RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २७)
ट्रेनिंग शुरू हुई | काफ़ी सख्त ट्रेनिंग थी | रत्ती भर की भी गलती होने से काफ़ी डांटा जाता | पर मन मार कर सीखना तो था ही | इसके अलावा और तो कोई चारा भी नहीं था |
समय गुज़रता रहा | मोना हर दिन आती | मेरा हौसला बढ़ाती | ट्रेनिंग भी दिन ब दिन और टफ होता गया |
पर पूरे धैर्य और हौसले से मैं लगा रहा ट्रेनिंग पर |
चार महीने लगे ...
ट्रेनिंग खत्म होने में.... |
इन चार महीने में कई दफ़े ऐसे हुए जब मैं और मोना बहुत क्लोज आते आते रह गये | और हों भी क्यों न.. साथ में लंच, बातें, यहाँ तक की कई बार डिनर भी हमने साथ ही किया |
एक दूसरे के बारे में काफ़ी कुछ जाना भी हमने; जैसे की .... परिवार में कौन कौन हैं, पढ़ाई कहाँ तक हुई है, आगे की क्या योजना है... इत्यादि...
उसके बारे में जो पता चला, वह ये है कि उसके माँ बाप का उसके बचपन में ही देहांत हो गया था --- वह अपने एक रिश्तेदार के यहाँ रह कर पली बढ़ी ..
जब बढ़ी हुई तब उसे पता चला कि उसके माँ बाप की मृत्यु किसी दुर्घटना या बीमारी के वजह से नहीं बल्कि उनकी हत्या हुई थी और उन्ही हत्यारों की खोज में वो इंडियन सीक्रेट सर्विसेस के कांटेक्ट में आई और बाद में अपनी खुद की टीम बना कर देश और समाज को गंदे लोगों के गिरफ़्त से छुड़ाने के काम में लग गई ...
और इसी क्रम में उसका मुझसे भेंट हुआ और अपने विश्वस्त सूत्रों से मेरे बारे में पता लगा ली ---
हम दोनों इतने घुल मिल गये थे कि मैंने अपनी चाची से भी उसे मिलवा दिया था ; चाची को शायद, --- ‘शायद’ मेरा किसी हमउम्र लड़की से मेल मिलाप होना अच्छा नहीं लगा हो पर वह मेरे लिए खुश भी बहुत हुई --- मोना भी बाद में चाची की तारीफ़ करने से खुद को रोक नहीं पाई और उनकी प्रशंसा में कहा था की चाची में अब भी आज की कमसीन लड़कियों को मात देने का पूरा दम है |
ट्रेनिंग ख़त्म होने के कुछ ही दिनों बाद मोना के माध्यम से खबर मिली कि शहर में पिछले काफ़ी दिनों से ड्रग्स और अवैध हथियारों की खरीद फ़रोख्त बहुत बढ़ गई है और ऐसे अवैध धंधे करने वाले अक्सर शहर के मशहूर ; पर साथ ही उतना ही बदनाम, “कैसियो बार” में जमा होते हैं ... और सबसे बड़ी बात की ये ‘कैसियो बार’ चलता है ‘योर होटल’ में ... होटल के ही एक भाग को पूरी तरह से इस तरह के बार और अन्य चीज़ों के लिए छोड़ा गया था..
इस बार में बार के साथ साथ कैसिनो की भी सुविधा उपलब्ध है और शौक़ीन लोग कैसिनो में वक़्त बीताने ज़रूर आते हैं --- कुछ सिर्फ़ ऐय्याशी और पैसे उड़ाने के लिए तो कुछ अपनी किस्मत आज़माकर अमीर होने के लिए --- |
एक दिन शहर से दूर एक पार्क में मिले हम --- मैं और मोना --- यह पार्क शहर के भीड़भाड़वाले क्षेत्र से थोड़ी दूरी पर स्थित है --- ‘फैमिली पार्क’ के नाम से बनी तो थी यह पार्क पर जल्द ही यहाँ फैमिली से ज़्यादा युवा जोड़े आने लगे थे --- कुछ समय आपस में , एकांत में , दूसरे लोगों की नज़रों , सवालों और फ़िर मिलने वाले तानों से बचने की लिए ये पार्क बहुत ही सुरक्षित स्थान है ---
इसी पार्क में मैं और मोना आज मिले ---
ऐसे तो हमारा अक्सर मिलना होता था ...
पर,
इस पार्क में ये पहली बार हम मिले ---
मिलते ही औपचारिक कुशल-क्षेम पूछने के बाद उसने मुझे कुछ पेपर्स दिए,
“ये क्या है मोना?”
“कुछ लोगों के नाम, उनका इतिहास और कर्मों का लेखा-जोखा ...”
“अच्छा,.. ओके.. पर... तुमने तो शायद ये नाम पहले ही दिखा दिया था.. राईट?”
“हाँ, वो नाम अलग थे... और ये अलग हैं... पर कर्म सभी के एक जैसे हैं --- पाप से भरपूर --- पापी साले !”
कहते हुए उसने मुँह ऐसा बनाया मानो कोई बहुत ही कड़वी चीज़ खा ली हो ---
“ह्म्म्म... मतलब....”
“मतलब, ड्रग और इललीगल आर्म्स डील --- सेक्स रैकेट भी ---!”
“तो ..... अब आगे क्या करना है हमें?”
“हमें नहीं अभय; तुम्हें .... तुम्हें करना है ... मैं पहले ही कह चुकी हूँ की मैं पर्दे के पीछे रहूँगी.... सामने से वार तो तुम्हें ही करना है...”
स्थिर, गंभीर स्वर में बोली मोना....
“ठीक है... तो... क्या करना है मुझे?”
इस प्रश्न के उत्तर में बहुत कुछ समझाती चली गई और साथ ही उसका प्लान भी...
सब कुछ सुन और समझ लेने के बाद....
“ठीक है... समझ तो गया सब... पर...”
“पर क्या?”
“मुझे वहाँ कोई दिक्कत हो गई तो?”
“छोटी मोटी दिक्कत को तो तुम आसानी से सम्भाल ही लोगे इस बात का मुझे पूरा विश्वास है --- रहा सवाल किसी तरह के बड़े दिक्कतों का तो वहाँ मेरे दो आदमी रहेंगे --- तुम्हारी सुरक्षा के लिए --- वे दोनों सम्भाल लेंगे ..... बात समझे ---??”
“हम्म... समझा”
“और ये लो... इसे हमेशा अपने पास रखना”
मेरे तरफ़ एक छोटा सा पैकेट बढ़ाते हुए बोली ...
“ये क्या है मोना?”
“खोल कर देखो तो सही...”
मुस्करा कर बोली...
“खोल कर तो देखूँगा ही... पर उससे पहले जो मुझे साफ़ समझ में आ रहा है वह यह है कि तुमने मुझे फ़िर से एक गिफ्ट दिया है --- वो भी बिना किसी बात के... समझ में नहीं आता की तुम लड़कियों को गिफ्ट इतने अच्छे क्यों लगते हैं ....??”
“हाहाहा...”
“हम्म... हँस लो... कितनी बार कोशिश किया अपनी तरफ़ से गिफ्ट देने का... पर तुम लेती ही नहीं... क्यों?”
“सही समय आने पर दे देना.... या फ़िर शायद मैं ख़ुद ही ले लूँ”
ये बात वह बोली तो मुस्कराते हुए पर इसमें एक गहरा अर्थ छुपा हुआ है, ये मैं समझ गया ....
गिफ्ट खोला,
अंदर एक बहुत ही सुंदर घड़ी (रिस्ट वाच) रखा हुआ है... बहुत ही सुंदर... शब्द नहीं है प्रशंसा के लिए...
अपलक देखता रहा....
मुझे कुछ न बोलते देख वो बोली,
“पसंद आया?”
“बहुत!”
मुझे खुश देख वो भी बहुत खुश हुई...
एक दूसरे को बाँहों में भर लिया हम दोनों ने...
बहुत देर तक एक दूसरे के आलिंगन में रहे ....
काफ़ी देर बाद,
“अभय, अब असल मैदान में उतरने का वक़्त आ गया है |”
मोना ने चिंतित पर दृढ़ स्वर में कहा |
“पता है मोना... अं..” चिंता में डूबा, सिगरेट के कश लेता हुआ दूर कहीं देखता हुआ मैं बोला |
“किस सोच में डूबे हो?” मेरी ओर देखते हुए पूछी मोना |
“आगे की योजना के बारे में ... हालाँकि तुम सब समझा चुकी हो... फिर भी....”
“फिर भी क्या अभय...??” इस बार मोना के होंठ के साथ स्वर भी कंपकंपाए |
“योजना के सफल होने के अधिकतम सम्भावना के बारे में सोच रहा हूँ |”
“ऐसा क्यों... क्या तुम्हें मेरी योजना पर भरोसा नहीं?” सशंकित लहजे में मोना ने पूछा |
“ऐसी बात नहीं है मोना... दरअसल, मेरी यह आदत ही है की जब तक काम पूरा न हो जाए ... मैं उस काम के बारे में सोचना बंद नहीं करता... यों समझो की सोचना बंद नहीं कर पाता |”
“ह्म्म्म... सच कहूं तो मैं भी ऐसा ही कुछ मन ही मन कर रही थी |”
“वो क्या?”
“मेरी बस एक ही चिंता है अभय...” मोना का गला थोड़ा भर्राया |
“वह क्या?”
एक लम्बी सांस छोड़ कर दूर क्षितिज की ओर देखते हुए, मेरे कंधे पर सर टिकाते हुए बोली,
“मैं तुम्हे खोना नहीं चाहती अभय... ” हलकी रुलाई फूट ही पड़ी आखिर उसकी |
उसे चुप कराने की व्यर्थ कोशिश करता हुआ मैं बोला,
“हम दोनों को कुछ नहीं होगा मोना.. रिलेक्स... माना की हम जिस रास्ते पर आगे बढ़ रहे है वहां खतरा ही खतरा है पर उस रास्ते पर चलना तो आखिर है ही हमें... अब जब कदम आगे बढ़ा ही दिया तो फिर सोच कर क्या फ़ायदा?”
मोना कुछ नहीं बोली... बस मेरे कंधे से अपना सिर टिकाए रही... चुप...निस्तब्द... खुद को रोने से रोकने की कोशिश करते हुई...
उसे दिलासा तो दे दिया पर मैं खुद आशंकाओं से घिरा हुआ था ....
और सबसे बड़ी चिंता मुझे मोना को ले कर भी थी ...
पता नहीं आखिर मैं कुछ दिनों से उस पर भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ... हालाँकि ऐसा होने की कोई पुख्ता वजह नहीं है ....
पर ...
फिर भी...
मैं इस बात को कतई नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता कि ये लड़की लोमड़ी से भी ज़्यादा तेज़ दिमाग वाली है ...
कुछ तो ऐसा है जो मुझे नज़र नहीं आ रहा.. समझ नहीं आ रहा ...
बट आई ऍम श्यौर .... एवरीथिंग इज नॉट राईट...
क्रमशः
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