RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २९)
थाने में,
सामने टेबल पर कुछ फ़ोटो बेतरतीब तरीके से मेरे सामने रखे हुए हैं, और मैं भी बेतरतीब तरीके से बड़े ही अचरज भाव से देख रहा था उन्हें ---
इंस्पेक्टर दत्ता – “हाँ तो मिस्टर अभय जी, पिछले पन्द्रह मिनट से तो आप यही कह रहे थे कि न तो आप उस होटल में गए थे --- और न ही इस आदमी से आपका कोई संबंध ही पहले कभी था --- तो फिर आप उसके रूम क्या करने गए थे ---? और सबसे बड़ा प्रश्न तो यह कि आपने इस आदमी की हत्या आख़िर की ही क्यों??!”
एक ओर जहाँ इंस्पेक्टर की बातें मेरे कानो को चुभते हुए दिल-ओ-दिमाग को सुन्न करते हुए मेरे पूरे अस्तित्व को मानो वहीँ समाप्त करने को तैयार थे, वहीँ दूसरी ओर अच्छे से, पूरे होशो हवास से देखने के बाद भी मुझे उन फ़ोटोज़ पर यकीं नही हो रहा था ---
फ़ोटोज़ शायद किसी वाल कैमरा (सीसीटीवी कैमरा) नुमा चीज़ से ली गयी प्रतीत हो रहे थे ---
तनिक धुंधली होते हुए भी बहुत हद तक स्पष्ट थी वो तस्वीरें ---
ब्लैक एंड वाइट उस तस्वीरों में मुझे साफ़ देखा जा सकता है --- अपने जैकेट नुमा लिबास में हाथ डाले हुए --- एक कमरे की तरफ़ जाते हुए --- पूरा मुस्तैद --- ख़ास बात यह कि उन फ़ोटोज़ में कमरे की ओर जाते हुए मैंने (या वो जो कोई भी था); आँखों पर बिल्कुल वैसा ही चश्मा लगाए हुए था, जैसा की उस दिन मैंने पहना हुआ था --- लाल ग्लास वाले --- जोकि अक्सर पार्टियों या फंक्शन में बड़े या ख़ास लोग अक्सर पहने हुए मिल जाते हैं |
“नहीं .... सर .... यकीं कीजिए.... मैं.... मैं....म... नहीं गया.....”
“नहीं गए थे या नहीं जानते इसे?” थोड़े कड़क अंदाज़ में पूछा दत्ता ने |
“आई मीन, म... गया था .... पर जानता न...नहीं ....इसे.... प्लीज़... विश्वास कीजिए आप मेरा ....”
“फ़िलहाल विश्वास नाम के शब्द को साइड में रखते हैं ---- ये बताइए की क्यों गए थे आप वहां? वो भी इतनी रात गए”
“ह्म्म्म... म.. ब... बस,... ऐसे ही --- ”
“मिस्टर अभय --- झूठ बोलने के जितने प्रयास कीजिएगा ---- आपके लिए परेशानी उतनी ही बड़ी होती जाएगी --- और मैं यहाँ कानून के लिए बैठा हूँ , आपके लिए नहीं --- इज़ दैट क्लियर??”
कड़े , सधे अंदाज़ में एक स्पष्ट निर्देश दिया दत्ता ने ----
और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए इतना तो मुझे अंदाज़ा हो ही गया था कि मेरी बाल की खाल उधेड़ने तक दत्ता मुझे छोड़ने वाला नहीं था |
सामने मेज़ पर कई तस्वीरों के साथ चार – पाँच अलग अलग एंगल से खिंची गईं तस्वीरें उस आदमी की भी है जिसके साथ मैं कुछ रात पहले होटल के कैसिनो में पत्ते खेल रहा था --- और इस समय उस आदमी की जिन तस्वीरों को देख रहा हूँ वो चीख चीख कर ये बात साफ़ साफ़ कह रही हैं कि ये मर चुका है !!
एक तस्वीर पर नाम लिखा हुआ था, ‘जयचंद बंसल ’! शायद ये नाम उसी आदमी का होगा ---
टेबल पर पास पानी रखे एक ग्लास उठा कर गले को तर किया ---
कंफ्यूज था मैं ---
अभी जिस परिस्थिति में फँसा हूँ उससे निकल तो सकता हूँ पर कहीं एक समस्या से बाहर आते ही किसी दूसरी समस्या में न जकड़ जाऊं ---- अभी तक तो यही होता आया है ---
थोड़ी देर चुप रह कर पहलु बदलता रहा, पानी पीते रहा थोड़े थोड़े घूँट भर के ---
दत्ता मेरे हरेक हरकत को नोट करता रहा --- उसे ये सब काफ़ी अम्युसिंग लग रहा होगा --- मैं भी मन ही मन उसे कई सारे गन्दी गालियाँ बक चुका पिछले १५-२० मिनट में ---
होंठों के कोने में एक हलकी फीकी मुस्कान लिए बोला वह,
“चाय पीयोगे?”
“जी?.... न... नहीं... धन्यवाद ...”
“अरे धन्यवाद वाली कोई बात नहीं ; जब तक तुम मेरे सभी प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर नहीं दे देते ; तब तक यहाँ हमारे अतिथि हो ... और तब तक हम तुम्हारे बुनियादी सुविधाओं का भरपूर ख्याल रखेंगे !”
दत्ता ने ये मुझ पर तंज कसा था या उसके उस बात में कहीं कोई सत्यता का कोई पुट था--- ये पता नहीं चला ---
कारण,
तभी एक शख्स कमरे में प्रविष्ट हुआ ---
देखने में काफ़ी शालीन --- सभ्य --- संभ्रांत --- उच्च शिक्षित सा प्रतीत होता --- सुलझा हुआ एवं गंभीर |
दत्ता भी उसे देख कर अपने चेयर से उठे और अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए उसका स्वागत किया,
“आइए बिंद्रा जी, आइए .... स्वागत है आपका .... बैठिए |”
दोनों ने एक दूसरे से हाथ मिलाया, थोड़ी इधर - उधर की बातें की , फ़िर ---
“अब केस के बारे में भी कुछ बातें हो जाए क्या मि० बिंद्रा ?”
“हाँ बिल्कुल, मैं तो आया भी इसलिए हूँ (मेरी ओर देखते हुए) --- अम.... ये कौन हैं?”
“फ़िलहाल तो सस्पेक्ट हैं --- खास तो कुछ जान नहीं पाया --- अब अगर आप कुछ उचरियेगा तो कुछ मालूम भी होगा और तब इनसे थोड़ी और पूछताछ हो जाएगी |”
“ओह .. तो यही भाई साहब हैं?”
“हाँ जी, प्राइम सस्पेक्ट तो फ़िलहाल यही हैं --”
“ह्म्म्म”
मिस्टर बिंद्रा मुझे ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखा,
फ़िर दत्ता की ओर देखकर बोला,
“आप बुरा ना माने तो क्या मैं इससे कुछ प्रश्न पूछ सकता हूँ??”
दत्ता के पेशानी पर बल पड़े, ठीक से खुद को एडजस्ट किया कुर्सी पर, सशंकित नज़रों से बिंद्रा को देखा और ‘हाँ’ में सिर धीरे से हिलाया ---
बिंद्रा ने सस्पेंस बढ़ाते हुए फ़िर पूछा,
“आप अनुमति दे रहे हैं न ? कहीं किसी भी तरह का कोई एतराज़ तो नहीं??”
“अरे नहीं नहीं .. कोई समस्या नहीं .... आप पूछिए ... जो भी पूछना है |”
दत्ता पूरी तरह प्रस्तुत तो नहीं था पर मानने के अलावा शायद बन्दे के पास और कोई चारा भी न था |
दत्ता की तरफ़ से सहमति जान कर मि० बिंद्रा मेरी ओर पलटे --- आँख और चेहरा दोनों ही गंभीर --- सोच विचार करते हुए से --- शायद मन ही मन में इस बात को जांच कर आंकलन करना चाहते हो की ये मर्डर मैंने किया है या नहीं --- या --- मैं कर भी सकता हूँ या नहीं ---
बहरहाल,
मेरी ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा,
“हेलो, आई एम आकाश बिंद्रा .. एक्सपर्ट एंड चीफ़ ऑफ़ फोरेंसिक्स डिपार्टमेंट ---!”
‘ओह तेरी !!!’
मेरे दिमाग में यही एक बात सबसे पहले कौंधी !
तत्परता से ; पर तनिक काँपते हाथ को संभालता हुआ आगे बढ़ाया और दोनों ने ही एक अच्छा हैण्डशेक किया –-- मेरे हाथ को यूँ कुछ मजबूती से पकड़ा था मि० बिंद्रा ने की मानो मेरे हाथ को ही उखाड़ लेना चाहते हो ---
इतने दिनों इतनी सारी घटनाएँ घट चुकी थीं मेरे साथ और ऊपर से मोना के साथ उसके आदमियों से ली गई ट्रेनिंग और दूसरी कई बातों ने मुझे कई सारी बातों का ज्ञानी और अभ्यस्त बना दिया था ---
अतएव,
इस बात को भांपते मुझे देर न लगी कि बिंद्रा मेरे हाथों की मज़बूती की जांच कर रहा है किसी कारणवश --- इनका शायद ऐसा पुलिस प्रोसीजर होता होगा --- |
“जी, मैं अभय रॉय --- बाई प्रोफेशन आई एम अ टीचर --- खुद की एक कोचिंग सेंटर भी है --- |”
“कहाँ?” वाक्य समाप्त होते ही बिंद्रा ने प्रश्न दागा |
“यहीं, कल्याण नगर में --- मुखर्जी कॉलोनी --- गली नं० ५ ... फिफ्थ हाउस --- ”
कोशिश तो मेरी यही थी की मैं आत्मविश्वास से लबरेज़ नज़र आऊं |
“ह्म्म्म --- क्या क्या पढ़ाते हैं आप?”
“अंग्रेजी ! इंग्लिश मेरा प्रिय विषय है --- और इसके अलावा दो और स्टाफ़ हैं --- एक मैथ्स और फिजिक्स सँभालते हैं और दूसरा केमिस्ट्री और हिस्ट्री --- एक स्टाफ और है, जोकि उस सेंटर का देखभाल करता है --- पियून टाइप --- |”
“हम्म – ओके --- नाईस टू नो दैट --- म्मम्म--- परिवार में कौन कौन हैं आपके ? आर यू मैरिड?”
“नो सर, एम सिंगल --- परिवार में यहाँ चाचा – चाची के साथ रहता हूँ --- उनकी दो बेटियाँ हैं --- दोनों ***** राज्य में *********** स्कूल में पढ़ती हैं --- मेरे माता पिता, ******** में रहते हैं |”
“ओके ....”
सिर थोड़ा झुका कर दाएँ हाथ की तर्जनी और मध्यमा ऊँगली के साथ अंगूठे को अपनी ठोड़ी पर रख कुछ सोचने लगा बिंद्रा --- उसके इस प्रोफेशनल सोचने के ढंग ने थोड़ा ही सही, मुझे अब टेंशन देना शुरू कर दिया --- उसे देखते हुए एक बार दत्ता की तरफ़ भी देखा, वो भी बड़े फोकस्ड तरीके से बिंद्रा के चेहरे पर नज़रें गड़ाए था ---
अंततः शांति बिंद्रा के आवाज़ ने ही भंग किया ---
“ये बताइए मि० अभय, क्या आपका कोई मिलिट्री बैकग्राउंड है? --- आपका, आपके परिवार का? किसी भी प्रकार का कोई रिलेशन? ”
“नहीं सर”
“श्योर?”
“१००%”
“हम्म ... अच्छा, कभी कोई ट्रेनिंग ली है आपने? मिलिट्री, पुलिस इत्यादि की --- खास कर हैण्डगन चलाने की??”
“बिल्कुल नहीं सर” बिंद्रा के इस प्रश्न ने थोड़ा हैरत में डाला मुझे |
“ह्म्म्म”
बिंद्रा दोबारा उसी सोचने वाले पोजीशन में आ गया |
“बात क्या है मि० बिंद्रा --- ऐसे सवाल क्यों कर रहे हैं आप?”
“बात ही कुछ ऐसी है मि० दत्ता ....”
“क्या बात है ... कुछ बताइए भी ....”
मेरी तरफ़ देख कर दत्ता की ओर पलटा बिंद्रा,
“इसके सामने कहूँ?”
“हाँ, कोई दिक्कत नहीं है |”
“ठीक है, सुनिए फ़िर.... जो क़त्ल हुआ था, पिछले दिनों योर होटल में ; उससे एक बात तो बिल्कुल साफ़ है की वो सिर्फ़ कोई आपसी रंजिश का मामला नहीं हो सकता --- ”
“ऐसा क्यों ?? किस बिना पर आप इतनी बड़ी बात कह सकते हैं मि० बिंद्रा ...??”
“वो ऐसे, (चेयर पर आराम से पीठ टिकाया बिंद्रा ने) --- की जिस आदमी का मर्डर हुआ, जयचंद ... जयचंद बंसल ... वो किसी आम हथियार से नहीं हुआ है..”
“हाँ पता है... गन का प्रयोग किया गया है ...” बिंद्रा की बात को बीच में काटते हुए दत्ता ने कहा |
बिंद्रा मुस्कराया,
बोला,
“पहले पूरी बात तो सुन लीजिए इंस्पेक्टर साहब ... ”
दत्ता सकपकाया,
बोला,
“जी बिल्कुल... कहिए... सॉरी...”
“हाँ, तो जैसा की मैं कह रहा था, इस जयचंद आदमी की हत्या हुई किसी हैवी कैलिबर वाले गन से... पॉइंट ब्लेंक तो नहीं कहूँगा पर हाँ, गोली चली है बहुत पास से ... यूँ समझिए कि आदमी से गन की दूरी बमुश्किल १० से १५ सेंटीमीटर की रही होगी ... ”
“ओह्ह !” दत्ता के मुँह से बरबस ही निकल गया |
“हम्म, और जैसा की आपको पता ही होगा की हैवी कैलिबर की गन मुख्यतः मिलिट्री गन ही होती और ऐसी गन को चला पाना किसी बलिष्ठ आदमी या फ़िर किसी मिलिट्री मैन से ही संभव है ..... ” इतना कह कर बिंद्रा थोड़ा चुप हुआ ....
जबकि दत्ता टेबल पर अपने दोनों हाथों की कोहनियों को टिका कर दोनों मुट्ठियों को आपस में मिला कर, उनसे अपने होंठों को दबाए गहन सोच में पड़ते हुए पास पड़े फ़ोटोज़ को देखने लगा ...
बिंद्रा की बातें और दत्ता के गहन सोच को देखते हुए मेरा खुद का टेंशन हवा हो गया --- बहुत रुचिपूर्ण बातें लग रही थी --- कभी सुना नहीं इसलिए अभी पूरी एकाग्रता से उनकी बातें सुनने लगा ...
“ह्म्म्म ... ह्म्म्म.... तो ... अगर इन तस्वीरों पर गौर किया जाए तो ये लड़का... आई मीन... ये जो अभी सामने बैठा है... फ़िट ज़रूर है पर बलिष्ठ नहीं .... और .. मिलिट्री मैन तो बिल्कुल नहीं है ... तो फ़िर .....”
“एक बात और है दत्ता साहब...”
“वो क्या मि० बिंद्रा ... ”
“अभी यहाँ थाने आते समय सोचा की एकबार मि० भट्टाचार्य.. प्रदीप्तो भट्टाचार्य से मिलता आऊँ... आप तो जानते ही हैं की कितने बड़े डॉक्टर हैं वे... खास कर डेड बॉडीज के साथ उनका कुछ खास ही याराना है ... इसलिए शायद पोस्टमॉर्टेम के अधिकतर कामों को वही संभालते हैं, ....... आज तो छुट्टी है उनकी ... इसलिए घर गया उनके ... सोचा मिल कर हाल चाल पूछ लूँगा और इस केस से संबंधित कुछ बातों पर भी डिस्कशन हो जाएगी ...”
“फ़िर?”
“डिस्कशन के शुरू होते ही उन्होंने एक बम फोड़ दिया दत्ता साहब..”
“कैसा बम?”
“उनका कहना है कि ... ये... स्वर्गीय जयचंद ... इनकी मृत्यु गोली लगने के पहले ही हो चुकी थी !”
“व्हाट?!?!”
बुरी तरह चौंका दत्ता और मैं भी ----
“यस...”
“कैसे?”
“डॉ० भट्टाचार्य का कहना है कि स्वर्गीय व्यक्ति की मृत्यु गोली लगने से करीब आधा घंटा पहले ही हो चुकी थी ... ‘ज़हर’ से ..!”
“ज़हर से?”
“हाँ, साइनाइड से.”
“साइनाइड?”
“उनका कहना है कि साइनाइड कई तरह .. कई किस्म के होते हैं .... उनमें से ही किसी का इस्तेमाल किया गया है ...”
“तो क्या... पता चला की किस किस्म का साइनाइड का इस्तेमाल किया गया था?”
“फ़िलहाल नहीं ... बहुत मुश्किल है ... कारण, अधिकतर किस्मों के न तो कोई रंग होता है और न ही कोई स्मेल (गंध) ... पर हाँ, ये ज़रूर पता लगाया जा सकता है कि ज़हर कैसे दिया गया था ... ”
“तो क्या इस केस में पता चला?”
“हाँ, डॉ० भट्टाचार्य का कहना है की इस केस में ज़हर दो तरीके से दिए गए... एक, शराब में मिला कर .. और दूसरा, किसी पिन जैसी चीज़ को जिस्म में चुभो कर.. ”
“पिन जैसी...”
“हाँ, पिन जैसी.. वैसे डॉ० को इस बात को थोड़ा और जांच करना पड़ेगा की क्या ज़हर पिन से ही दिया गया था या फ़िर किसी और चीज़ का इस्तेमाल किया गया था |”
“हम्म्म्म..”
“क्या हुआ दत्ता साहब... किस सोच में डूब गए?”
बिंद्रा ने दत्ता को चिंता में डूबे देख पूछा ---
दत्ता - “और कुछ नहीं ... बस यही सोचने लगा था कि दो अलग तरीके से एक ही आदमी को मारने का क्या काम? क्या लाभ?”
“शायद कोई बहुत ही नफरत करता होगा इस बन्दे से ... और कन्फर्म होना चाहता था की यह निश्चित रूप से मर जाए ....”
“हम्म... आपके इस बात में तो दम है .... (थोड़ा रुक कर) .. अच्छा, गोली क्या किसी हैवी कैलिबर की ही गन से की गई है?”
“हाँ, ये बात पक्की है.. हैवी कैलिबर गन इस्तेमाल की गई है ... और शायद वह सेमी आटोमेटिक गन हो सकती है”
“ह्म्म्म..” दत्ता एक बार फ़िर गहरी सोच में डूब गया ..... कुछ ही मिनट बाद उसका ध्यान मेरी तरफ़ हुआ, देखते ही बोला,
“तो क्या ये शक के दायरे से बाहर है?”
बिंद्रा एकबार मेरी तरफ़ अच्छे से देखा और दत्ता की ओर देखते हुए बोला,
“फ़िलहाल तो बाहर है.. ख़ास कर हत्या के दायरे से... और किसी दायरे में इसे रखना हो तो वो आप जानो...”
दो मिनट सोच कर दत्ता ने मुझे वहां से जाने ... मतलब घर जाने की परमिशन दी... पर साथ ही ये भी कह दिया कि जब भी थाने से कॉल आये तो मैं टाइम पर पहुँच जाऊँ |
मैंने राहत की साँस ली और वहां से बाहर निकल आया --- मन ही मन ईश्वर और बिंद्रा को धन्यवाद किया --- की इनकी वजह से ही मैं इस भारी मुसीबत से छूट पाया ---
अपने स्कूटर की तरफ़ बढ़ा ही था कि थाने के मेन गेट से थोड़ी दूर --- सड़क के उस पार एक काली फ़िएट कार पर मेरी नज़र गयी --- जो मेरे देखते ही देखते एकदम से गियर चेंज कर आगे बढ़ गई ---
बहुत मन किया कि मैं उस कार के पीछे जाऊँ पर किसी नई मुसीबत में फंस जाने के डर से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया ----- |
क्रमशः
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