RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २६)
अब तक आपने पढ़ा कि, चाचा, चाची और अभय; तीनो मिलकर थाने जाते हैं रिपोर्ट लिखवाने पर इंस्पेक्टर विनय की अनुपस्थिति में इंस्पेक्टर दत्ता पूरी विषयवस्तु की जानकारी उनसे लेते हैं पर साथ ही चाची की ओर खींचा सा चला जाता है | रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है पर ये आश्वासन ज़रूर मिलता है कि पुलिस की टीम कुछ समय तक अभय के घर की निगरानी अवश्य करेगी और अगर कभी किसी क्रिमिनल से किसी भी तरह की कोई भी धमकी देने या संपर्क करने की कोशिश की जाती है तो खुद अभय या उसका परिवार कभी भी अतिरिक्त पुलिस सहायता की बात कर सकते हैं |
इधर पुलिस स्टेशन से निकलते वक़्त अभय किसी अनजान शख्स से टकराता है जो बिना देखे या कुछ सुने ही तेज़ी से आगे की ओर बढ़ जाता है | गाड़ी में बैठे घर जाने के रास्ते में अभय को अपने पॉकेट में कागज़ का एक टुकड़ा मिलता है जिसमें उसे पुलिस से बच कर रहने और कुछ ज़रूरी बातें साझा करने के लिए शाम को एक जगह बुलाया जाता है...
अब आगे पढ़ें....
घर पहुँच कर थोड़ी देर रेस्ट किया --- फ़िर चार घंटे स्टूडेंट्स को पढ़ाया --- कुछ नए स्टूडेंट्स ने भी मेरा इंस्टिट्यूट ज्वाइन किया था | मेरे अंडर में दो और टीचर और एक स्टाफ है --- मेरी अनुपस्थिति में यही लोग सबकुछ सँभालते हैं | बहुत दिनों बाद अपने स्टूडेंट्स, टीचर्स, स्टाफ और इंस्टिट्यूट के बीच खुद को पा कर बहुत अच्छा लग रहा था … मेरे इतने दिनों से इंस्टिट्यूट में न होने और लापता होने की खबर को लेकर सबने तरह तरह के प्रश्न दागने शुरू कर दिए --- ज़्यादा बहाने नहीं बना पाया; किसी तरह सबकी जिज्ञासाओं को शांत किया ; पर सबकी चिंताएँ देख कर थोड़ा अच्छा भी लगा … सबको मेरी फ़िक्र है.. और अगर बहुत ज़्यादा फ़िक्र नहीं भी है तो भी कम से कम पूछा तो सही सबने --- |
मुझे बेसब्री से साढ़े छ: बजे का इंतज़ार था | पौने छह होते ही मैं घर से निकल पड़ा और सवा छह होते होते गंतव्य पर पहुँच गया | एक पुराना सा बिल्डिंग .. उजाड़.. चारों ओर झाड़ियाँ .. कुछ कुछ वैसा ही जैसा पहली बार मिस्टर एक्स ने मिलने के लिए जिस जगह पर बुलाया था | अंतर इतना था कि पहली वाली बिल्डिंग किसी राजा महाराजा के जमाने की लग रही थी और अब ये वाली बिल्डिंग खाली, उजाड़ हुए कुछ बीस-तीस या उससे अधिक बरस की लग रही थी | कागज़ के टुकड़े के लिखे अनुसार मुझे अब तीसरी मंजिल पर किसी एक दरवाज़े जिस पर 3 C लिखा होगा उससे हो कर अन्दर घुसना है और ठीक दस मिनट इंतज़ार करने के बाद एक लाल बत्ती जलने के बाद मुझे उठ कर उसी दरवाज़े से बाहर निकल कर उसी तीसरी मंजिल की नौवीं दरवाज़े 3 I से अन्दर घुसना होगा | वहीँ पर मुझसे मेरा शुभ चिंतक भेंट करेगा |
मैंने एक सिगरेट सुलगाया और जल्दी से उस टूटी फूटी वीरान मकान की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा | सीढ़ियों पर जगह जगह जाले, धूल की मोटी परतें और मकान के कुछ टूटे हिस्से गिरे हुए थे | धूल से एलर्जी होने के कारण नाक मुँह ढकना पड़ा | जल्द ही मैं तीसरी मंजिल के तीसरे दरवाज़े के सामने खड़ा था | दरवाज़ा हलके धक्के से ही खुल गया | अन्दर घुसने पर चौंका .. एक फाइबर वाली चेयर रखी थी सामने | नई लग रही थी | अपने हाथ घड़ी पर नज़र रखते हुए मैं उस चेयर पर बैठने से पहले चारों ओर का मुआयना कर लिया | सब ठीक ही लगा |
चेयर पर बैठा बैठा मैं बोर भी हो रहा था पर करने के लिए कुछ था नहीं | एक के बाद एक सिगरेट सुलगाता रहा | दस मिनट ; दस घंटे से लग रहे थे | पर मानना पड़ेगा की जिस किसी ने भी टाइम सेट किया है वाकई समय का बड़ा पाबंद होगा ... क्योंकि दसवाँ मिनट होते ही उस कमरे में ही सौ वाट के जल रही बल्ब से कुछ ही दूरी पर स्थित लाल बल्ब सायरन की सी आवाज़ के साथ जल उठी | सायरन वाली आवाज़ भी केवल तीन बार ही बजी | उठ कर तुरंत कमरे से बाहर निकला और लगभग दौड़ते हुए नौवें दरवाज़े के पास जा कर रुका |
दरवाज़े को को धकेलने की कोशिश की पर वो खुला नहीं | थोड़ी देर दरवाज़ा पीटा .. फिर भी नहीं खुला... | थक हार कर गुस्से में इधर उधर टहलने लगा | अगले दो-तीन मिनट में अचानक दरवाज़ा एक ‘कौंच’ की सी आवाज़ करता हुआ खुल गया पर ज़रा सा ही | मैंने तेज़ी से कदम आगे बढ़ाते हुए एक झटके में अन्दर दाखिल हुआ … और अन्दर घुसते ही मेरे ही एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रही थी ...............
अंदर वही लड़की बैठी हुई थी ... एक चेयर पर ...जिसने हॉस्पिटल में मेरी सहायता की थी | हाथ में कुछ पेपर्स थे | आँखों पर काला चश्मा, काली शर्ट, वाइट – ग्रे की कॉम्बो वाली जीन्स पैंट .. होंठों पर हलकी लाल लिपस्टिक... सचमुच बहुत कमाल की लग रही थी | मेरे अन्दर आते ही वह भी सर उठा कर मेरी ओर देखी.. और एक हलकी सी मुस्कान चेहरे पे बिखेरते हुए हेलो बोली...| मैं तो उसमें ऐसा खोया की कुछ पलों के लिए उसके ‘हेलो’ का जवाब नहीं दे पाया | वो मतलब समझ गई ... चेहरे पर ह्या के हलके भाव लिए पेपर्स को दोबारा देखने लगी |
मुझे अपनी भूल का आभास होते ही उससे माफ़ी मांगता हुआ उसके पास गया | इशारों से उसने बगल में रखी एक और लाल फाइबर की कुर्सी में बैठने को कहा | मैं बैठ तो गया पर बदले में उस लड़की को सिवाए ‘थैंक्स’ के और कुछ नहीं कह पाया | कुछ देर तक पेपर्स पर नज़रे गड़ाए रखने के बाद उसने मेरी ओर देखा और शर्म वाली मुस्कान के साथ दुबारा ‘हाई’ कहा |
इस बार मैंने जवाब दिया उसे,
“हाई |”
लड़की – “अगर बुरा ना माने तो क्या मैं आपको तुम कह कर बात कर सकती हूँ?”
मैं – “नहीं बिल्कुल नहीं... बल्कि मैं आपको आप कह कर बुलाना चाहता हूँ |”
लड़की – “अच्छा?? वो क्यों???”
मैं – “क्योंकि आपने मेरी जान बचायी है ... अस्पताल से मुझे सुरक्षित निकाल कर | और बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है .. इसलिए आपको ‘आप’ कह कर संबोधित करूँगा...|”
लड़की – “नहीं जी ... इसकी कोई आवश्यकता नहीं है | हम दोनों लगभग एक ही उम्र के हैं और एक की मंजिल की ओर भी | हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए.. क्योंकि हमें एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होगी भी |”
मैं (मुस्कुराते हुए) – “ज़रूर |”
मेरा जवाब सुन कर वह पेपर्स उठाने लगी ... उसका ध्यान उन पेपर्स पर था और मैं... जैसा की हर जवान लड़के के साथ होता है ... चेहरे की भले ही कितनी ही तारीफ़ क्यों न कर ले... नज़रें, नज़रों से जिस्मानी उभारों को टटोलने का काम करने ही लगते हैं | मैं भी इस मामले में बेचारा | नज़रें बरबस ही उस लड़की के चेहरे पर से फिसलते हुए उसके सुराहीदार गले और फिर.. बैठने के कारण शर्ट के थोड़े टाइट होने से उसके सीने पर और स्पष्टता से उभर आये उसके सुडोल उभारों पर अटक गए | नज़रें जो और जितना टटोल सकी उस हिसाब से 34CC या 34D तो होगा ही | पुष्ट थे | गोरे रंग पर काले लिबास और उसपे भी पुष्टकर सुडौल उभार उसे एक कम्पलीट पैकेज बना रहे थे | पर शायद अभी उसके बारे में बहुत से राज़ खुलने बाकी थे ........................
“इन पेपर्स को देखो..” एकदम से मेरी ओर उन कागजों को बढ़ाते हुए बोली |
पर तब तक मेरी नज़रें उसके उभारों को अच्छे से निहार चुकी थीं इसलिए उसके बोलने के काफ़ी पहले ही मेरा ध्यान भी उन पेपर्स पर ही था |
पेपर्स को हाथों में लिए बड़े गौर से देखने लगा | कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा था | वे कागज़ दरअसल ज़ेरोक्स थे .. असली के...|
कुल बारह कागज़ थे और प्रत्येक पर किन्ही लोगों के फ़ोटो (वे भी ज़ेरोक्स) के साथ कुछ बातें लिखी हुई थीं | ज़ेरोक्स होने के कारण कुछ लिखावट समझ में आ रही थी और कुछ नहीं |
काफ़ी देर तक पन्नों को उलट पलट कर देखने के बाद भी जब कुछ ख़ास समझ में नहीं आया तो उस लड़की की तरफ़ सवालिया नज़रों से देखा | उसे शायद मेरी इसी प्रतिक्रिया की आशा थी |
क्योंकि उसकी ओर देखते ही वह हौले से मुस्करा दी और बोली,
“ये वही लोग हैं जिनकी तलाश तुम्हें है और इन्हें तुम्हारी तलाश है |”
“क्या??!!!”
सुनते ही जैसे मेरे ऊपर बिजली सी गिरी |
लगभग उछल कर कुर्सी पर सीधा तन गया और दोबारा उन पन्नों को बेसब्री से आगे पीछे पलटने लगा |
पर ‘झांट’ कुछ समझ में आ रहा था.......
मेरा उतावलापन देख कर वह अपना हाथ आगे बढाई और मेरे हाथों को थाम लिया..
उफ़..! कितने नर्म मुलायम थे उसके हाथ ..! कितना कोमल स्पर्श था !! पल भर को तो मैं जैसे सब भूल ही गया | मन में एक आवाज़ उठी कि, ‘बस... ऐसे ही हमेशा हाथ को पकड़े रहना.. |’
शांत लहजे में कहा,
“अभय... धैर्य से काम लो... उतावलापन हमेशा भारी पड़ता है |”
उसका मेरा नाम लेना मेरे कानों को मधु सा लगा | जी किया कि एक बार उससे अनुरोध करूँ की एकबार फ़िर वह मेरा नाम ले .....
आहा! कितना मधुर स्वर है इसका...
पर...
अरे, यह क्या..!!
इसे मेरा नाम .. कैसे पता...??
चौंक उठा मैं |
और तुरंत ही अचरज भरी निगाहों से उसे देखा...|
मन पढ़ने की उसने कोई डिग्री कर रखी होगी शायद ....
तभी तो मेरे कुछ कहने से पहले ही उसने मेरे आँखों और चेहरे पर उभर आये आश्चर्य की रेखाओं को देखते ही कहा,
“मैं तुम्हारे बारे में सब कुछ ना सही पर बहुत कुछ जानती हूँ...”
ये कहते हुए उसने मेरे इंस्टिट्यूट, मेरी पढ़ाई लिखाई, परिवार और ऐसे ही कई सारी बातों का जिक्र किया |
जैसे जैसे वह सब कहते जा रही थी वैसे वैसे मैं उसके चेहरे, आँखों, भौहों, होंठों .... सब में खोता जा रहा था |
एक अजीब सी कशिश, एक अजीब सा खींचाव था उसके हरेक अदा, हरेक बात में |
वह शायद मेरे इन मनोभावों को भी अच्छे से समझ रही थी ... तभी तो रह रह कर उसके गोरे चेहरे पर लाज की एक रेखा आती जाती रहती | आँखों पे चढ़ा काला चश्मा कुछ देर पहले उतार चुकी थी .... हल्के नीले रंग की थी उसकी आँखें... और किनारों पर बहुत ही सलीके से काजल लगा हुआ था ... और ये उसकी आँखों की सुंदरता को भी कई गुना बढ़ा रही थी |
“हेल्लो..!!” उसने थोड़ा ज़ोर से कहा |
मेरी तन्द्रा टूटी... देखा, अपने दाएँ हाथ को मेरे आँखों के सामने हिला रही थी |
“कहाँ खो जाते हो...? अभी जो ज़रूरी बातें हैं... उनपे ध्यान दो... बाकी के बातों पर ध्यान देने के लिए और भी समय बाद में मिलेगा |”
थोड़ी झुंझलाहट थी उसकी आवाज़ में... पर साथ ही आँखों और चेहरे पर शर्म और ख़ुशी (शायद) के मिश्रित भाव थे |
“आं...हाँ... तो ...आं... हम्म.... हाँ... ठीक है.... अम्म.... आ... आप मेरे बारे में इतना कुछ जानती हैं... पर आपने मुझे अपना नाम नहीं बताया..?!” झेंपते हुए बोला मैं | एक चोरी पकड़ी गयी मेरी अभी अभी |
“वैसे नाम तो मेरा मोनिका है... पर दोस्तों-रिश्तेदारों में सब मुझे मोना नाम से जानते – पुकारते हैं |” थोड़ी इतराते हुए बोली |
“तो क्या मैं भी तुम्हे मोना कहूँ?” मैंने पूछा |
“कह सकते हो...|” उसने उत्तर दिया |
फ़िर, तुरंत ही कहा,
“अच्छा... अब इससे पहले की किसी तरह के और सवाल जवाब हों.. हमें काम की बातों पर लौट आना चाहिए .... ओके?”
इसबार उसके आवाज़ में दृढ़ता थी |
मैंने हाँ में सिर हिलाया |
“तो सुनो... पहली बात... तुम और तुम्हारा परिवार... ख़ास कर तुम.. पुलिस पर भरोसा भूल से भी भूल कर मत करो.. सबकी तो नहीं बता सकती पर इस बात का काफ़ी हद तक अंदेशा है कि उस विभाग में कोई मिले हुआ है; तुम्हारे और देश के दुश्मनों से... ”
उसकी यह बात मेरे अन्दर कौंधती हुई सी लगी पर मैं शांत रहा --- सिर्फ़ इतना कहा,
“तुम बोलती जाओ...|”
मेरे सकारात्मक रवैये को देख वो खुश होती हुई बोली,
“गुड, अब आगे सुनो.. जिस इंस्पेक्टर विनय को तुम ढूँढने गये थे स्टेशन ... वह फ़िलहाल मिलने वाले हैं नहीं... लम्बी छुट्टी पर गए हैं... और शायद जब तक वो लौटे... तुम और तुम्हारे परिवार का गेम बज चुका होगा... खास कर शहर का और.... शायद देश का भी |”
जिस विश्वसनीयता के साथ उसने कहा ये बात, मुझे वाकई बहुत ताज्जुब हुआ पर चुप रहा |
क्योंकि मुझे याद आया कि, किसी महापुरुष ने एक बार कहा थे की यदि श्रेष्ठ वक्ता बनना है तो पहले श्रेष्ठ श्रोता बनो |
“ये लोग इंटरनेशनल ड्रग डीलर्स और खतरनाक माफ़िया हैं .. इनसे पार पाना इज नॉट एट ऑल इजी | तुम्हारी चाची को इन्ही लोगों ने किसी तरह अपने जाल में फंसाया है | ये लोग अक्सर कम उम्र की लड़कियों और विवाहित महिलाओं को अपना शिकार बनाते हैं ताकि इनका धंधा किसी की पकड़ में न आए ..............................................................................................”
इसी तरह वह एक के बाद एक कई खुलासे करते गई और हैरत से मेरी आँखें चौड़ी होते गई, साथ ही दिमाग में नई सोच पैदा हो गई कि इसे इतना कुछ कैसे पता??
अगले २० मिनट तक लगातार बोलने के बाद वह चुप हुई ... मुझे शांत देख कर पूछी,
“कुछ पूछना है तुम्हें?”
“हाँ... फिलहाल बस एक ही सवाल.. तुम्हें इतना सब कुछ कैसे पता.. कौन हो तुम.. क्या करती हो? सीबीआई हो? सीआईडी? एनआईए? या रॉ??”
“हाहा.. नहीं.. मैं इन सब में से कुछ भी नहीं हूँ.... और असल में क्या हूँ..ये तुम्हें धीरे धीरे पता लग ही जाएगा.. अभी जो सबसे ज़रूरी है वह यह कि क्या तुम ऐसे लोगों का पर्दाफाश करने में मेरी मदद करोगे?”
मैं थोड़ा सोचते हुए बोला,
“मम्म.. पर तुम तो वैसे ही बहुत एक्सपर्ट हो... तुम्हें मेरी सहायता क्यों चाहिए?”
“क्योंकि मैं जो भी करुँगी या कर पाऊँगी वो सब कुछ पीठ पीछे होगा... मुझे कोई ऐसा चाहिए जो डायरेक्ट इन सबमें इन्वोल्व हो सके.....”
“तुम्हारा मतलब जो इन लोगों के साथ उठना बैठना कर सके...?? इनके साथ रह सके..?? अरे यार.. तुम तो मुझे मरवाने पर तूली हो..”
“पहले पूरी बात सुनो अभय... मैंने क्या अभी तक ऐसा कुछ किया है जिससे तुम या तुम्हारे परिवार वालों को किसी भी तरह की कोई दिक्कत या किसी तरह का कोई खतरा दिखा या आया हो ??” बहुत स्पष्टता और दृढ़ता के साथ बोली मोना |
“नहीं...” छोटा सा उत्तर दिया मैंने भी |
“तो फिर पूरा भरोसा रखो मुझ पर ...” उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रखते हुए कहा |
मैं क्या करता... बैचलर बंदा .. तुरंत पिघल गया |
“ठीक है.. मैं तैयार हूँ | बताओ.. क्या करना होगा मुझे?” ऐसा कहते हुए एक लम्बी सांस ली मैंने |
“गुड.. तो सुनो.. मैं... और मेरे साथ जो और जितने भी हैं... वो सभी अगले कुछ दिनों तक तुम्हें कई चीज़ों में ट्रेनिंग देंगे... तुम्हे बस इतना करना है की बगैर किसी सवाल के, वो लोग जो और जैसा सिखाएँगे तुम्हें ... तुम बस वैसे ही सीखते रहना | नो वर्ड्स... ओके?” अपने होंठों पर ऊँगली रखते हुए बोली |
मुझे उसका यह अंदाज़ बड़ा पसंद आया | डांटते हुए कुछ समझाना..!
“तो फिर चलो, आज की हमारी यह भेंट यहीं समाप्त होती है .. ओके? दो दिन बाद से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू होगी | कब और कहाँ आना होगा तुम्हें, ये हम तुम्हें अपने तरीके से बता देंगे... अब, जाने से पहले... एनी क्वेश्चन?”
“नहीं, कोई क्वेश्चन तो नहीं... पर एक छोटी सी शर्त है... |”
“कैसी शर्त?”
“मैं जब से ट्रेनिंग के लिए आऊँ... जहाँ भी आना पड़े.... आप वहाँ ज़रूर होंगी... दरअसल क्या है कि, कुछ अजनबियों के बीच एक जाना पहचाना चेहरे अगर मौजूद हो... तो काम का मज़ा दुगना आता है.. और..... ”
“और.....?”
“और मन भी लगा रहता है |” मैं झेंपते हुए बोला |
सुनकर वो कहकहा लगा कर हँस पड़ी | हँसते हुए बोली,
“मुझे कहीं न कहीं आपकी किसी ऐसी बात बोलने की उम्मीद थी.... खैर, कोई बात नहीं... मैं ज़रूर रहूँगी.. दरअसल क्या है है कि, जिस इंसान पर भरोसा कर रही हूँ... उस भरोसे की कसौटी पर वह कितना खरा उतरता है .. यह ज़रूर देखना चाहूँगी.. इससे मेरा समय भी कटेगा और....”
“और.......?”
“आपको सही सही गाइड करने का भी मौका मिलेगा |” नज़रें नीचे पेपर्स की ओर करते हुए एक शरारत सी कातिलाना मुस्कान लिए बोली |
दोनों उठे.. और बाहर निकले... अभी कुछ कदम आगे चले ही थे कि, सीढ़ियों के पास अचानक से वह फ़िसली.. नीचे गिरने ही वाली थी कि.. मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया... और ज़ोर से अपनी तरफ़ खींचा.. वह लगभग मेरे बहुत करीब आ गई.. सट ही गयी होती अगर बीच में अपनी दायीं हथेली न लायी होती | हम दोनों एक दूसरे को देखते रहे कुछ मिनटो के लिए... एक दूसरे के आँखों में.. शायद कुछ देर और देखते रहते... की तभी एक छोटा सा पत्थर नीचे सीढ़ियों पर लुड़का.. आवाज़ से हम दोनों की तन्द्रा टूटी.. होश में आये जैसे.. अलग होकर दोनों ने एक दूसरे को गुड बाय कहा |
उसने इशारे से मुझे दूसरे तरफ़ की सीढ़ियों से जाने को कहा ... और खुद पलट कर दूसरी तरफ़ के एक दरवाज़े के पीछे हो गई ... मैं नीचे उतर आया था ... एक ऑटो वाला पहले से खड़ा था --- साथ में एक आदमी भी --- मुझे उसी से जाने को कहा --- मैंने कुछ कहा या सोचा नहीं ... ऑटो में बैठ गया ; मेरे बैठते ही ऑटो चल पड़ा |
क्रमशः
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