RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
जस्सूजी ने टेढ़ी नज़रों से अपनी बीबी की और देख कर पूछा, "तुम कहना क्या चाहती हो?"
ज्योति ने कहा, "अनजान मत बनो. मैं तुम्हारी बीबी हूँ। तुम्हारी नस नस पहचानती हूँ। क्या मैं नहीं जानती तुम्हारे मन में सुनीता के लिए क्या भाव हैं? अरे मुझसे मत छुपाओ। मैंने तुम्हें शादी के पहले वचन दिया था की अगर तुम्हें कोई सुन्दर औरत पसंद आ गयी तो मैं उसे तुम्हारे बिस्तर तक लाने में तुम्हारी पूरी मदद करुँगी। मैं आज भी मेरे उस वचन पर कायम हूँ। पर जस्सूजी मैं एक बात से हैरान हूँ।"
कर्नल साहब ने पूछा, "क्या?"
ज्योति ने कहा, "आजतक कई लड़कियों और औरतों को मैंने आप पर मरते हुए देखा है। इनमें से मैं भी एक हूँ। पर आज तक मैंने आपको कोई औरत के लिए इतना तड़पते हुए नहीं देखा। पर आज आपकी आँखों में सुनीता के लिए आपकी वह चाहत या यूँ कहिये कामुकता जो मैंने देखि है वैसी मैंने पहले कभी किसी औरत के लिए नहीं देखि। मैं जानती हूँ की अगर आपको मौक़ा मिलेगा तो आप उसे चोदना भी चाहेंगे। पतिदेव, सच बोलना। मेरी बात ठीक है ना? इस बात को ले कर मैं आप से कत्तई भी नाराज नहीं हूँ। जैसा की हमने एक दूसरे से वादा किया है, मैं आपकी ही बीबी रहूंगी। पर तुम्हारे मन में उस लड़की के लिए कुछ ना कुछ है ना? आखिर बात क्या है इस औरत में?"
जस्सूजी ने अपनी बीबी को अपनी बाहों में लिया और उसके बूब्स की निप्पलोँ पर अपना हाथ फिराते हुए बोले, "मैं जानता हूँ। मैं मानता हूँ की मैं सुनीता की और काफी आकर्षित हूँ। तुम्हारी बात गलत नहीं है की मैं कहीं ना कहीं मेरे मन में सुनीता के लिए सिर्फ गुरु शिष्या के ही भाव नहीं है। देखो मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूंगा। पर मैं चाहता हूँ की वह मेरे पास अपनी मर्जी से आये। और दूसरी बात तुमने तो तुम्हारे सवाल का जवाब खुद ही दे दिया।"
ज्योति ने अपने पति की और आश्चर्य से देखा और पूछा, " वह कैसे?"
जस्सूजी, "देखो डार्लिंग, तुम मेरी पत्नी हो। तुम अगर मेरी पसंद की औरत की इर्षा करो तो यह स्वाभाविक है, और इसी लिए मैं सुनीता की तारीफ़ तुम्हारे सामने करने में डरता हूँ। पर जब तुमने पूछ ही लिया है और जब तुम यह कह रही हो की तुम्हें इर्षा नहीं होगी तो सुनो। पहली बात यह की सुनीता बेतहाशा खूबसूरत है। उसके व्यक्तित्व में ही सुंदरता झलकती है। उसके अंग अंग में से अनंग टपकता है। पर आश्चर्य तो यह है की उसे यह पता ही नहीं वह कितनी खूबसूरत है।
तुम्हारे सवाल के जवाब में मैं यह कहता हूँ की तुम ने खुद कहा नहीं की हर जगह सुनीता मेरे ही गुणगान गा रही थी? इसका मतलब यह के जो इंसान दूसरे का एहसान कभी ना भूले और अपनी काबिलियत पर अहंकार ना करे ऐसे इंसान कम होते हैं और उनकी कदर करनी चाहिए। और आखिरी बात, सुनीता का मन काँच की तरह साफ़ है। इस चीज़ से मैं बहुत आकर्षित हुआ हूँ। मैं नहीं जानता की क्या सुनीता भी मेरी और आकर्षित हुई है या फिर मरे अहसान के निचे दबी होने के कारण मुझे बर्दाश्त कर रही है?"
कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने अपने हाथ की ऊँगली से चुटकी बजाते हुए कहा, "मेरे लिए तो यह चुटकी बजाने वाली बात है। तुम निश्चिन्त रहो, मैं ना सिर्फ तुम्हारी प्यारी सुनीता के मनका हाल जान कर तुम्हें बताउंगी, बल्कि मैं पूरी कोशिश करुँगी की एक ना एक दिन मैं उसे तुम्हारे बिस्तर पर लाकर तुमसे चुदवाउंगी बल्कि मैं तुम दोनों के सामने खड़ी होकर तुम दोनो को चोदते हुए देखूंगी।"
सारी बातचीत सुनकर कर्नल साहब का लण्ड एक एकदम लोहे के छड़ सामान खड़ा हो गया। उन्होंने ज्योति का गाउन हटा कर उसे नग्न कर दिया। फिर उसकी बिस्तर लेटी हुई नग्न काया देख कर बोले, "हनी, आज भी तुम शादी के इतने सालों के बाद भी वैसी ही कमसिन लग रही हो जैसी मैंने तुम्हें पहली बार चोदने के पहले नंगी देखा था। शादी के इतने सालों और एक बच्चे के बाद भी तुम ज़रा भी बदली नहीं हो।"
ज्योति ने नाक सिकुड़ते हुए हँसते हुए कहा, "पर तुम्हें तो फिर भी दूसरे की थाली ही ज्यादा स्वादिष्ट लगती है। "
कर्नल साहब ने अपनी तरफ से एक गुब्बारा छोड़ते हुए कहा, "अच्छा? तो कहो तो तुम उस शाम को सिनेम हॉल में सुनील जी से चिपक चिपक कर क्या कर रही थी?"
ज्योति ने अपने पति की छाती में नकली घूंसा मारते हुए शर्मा ते हुए कहा, "चलो छोडो इन सब बातों को लगता है आज तुम्हें चोदने का बड़ा मूड है।"
कर्नल साहब अपनी बीबी की बात सुनकर ठहाका मार कर हँसकर बोले, "अरे, तुम अगर सुनीता को मेरे साथ बिस्तर पर सुलाओगी तो मैं क्या मैं तुम्हें छोडूंगा? मैं भी तुम्हारे प्यारे सुनीलजी को लाकर तुम्हारे साथ उसी बिस्तर पर ना सुलाकर तुम्हें अगर ना चुदवाया तो मेरा नाम कर्नल जसवंत सिंह नहीं।"
दोनों पति पत्नी एक लम्बी और धमाकेदार चुदाई में मग्न हो गए। जस्सूजी चोद तो ज्योति को रहे थे पर मन में सुनीता ही थी। ज्योति चुदवा तो अपने पति से रही थी पर लण्ड उसको सुनील का दिख रहा था।
दूसरे दिन सुबह कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सुबह जब उठी तो उसे कुछ थकान सी लग रही थी। पिछली रात पति के साथ हुई धमासान चुदाई के कारण वह थोड़ी थकी हुई थी। कर्नल साहब को दफ्तर में कुछ अधिक और अर्जेंट काम था इस लिए वह जल्दी ही ऑफिस चले गए थे। ज्योतिजी अपने मन में सोच रही ही थी की वह कैसे सुनीता से बात करे की अचानक सुनीता का ही फ़ोन आया।
सुनीता ने ज्योति से कहा, "दीदी, मैं तुमसे मिलकर कुछ बात करना चाहती हूँ। आप कितने बजे फ्री होंगीं? मैं कितने बजे आऊं?"
कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सोचने लगी आखिर सुनीता उनसे क्या बात करना चाहती होगी? वाकई में तो ज्योति को ही सुनीलजी की पत्नी सुनीता से बात करनी थी। ज्योति ने सुनीता से कहा, "सुनीता, आप जब जी चाहे आओ, पर आप जब आओ तो मेरे साथ बैठने के लिए आना। आने के बाद जाने की जल्दी मत करना। आज मेरा भी मन तुमसे बहोत बात करने को कर रहा है। मैं अभी ही उठी हूँ और थोड़ासा थकी हुई हूँ। अक्सर जब मैं थकी होती हूँ तो जस्सूजी मुझे सुबह की चाय बना के पिलाते हैं। तुम अभी ही आ जाओ ना? तुम जैसी हो वैसी ही आ जाओ। तुम्हें चेंज करने की भी जरुरत नहीं है। हम आमने सामने ही तो रहते हैं। कौनसा तुम्हें बाहर जाना है? अगर तुम्हें एतराज ना हो तो आज मैं मेरे घरमें ही तुम्हारी बनायी हुई चाय पीना चाहती हूँ।"
|