RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
बल्कि सुनीता से जब कॉलेज में ही सुनील की मुलाक़ात हुई और धीरे धीरे दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गयी और शादी भी पक्की हो गयी तब भी सुनीता सुनील को आगे बढ़ने का कोई मौक़ा नहीं देती थी। उनमें चुम्माचाटी तो चलती थी पर सुनीता सुनील को वहीँ रोक देती थी।
सुनीता एक प्राथमिक स्कूल में अंग्रेजी शिक्षक की नौकरी करती थी। और वहाँ भी स्कूल के प्रिंसिपल से लेकर सब उसके दीवाने थे।
वैसे तो सुनील की प्यारी बीबी सुनीता काफी शर्मीली थी, पर चुदाई के समय बिस्तर में एकदम शेरनी की तरह गरम हो जाती थी और जब वह मूड़ में होती थी तो गजब की चुदाई करवाती थी। सुनीता की पतली कमर सुनील की टांगों के बिच स्थापित जनाब को हमेशा वक्त बे वक्त खड़ा कर देती थी। अगर समय होता और मौक़ा मिलता तो सुनील सुनीता को वहीँ पकड़ कर चोद देता। पर समय गुजरते उनकी चुदाई कुछ ठंडी पड़ने लगी क्यूंकि सुनीता स्कूल में और घर के कामों में व्यस्त रहने लगी और सुनील उसके व्यावसायिक कामों में।
सुनील और सुनीता कई बार बिस्तर में पड़े पड़े उनकी शादी के कुछ सालों तक की घमासान चुदाई के दिनों को याद करते रहते थे। सोचते थे कुछ ऐसा हो जाए की वह दिन फिर आ जाएँ। उनका कई बार मन करता की वह कहीं थोड़े दिन के लिए ही सही, छुट्टी लें और सब रिश्ते दारी से दूर कहीं जंगलों में, पहाड़ियों में झरनों के किनारे कुछ दिन गुजारें, जिससे वह उनकी बैटरियां चार्ज कर पाएं और अपनी जवानी के दिनों का मजा फिर से उठाने लगें, फिर वही चुदाई करें और खूब मौज मनाएं।
चूँकि दोनों पति पत्नी मिलनसार स्वभाव के थे इसलिए सोचते थे की अगर कहीं कोई उनके ही समवयस्क ग्रुप के साथ में जाने का मौक़ा मिले तो और भी मजा आये। सुनीता के स्कूल में छुट्टियां होने के बावजूद सुनील अत्याधिक व्यस्तता के चलते कोई कार्यक्रम बन नहीं पा रहा था। सुनीता को मूवीज और घूमने का काफी शौक था पर यहाँ भी सुनील गुनेहगार ही साबित होता था। इस के कारण सुनीता अपने पति सुनील से काफी नाराज रहती थी।
सुनील को अपनी पत्नी को खुले में छेड़ने में बड़ा मजा आता था। अगर वह कहीं बाहर जाते तो सुनील सुनीता को खुले में छेड़ने का मौक़ा नहीं चुकता था। कई बार वह उसे सिनेमा हाल में या फिर रेस्तोरां में छेड़ता रहता था। दूसरे लोग जब देखते और आँखे फिरा लेते तो उसे बड़ी उत्तेजना होती थी। सुनीता भी कई बार नाराज होती तो कई बार उसका साथ देती।
नए घर में आने के कुछ ही दिनों में सुनीता को करीब पड़ोस की सब महिलाएं भी जानने लगीं क्यूंकि एक तो वह एकदम सरल और मधुर स्वभाव की थी। दूसरे उसे किसी से भी जान पहचान करने में समय नहीं लगता था। सब्जी लेते हुए, आते जाते पड़ोसियों के साथ वह आसानी से हेलो, हाय से शुरू कर कई बार अच्छी खासी बातें कर लेती थीं।
घर में सुनील जब अपने कमरे में बैठकर कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा होता था तो अक्सर उसे खिड़की में से सामने के फ्लैट में रहने वाले कर्नल साहब और उनकी पत्नी दिखाई देते थे। उनकी एक बेटी थोड़ी बड़ी थी और उनदिनों कॉलेज जाया करती थी।
कर्नल साहब और सुनील की पहेली बार जान पहचान कुछ अजीबो गरीब तरीके से हुई। एकदिन सुनील कुछ जल्दी में घर आया तो उसने अपनी कार कर्नल साहब के गेराज के सामने खड़ी कर दी थी। शायद सुनील को जल्दी टॉयलेट जाना था। घर में आने के बाद वह भूल गया की उसे अपनी गाडी हटानी चाहिए थी। अचानक सुनील के घर के दरवाजे की घंटी बजी। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो कर्नल जसवंत सिंह को बड़े ही गुस्से में पाया। आते ही वह सुनील को देख कर गरज पड़े, "श्रीमान, आप अपनी कार को ठीक तरह से क्यों नहीं पार्क पर सकते?"
सुनील ने उनको बड़े सम्मान से बैठने के लिए कहा तो बोल पड़े, " मुझे बैठना नहीं है। आप को समझना चाहिए की कई बार कोई जल्दी में होता ही तो कितनी दिक्कत होती है..."
आगे वह कुछ बोलने वाले ही थे की सुनील की पत्नी सुनीता जो कुछ ही समय पहले बाथरूम से निकली ही थी, चाय बना कर रसोई से चाय का प्याला लेकर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई। सुनीता के बाल घने, गीले और बिखरे हुए थे और उनको सुनीता ने तौलिये में ढक कर लपेट रखा था।
ब्लाउज गीला होने के कारण सुनीता की छाती पर उसके फुले हुए स्तन कुछ ज्यादा ही उभरे हुए लग रहे थे। सुनीता का चेहरे की लालिमा देखते ही बनती थी। सुनीता को इस हाल में देखते ही कर्नल साहब की बोलती बंद हो गयी। सुनीता ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के सामने ही झुक कर मेज पर जैसे ही चाय का कप रखा तो सुनील ने देखा की कर्नल साहब की आँखें सुनीता के वक्षों के बिच का अंतराल देखते ही फ़टी की फटी रह गयीं।
सुनीता ने चाय का कप रखकर बड़े ही सम्मान से कर्नल साहब को नमस्ते किया और बोली, "आप ज्योतिजी के हस्बैंड हैं ना? बहुत अच्छीं हैं ज्योतिजी।"
सुनीता की मीठी आवाज सुनते ही कर्नल साहब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। वह कुछ बोल नहीं पाए तब सुनीता ने कहा, "सर, आप कुछ कह रहे थे न?"
जसवंत सिंघजी का गुस्सा सुनीता की सूरत और शब्दों को सुनकर हवा हो गया था। वह झिझकते हुए बड़बड़ाने लगे, "नहीं, कोई ख़ास बात नहीं, हमें कहीं जाना था तो मैं (सुनीलकी और इशारा करते हुए बोले) श्रीमान से आपकी गाडी की चाभी मांगने आया था। आपकी गाडी थोड़ी हटानी थी।"
सुनीता समझ गयी की जरूर उसके पति सुनील ने कार को कर्नल साहब की कार के सामने पार्क कर दिया होगा। वह एकदम से हँस दी और बोली, "साहब, मेरे पति की और से मैं आपसे माफ़ी मांगती हूँ। वह हैं ही ऐसे। उन्हें अपने काम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं। व्यावहारिक वस्तुओं का तो उन्हें कुछ ध्यान ही नहीं रहता। हड़बड़ाहट मैं शायद उन्होंने अपनी कार आपकी कार के सामने रख दी होगी। आप प्लीज बैठिये और चाय पीजिये।" फिर सुनीता ने मेरी और घूम कर मुझे उलाहना देते हुए कहा, "आप को ध्यान रखना चाहिए। जाइये और अपनी कार हटाइये।"
फिर कर्नल साहब की और मीठी नजर से देखते हुए बोली, "माफ़ कीजिये। आगे से यह ध्यान रखेंगे। पर आप प्लीज चाय पीजिये और (मेज पर रखे कुछ नास्ते की चीजों की और इशारा करते हुए बोली) और कुछ लीजिये ना प्लीज?"
सुनील हड़बड़ाहट में ही उठे और अपनी कार की चाभी ले कर भाग कर अपनी कार हटाने के लिए सीढ़ियों की और निचे उतरने के लिए भागे। सुनीता ठीक कर्नल साहब के सामने एक कुर्सी खिसका कर थोड़ा सा कर्नल साहब की और झुक कर बैठ गयी और उन्हें अपनी और ताकते हुए देख कर थोड़ी शर्मायी।
शायद सुनीता कहना चाह रही थी की "सर आप क्या देख रहे हैं?" पर झिझकती हुई बोली, "सर! आप क्या सोच रहे हैं? चाय पीजिये ना? ठंडी हो जायेगी।" सुनीता को पता नहीं था उसे कर्नल साहब के ठीक सामने उस हाल में बैठा हुआ देख कर कर्नल साहब कितने गरम हो रहे थे।
कर्नल साहब को ध्यान आया की उनकी नजरें सुनीता के बड़े बड़े खूबसूरत स्तन मंडल के बिच वाली खाई से हटने का नाम नहीं ले रहे थी। सुनीता का उलाहना सुनकर कर्नल साहब ने अपनी नजर सुनीता के ऊपर से हटायीं और कमरे के चारों और देखने लगे। क्या बोले वह समझ नहीं आया तो वह थोड़ी सी खिसियानी शक्ल बना कर बोले, "सुनीताजी आप का घर आपने बड़ी ही सुन्दर तरीके से सजाया है। लगता है आप भी ज्योति की तरह ही सफाई पसंद हैं।"
कर्नल साहब की बात सुन कर सुनीता हँस पड़ी और बोली, "नहीं जी, ऐसी कोई बात नहीं। बस थोड़ा घर ठीक ठाक रखना मुझे अच्छा लगता है। पर भला ज्योतिजी तो बड़ी ही होनहार हैं। उनसे बातें करतें हैं तो वक्त कहाँ चल जाता है पता ही नहीं लगता। हम जब कल मार्किट में मिले थे तो ज्योति जी कह रही थीं... "
और फिर सुनीता की जबान बे लगाम शुरू हो गयी और कर्नल साहब उसकी हाँ में हाँ मिलाते बिना रोक टोक किये सुनते ही गए। वह भूल गए की उनको कहीं जाना था और उनकी पत्नी निचे कार के पास उन का इंतजार कर रही थी। जाहिर है उनको सुनीता की बातों में कोई ख़ास दिलचश्पी नहीं थी। पर बात करते करते सुनीता के हाथों की मुद्राएँ , बार बार सुनीता की गालों पर लटक जाती जुल्फ को हटाने की प्यारी कवायद, आँखों को मटकाने का तरिका, सुनीता की अंगभंगिमा और उसके बदन की कामुकता ने उनका मन हर लिया था।
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