Kamukta kahani अनौखा जाल
09-12-2020, 12:46 PM,
#26
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २३)

“आआह्हह्ह्ह्ह...आआऊऊऊउचचचचच.....कित.....कितना....ज़...ज़ो......ज़ोर स..सस..से करते ह...हो.... प..पागल हो क्या.....?!! आऊऊचचच... अररररे.... आह्ह:... धीरे दबाओ ....!!! ”

“आअह्ह्ह्ह...आआऊऊऊ....सससससआआआआ....सससससआआआ....आह्ह्ह्ह......!!” आवाजें अब भी आ रही थी और लगातार आ रही थी | रात के उस घनघोर अँधेरे और सन्नाटे में चाची की मदहोश और बेकरारी भरी आवाज़, माहौल को और अधिक रोमांटिक बना रही थी |

कमरे में उथल पुथल मची थी ...

नीले रंग का नाईट बल्ब जल रहा था ..

फलस्वरूप पूरे कमरे में नीला प्रकाश फैला था ...

बिस्तर पर भी...नीला प्रकाश ..

और उस नीले प्रकाश में नहाए, चाची यानि दीप्ति और अभय , दोनों एक दूसरे से चिपके, बारी बारी से पूरे बिस्तर पर एक दूसरे के ऊपर नीचे हो रहे थे |

और पागलों की तरह एक दूसरे पर चुम्बनों की बरसात कर रहे थे |

अंत में दोनों हांफते हुए थोड़ा स्थिर हुए और ऐसा होते ही दीप्ति अभय को बिस्तर पर लिटाये उसके कमर से थोड़ा नीचे होकर अपने दोनों घुटनों को अभय के शरीर के दोनों ओर रखते हुए बैठ गई | अपने नितम्बों का भार अभय के कमर से थोड़ा नीचे रखते हुए बहुत ही धीरे धीरे, इन ए वेरी इरोटिक वे, अपने कमर और नितम्बों को आगे पीछे करने लगी |

और दीप्ति के इस हरकत से अभय के कमर के नीचे का अंग धीरे धीरे सख्त होने लगा |

अंग के धीरे धीरे सख्त होने का अहसास दीप्ति को भी हुआ ; तभी तो वह अभय की ओर शरारत भरी नज़र से देखते हुए होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लिए अपने रोब (नाईट गाउन) के सामने के फ़ीतों को बड़ी सेक्सी तरीके से धीरे धीरे खोली और खोल कर सावधानी से गाउन के दोनों पल्लों को इस तरह से साइड किया जिससे की उसका वक्ष वाला हिस्सा तो ढका रहे पर नाभि और पूरा पेट सामने दृश्यमान हो जाए |

मैं तो इस दृश्य को अपलक देखता ही रह गया |

मुझे यों बेबस सा अपनी तरफ़ देखते हुए देख कर दीप्ति को सफ़लता के बाद मिलने वाली ख़ुशी का एहसास जैसा महसूस हुआ ; बड़े ही कामुक ढंग से मुस्कुराते हुए अपने दोनों हाथ अभय के नंगे सीने पर घुमाने लगी और फिर कुछ देर तक ऐसे ही घूमाते रहने के बाद अभय के दोनों हाथों को पहले अपने जांघों पर, फ़िर पेट पर और फिर धीरे धीरे अपनी चूचियों पर रखी | जांघों की गर्मी, पेट की नरमी और चूचियों की नरमी और गर्मी, इन सबने मिलकर मुझे मानो एक मोहपाश में जकड़ लिया हो |

नाईट गाउन के नीचे दीप्ति (चाची) ने ब्लाउज और पेटीकोट पहना था | नीली रोशनी में दोनों कपड़े एक ही लग रहे थे | अति उत्साह में अभय की साँसे कम होती जा रही थी | वह स्वयं पर नियंत्रण की हार्दिक प्रयास कर रहा था पर चाची की कमसीन देहयष्टि उसके हर प्रयासों को हर बार और बार बार विफल कर दे रही थी | अपनी चूचियों पर उसके हाथ रख कर दीप्ति अपने हाथो का दबाव उसके हाथों पर बढ़ा दी | ये एक संकेत था अभय के लिए, उसे एक्शन में आने का...

मैं, यानि कि अभय, नीचे लेटा लेटा, एक बार चूची को जोर से दबाता फिर अगले बार उसी चूची को धीरे और आराम से नीचे से पकड़ कर ऊपर की ओर उठाते हुए हलके प्रेशर देता और उस चूची के ऊपर उठने और दबने की प्रक्रिया को बड़े लालसा और चाव से देखता |

चाची अपने वक्षों पर मेरे ऐसे ज़ोर आजमाइश से अपने अन्दर उठते उत्तेजना की लहरों को रोक पाने में असमर्थ हो रही थी और हर बार अपनी किसी एक चूची के दबने पर आँखें बंद कर होंठों को दबाते हुए, “आअह्ह्ह्ह..उउमममममममम....” की आवाज़ निकालती | रह रह कर उनकी सिसकारी इतनी मादक हो उठती की मैं जोश में और जोर से उनकी चूची को दबा देता |

लगातार चूची को दबाते दबाते मैं कमर से ऊपर तक के हिस्से को थोड़ा उठाता हुआ चाची को अपनी ओर थोड़ा झुका कर उनके गालों पर किस करने लगा -- किस करते हुए चाची के गर्दन और कन्धों पर आता और वहां उस जगह को चुमते हुए चाटने लगता -- और फ़िर बहुत ही प्रेम से चाची के गालों को चुमते हुए उनके स्तनों को दाबने लगता --- गालों, कमर और वक्षों को सहलाते हुए उनके कंधों पर से गाउन को हौले से सरका दिया और जल्द ही शरीर से भी अलग कर दिया | चाची के कंधे पर के ब्लाउज के हिस्से को मैंने खिंच कर कंधे से थोड़ा नीचे किया और उस नग्न कंधे को पागलों की तरह चाटने लगा ...........|

मेरे लार लग जाने से कन्धा नीली रोशनी में चमकने सा लगा और ऐसी हालत में चाची बहुत ही जबरदस्त सेक्सी लग रही थी |

चाची ने अब अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को पकड़ा और अपनी ओर खींचते हुए मेरे मुँह को अपने वक्षों को बीच की घाटी में भर दी ..... मेरी सांस रुकने को हो आई पर साथ ही एक अत्यंत ही अदभुत सुखद अनुभूति भी हुई -- इतना आनंद आया की मैं तो लगभग जैसे आनंद के समुद्र में गोते लगाने लगा -- घाटी में मेरे मुँह के घुसने के कुछ सेकंड्स के बाद ही चाची की दिल की धड़कन बढ़ गई -- उनका सीना तेज़ गति से ऊपर नीचे होने लगा -- सीने के ऊपर नीचे होने के फलस्वरुप दोनों चूचियां मेरे दोनों तरफ़ के गालों से बड़ी नरमी से टकराते और मेरा मुँह और अधिक घुस जाता घाटी में ...

इतने नर्म मुलायम वक्षों की मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी ... चाची की तेज़ बढ़ी हुई धड़कन उनके उत्तेजना, कामुक भावनाएँ और वासना .. सब कुछ बयाँ कर दे रहे थे |

काफ़ी देर तक मेरे मुँह को अपने क्लीवेज में घुसाकर अप्रतिम सुख देने के बाद चाची ने एक झटके से मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और मेरी आँखों में झाँकी -- मैंने भी ऐसा ही किया -- बिल्कुल अन्दर झाँकने की कोशिश की उनके आँखों में -- वासना के अंदरूनी लहरों ने चाची की आँखों को सुर्ख लाल कर दिया था -- एक अजीब सी बेचैनी, खुमारी, जंगलीपन सा दिख रहा था उनके आँखों में उठते भावनाओं के साथ .. मैं देखता रहा उनकी आँखों में ;

और फिर ...
रुक रुक कर आगे बढ़ते हुए अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिया ... कुछ सेकंड्स वैसे ही रहे हम दोनों; मानो हमारे होंठ आपस में सट से गए हों -- अपने होंठों को वैसे ही रखते हुए मैं चाची के होंठों से अपने होंठ आहिस्ते से रगड़ने लगा और ऐसा मैं पूरी फीलिंग्स के साथ कर रहा था -- चाची चुपचाप बैठी मेरे कन्धों पर अपने दोनों हाथ रख कर इस कामक्रिया में पूर्ण सहयोग कर रही थी -- उनके हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि मानो उन्होंने स्वयं को सम्पूर्णत: मुझे समर्पित कर चुकी है .... --

मेरे द्वारा लगातार उनके अंगों पर इस तरह के छेड़छाड़ से चाची गर्म होने लगी और गहरी लम्बी साँसे लेने लगी ; अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दूसरे हाथ को मेरे सर के पीछे से ले जा कर अपनी मुट्ठी से मेरे बाल पकड़ कर मुझे अपनी तरफ़ झुकाने लगी ...

मुझसे भी रहा न गया और अपने दोनों हाथों से चाची को अपने आगोश में ले लिया और चाची की गदराई मांसल पीठ को दबोच दबोच कर मसलने लगा -- अपने जीभ को चाची के होंठों पर फिराने लगा .. कुछ देर ऐसे करते रहने से चाची इशारा समझ गई और उन्होंने अपने होंठों को थोड़ा खोला -- इतना मौका काफ़ी था मेरे लिए !

झट से अपना जीभ चाची के नर्म होंठों से होते हुए अन्दर घुसा दिया और उनके मुँह में अपने जीभ को इधर उधर घुमाने लगा | शायद चाची के लिए यह एक बिल्कुल ही नया अनुभव सा था ... |

थोड़ा कसमसा सी गई -- शायद ऐसी पोजीशन में इस तरह से लगातार एक के बाद एक कामक्रियाएं होने के कारण थोड़ा असहज महसूस कर रही थी -- उन्होंने एक बार के लिए खुद को थोड़ा अलग करना चाहा पर मेरे मजबूत गिरफ़्त से खुद को आज़ाद नहीं कर पाई |

अंततः हार कर वो मेरा साथ देने में ही समझदारी समझी .... इधर मैं अपने जीभ से उनके जीभ मिलाने में व्यस्त था | अब तो चाची भी अपना जीभ धीरे धीरे बाहर करने लगी -- उनके ऐसा करते ही मैंने उनके जीभ को अपने होंठों के गिरफ़्त में चूसना शुरू कर दिया |
कुछ ही सेकंड्स बाद पाला बदला और अब चाची मेरे जीभ को अपने होंठों में ले चूसने लगी ; दोनों के जीभो का परस्पर द्वंद्व या कहें खेल ऐसे ही चलता रहा | काफ़ी देर बाद दोनों एक झटके से एक दूसरे से अलग हुए और तेज़ लम्बी सांस लेने लगे .... -- दोनों ही बुरी तरह हांफ रहे थे -- |

कुछ देर तक लम्बे लंबे सांस लेने के बाद चाची मेरी ओर देख कर कुछ कहना चाही पर न जाने मुझे अचानक से क्या हुआ जो मैं उनको अपनी ओर खींचते हुए उनके होंठों को पागलों की तरह चूसने लगा | चाची होंठ चुसाई में मेरा साथ देने के अलावा और कुछ न कर पाई | होंठों को चूसते हुए इस बार मेरे हाथ भी एक्शन में आ गए और वो पूरी शिद्दत से दीप्ति (चाची) के नर्म चूचियों को दबाने में लग गए | चाची के होंठों को चूसते हुए ही मैंने उनके ब्लाउज को खोलना चाहा पर अति उत्तेजना के इस पड़ाव पर मेरे से उनके ब्लाउज के हूक्स खुल नही रहे थे | मेरे होंठों से अपने होंठ लगाए ही चाची ने थोड़ा सहयोग किया और अपने हाथ ब्लाउज हुक्स तक ले जा कर दो हुक खोल दिए ; पर मुझे तो सारे हुक खुले चाहिए थे, इसलिए मैंने भी हाथ लगाए और थोड़ी दिक्कत के बाद बचे सारे हुक भी खोल डाले | पर अभी भी काम पूरा नहीं हुआ.... क्योंकि एक अंतिम हुक बच गया था | झल्ला कर मैंने ब्लाउज के दोनों कप्स के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ा और एक झटका देते हुए अंतिम हुक को तोड़ डाला |

हूक्स के टूटते ही चाची, “ईईईईईईई” से चिल्लाते हुए अपने दोनों हाथो से अपने वक्ष स्थल को छुपाने लगी | मैंने फ़ौरन चाची के मुँह पर अपना हाथ रख कर उनकी आवाज़ को रोकने की कोशिश की | और दूसरे हाथ की एक ऊँगली अपने होंठों पर रखते हुए चाची को चुप रहने का इशारा किया | चाची मामले की नजाकत को भांपते हुए तुरंत चुप हो गई |

मैंने फिर आराम से चाची के हाथों को सहलाते हुए उनके वक्षस्थल से हटाते हुए उनके बीच की घाटी पर नज़र डाला .... आह्ह्हा ! क्या अद्भुत सुन्दर दृश्य था ! खुले हुए ब्लाउज के कप्स को किसी तरह वक्षों से लगाए रखने की असफल प्रयास करती चाची ब्रा में कैद अपने स्तनों को अधुरा ढक पा रही है और ऊपर के हुक खुले होने के कारण दोनों स्तनों की बीच की दरार और भी कामुक तरीके से बाहर की ओर दिखाई दे रही है -- दूसरे शब्दों में कहूं तो इस समय पूरे ब्लाउज की जो हालत है वह और भी आग भड़काने वाली है ... ऐसी ख़ामोश रात, कमरे में हम दोनों और दीप्ति डार्लिंग (चाची) की ऐसी हालत ..... सब कुछ मानो आग में घी डालने का काम कर रही है | पर फ़िलहाल तो उस मनोरम दृश्य के नयन सुख का घंटों आनंद लेने का फुर्सत मेरे पास नहीं था | मेरे तो पूरे दिलो दिमाग में दीप्ति अर्थात मेरी चाची के सम्पूर्ण नग्न स्वरुप का प्रत्यक्ष दिव्य दर्शन करने की व्याकुलता छाई हुई थी ... ---

पूरी नग्नता का दर्शन पाने का एक अजीब प्यास सी लगी थी |

ब्लाउज कप्स के दोनों सिरे अलग हो चुके थे और चाची के सुडोल पुष्टता भरे वक्ष अपने पूरी कामुक तृष्णा, मादकता और अपने सौंदर्य के अभिमान के साथ बाहर निकल कर गर्व से इठलाने लगे थे | मैं एक बार फिर कुछ पलों तक इस खूबसूरत अद्वितीय मास्टरपीस को देखता रहा | मुझे उनकी चूचियों को इस तरह से घूर कर देखने पर चाची हलके शर्म और गर्व के मिश्रित भाव लिए कनखियों से मुझे देख कर मुस्कराने लगी |

मैंने हाथ आगे बढ़ा कर दोनों चूचियों को अपने मुट्ठियों से पकड़ने ; उन्हें एक बार अच्छे से छू कर देखने की कोशिश की पर चाची की उन्नत चूचियां मेरे एक हाथ में ... एक हाथ में तो क्या ... दोनों हाथों में समाने से साफ़ इंकार कर दे रहे थे | पर आज चाची को इस तरह से पाकर मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी; इसलिए बिना झुंझलाए और बिना कुछ और सोचे मैंने हौले हौले से उनकी चूचियों को बहुत अच्छे से फील करते हुए उनको मसलने लगा और चाची अपनी आँखें बंद कर चूचियों के इस तरह प्यार से मसले जाने का सुख अनुभव करने लगी | पर सिर्फ चूचियों को छूने या मसलने से मेरा मन कहाँ भरने वाला था .... सो मैंने चूचियों पर अपने हाथ टिकाये हुए ही सामने झुक कर दोनों चूचियों को चूमने लगा |

ब्रा में कैद चूची ब्रा कप्स के ऊपर से जितना निकली हुई थी ... उतने हिस्से को पूर्ण रूपेण अच्छी तरह से चुमा चाटा ... फिर अपनी उँगलियों के पोरों से ब्रा कप्स के बॉर्डर पर कामुक अंदाज़ से रगड़ने लगा और थोड़ी ही देर बाद दोनों कप्स के दो साइड में ऊँगली अन्दर घुसा दिया और बड़े प्यार और इत्मीनान से चाची की आँखों में देखते हुए दोनों ब्रा कप्स को नीचे कर दिया .... और ऐसा करते ही सौन्दर्य के दो मूर्तमान स्वरुप उछल कर मेरे सामने दृश्यमान हो गए ! उफ्फ्फ़.... क्या रंगत... क्या ढांचा... क्या उठाव और क्या कटाव था उनके उन मदमस्त कर देने वाले मदमस्त चूचियों का !!
अधिक देर न करते हुए झट से टूट पड़ा उनपर ... पहले तो ऊपर नीचे चूची को अच्छे से चुमा .. फिर एरोला के पास जा कर रुका और निप्पल के आस पास के एरिया को सूंघने लगा ... ओह्ह्ह....! एक धीमे सुगंध वाली किसी परफ्यूम का गंध आ कर समाया मेरे नाक में | सूंघते हुए एरोला और निप्पल पर अपने गर्म साँसे छोड़ता और चाची सिहर उठती ---

अब मैंने अपना जीभ निकाला और जीभ के बिल्कुल अगले सिरे को एरोला के चारों ओर गोल गोल घूमाने लगा | चाची “आआह्ह्ह....स्सस्सस...” से एक आह भरी और एक हाथ से मेरे सर को पकड़ कर अपने चूची के और पास ले आई ; पर मैंने सीधे चूची पर कुछ करने के बजाए पहले की तरह ही अपने जीभ से एरोला पर हल्का दबाव बनाते हुए जीभ को गोल गोल घूमाते रहा -- इसी के साथ मैं अब चाची की साड़ी को घुटनों से ऊपर उठाने लगा और उठाते उठाते जांघ तक ले आया और फ़िर जांघ पर हाथ फिराने लगा ... चाची के गोरे टांग और जांघ बिल्कुल मक्खन से मुलायम प्रतीत हो रहे थे ...और किसी को भी जोश में भर देने के लिए काफ़ी थे | इतने साफ़ और गोरे थे की कोई भी उन्हें घंटों चाटते रहे |

पहली बार चाची के गोरे टांग और जांघों को बहुत पास से और सामने देख रहा था मैं | देखते देखते ही एक अजीब सी खुमारी सा छाने लगा मुझ पर | ऊपर और नीचे से आधी नंगी ऐसी खूबसूरत औरत जिसके हर एक अंग-प्रत्यंग को ऊपरवाले ने बड़े ही धैर्यपूर्वक और ख़ूबसूरती से एक बेहतरीन सांचे में ढाला था | मेरा लंड बरमुडा के अन्दर से ही फुफकारें मारने लगा | पूरे शरीर के नसों में रक्त का प्रवाह हद से अधिक तीव्र हो उठा | चाहता तो वहीँ चाची को पटक कर, उन पर चढ़ कर एक अद्भुत चुदाई का नज़ारा पेश कर सकता था पर ये भी जानता था की ऐसे मौके बार बार नहीं आते इसलिए ये जो मौका मिला है .. इसका भरपूर और जी भर कर उपयोग करना चाहिए आज |

जांघों को सहलाते सहलाते मेरा हाथ ऊपर होते हुए और अन्दर घुस गया ... इतना अन्दर की मुझे कुछ होश ही नहीं रहा ....और तभी चाची चिहुंक उठी | आँख बंद थी चाची की पर देह में सिहरन सी दौड़ रही थी उनकी | मैं ध्यानपूर्वक चाची के चेहरे को देखा और फिर हाथ को अन्दर ले जाकर इस बार महसूस किया की चाची ने पैंटी पहना ही नहीं है .... और इस बात का अहसास होते ही मैं ख़ुशी से झूम उठा | मेरी दो उंगलिया उनके चूत के द्वार से टकरा रही थी और प्रत्येक छुअन से चाची पहले से अधिक मचल उठती | इधर मैं चाहता तो था की मैं चाची की मदमस्त गदराई जिस्म की बाकि के अंगो पर ध्यान दूं पर ठीक मेरे आँखों के सामने काम-सौन्दर्य से इठलाते हुए ऊपर नीचे करते चाची की गोरी-चिट्टी भरे हुए पौष्टिक चूचियां मुझे और कुछ सोचने ही नहीं दे रही थी ... इसलिए मैं अपना फोकस उनकी मदमस्त चूचियों पर दिया रहा | एक हाथ से बड़े प्यार से अंदरूनी जांघ को सहलाते हुए चूत-द्वार के साथ छेड़खानी करता और दूसरे से एरोला के आस पास चूची को पकड़ कर थोड़ा प्यार और थोड़ा सख्ती से मसल देता |

काफ़ी देर तक इसी तरह छेड़खानियाँ करता हुआ चाची को सेक्सुअली सताता रहा .... और अंत में अब निप्पल पर ध्यान दिया | एरोला के साथ हुए खिलवाड़ से निप्पल तन कर खड़े हो गये थे | एरोला के चारों ओर चूमने-चाटने से लगे लार से भीगे एरोला पर तने हुए निप्पल, खीर में ऊपर से डाले गए किशमिश की तरह लग रहे थे ... भूख से पीड़ित किसी आदमी को अपने तरफ़ लपक कर आ कर खा लेने के लिए निमंत्रण देते हुए से लग रहे थे |

और मैं तो भूखा था ही .... हवस का भूखा ...! ललचाई नज़रों से देखता और मुँह से बाहर आते लार को वापस निगलते हुए अपने होंठ निप्पल तक ले गया ... गर्म सांस निप्पल से टकरा कर चाची को मस्ती में भर दे रहे थे |

अपने होंठों से निप्पल के ऊपरी हिस्से को हलके से दबाते हुए पकड़ा और आगे की ओर खींचने लगा ... और इसी के साथ ही चाची को बेड पर लेटा कर साड़ी को कमर तक चढ़ा दिया ... ऐसा करते ही चाची की मनोरम, अप्रतिम नयन सुख देने वाली, एक झटके में ही काम उत्तेजना का संचार कर देने वाली लावण्यमयी रसभरी चूत अब सामने खुली पड़ी थी | बड़े ध्यान से देखता हुआ चूत के पास आया और उसपर निकले छोटे छोटे झांटों को अपनी उँगलियों में फंसा कर हल्के से खींचा और साथ ही चूत-द्वार पर बनी लम्बी लकीर को अपनी एक ऊँगली से दबाव बनाता हुआ ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर करता .... दोनों ओर से हो रहे हमले से चाची मस्ती में दुहरा गई और वहीँ बेड पर लेटे लेटे बेडशीट को अपने मुट्ठियों से भींचते हुए कामुक मादक सिसकियाँ लेने लगी |

कुछ देर यही खेल खेलने के बाद निप्पल को चूसने लगा .... चूसते हुए कभी ‘चक चक’ की आवाज़ निकलता तो कभी ‘सरक सरक’ की.... इधर नीचे चूत में अपनी दो उँगलियाँ घुसा कर अन्दर बाहर करने लगा | पहले तो धीरे मोशन में अंदर बाहर करता रहा फिर धीरे धीरे अपनी स्पीड बढ़ाने लगा | चूत में हो रही ज़ोर से फिंगरिंग ने चाची को उनके ऊपर उनका खुद का रहा सहा कण्ट्रोल भी खो देने को मजबूर कर दिया | उनका पूरा शरीर थिरकने सा लगा और वो ‘ऊऊउम्म्म्मम्मम्मम्मम्मम्मम’ की सी आवाजें करने और आहें भरने लगीं | जब ये सेक्सुअल टार्चर बर्दाश्त से बाहर होने लगा तो चाची अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ कर अपने चूची पर कस कर दबा दी |

बर्दाश्त की सीमा मेरी भी पार कर चुकी थी.. मैं अब रुकने वाला नहीं था ... पूरी तल्लीनता और ज़ोरों से फिंगरिंग करने और निप्पल चूसने लगा | इधर चाची का भी जोर मेरे सिर पर बढ़ता जा रहा था और मेरे सिर को अपने चूची से ऐसे दबाए हुए थी मानो आज वो मेरा निश्चय ही दम बंद कर मारने वाली है | मेरे दोहरे आक्रमण के मार से चाची अब धीरे धीरे अपने चरम पर पहुँचने लगी ... उनका शरीर अकड़ने लगा ... वो ज़ोरों से आहें भरने लगी और साथ ही बिस्तर पर किसी जल बिन मछली की भाँति तड़पने लगी | मैं निप्पल को छोड़ अब पूरे स्पीड से चूत के दाने को मसलने और उँगलियों को अन्दर बाहर करने लगा |

चाची – “आह्ह्ह्हsssss....... अभयययययssssssss.... आअह्ह्ह्हह्ह्हssssssss....ऊऊउम्म्म्मममममssssss....”

अभय – “ओह्ह्ह्हssss....दीप्तिssssss......चाचीईईईsssssssssss.....पूर्ण संतुष्ट किये बिना नहीं छोडूंगा ......आह्ह्ह: ....”

चाची – “आआआआह्ह्ह्हहहssss.....औरररररssss.... थोड़ाssssss........ज़ोरररररsss... सेsssss... आह्ह्हssss.. ओह्ह्हssss.... नहींईईssss....आम्म्ममम्मssss.... धीरेरेरेsssss........ करोssssssss....”

चाची की आवाज़ की तीव्रता बढती जा रही थी ... इतनी बढ़ गई थी की कहीं उनकी आवाज़ कमरे से बाहर न चली जाए यही सोच कर मैंने चाची के होंठों से अपने होंठ लगा दिया | इससे आवाज़ निकलनी तो बंद हो गई पर अब एक दबी हुई सी “ऊऊउम्म्म्ममममssssssssss…..” निकल रही थी |

चाची की ऐसी हालत देख कर मुझे एक और शरारत सूझी ... मैं ऊँगली करना छोड़ कर उठ बैठा ... मेरी इस हरकत से चाची ने आँखें खोल कर मेरी ओर आश्चर्य से देखी.. मैं होंठों पर एक बदमाश वाली स्माइल लिए चाची को देखते हुए उनके पैरों को पकड़ कर फैला दिया और खुद दोनों पैरों के बीच आ कर बैठ गया .. फिर खुद को थोड़ा पीछे करते हुए धीरे धीरे चाची की चूत पर झुकने लगा ... चाची मेरी इन हरकतों को आश्चर्य से बड़े ध्यान से देख रही थी और मुझे अपने टांगों के बीच झुकते देख वो मेरा आशय समझ गई और शर्म और शरारत भरी एक मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए अपने टांगों को खुद ही और अधिक फैला दी.. और इधर मैं उनके मखमल सी टाँगों के बीच इतना झुक चूका था कि मेरे होंठ अब चूत के होंठों से जा मिले... थोड़ी देर तक चूत के ऊपरी और आस पास के हिस्से को सूँघता रहा .... और जब मन थोड़ा आगे बढ़ने को हुआ तब जीभ निकाल कर बड़े धीरे और स्नेहयुक्त तरीके से चूत के होंठों पर फिराने लगा | जैसे ही जीभ का अग्रभाग चूत से टकराया , चाची “इइइइइइस्सस्सस......आहहहहह.......” की आवाज़ के साथ तड़प सी उठी और आनंद के गोते लगाते हुए अपनी आँखें बंद कर ली ...|

प्रेम से चूत के आस पास के भाग को चाटते हुए दो उँगलियों से चूत के फांकों को अलग किया और जीभ को थोड़ा अंदर घुसाते हुए चूत के दीवारों को चाटने लगा | अब तो चाची का परम उत्तेजना के मारे बुरा हाल था | मेरे सिर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों जांघों के बीच दबा दी और जांघों को मेरे सिर के पीछे से ले जा कर क्रिसक्रॉस कर के उनका गिरफ़्त भी बढ़ा दी | और मैं तो पूरी लगन से चाची के ‘चूत-रस’ का पान करने के लिए जीभ से ही चुदाई आरम्भ कर दिया |

चाची – “ऊऊउम्म्म्ममममममआह्ह्ह्ह..... अभ.....अभय्यय्य्य....... अ....अब.....न....नहीं....... नहीं.... रुक्क.... सकती.....आअह्ह्ह्ह.... ”

चाची तड़प उठी पर मेरे पास कुछ देखने सुनने का समय नहीं था.... मैं तो चिपका पड़ा था .... रसभरी चूत से ... चाट चाट कर चूत को पनिया दिया मैंने ... किसी तरह मैंने सिर को चूत पर से उठा कर बोला, “हाँ, तो मत रोको न ... होने दो जो हो जाना चाहिए...” इतना कह कर दुबारा चूत चुसाई के कार्य में लग गया |

चाची का पूरा शरीर कांपने लगा .. बेड पर लेटे लेटे कसमसाते हुए वो मेरे सिर को और भी अधिक ताकत से अपने चूत पर टिकाने लगी.. अपने सर से लेकर कमर तक के हिस्से को वो ऊपर की ओर उठाती और फिर एक झटके से नीचे करती ... कुछ देर तक यही सिलसिला चलता रहा ...

फिर अचानक,
चाची – “ऊह्ह्ह्ह....ओह्ह्ह..... आआऊऊऊऊ...............!! आअह्ह्ह्ह..... मैं... म...म... मैं... अ...अ...ब....अब.... छुट.... छूट ....आह्ह..... वाला.... है.........आअह्ह्ह्ह”

और इसी के साथ “फ्च्च्च” के आवाज़ के साथ चाची का एक बहुत ही ज़बरदस्त ओर्गास्म हो गया | पूरा का पूरा ‘चुतरस’ मेरे पूरे चेहरे पर फ़ैल कर लग गया | चिपचिपा सा.... चाची अब लंबी गहरी साँसों के साथ धीरे धीरे शांत हो होने लगी.... और.. और मैं.... मैं अब भी चूत के होंठों से अपने होंठ लगाए “चूतरस” का पूरे मनोयोग से सेवन कर रहा था .................

क्रमशः

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RE: Kamukta kahani अनौखा जाल - by desiaks - 09-12-2020, 12:46 PM

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