DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:20 PM,
#23
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता ने भी तय किया की वह भी अपना पूरा मन लगा कर पढ़ेगी और जो अपने गुरु की इच्छा है उसे पूरा करेगी। वह कोहिश करेगी की वह अव्वल दर्जे से पास हो। कर्नल साहब का जोश देख कर सुनीता को भी जोश आ गया। वह भी पूरी रात पढ़ाई करने लगी।

जाहिर है जब दूसरे दिन कर्नल साहब ने सुनीता के सामने कुछ बड़े ही कठिन और जटिल प्रश्न रखे तो सुनीता ने कर्नल साहब से थोड़ा मार्गदर्शन लेने के बाद उन्हें बड़ी जल्दी आसानी से सुलझा दिए। वह ऐसे प्रश्न थे जिन्हे कर्नल साहब भी सावधानी से हल करने की कोशिश करते थे। यह देख कर कर्नल साहब के रोमांच और उन्माद का ठिकाना ना रहा। वह सुनीता ने लिखे हुए जवाबों को पढ़कर पागल से हो रहे थे। सुनीता ने जब अपने जवाब पत्र कर्नल साहब के हाथ में दिए और उनको पढ़ते हुए देखा तो हैरान रह गयी। कर्नल साहब की आँखों में से आँसूं बहने लगे जब वह एक के बाद एक जवाब पढ़ने लगे।

एकदम वह सुनीता के सामने उठ खड़े हुए और सुनीता को कस के अपनी बाँहों में भर लिया। सुनीता अपना सर उठा कर कर्नल साहब को देखती ही रही। कर्नल साहब सुनीता का सर, आँखें, उसके बाल, उसका कंधा और सुनीता के गाल तक चूमते हुए बोलने लगे, "मैंने अपनी जिंदगी में पहले किसी विद्यार्थी को इतना परफेक्ट जवाब देते हुए नहीं पाया।"

कर्नल साहब का ऐसा भावावेश सुनीता ने पहले कभी नहीं देखा था। कर्नल साहब का ऐसा हाल देख सुनीता की आँखों में भी आँसूं आ गए। वह कर्नल साहब से लिपट गयी और बोली, "जस्सूजी, यह मेरा नहीं आपका कमाल है। आपने मुझे जीरो से हीरो बना दिया। सच कहते हैं, गुरु भगवान् होता है। वह कुछ भी कर सकता है।"

कर्नल साहब ने कहा, "नहीं ऐसा नहीं है। गुरु तो सबको बराबर शिक्षा देता है। पर कभी कभी कोई शिष्य उसका पूरा फायदा उठा पाता है। सब नहीं उठा पाते।"

भावावेश में सुनीता ने अपने होँठ उठाये और बरबस ही कर्नल साहब के होँठ के तले रख दिए। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रही थी। आज उसने महसूस किया की मन का तन पर बड़ा ही अद्भुत नियंत्रण है। यदि मन ठीक नहीं होता तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। और अगर मन होता है सब कुछ अच्छा लगता है। कर्नल साहब भी सुनीता के होँठ से अपने होँठ भींचने वाले ही थे की अचानक रुक गए। उन्होंने सुनीता के होँठ से अपने होँठ हटा लिए और सुनीता के नाक पर कस के चुम्बन किया और बोले, "डार्लिंग, भावावेश में बहने का समय नहीं है। तुम्हें बड़ी फतह करनी है। बड़ा किला जितना है। मैं चाहता हूँ की तुम गणित में अव्वल दर्जे से पास हो। तभी मुझे मेरा पारितोषिक मिलेगा।"

कर्नल साहब की बात सुनकर सुनीता भी मचल गयी। उसे कर्नल साहब पर और प्यार आया। जो इंसान इतना रोमांटिक था और जो उस पर इतना फ़िदा था, वह अपने आपको कैसे रोक पाया यह सुनीता की समझ से परे था। उसने तो एक भावावेश भरे क्षण में अपना नियंत्रण गँवा दिया था पर कर्नल साहब ने उसे सम्हाल लिया। वह मन ही मन कर्नल साहब की ऋणी हो गयी। उनके पौरुष की कायल हो गयी।

जब सुनील वापस आये तो सुनीता ने उसे सारी दास्तान कही। सुनीता ने यह नहीं छुपाया की वह खुद तो ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी पर कर्नल साहसब ने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और सुनीता को होँठों पर किस नहीं की। यह सुनकर सुनील बहुत खुश हुआ।

सुनील ने अपनी बीबी सुनीता को कहा, "देखा? यही सही शिक्षक की पहचान है। उनका मन तुम्हारी पढ़ाई में तुम्हारे परिणाम में इतना लग चुका है की तुम्हारे जैसी सेक्सी और खूबसूरत औरत को भी नज़र अंदाज कर दिया। हालांकि की वह तुम पर लाइन मारते रहते हैं। तुम भी तो उनको कुछ ढील देती हो।"

सुनीता ने कटाक्ष से हँस कर कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है। अरे लाइन तो मारेंगे ही ना? मर्द जो हैं। कॉलेज में तुम मुझे लाइन नहीं मारते थे? अरे अब भी तो मैं जब सजधज के तैयार होती हूँ तो तुम भी तो सिटी बजाने लगते हो! लाइन तो कई लोग मारते थे मुझ पर, और अभी भी मारते हैं। पर असली माल तो तुम ही चुरा के ले गए ना? बाकी सारे तो हाथ मलते रह गए। पर हाँ। खैर मजाक छोडो। सीरियसली बात करें तो जिस तरह से वह हाथ धो कर मेरी पढ़ाई के पीछे पड़े हैं, मुझे लगता है जस्सूजी मुझे वाकई टॉप करा कर के ही छोड़ेंगे।"

सुनील ने पूछा, "अगर तुमको उन्होंने टॉप करवा दिया तो तुम उन्हें क्या पारितोषिक दोगी?

सुनीता ने अपनी चोटी का छोर अपने हाथों में लेकर गोल गोल घुमाते हुए कहा, "अगर वाकई में ऐसा हुआ तो वह जो मांगेंगे वह दे दूंगी।"

सुनील ने अपनी पत्नी की और गंभीरता से देखते हुए पूछा, "वह जो मांगेंगे वह दे दोगी?"

सुनीता ने कहा, "हाँ भाई। जो मांगेंगे मैं दे दूँगी। पहले तो वह बिचारे कुछ मांगेंगे ही नहीं। उन्होंने पहले ही कह दिया था की उन्हें कुछ नहीं चाहिए। फिर भी अगर मैं अव्वल आयी तो भला उससे कौनसी बात बड़ी हो सकती है? मुझे भी तो उनको गुरु दक्षिणा देनी पड़ेगी ना? तो वह मैं उन्हें जरूर दूंगी। बशर्ते की मैं अव्वल आयी तो। और वैसे भी गुरुदक्षिणा तो देनी ही पड़ेगी। तो सोचेंगे क्या देना है। एक अच्छा सा गिफ्ट उनको देंगे। मानलो हर महीने अगर हम उन्हें ५ हजार रूपये भी दें तो उनको तीन महीने के पद्रह हजार देने होंगे। चलो मानलो बिस हजार भी देने पड़ जाएँ तो भी ज्यादा नहीं है। और वह भी अगर वह मांगेंगे तो। उन्होंने तो पैसे मांगे ही नहीं है। तो इस हालात में हम पैसे ना देते हुए उनको कोई इतनी ही रकम का गिफ्ट भी दे देंगे तो हमारा कोई खजाना नहीं लूट जाएगा।"

सुनील ने कहा, "अगर वह तुम्हें मांगेंगे तो?"

सुनीता: "मुझे मांगेंगे? क्या मतलब? मैं कोई रुपिया पैसा हूँ की वह मुझे मांगेंगे?"

सुनील: "अरे बुद्धू राम। मेरा मतलब है अगर वह तुम्हारा बदन मांगेंगे तो?"

सुनीता: "अरे तुम पागल हो गए हो? वह ऐसा कोई थोड़े ही मांगेंगे? तुम अपने मन से सोचते रहो। मुझे उनपर पूरा भरोसा है।"

सुनील: "पर समझो अगर उन्होंने मांग ही लिया तो, तुम क्या करोगी? तुमने तो वचन दे दिया है की जो वह मांगेंगे वह तुम दे दोगी।"

अपने पति की बात सुनकर सुनीता कुछ धर्मसंकट में पड़ गयी और थम गयी। थोड़ी देर तक वह सोचती रही फिर बोली: "देखो, सुनील, तुम मुझे बातों में फांसने की कोशिश मत ही करो। माना की मैं रूढ़िवादी विचारों की नहीं एक आधुनिक स्त्री हूँ। मैं पार्टीयोँ में जाती हूँ और जाना पसंद भी करती हूँ। और मैं जानती हूँ की उन पार्टीयों में मर्द और औरत एक दूसरे की बीबी या पति के साथ आज कल के जमाने में थोड़ी छेड़ छाड़ करते रहते हैं। कभी कबार चुम्माचाटी भी होती है। थोड़ा संयम रखना चाहिए पर ठीक है, नशे में या उत्तेजना में कई बार हो जाता है। यह सब चलता है। मुझे भी उस पर कोई भयानक एतराज नहीं। यहां तक तो ठीक है। पर मैं राजपूतानी हूँ। मैं अपना बदन ऐसे ही किसी को नहीं सौपती। मैंने तुम्हें अपना बदन सौंपा है क्यूंकि तुमने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी है। तुमने कसम खायी थी की तुम अपनी जान की बाजी लगा कर भी मेरी रक्षा करोगे। राजपूतानियाँ उनको ही अपना जिस्म सौंपतीं है जो अपनी जान की बाजी लगा कर भी उनकी रक्षा करने के लिए तैयार हों।"
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