Kamukta kahani अनौखा जाल
09-12-2020, 01:07 PM,
#43
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ४०)

कार से ही घर लौटा.

मोना ने ही ड्राप किया.

कुछ देर उससे बात करने के बाद उसे विदा किया.

अपने घर के गेट के पास पहुँचते ही देखा की एक आदमी, मैले कुचेले धोती कुरता पहने, दोनों हाथों में दो बड़े थैले लिए इधर ही चला आ रहा है.

उसके निकट पहुँचते ही देखा की उन दो थैलों में पुराने अखबार और दूसरे कागजों की रद्दियाँ हैं.

चाची बहुत दिन से कह रही थी कि घर में कई महीने से अखबार जमा हो रहे हैं. कोई मिले तो बेच दो.

पर काम से फुर्सत न मुझे है और न ही चाचा को.

अभी कुछ ही समय हुआ है चाचा – चाची को घर लौटे हुए. दोनों अपने बेटियों से मिलने गए थे. शहर से बाहर.

घर के मेन डोर तक पहुँचा ही था की अचानक से एक बात कौंधी मेरे मन में...

‘यार, तीन या चार दिन पहले ही तो चाची ने अखबार बेचा, आज फ़िर?’

ये सवाल अपने आप में थोड़ा अटपटा था इसलिए मैंने जल्दी ही अपने दिमाग से ये सोच कर निकाल दिया की, ‘हो सकता है बहुत ज़्यादा अखबार जमा हो गए हों. इसलिए दो दिन में बेचा गया..’

उसके बाद खास कुछ नहीं हुआ..

एक सप्ताह बीत गया.

मेरी और मोना की.. दोनों की अपनी अपनी कोशिश ज़ारी रही इस दौरान.

और इसी एक सप्ताह में जो अजीब और गौर करने लायक बात लगा वह ये कि दो बार और अखबार बेचे गए ! और इस बार आदमी अलग था.

निस्संदेह ये संदेह योग्य बात थी और इसलिए मैंने निर्णय लिया कि अगर फ़िर से अखबार और काग़ज़ की रद्दियों के लिए कोई आया तो मैं उसका पीछा ज़रूर करूँगा.

चाची के हाव भाव भी कुछ बदले बदले से लग रहे हैं .. गत पाँच दिनों के भीतर दो बार काफ़ी पैशनेट सेक्स भी हुआ हम दोनों में. हमेशा की तरह ही चाची सेक्स के दौरान लाजवाब रही और भरपूर प्यार दी.

मैंने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं रहने दिया.

और एक बात जो मैंने नोटिस किया वह ये कि दोनों बार सेक्स के समय चाची की भावनाएँ और क्रियाएँ पहले से कई अधिक बढ़ गई है. काम क्षुधा बढ़ गई .. शायद तीन गुना !

अगले सप्ताह के किसी दिन जब मैं बाथरूम से नहा धो कर निकला तो नीचे से कुछ आवाजें सुनाई दी..

रूम से निकल कर नीचे झाँका तो पाया की आज फ़िर अखबार दिए जा रहे हैं. ..

इतना तो मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि इतने अख़बार हमारे घर में हैं नहीं जितने की बेचे गए हैं.

आज का आदमी अलग है..

एक कम उम्र का लड़का है..

तीन दिन में तीन नए लोग.!

अब तो केवल संदेह का कोई प्रश्न ही न रहा.

मैं छुप कर चाची और उस लड़के को देखता रहा. आलोक से भी कम उम्र लग रहा था उसका.

चाची अंदर से ही दो थैलों में अख़बार भर कर लाई और उस लड़के को थमा दी.

लड़का फ़ौरन एक तराजू निकाल कर वजन तौलने लगा.

थोड़ा थोड़ा कर उसने दोनों थैलों में भरे रद्दी और अख़बार तोल डाले.

गौर करने लायक बात यह थी कि वह हर बार अख़बार के एक बंडल बड़ी सावधानी से उठाता और फ़िर तराजू के एक पलड़े पर उतनी ही सावधानी से रखता .. तोल लेने के बाद वह फ़िर से पहले की भांति ही सावधानीपूर्वक उस बंडल को अपने साथ लाए झोले में डाल लेता.

इस तरह की सावधानी आम तौर पर लोग अपने घरों में शीशे / काँच के बने चीज़ों को एक जगह से दूसरी जगह रखने के लिए होता करते हैं. आखिर बात क्या है? चाची पर पहले से ही संदेह होने के कारण मेरा मन इस बात के लिए राजी बिल्कुल नहीं था की मैं जा कर उनसे इस बारे में कुछ पूछूँ...

तोल लेने के बाद चाची और उस लड़के का आपस में थोड़ी खुसुरपुसुर बातें हुईं ... चाची ने थोड़े रूपये दिए उसे और फ़िर वह लड़का घर से निकल गया.

उसका पीछा करने का ख्याल तो अच्छा आया पर मैं हूँ फ़िलहाल सिर्फ़ एक टॉवल में ... और तैयार हो कर उसके पीछे जाने में बहुत समय हाथ से निकल जाना है.

पर आज कुछ पता करने के मूड में मैं आ गया था इसलिए दिमाग पर ज़ोर देने लगा की ऐसा क्या किया जाए जिससे लड़के का पीछा करके कुछ अच्छी जानकारी मिले.

अचानक से मुझे ‘शंकर’ का ख्याल आया.

शंकर, मोना का आदमी है जिसे मोना ने ख़ास मेरी मदद के लिए ही कहा हुआ था. शंकर मेल जोल में जितना मिलनसार है; काम के मामले में भी उतना ही गंभीर रहता है. हर तरह के काम करने का उसका एक अलग ही तरीका होता है और इतनी ख़ूबसूरती से करता है की बस पूछो ही मत. शंकर की एक ओर बात जो मुझे पहली बार सुन के अजीब लगी थी, वह ये की वो यानि की शंकर अपने काम को कैसे अंजाम देता है इसका खुलासा वो कभी किसी के सामने नहीं करता सिवाय मोना के.

शंकर से जान पहचान होने के बाद बीच बीच में हम मिलते रहे.. अपने ही केस के खातिर .. और हमेशा ही मैं उसके ‘खाने - पीने’ का ख्याल रखता .. दिल का जितना दिलेर है उतना ही उदार भी .. कभी अकेले नहीं ... हमेशा मुझे साथ बैठा कर ही खाने के साथ जाम पे जाम लगाता है.

कह सकते हैं की दोनों ही लगभग अब दोस्त हैं... और नहीं भी...

मैंने तुरंत शंकर को फ़ोन लगाया.

शंकर – “बोलो सरजी... कैसे याद किया?”

मैं – “कैसे हो?”

शंकर – “ईश्वर की कृपा है.”

मैं – “कहाँ हो?”

शंकर – “डेरे पर... क्यों... क्या हुआ?”

मैं – “दरअसल, एक बहुत ज़रूरी ........ ”

शंकर – “ ........... काम आन पड़ा है.... यही ना?”

मेरी बात को बीच में ही काटते हुए शंकर बोला.

मैं – “हाँ... देखो... अगर तुम अभी बिजी हो तो फ़िर कोई बात नहीं... मैं देखता ....”

शंकर – “अरे ... नहीं.. बिजी काहे का... मोना मैडम ने तो मुझे ऐसे ही कामों के लिए ही तो आपसे मेल मुलाकात करवाई हैं ... आप काम बोलो तो सही..”

मैंने जल्दी से शंकर को सब कह सुनाया...

सब अच्छे से सुनने के बाद,

शंकर – “हम्म.. भई, तुम्हारा ये मामला भी और मामलों की तरह ही दिलचस्प है. मैं देखूँगा ज़रूर ... पर... अभी थोड़ी मुश्किल है.”

मैं – “क्या मुश्किल है?”

शंकर – “भई, एक तो मुझे अभी अभी मोना मैडम के काम से निकलना है और दूसरा ये की जब तक मैं तैयार हो कर तुम्हारे घर के पास भी फटकूँगा; वह मुर्गा वहाँ से कब का चला चुका होगा. इसलिए अभी किसी भी तरह का जल्दबाजी कर के कोई फायदा न होगा.”

मैं – “ह्म्म्म... ठीक कहा तुमने. (थोड़ा सोचते हुए) – एक काम करते हैं, हम अगली बार के लिए तैयार रहेंगे, जैसे ही वह लड़का आएगा.. मैं तुम्हें इन्फॉर्म कर दूँगा.. ओके..? तुम्हें बस खुद को तैयार रखना होगा...”

शंकर – “हाँ, ये सही रहेगा.. और हाँ, मैं भी तैयार रहूँगा.. वैसे...”

मैं – “वैसे क्या?”

शंकर – “तुम्हें कोई आईडिया है.... की वह आज के बाद कब आएगा या आ सकता है??”

शंकर के इस प्रश्न पर थोड़ा गौर किया, दिमाग पर ज़ोर दिया और अच्छे से याद करने का कोशिश किया..

परिणाम जल्द मिला...

मैं – “हाँ याद आया.. वह पिछले तीन सप्ताह से हर सप्ताह के हर तीसरे दिन आता है.. और करीब आधे घंटे तक रहता है.”

शंकर – “हम्म.. इसका मतलब....”

मैं – “इसका मतलब ये की हमें इसके अगले बार आने के लिए तैयार रहना है... मुझे... और ख़ास कर तुम्हें..”

शंकर – “हाँ, वह तो मैं समझ ही गया.”

मैं – “तो आज से तीसरे दिन के लिए हम दोनों को सजग रहना है... चौकस एकदम...”

शंकर – “बिल्कुल... अच्छा, अभी रखता हूँ... मुझे जल्द से जल्द निकलना है.”

सम्बन्ध विच्छेद हुआ..

रिसीवर वापस क्रेडल पर रख कर मैं अपने अगले कदम के बारे में सोचने लगा..

उसी शाम एक राउंड पुलिस स्टेशन के भी लगा आया..

केस कुछ खास प्रोग्रेस नहीं किया ..

इंस्पेक्टर दत्ता हमेशा की तरह व्यस्त मिला और केस के बारे में पूछने पर इतना ही बताया की अपराधी को जल्द पकड़ लिया जाएगा.

बिंद्रा से भेंट नहीं हुई ... कारण की वह शहर से बाहर गया हुआ है.

और लापता इंस्पेक्टर विनय अभी भी लापता हैं.

मोना से अभी तक इतना ही पता चला कि मनसुख भाई का पूरा नाम मनसुख बनवारी लाल भंडारी है और वह शहर का बड़े होटल व्यवसाईयों में एक है. साथ ही टूरिस्टो को शहर घूमाने का भी काम करता है जिससे उसे अतिरिक्त मोटी आय होती है. इसके अलावा शराब का वैध – अवैध, दोनों तरह का धंधा करता है. धार्मिक भी है. हर मंगलवार को शहर के एक बजरंगबली मन्दिर में पूजा-अर्चना करने के बाद बाहर बैठे भिखारियों की पेट पूजा और असहायों की यथासम्भव सहायता करता है. धंधे वह चाहे कैसे भी करता हो; पर सुनने में आता है कि दिल से बड़ा ही दिलदार है.

होटल व्यवसाय से पहले सिनेमा घरों में टिकटें ब्लैक किया करता था.

किस्मत का बैल निकला पूरा.

जिस भी काम में हाथ आजमाया; बहुत पैसा कमाया.

अपने शागिर्दों – चमचों का पूरा पूरा ख्याल रखता है. किसी ने बहन की शादी या माँ – बाबूजी के इलाज के लिए अगर १ लाख माँगता तो उसे ३ लाख़ दे देता ... और बाद में न तो पैसे का हिसाब माँगता और ना ही लौटाने को बोलता. पुलिस और दूसरे झमेलों से भी बचाता है.

यही कुछ बात हैं जिस कारण उसके चमचे उसपे जान लुटाने को हमेशा तैयार रहते.

ख़ास बात ये कि मनसुख के चमचे मनसुख के लिए जान देना और लेना; दोनों बखूबी कर सकते हैं.

गोविंद को एक ख़ास काम में लगाया था मैंने... उसी सिलसिले में उससे भेंट करना है.

क्रमशः

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RE: Kamukta kahani अनौखा जाल - by desiaks - 09-12-2020, 01:07 PM

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