RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ३६)
“बात साल भर पहले की है अभय.. बेटियों को बोर्डिंग स्कूल में दिए मुश्किल से तीन महीने ही बीते होंगे... तुम तब यहाँ नहीं थे.......”
“अच्छा?”
“हाँ.. ”
“आगे --- ??”
“तुम आए थे बाद में... अपने फ्रेंड्स लोग के साथ यहाँ – वहां घूमना; मतलब की , मार्किट जाना, सिनेमा जाना.... वगैरह वगैरह .. और कहीं अगर नहीं भी जाऊँ तो २-३ फ्रेंड्स को घर पर ही बुला लेती थी...”
“हम्मम.”
“जैसा की तुम जानते ही हो, की शीला मेरी सबसे क्लोज़ फ्रेंड है... बेस्ट फ्रेंड... ”
“हाँ... जानता हूँ... वह काफ़ी ओपन माइंडेड औरत हैं.. ” मैंने कहा.
शीला आंटी को काफ़ी दिनों से जानता हूँ मैं.. खुले विचारों वाली.. घूमना फिरना पसंद करने वाली औरत है वह...
उनके खुले विचार उनके पहनावा से भी जान पड़ता है..
मतलब,
की ड्रेस कोई सा भी हो --- क्लीवेज दिखना - दिखाना उनके लिए साँस लेने जैसा एकदम नार्मल सी बात है ... खुले गले के कपड़े पहनना, कभी टाइट तो कभी बहुत ढीला पहनना ... लेटेस्ट फैशन ट्राई करना ... शो ऑफ़ करना ... ये सब उनका पसंदीदा और डेली का काम है ...
कोई ड्रेस अच्छा है या नहीं ; इसको जानने का उनका तरीका भी काफ़ी अनोखा है ... और वह ये कि किसी ड्रेस को पहन कर मार्किट में निकलने पर उन्हें घूर घूर कर देखने वालों की संख्या कितनी है ---
अगर देखने वाले लार टपकाते हुए घूर रहे हैं – ताड़ रहे हैं तो ड्रेस बहुत बहुत ही अच्छा है ... शानदार है ...
पर,
देखने वाले सिर्फ़ देखने के लिए देखे और फ़िर अपने अपने काम में लग जाए ; या सिर्फ़ देखे , गंदी मुस्कान न दे ... फ़िर चाहे वह ड्रेस कितना भी कीमती क्यों न रहा हो... उसकी सिलाई और बनावट चाहे कितना ही उम्दा क्यों न हो.. वह हमेशा के लिए शीला आंटी के ‘बेकार’ वाली लिस्ट में शुमार हो जाती ---
दूसरों को , ख़ास कर मर्दों को भाव नहीं देती , पर दूसरे अगर उसे भाव न दे तो उन्हें काफ़ी अखर जाता ...
महँगे होटलों में खाना और महँगे पर्स से लेकर रिस्ट बैंड पहनना, कोई नई बात नहीं उनके लिए...
और भी कई शौक होंगे उनके ....
और हैं भी...
हस्बैंड उसके ऐसे भी कुछ कहते नहीं हैं ... खुद भी बड़े शौक़ीन किस्म के हैं ... रातों को सेक्स में नए नए तरीकों से मज़े लेने के लिए नए नए भड़काऊ कपड़े ख़रीद कर देते हैं उसे... साथ ही, उसे अपनी बीवी दूसरे मर्दों को रिझाती हुई बहुत अच्छी लगती है ...
अब जब पति के तरफ़ से ही इतनी छूट है तो फ़िर बीवी तो ऐसी होगी या करेगी ही..
धीरे धीरे उसके नाज़ और नखरे मुझे भी बहुत बहाने लगे --- मैं भी उसके जैसी शो ऑफ करना चाहने लगी, उसके जैसी बनना चाहने लगी... उसे भी यह पता चलने में देर न लगी .. एकदिन मुझसे पूछ ही बैठी और मैंने भी अपने सभी अरमानों को खुल कर उसे कह सुनाया ..
उस दिन तो कोई विशेष बातचीत न हुई इस बारे में; हम दोनों में...
अगले ३ दिन नार्मल ही बीता ...
हम सिर्फ़ मार्किट गए, सिनेमा गए, फ़िर रेस्टोरेंट में कुछ हल्का खायी और वापिस अपने अपने घर आई.. फ़िर अगले २ दिन नहीं आई वह.. मैंने फ़ोन भी किया; पर उधर से जवाब मिला की उस वक़्त वह घर पर नहीं है ... मैंने नार्मल बात समझ के अपने नियमित दिनचर्या में व्यस्त हो गयी...
तीसरे दिन शीला हमारे द्वारे उपस्थित हुई.. मैं बहुत ख़ुश हुई .. हूँ भी क्यों न --- उसके साथ का ही असर था जो मुझे हर दिन कम से कम १ घंटे के लिए मार्किट घूमना, घर से कुछ देर के लिए बाहर रहना ज़रूरी लगने लगा --- |
थोड़ी देर इधर – उधर की बातें करने के बाद मैं तैयार होने चली गयी .. एक सेमी ट्रांसपेरेंट सी साड़ी पहनी जिसमें से मेरा पेट और नाभी बहुत हद तक दिखता है .. ये साड़ी शीला की ही गिफ्ट हुई थी; मेरे जन्मदिन पर --- ब्लाउज पहनी जोकि काफ़ी अच्छी फिटिंग की थी और शार्ट स्लीव भी --- अंडरआर्म्स और वक्षस्थल के पास परफ्यूम लगाई और शीला के सामने जा खड़ी हुई ...
उस वक़्त शीला मैगज़ीन पढ़ रही थी.. सर उठा कर मुझे देखी तो उसका मुँह खुला का खुला ही रह गया.. उसके चेहरे पर आते – जाते भाव ने साफ़ बता दिया की वह मुझे देख कर दांग रह गई है ... उसकी शक्ल - ओ - सूरत ने मुझे शर्माने पर मजबूर कर दिया..
वह उठी ..
सधे कदमों से चलती हुई मेरे पास पहुँची; ऊपर से नीचे तक अच्छे से देखी --- एक हल्की सीटी मारी, घूम कर मेरे पीछे पहुँची ..
एक सीटी फ़िर मारी --- और अचानक से मेरे नितम्बों पर अपने दोनों हाथ रख धीरे धीरे सहलाने लगी और सहलाते हुए ही धीरे धीरे उसके दोनों हथेली ऊपर उठते हुए मेरे कमर तक पहुँचे --- कुछ क्षण वहाँ रुक कर ऊपर उठे और साड़ी के नीचे से ही मेरे मेरे वक्षों को कुछेक बार सहलाने के बाद दबाना शुरू कर दी...
जैसा की तुम्हें पहले ही बताई थी की कभी कभी बहुत बोर होने पर हम दोनों अकेले में एक दूसरे के शरीर के साथ थोड़ी देर के लिए मस्ती शुरू कर देते थे ... यहाँ भी वही हुआ .. पर वो बोर तो नहीं हो रही थी और ना ही मैं बोरियत महसूस कर रही थी --- फ़िर वो ऐसी मस्ती क्यों करने लगी?? ---
मैं मना की उसे पर वह नहीं सुनी --- वक्षों पर उसके नरम हाथ और खेलने के तरीके ने धीरे धीरे मुझ पे भी ख़ुमारी छा दिया ..
कुछ देर ऐसे ही मस्ती के बाद वो अपना मुँह मेरे कानों के बहुत पास ले आई और धीरे से बोली कि ऐसे ड्रेसेस में बहुत हुआ --- अब मुझे कुछ अलग ट्राई करना चाहिए ---
सुन कर मुझे बहुत हैरानी हुई...
हैरानी इस बात का की ये जो अभी पहनी हुई हूँ ; यही क्या कम है जो अब ये मुझे कुछ अलग ट्राई करने को कह रही है....?
“क्या कह रही हो... अलग ट्राई करूँ??”
“यस स्वीटी... अलग... उम्म्म...”
कहते हुए मेरे पीछे से और सट गई शीला और मेरे वक्षों पर भी ज़ोर बढ़ा दी...
उसकी गर्म साँसें अब मेरे पीठ और कंधे पर आते महसूस होने लगे.. मुझे अच्छा लग रहा था पर मन अब मेरे ही द्वारा किए गए प्रश्न के सही उत्तर को सही सही जानने को उत्सुक होने लगा ...
उससे परे हटी और उसकी ओर पलट कर दोबारा अपने उसी प्रश्न को पूछ बैठी..
जवाब में पहले तो वह मुस्कराई ...
और फ़िर मेरे पास आई...
मेरा हाथ पकड़ी ..
और सीढ़ियों की ओर बढ़ गई..
वो आगे और मैं पीछे.. मेरा हाथ उसके हाथ में... लगभग खींचते हुए; पर प्यार से ... मुझे मेरे ही बेडरूम में --- मतलब की यहाँ --- जहाँ अभी हम दोनों बैठे हैं --- ले आई..
ठीक इसी आईने के सामने ले आई और लाकर मुझे आईने के सामने खड़ी कर के ख़ुद मेरे पीछे आ गई ..
“मुझे यहाँ क्यों ले आई शीला?”
“बताती हूँ .. पर पहले अच्छे से आईने में ख़ुद को देखो कुछ सेकंड्स...”
“हम्म.. देख रही हूँ --- और --- रोज़ ही तो देखती हूँ ख़ुद को...”
“ठीक है.. आज... अभी ... मेरे कहने से ही एकबार फ़िर बहुत अच्छे से देखो...”
“ठीक है.”
कह कर मैं ख़ुद को देखने लगी ... आईने में...
पर कुछ समझ में नहीं आया...
आए भी तो कैसे ...
जो डेली देखती हूँ उसमें आज अचानक किसी और के कहने से मैं भला अलग क्या देख लूँगी ...
फ़िर भी,
यह सोच कर कि अगर ये कह ही रही है ऐसा करने को तो ज़रूर कोई बात होगी... शायद... शायद मेरी आज की ड्रेसिंग थोड़ी अलग हो गई होगी... कुछ मिस कर गई होंगी मैं...
मैं उलझन में पड़ गई क्योंकि मैं अपनी ड्रेसिंग और कपड़ो को लेकर काफ़ी सजग रहती हूँ .. छोटी से छोटी डिटेल काफ़ी मायने रखती है मेरे लिए.. इसलिए छटपटाहट बढ़ने लगी थी मेरी...
मैं उसकी ओर देखी पर --- वह तो बस मुस्कराती हुई मुझे देखे ही जा रही थी...
मुझे असमंजस में देख उसे शायद अच्छा लग रहा होगा..
थोड़ी ही देर बाद वह मेरे पीछे आ कर खड़ी हुई ..
मेरे कमर के दोनों ओर अपना नर्म हाथ रखी, सहलाई... और बोली,
“स्वीटी.. अभी क्या दिख रहा है तुम्हें आईने में?”
“मैं दिख रही हूँ .. मेरे पीछे तुम दिख रही हो...” मैंने असमंजस में ही उत्तर दिया..
“और??” वो शरारती हंसी हँसते हुए बोली..
“और क्या... कुछ नहीं...”
“ह्म्म्म ... एक्साक्ट्ली..” उसका चेहरा थोड़ा संजीदा हो गया.. और आईने में ही मुझे देखते हुए मेरी आँखों में देखी..
मैं भी उसका मतलब समझने के लिए उसके आँखों में देखी...
दो सेकंड बाद ही वह मुस्कराते हुए बोली,
“अब देखो.. और समझो...”
कहते हुए उसने अचानक से सीने पर से मेरा आंचल सरका दिया... मैंने हकबका कर आंचल पकड़ने की कोशिश की लेकिन उसने बीच में मेरे हाथ पकड़ ली...
“थोड़ी देर शांत खड़ी रह..” झिड़क दी मुझे..
धीरे से मुझसे पूछी,
“क्या दिख रहा है अब?”
शर्म के कारण मेरे बोल न निकले..
पर वह फ़िर एक शरारती मुस्कान देती हुई ब्लाउज के ऊपर से मेरे स्तनों को नीचे से अपने दोनों हथेलियों से थोड़ा सा उठाई .. इससे सामने जितना भी पहले दिख रहा था ; उससे भी २ गुना ज़्यादा क्लीवेज अब नज़र आने लगा..
थोड़ी देर वैसी ही रह कर हलके से कुछेक बार स्तनों को दबा कर वह मेरे ब्लाउज के पहले हुक को खोल दी..
उसके इस सारे क्रियाकलापों को मैं मुग्ध सी देखे जा रही थी..
पहले हुक को खोलने के बाद उसने उस खुले हुए ब्लाउज के दोनों सिरों को पकड़ी और अंदर की ओर मोड़ कर घुसा दी..
मेरा दूधिया क्लीवेज अब पहले से भी अधिक दिखने लगा..
ख़ुद की ही क्लीवेज देख कर मैं खुद ही मुग्ध होने लगी.. इस बात को शीला भी ताड़ गई.. और हौले से मेरे गाल को चूमती हुई बोली,
“डिअर, तुम्हें अब कुछ दिखना चाहिए... और .... दिखाना चाहिए... ऐसे... समझी?!”
“हम्म”
पता नहीं क्यों मेरे मुँह से बस इतना ही निकला..
“इसलिए आज मैं तुम्हें कहीं ले जाना चाहती हूँ...”
“कहाँ?”
“वह तो वहाँ जा कर ही तुम्हें पता चल जाएगा.. अब जल्दी तैयार हो जाओ... या...फ़िर कहो तो मैं तैयार कर दूं..?” फ़िर शरारत हुआ उसका..
“नहीं .. नहीं... मैं ख़ुद तैयार हो जाऊंगी...”
मुझे हकबकाते देख कर वो खिलखिला कर हँस दी...|
अपने कपड़ों को ठीक करते हुए मैं सोचती रही कि आख़िर शीला मुझे कहाँ ले जाना चाहती है और क्यों.. वैसे तो उसने कह ही दिया था की जा कर मुझे ख़ुद पता चल जाएगा पर ... पर ...एक उत्सुकता तो रह ही जाती है..
तैयार हो कर हम दोनों मार्किट के लिए निकल पड़ी ...
हमारे आपस में बात करने के दौरान वह काफ़ी गुमसुम सी .. चुपचाप सी लगी ... मैंने पूछा, पर हँस कर टाल दी..
जल्द ही हम दोनों एक टेलर दुकान के सामने खड़े थे.
ब्लाउज के कपड़े थे मेरे पास.. नए..
साड़ी की शौपिंग तो पहले ही कर रखी थी और एक आज खरीदी..
अंदर घुसे दोनों..
शायद शीला का पहले से उस टेलर दुकान में आना जाना रहा था.. तभी तो अंदर घुसते ही सीधे एक काउंटर में पहुँची और झट से धीमे आवाज़ में वहाँ बैठे एक व्यस्क व्यक्ति से कुछ बातें करना शुरू कर दी.. जब तक मैं उसके पास पहुँची उसकी उस आदमी से बात ख़त्म हो चुकी थी.. जब मैं वहाँ पहुँची तो मुझे दिखा कर बोली की ‘इसके लिए बनाने हैं..’
टेलर ने मुझे ऊपर से लेकर नीचे थक बहुत अच्छे से देखा .. ज़्यादा नहीं.. बस एक नज़र.. पर अच्छे से.. और शीला की ओर देखते हुए सहमती में सिर हिलाता हुआ अपने पीछे के एक दरवाज़े को खोल कर अंदर घुस गया ...
नाप लेने का समय आया .. कोई लेडी टेलर न होने के कारण शीला ने ख़ुद नाप ले लेने का निश्चय किया..
मैं एक कमरे में गई..
कमरा काफ़ी अच्छा था.. सीलिंग फैन भी था जो अच्छे स्पीड में चल रहा था..
सामने ही एक आदम कद आईने के सामने जा कर मैं खड़ी हो गई और ख़ुद को निहारने लगी..
और ख़ुद से ही पूछ बैठी की क्या आज ही ब्लाउज बनाने देना है.. और क्यों... मैं इतनी बुरी भी तो नहीं लगती हूँ.. इन फैक्ट, मैं तो बुरी हूँ ही नहीं... मेरा तो चेहरा भी ऐसा है की कोई भी एक नज़र अच्छे से देखे तो फ़िदा हो जाए..
तो फ़िर इतना एक्सपोज़ करने की ज़रूरत क्या है..
तभी शीला अंदर आई ..
अपने साथ मेज़रिंग टेप भी साथ ले आई ..
मुझे देखी .. मुस्कराई ... थोड़ी नर्वस भी लगी ..
मैंने कुछ पूछना चाहा पर मौका न मिला --- मुझे दोबारा आईने के सामने घूमा कर खड़ी की और आँचल हटा कर माप लेने लगी.. माप लेते लेते ही फ़िर से उसे शरारत सूझी और --- ”
“ह्म्म्म... समझा...” इतनी देर बाद मैं बोला; स्वर में उत्सुकता का बोध हुआ शायद चाची को..
अपनी बात फ़िर से कहना शुरू की.. इसबार थोड़ी और ऊर्जा के साथ..
“हम दोनों ही उस छोटे से कमरे में बहक गए थे उस दिन.. उसके द्वारा मेरे गालों , कन्धों , गर्दन पर किए गए चुम्बन और नाज़ुक अंगों के साथ किए गए छेड़खानी ने मुझे उस दिन पता नहीं क्या कर दिया था.. मैं धीरे धीरे उसका साथ देती चली गई.. मतलब...मतलब....”
“समझा..” मैं फ़िर बीच बोला..
“क्या समझे..?”
“यही की उस दिन उस टेलर दुकान में आप दोनों ही बहक गई थीं और उस छोटे से कमरे में आप दोनों ने सभी हदें पार दी थीं...”
मेरे चेहरे पर अविश्वसनीयता; पर स्वर में दृढ़ता देख कर चाची मुस्कराई...
बोली,
“नहीं.. हदें तो पार नहीं की थीं पर .... पर बहुत कुछ हो गया था... (थोड़ा रुक कर) ... और वैसे भी, दो महिला में हदें क्या पार होना...?!”
उनकी इस बात पर मैंने कुछ कहना चाहा पर मुँह बंद रखना बेहतर समझा... कहीं टॉपिक न चेंज हो जाए.. |
इसके बाद चाची और भी बहुत कुछ कहती चली गई.. और मैं सुनता चला गया.. परन्तु हैरानी, अचरज, अविश्वसनीयता जैसे बातें भी मेरे अंदर घर करती चली गईं .. हो भी क्यों न... बातें थीं ही कुछ ऐसी ---- |
क्रमशः
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