पास अभी ... मैं शीघ्रता से उस लम्बे कॉरिडोर में आगे बढ़ने लगा ... अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि एक रूम से आती कुछ आवाजें और सिगरेट के धुंए के गंध ने मुझे रूक जाने को विवश कर दिया ... मैं आहिस्ते से उस कमरे की ओर मुड़ा और अन्दर से बंद दरवाज़े के की-होल से अंदर देखने की चेष्टा करने लगा ... कुछ लोग अंदर बैठे सिगरेट के धुएं उड़ाते हुए, ग्लासों में जाम छलकाते हुए कहकहे लगा रहे थे | अधिकतर ने काले चश्में और कोट-टाई पहने हुए थे..... उनके चेयर के नीचे कुछ ब्रीफकेसेस भी रखे थे |
“हम्म्म्म.... ज़रूर यहाँ कोई सौदा हो रहा था, जोकि शायद अब सफ़ल हो गया है लगता है |” मैंने मन ही मन कहा .... |
अभी कुछ और देखता-सुनता या समझता ; तभी एक ज़ोरदार कोई चीज़ मेरे सिर के पीछे आ लगी और बिना एक सेकंड गवांए, मेरे आँखों के आगे धीरे धीरे अँधेरा छाने लगा और मैं वहीँ गिर कर बेहोश हो गया |
क्रमशः
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