RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ३२)
फोरेंसिक्स डिपार्टमेंट..
सुबह के साढ़े दस बज रहे हैं..
फोरेंसिक्स चीफ़ अपने चेयर पर.. और उनके सामने मौजूद टेबल के दूसरी ओर, उनके विपरीत दिशा में दो विज़िटर्स चेयर में से एक में बैठा मैं..
कुछ ही सेकंड्स पहले दो कप कॉफ़ी सर्व किया गया ..
और अभी हम दोनों ही एक एक कप उठा कर गर्म कॉफ़ी की धीरे धीरे चुस्कियाँ ले रहे हैं...
फोरेंसिक्स चीफ़ बिंद्रा, आकाश बिंद्रा के सामने, टेबल पर कुछ डॉक्यूमेंट्स रखें हैं जिन पर वह बारी बारी से नज़रें फिरा रहा है और एक - दो फ़ाइलों के पन्ने उलट कर कुछ चेक भी किए जा रहा है..
मामला क्या है, ये मेरे को भी नहीं मालूम ---
आज सुबह नौ बजे ही मेरे कोचिंग सेंटर में बिंद्रा का फ़ोन आया था --- कुछ बहुत ही ज़रूरी बातें करनी थी ; सो अपने ऑफिस में बुलाया था --- दिखने में चालीस के आस पास का लगता है --- सुलझा हुआ व्यक्तित्व वाला आदमी है और सब के साथ शालीनता के साथ बात करना अपना पहला ड्यूटी समझता है --- और मुझे जो बात सबसे ज़्यादा पसंद आया वो यह कि ये बिंद्रा भी मेरे ही जैसा सिगरेट का शौक़ीन बंदा है ----
सुडुक सुडुक कर चुस्कियाँ लगाते हुए कुछ ही देर में कॉफ़ी का हम दोनों ने एक साथ ही इतिश्री किया ---
होंठों पर रुमाल फिरा कर दूसरे हाथ में पकड़े कागजों को सामने टेबल पर रखा बिंद्रा ने ...
मेरी ओर देखा,
एक गहरी साँस लिया ...
मैं समझ गया, अब कुछ गंभीर बातें होने वाली है ... क्योंकि औपचारिकता वाली बातें तो हमने मिलते ही शुरू कर के खत्म कर दिया था ---
“तुमसे कुछ बातें करनी थी... अम्म्म... शायद तुम्हें ज़रूरी न लगे पर मैं इन बातों को ज़रूरी समझता हूँ ...”
“मैं सभी तरह की बातों के लिए प्रस्तुत हूँ सर.. वैसे भी पिछले कुछ दिनों से जिस तरह के परिस्थितियों और चिंताओं से दो – चार हुआ और हो रहा हूँ , अब तो यही चाहता हूँ कि किसी तरह से पिंड छूटे ...”
“फ़िलहाल तो पिंड छूटने वाली बात को भूल ही जाओ, अभय ...”
“क्यों सर?” मैं बुरी तरह से चौंका ..
“क्योंकि कम से कम मुझे तो ऐसी कोई संभावना नज़र नहीं आ रही...” थोड़े बुझे स्वर में कहा बिंद्रा ने |
“ओह्ह !...” बिंद्रा की बात खत्म होते ही निराशा घर कर गई मेरे अंदर ... नीचे, पैरों की ओर देखने लगा ...
“पर अगर कुछ बातें क्लियर हो जाए, तो ये मान कर चलो की तुम्हें अधिक परेशान नहीं होना पड़ेगा..” बिंद्रा की बातों से लगा की वह मुझे उम्मीद देना चाहता है ..
उम्मीद करने और रखने में तो कोई बुराई नहीं,
सो मैंने भी पूछ ही लिया,
“पर बातें कौन सी हैं सर?”
“अभी तक इतना तो समझ ही चुके होगे की जो भी बात है... जैसी भी बात है... तुमसे ही जुड़ी हुई है....?”
“जी सर, वो तो बहुत पहले ही समझ गया था..”
“गुड, वैरी गुड... जितना दिखते हो... उससे कहीं अधिक समझदार हो...” काफ़ी प्रशंसात्मक लहजे में चहकते हुए बिंद्रा बोला ...
पर मेरा चेहरा टेंशन के कारण बोझिल सा ही बना रहा... बस, एक बहुत ही फीकी सी मुस्कान बिखेर लिया अपने चेहरे पर..
मेरी ऐसी प्रतिक्रिया देखते हुए बिंद्रा तुरंत ही संजीदा हुआ और बोला,
“बात , दरअसल तुमसे ‘योर होटल’ के बारे में करनी है अभय...”
‘योर होटल’ का नाम सुनते ही धड़कन बहुत ज़ोरों से बढ़ गई मेरी... पता नहीं क्यों, आजकल ये नाम सुनते ही मेरी हालत बहुत ही दयनीय सी हो जाती है ... घबराहट के मारे कभी कभी तो ये भी भूल जाता हूँ की मैं साँस भी ले रहा हूँ या नहीं?
“क्या बात करनी है उस होटल के बारे में सर..?”
“पिछले दिनों जो कत्ल हुआ, जिसके कारण तुम्हें पुलिस स्टेशन में हाज़िर होना पड़ा और न चाहते हुए भी सस्पेक्ट बनना पड़ा.....”
बिंद्रा की बात को बीच में ही काटते हुए मैं बोल पड़ा,
“पर सर, मैं अब तो सस्पेक्ट नहीं रहा न?”
“प्राइम सस्पेक्ट.”
“जी??”
“तुम प्राइम सस्पेक्ट नहीं हो अभय... पर सस्पेक्ट अभी भी हो..” अपने इस वाक्य पर अच्छा ज़ोर दिया बिंद्रा ने..
“ओह्ह!!” अब तो और भी निराश हुआ मैं.. संदिग्धों की सूची में मैं अभी भी हूँ... ये भी तो कोई छोटी बात नहीं..
“पर मैं ये भी नहीं कहूँगा की तुम सस्पेक्ट भी हो... क्योंकि ऐसा कोई भी प्रमाण हाथ नहीं लगा है जो तुम्हें प्राइम सस्पेक्ट बना दे और जो और जितने प्रमाण मिले हैं वो तुम्हें सस्पेक्ट बनाने के लिए काफ़ी नहीं है...”
“तो फ़िर?”
“तो फ़िर यही कि तुम उन लोगों की सूची में हो जिनके सस्पेक्ट न होने पर भी पुलिस उन पर नज़र बनाए रखने में कोई ढील नहीं देगी..”
“ह्म्म्म...”
बिंद्रा की यह बात सुन कर पूरी तरह से नहीं भी तो बहुत हद तक ऐसा अनुभव हुआ मानो सीने पर से कोई बहुत भारी बोझ हट गया हो..
इस बात को सुन कर मैं रिलेक्स हुआ, यह उसने तुरंत ही भांप लिया..
इसलिए अबकी और भी शाँत लहजे में बात करना शुरू किया बिंद्रा ने,
“समझे, मैं क्या कहना चाह रहा था?”
“जी सर, बिल्कुल...”
“गुड, तो अब जो कुछ भी कहूँगा ; उसे ध्यान से सुनना और जो कुछ भी पूछूँगा, उसका अच्छे से जवाब देना... ओके?”
“यस सर..”
“हम्म, तो जैसा की मैं कह रहा था, ‘योर होटल’ में जो खून हुआ... वह एक तरह से डबल मर्डर था..”
“एक तरह से?”
“हम्म.. यहाँ ‘एक तरह से’ का मेरा मतलब है की ..... (बोलते हुए थोड़ा रुका बिंदा, मुझे गौर से देखा, फिर शुरू हुआ) .... देखो अभय, अमूमन डबल मर्डर का मतलब होता है दो कत्ल होना.. पर कई बार पुलिस और फोरेंसिक्स वाले अपने सुविधा के लिए डबल मर्डर का तात्पर्य इस बात से भी लगाते हैं, की जिसका दो तरीके से मर्डर हुआ हो...”
“हाँ सर, आपने तो उस दिन पुलिस स्टेशन में कहा था इंस्पेक्टर दत्ता को... की उस आदमी को दो तरीके से मारने की कोशिश हुई है..”
“कोशिश नहीं अभय, दो तरीके से ही मारा गया है...”
“जी सर, वही...”
“शायद तुम्हें ये भी याद हो की किन दो तरीकों से उसे मारा गया है?”
“अन्ह्ह... जी... एक तो उसे सिर के बीचों बीच गोली मारा गया था... और दूसरा, उसे पिन जैसी किसी चीज़ से ज़हर दिया गया था ...”
मैं भरसक याद करता हुआ, शब्दों को बेहद नपे-तुले अंदाज़ में बोला |
मेरे स्मरणशक्ति को देख बिंद्रा के चेहरे पर प्रशंसा के भाव आये... पर कहा कुछ नहीं...
“गुड.. अच्छा याद है तुम्हें... पर यहाँ मैं बता दूं की ज़हर सिर्फ़ पिन से शरीर में चुभो कर ही नहीं; वरन शराब में भी मिला कर दिया गया था ---- |”
“ओह्ह... यानि ज़हर भी दो तरीके से दिया गया?”
“हाँ...”
“तब तो कुल मिला कर तीन तरीके हुए न सर ?”
“हम्म... कह सकते हो..”
“ह्म्म्म”
“वैसे अच्छी बात है कि इतने दिन पहले की बात याद रखे हो ---”
“थैंक्यू सर, वैसे ज़्यादा दिन भी तो नहीं हुआ ..”
“ह्म्म्म, खैर, जानते हो वह आदमी कौन था?”
“नहीं सर... कौन था?” मैंने बड़े ध्यान से बात सुनने वाला मुद्रा बनाया... सुनना भी था.. आख़िर जानना था अच्छे से कि कौन था वह आदमी --- ??
“उस ‘योर होटल’ के पार्टनर्स में से एक --- इस शहर के मशहूर धनाढ्यों में से एक --- ‘जयचंद बंसल’!! ”
“जयचंद बंसल ! ”
“हाँ, जयचंद बंसल ... काफ़ी पैसे वाला बंदा था वह |”
“हाँ, नाम सुना सुना सा लगता है.. शहर के सबसे बड़े रईसों में से एक इसका भी नाम था.. वैसे, शक्ल से नहीं पहचानता था इसे मैं.”
“ह्म्म्म”
“तो सर.. अभी अभी आपने कहा की ये आदमी ‘योर होटल’ के पार्टनर्स में से एक था... कितने पार्टनर्स हैं उस होटल के?”
“तीन --- तीन थे --- अब दो बचे”
“और वो दोनों कैसे लोग हैं?”
“तुम्हें क्या लगता है..?” बिंद्रा हँसते हुए बोला.
“पता नहीं.. नो गेस”
“ योर होटल जैसे होटल के पार्टनर्स हैं भई.,, ज़ाहिर है.. सही लोग तो होंगे नहीं”
“जी सर, सही बात है.”
“और भी कई बात हैं ...”
“वो क्या सर?”
“जयचंद पर काफ़ी लोगों का कर्जा था.. बहुत पैसे बकाया था... अब वो तो रहा नहीं.. इसलिए कई लोग इस बात से ख़ार खाए बैठे हैं और बार बार किसी न किसी तरह से पुलिस से कांटेक्ट कर के ख़ूनी के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानना चाहते हैं.. कुछ ने तो अपनी ओर से भी कुछ मदद करने की पेशकश की है..”
“ओह्ह... पर इससे क्या होगा सर... ख़ूनी के बारे में अगर पता चल भी जाए तो भी तो उनके बकाए पैसे उन्हें मिलने से रहे.. क्योंकि ज़रूरी तो नहीं की ख़ूनी भी उतना ही अमीर हो ... या.... इतना पैसे वाला हो की उनके पूरे पैसे लौटा दे... सूद की बात तो रहने ही दें..”
“हम्म... ये बात तो है..”
“एक और बात सर, ये जयचंद... ये आदमी तो अपने आप ही बहुत रईस... पैसे वाला था.. तो फ़िर इसने और लोगों से उधार क्यों लिए थे... ये समझ में नहीं आया..”
“शौक बड़ी चीज़ होती है मिस्टर अभय... (चेयर पर पीठ लगाते हुए बोला बिंद्रा) ... बड़े से बड़े शौक ने कई अच्छे अच्छों को कंगाल बना दिया है.. इसके अलावा भी हो सकता है की वो कई और बिज़नेस में हाथ आज़मा रहा होगा.. उस हिसाब से और पैसे चाहिए होंगे.. अब अपने घर का पूरा तिजोरी ही तो खाली नहीं कर सकता है न कोई..? ... इसलिए दूसरों से उधार लिया होगा......”
“और दूसरों ने भी दे दिया.....?” किया तो मैंने प्रश्न ही, पर ये मेरा प्रश्न कम ; व्यंग्य अधिक था..
“पैसे वालों को हर कोई पैसा देने को तैयार रहता है... क्योंकि पता होता है उन्हें की कभी न कभी , देर सबेर उन्हें उनका पैसा ... पूरा पैसा मिल जाएगा... जबकि गरीब के साथ ऐसी बात नहीं होती...”
“हाँ सर, ये तो सही कहा आपने..”
थोड़ा रुक कर पूछा,
“अच्छा सर, आप बुरा न माने तो एक बात पूछूँ?”
“हाँ पूछो”
“सर, वो जो मर्डर हुआ ....”
“किसका... जयचंद का?” मेरी बात पूरी होने से पहले ही बिंद्रा बोल पड़ा..
“जी सर .... सर, आप उस दिन थाने में कह रहे थे कि उसका खून किसी हैवी कैलिबर वाले गन से हुआ... ”
“हैवी कैलिबर वाली बात का मैं उस दिन अंदाज़ा लगा रहा था अभय... ” मुझे फ़िर बीच में टोकते हुए बिंद्रा बोला...
“सर, प्लीज़ मुझे पूरी बात समझाइए ... आपने मेरा हाथ चेक किया , फैमिली बैकग्राउंड के बारे में पूछा, मेरे करियर, जॉब के बारे पूछा, गोली की बात की , टाइम की बात की आपने...... इत्यादि इत्यादि... ये सब आख़िर क्या था सर.... मतलब, मेरी समझ में कुछ आया ही नहीं था.... प्लीज़ एक्सप्लेन मी ऑल दीज़ थिंग्स..”
“ह्म्म्म... वो सब पुलिस प्रोसीजर होता है अभय... तुम्हारा समझ पाना मुश्किल है..”
“सर, आप समझायेंगे तो सब समझ जाऊँगा..”
“हाहाहा ... ऐसा..??” बिंद्रा हँसते हुए पूछ बैठा...
“जी सर, बिल्कुल..” मैंने भी पूरी दृढ़ता से जवाब दिया...
बिंद्रा ने कुछ सेकंड्स मेरी ओर अच्छे से देखा... मेरे चेहरे पर उभर आए गम्भीरता के भावों को समझ पाने में कोई मुश्किल न आई होगी..
मुस्कराते हुए टेबल के , अपने दाएँ ओर निचले दराज को खींचते हुए खोला, एक छोटा सा पैकेट निकाला हथेली के माप बराबर; साथ में मेटल की एक छोटी सी चीज़ थी जो मुझे उस समय समझ में नहीं आया की वह क्या चीज़ है...?
“स्मोक करते हो?” पैकेट खोलते हुए अचानक से बिंद्रा पूछा...
“ज...ज..जी?!!” अचानक हुए एक ऐसे सवाल ने मुझे हड़बड़ा दिया ....
बिंद्रा तब तक एक सिगरेट निकाल कर अपने होठों के बीच हल्के से दबा लिया था... उसी अवस्था में मुस्कराते हुए दोबारा पूछा उसने..
“सिगरेट पीते हो?”
“न.. नहीं सर..” भला बनने का कोशिश किया.... जोकि अगले ही क्षण में पकड़ा जाने वाला था...
“ओह कम ऑन अभय... अब इतनी सी बात के लिए झूठ बोलोगे... मुझे पता है तुम सिगरेट लेते हो...” कहते हुए बिंद्रा ने उस छोटे से मेटल के डिब्बे को एक साइड दबाया.. ऐसा करते ही ‘खट’ की आवाज़ से डिब्बा एक साइड से ऊपर हो कर खुल गया और आग की एक बहुत छोटी लौ नज़र आई.. बिंद्रा होठों पर दबाए सिगरेट के अगले सिरे को उस लौ के ऊपर ले गया... अगले ही क्षण सिगरेट सुलग उठा.. और नीला धुआँ फैलने लगा...
“अंह... सर... मैं.....आप... सिगरेट...” कुछ पूछने के लिए शब्दों को व्यवस्थित करने लगा..
“परसों तुम्हें न्यू मार्किट में देखा था.. अपने दो दोस्तों के साथ धुएँ उड़ा रहे थे... एक ख़त्म होते ही दूसरा सुलगा लिया था तुमने...” मेरी ओर देख कर एक अर्थपूर्ण मुस्कान दिया बिंद्रा ने...
“जी सर...” मैं झेंपते हुए बोला..
“चलो... अब जल्दी से सिगरेट निकालो और फूँकना शुरू करो.. नहीं है तो कहो, मैं अपना देता हूँ..” कहते हुए बिंद्रा ने अपना सिगरेट वाला पैकेट टेबल पर मेरी ओर सरका दिया..
“नहीं सर ... मेरे पास है... पर... आपको कैसे ...”
“अभय...... बहुत सिंपल सी बात है.. कोई बंदा अगर एक खत्म होते ही दूसरा सिगरेट सुलगा ले , इसका मतलब यही है कि उसे सिगरेट से विशेष लगाव है .. मतलब की वह चेन स्मोकर है और ऐसा बंदा एक पैकेट हमेशा अपने पास ही रखेगा इस बात की भी अच्छी सम्भावना होती है..”
मैं कुछ बोला नहीं..
सिर्फ़ मुस्कराया...
मुस्कराते हुए अपने पैंट के दाएँ पॉकेट से सिगरेट और लाइटर ; दोनों निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया...
दो मिनट हम दोनों में से कोई भी कुछ न बोला... सिर्फ़ धुएँ उड़ाते रहे...
फ़िर,
अचानक से बिंद्रा बोल पड़ा,
“ह्म्म्म ... तो अब सुनो अभय....”
क्रमशः
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