RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
जब सुनील अपनी कार हटा कर वापस आये तो कर्नल साहब की तंद्रा टूटी और सुनीता की जबान रुकी।
सुनील ने देखा की सुनीता ने कर्नल साहब को अपनी चबड चबड में फाँस लिया था तो वह बोले, "अरे जानू, कर्नल साहब जल्दी में हैं। उनको कहीं जाना है।"
फिर कर्नल साहब की और मुड़कर सुनील ने कहा, "माफ़ कीजिये। आप को मेरी वजह से परेशानी झेलनी पड़ी।"
अपनी पत्नी सुनीता की और देखते हुए बोले, "डार्लिंग अब बस भी करो। कर्नल साहब को बाहर जाना है और ज्योतिजी उनका निचे इंतजार कर रहीं है।"
सुनील कर्नल साहब की और मुड़ कर बोले, "सुनीता जैसे ही कोई उसकी बातों में थड़ी सी भी दिलचश्पी दिखाता है तो शुरू हो जाती है और फिर रुकने का नाम नहीं लेती। लगता है उसने आप को बहुत बोर कर दिया।"
कर्नल साहब अब एकदम बदल चुके थे। उन्होंने चाय का कप उठाया और बोले, "नहीं जी ऐसी कोई बात नहीं। वह बड़ी प्यारी बातें करती हैं।" सुनील की और अपना एक हाथ आगे करते हुए बोले, "मैं कर्नल जसवंत सिंह हूँ।"
फिर वह सुनीता की और घूमकर बोले, "और हाँ ज्योति मेरी पत्नी है। वह आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी।"
सुनील ने भी अपना हाथ आगे कर अपना परिचय देते हुए कहा, "मैं सुनील मडगाँव कर हूँ। मैं एक साधारण सा पत्रकार हूँ। आप मुझे सुनील कह कर ही बुलाइये। और यह मेरी पत्नी सुनीता है, जिनके बारे में तो आप जान ही चुके हैं।" सुनील ने हलके कटाक्ष के अंदाज से कहा।
सुनील ने जैसे ही अपनी पहचान दी तो कर्नल साहब उछल पड़े और बोले, "अरे भाई साहब! क्या आप वही श्रीमान सुनील मडगाँव कर हैं जिनकी कलम से हमारी मिनिस्ट्री भी डरती है?"
सुनील ने कर्नल साहब का नाम एक सुप्रतिष्ठित और अति सम्मानित आर्मी अफसर के रूप में सुन रखा था। सुनील ने हँस कर कर्नल साहब से कहा, "कर्नल साहब आप क्या बात कर रहे हैं? आप कोई कम हैं क्या? मैं समझता हूँ आप जैसा शायद ही कोई सम्मानित आर्मी अफसर होगा। आप हमारे देश के गौरव हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो आप देख रहे हैं। मेरी बीबी मुझे कैसे डाँट रही है? अरे भाई मेरी बीबी भी मुझसे डरती नहीं है। मिनिस्ट्री तो बहुत दूर की बात है।"
सुनील की बात सुनकर सब जोर से हँस पड़े। चाय पीते ही मन ना करते हुए भी कर्नल साहब उठ खड़े हुए और बोले, "आप दोनों, प्लीज हमारे घर जरूर आइये। ज्योति को और मुझे भी बहुत अच्छा लगेगा।"
कर्नल साहब बाहर से कठोर पर अंदर से काफी मुलायम और संवेदनशील मिज़ाज के थे। यह बात को नकारा नहीं जा सकता की सुनीता को देखते ही कर्नल साहब उसकी और आकर्षित हुए थे। सुनीता का व्यक्तित्व था ही कुछ ऐसा। उपरसे कर्नल साहब का रंगीन मिजाज़। सुनीता के कमसिन और खूब सूरत बदन के अलावा उसकी सादगी और मिठास कर्नल साहब के दिल को छू गयी थी। अपने कार्य काल में उनकी जान पहचान कई अति खूबसूरत स्त्रियों से हुई थी। आर्मी अफसर की पत्नियाँ , बेटियाँ, उनकी रिश्तेदार और कई सामाजिक प्रसंगों में उनके मित्र और साथीदार महिलाओं से उनकी मुलाक़ात और जान पहचान अक्सर होती थी।
जसवंत सिंह (कर्नल साहब) के अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व, सुदृढ़ शरीर, ऊँचे ओहदे और मीठे स्वभाव के कारण उनको कभी किसी सुन्दर और वांछनीय स्त्री के पीछे पड़ने की जरुरत नहीं पड़ी। अक्सर कई बला की सुन्दर स्त्रियां पार्टियों में उनको अपने शरीर की आग बुझाने के लिए इशारा कर देती थीं। जसवंत सिंह ने शुरुआत के दिनों में, शादी से पहले कई युवतियों का कौमार्य भंग किया था और कईयों की तन की भूख शांत की थी। उनमें से कई तो शादी होने के बाद भी अपने पति से छुपकर कर्नल साहब से चुदवाने के लिए लालायित रहतीं थीं और मौक़ा मिलने पर चुदवाती भी थीं।
कर्नल साहब के साथ जो स्त्री एक बार सोती थी, उसके लिए कर्नल साहब को भुल जाना नामुमकिन सा होता था। आर्मी परिवार में और खास कर स्त्रियों में चोरी छुपी यह आम अफवाह थी की एक बार किसी औरत ने अगर जसवंत सिंह का संग कर लिया (स्पष्ट भाषा में कहे तो अगर किसी औरत को कर्नल साहब से चुदवा ने का मौक़ा मिल गया) तो वह कर्नल साहब के लण्ड के बारेमें ही सोचती रहती थी।
चुदवाने की बात छोड़िये, अगर किसी औरत को कर्नल साहब से बात भी करने का मौक़ा मिल जाए तो ऐसा कम ही होता था की वह उनकी दीवानी ना हो। कर्नल साहब की बातें सरल और मीठी होती थीं। वह महिलाओं के प्रति बड़ी ही शालीनता से पेश आते थे। उनकी बातों में सरलता, मिठास के साथ साथ जोश, उमंग और अपने देश के प्रति मर मिटने की भावना साफ़ प्रतीत होती थी। साथ में शरारत, मशखरापन और हाजिर जवाबी के लिए वह ख़ास जाने जाते थे।
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