RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
साथ साथ में जसवंत सिंह अपने हाथों से ज्योति के दोनों स्तनों को सहलाते और दबाते रहे। उसकी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों के बिच कभी दबाते तो कभी ऐसी तीखी चूँटी भरते की ज्योति दर्द और उन्माद से कराह उठती। काफी देर तक चुम्बन करने के बाद हाथों को निवृत्ति देकर जसवंत सिंह ने ज्योति की दोनों चूँचियों पर अपने होँठ चिपका दिए। अब वह ज्योति की निप्पलोँ को अपने दांतो से काटते रहे जो की ज्योति को पागल करने के लिए पर्याप्त था। ज्योति मारे उन्माद के कराहती रही। ज्योति के दोनों स्तन दो उन्नत टीलों के सामान प्रतित होते थे।
जसवंत सिंह ने ज्योति की चूँचियों को इतना कस के चूसा की ज्योति को ऐसा लगा की कहीं वह फट कर अपने प्रियतम के मुंह में ही ना आ जायें। ज्योति के स्तन जसवंत सिंह के चूसने के कारण लाल हो गए थे और जसवंत सिंह के दांतों के निशान उस स्तनों की गोरी गोलाई पर साफ़ दिख रहे थे। जसवंत सिंह की ऐसी प्रेमक्रीड़ा से ज्योति को गजब का मीठा दर्द हो रहा था। जब जसवंत सिंह ज्योति के स्तनों को चूस रहे थे तब ज्योति की उंगलियां जसवंत सिंह के बालों को संवार रही थी।
जसवंत सिंह का हाथ ज्योति की पीठ पर घूमता रहा और उस पर स्थित टीलों और खाईयोँ पर उनकी उंगलयां फिरती रहीं। जसवंत सिंह ने अपनी उस रात की माशूका के कूल्हों को दबा कर और उसकी दरार में उंगलियां डाल कर उसे उन्मादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। थोड़ी देर तक स्तनों को चूसने और चूमने के बाद जसवंत सिंह ने ज्योति को बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया और उसकी खूबसूरत जॉंघों को चौड़ा करके खुद टाँगों के बिच आ गए और ज्योति की खूब सूरत चूत पर अपने होँठ रख दिए।
रतिक्रीड़ा में ज्योति का यह पहला सबक था। जसवंत सिंह तो इस प्रकिया के प्रमुख प्राध्यापक थे। उन्होंने बड़े प्यार से ज्योति की चूत को चूमना और चाटना शुरू किया। जसवंत सिंह की यह चाल ने तो ज्योति का हाल बदल दिया। जैसे जसवंत सिंह की जीभ ज्योति की चूत के संवेदनशील कोनों और दरारों को छूने लगी की ज्योति का बदन पलंग पर मचलने लगा और उसके मुंह से कभी दबी सी तो कभी उच्च आवाज में कराहटें और आहें निकलने लगीं।
धीरे धीरे जसवंत सिंह ने ज्योति की चूत में अपनी दो उंगलियां डालीं और उसे उँगलियों से चोदना शुरू किया। ज्योति के लिए यह उसके उन्माद की सिमा को पार करने के लिए पर्याप्त था। ज्योति मारे उन्माद के पलंग पर मचल रही थी और अपने कूल्हे उठा कर अपनी उत्तेजना ज़ाहिर कर रही थी। उसका उन्माद उसके चरम पर पहुँच चुका था। अब वह ज्यादा बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थी। ज्योति जसवंत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे जोरों से दबाया। ज्योति के रोंगटे रोमांच से खड़े हो गए थे। ज्योति ने अपनी गाँड़ ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन में दौड़ पड़ी। वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, "कप्तान साहब काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।"
जसवंत सिंह ने ज्योति से कहा, "तुम्हारे लिए मैं कप्तान साहब नहीं, मैं जसवंत सिंह भी नहीं। मैं तुम्हारे लिए जस्सू हूँ। आज से तुम मुझे जस्सू कह कर ही बुलाना।"
ज्योति ने तब अपनी रिक्वेस्ट फिरसे दुहराते हुए कहा, "जस्सूजी काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।"
जस्सूजी ने देखा की ज्योति अब मानसिक रूप से उनसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी तो वह ज्योति की दोनों टाँगों के बिच आगये और उन्होंने अपना लण्ड ज्योति के छोटे से छिद्र के केंद्र बिंदु पर रखा। ज्योति के लिए उस समय जैसे क़यामत की रात थी। वह पहली बार किसी का लण्ड अपनी चूत में डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस हुआ जैसे "प्रथम ग्राहे मक्षिका" मतलब पहले हे निवालें में किसी के मुंह में जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई में ही उसे इतने मोटे लण्ड को चूत में डलवाना पड़ रहा था।
ज्योति को अफ़सोस हुआ की क्यों नहीं उसने पहले किसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले किसी लड़के से चुदवाया होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान निकली जा रही थी। पर अब वह करे तो क्या करे? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद जस्सूजी को चोदने के लिए आमंत्रित किया था। अब वह छटक नहीं सकती थी।
ज्योति ने अपनी आँखें मुंदी और जस्सूजी का लण्ड पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी ताकि उसे लण्ड को उसकी चूत के अंदर घुसने में कम कष्ट हो। वैसे भी जस्सूजी का लण्ड अपने ही छिद्र से पूर्व रस से चिकनाहट से सराबोर लिपटा हुआ था। जैसे ही ज्योति की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। ज्योति ने अपनी आँखें मूँद लीं और जस्सू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी।
जसवंत सिंह ने अपना लण्ड हलके से ज्योति की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। ज्योति को कुछ महसूस नहीं हुआ। जसवंत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब ज्योति के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा। जसवंत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि ज्योति की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा। जसवंत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर ज्योति खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है।
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