RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योति जी की बात सुनकर सुनीता का चेहरा खिल उठा। इतना बढ़िया परीक्षा का परिणाम आने के बावजूद सुनीता को कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। जस्सूजी के साथ हुई शारीरिक हरकतों के कारण सुनीता ज्योतिजी के बारेमें सोचकर थोड़ा अपने आप को दोषी महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था की वह कैसे ज्योति जी का सामना कर पाएगी। जब सामने चल कर ज्योतिजी ने ही इतना अपनापन दिखाया तो सुनीता की हिम्मत बढ़ गयी और वह थोड़ी ठीकठाक होकर बिना कपडे बदले तुरंत जाने के लिए निकल पड़ी।
वह गाउन पहने हुए थी। सो वह ऐसे ही कर्नल साहब की पत्नी ज्योति को मिलने के लिए चल पड़ी। सुबह के दस बजे होंगे। सब मर्द लोग अपने दफ्तर जा चुके थे। स्कूल में छुट्टियां चल रही थीं।
ज्योति उठ कर बाथरूम नहाने गयी और नहाकर बाहर निकल एक तौलिये में लिपटे हुए अपने बालों को कंघीं कर रही थी की घरकी घंटी बजी। घंटी बजने पर उन्होंने दरवाजा खोले बिना ही पूछा, "कौन है?"
जब सुनीता की आवाज सुनी तब उन्होंने दरवाजा धीरे से थोड़ा खोला और सुनीता को अंदर ले कर दरवाजा फ़टाफ़ट बंद किया।
सुनीता ने नमस्ते किया तो ज्योतिजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में लपेट लिया और बोली, "अरे हम बहने हैं। आओ गले लग जाओ।" फिर सुनीता का हाथ पकड़ ज्योतिजी उसे अपने बैडरूम में ले गयी और खुद पलंग के एक छोर पर अपने कूल्हे टिका कर बैठी और सुनील की पत्नी सुनीता को अपने पास बैठने के लिए इशारा किया।
सुनीता तो ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। तौलिये में लिपटी अर्धनग्न अवस्था में ज्योतिजी गजब का कमाल ढा रही थीं।
पलंग की और इशारा कर के ज्योतिजी बोली, "बैठो न? ऐसे मुझे क्या देख रही हो? तुम आयी तो मैं बस नहा कर निकली ही हूँ। सुबह सुबह दरवाजे पर कबाड़ी, सब्जी वाले, सफाई करने वाले इत्यादि मर्द लोग आ जाते हैं। तुम थी तो मैंने दरवाजा खोला वरना इस हाल मैं किसी मर्द के सामने जाकर मुझे हार्ट अटैक थोड़े ही दिलवाना है? आज ज़रा मैं थकी हुई हूँ। कल रात देर रात हो गयी थी। आज मेरा बदन थोड़ा दर्द कर रहा है।"
सुनीता समझ गयी की पिछली रात जस्सूजी ने जरूर अपनी पत्नी ज्योतिजी की जम कर चुदाई की होगी। यह सोच कर सुनीता के बदन में सिहरन फ़ैल गयी। उसने जस्सूजी का मोटा लण्ड अपनी उँगलियों में उनकी पतलून के उपरसे ही महसूस किया था। जब जस्सूजी उस लण्ड से अपनी बीबी को चोदते होंगे तो बेचारी बीबी का क्या हाल होता होगा यह सोच कर सुनील की पत्नी सुनीता काँप उठी। अरे बापरे! अगर कहीं ऐसी नौबत आयी की सुनीता को ज्योति जी के पति जस्सूजी से चुदवाना पड़े तो उसका अपना क्या हाल होगा यह सोच मात्र से ही सुनीता के रोंगटे खड़े हो गए और उसकी की चूत में से पानी रिसने लगा।
सुनीता ने पहली बार ज्योतिजी को अपने इतने करीब और वह भी ऐसे अर्ध नग्न हालत में देखा था। सुनीता ज्योतिजी को देखती ही रह गयी। शादी के इतने सालों के बाद भी ज्योतिजी जैसे ही बिन शादी शुदा नवयुवती की तरह लग रहीं थीं। वह सुनीता से करीब चार या पांच साल बड़ी होंगीं। पर क्या बदन! और क्या बदन का अनूठा लावण्य! सुनीता को ज़रा भी हैरानगी नहीं हुई की उसके अपने पति सुनील जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी के पीछे पागल थे।
ज्योतिजी के गीले केश उनके कंधे पर खुले फैले हुए थे। एक हाथ में कंघी ले कर घने बादलों से उनके केश को वह सँवार रहीं थीं। तौलिया ज्यादा चौड़ा नहीं था इस कारण ना सिर्फ ज्योति के उन्मत्त उरोजों का उद्दंड उभार, बल्कि उन गुम्बजोँ के शिखर के रूप में फूली हुई निप्पलोँ की भी कुछ कुछ झाँकी हो रही थीं। ज्योतिजी ने सुनीता को उनका बदन ताड़ते हुए देखा तो सुनीता को अपने करीब खींचा। एक पुतले की तरह मंत्रमुग्ध सुनीता ज्योतिजी के खींचने से उनके इतने निकट पहुंची की दोनों एक दूसरे की धमन सी आवाज करती हुई तेज साँसे महसूस कर रहे थे।
सुनीता का तो उसी समय मन किया की वह आगे बढ़कर ज्योतिजी की छाती के ऊपर स्थित फैले हुए उन दो मस्त टीलों पर अपनी हथेलियां रखदे और उनकी मुलायमता, सख्ती या लचक अपनी हाथों में महसूस करे। पर स्त्री सुलभ मर्यादा और इस डर से की कहीं ज्योतिजी सुनीता की इस हरकत को गलत ना समझले इस लिए रुक गयी।
सुनीता को ज्योतिजी के पति जस्सूजी से इर्षा हुई जो ज्योतिजी के उन उरोजों पर अपना अधिकार रखते थे की उन्हें जब चाहे थाम ले, दबाले या मसल ले। जब ज्योति जी ने सुनीता की निगाहें अपने उरोजों पर टिकी हुई पायी तो मुस्करा दीं। सुनीता ने अपनी नजर उन चूँचियों से हटा कर निचे की और देखा तो उसकी नजर ज्योति के तौलिये के दूसरे निचले छोर पर गयी।
हायरे दैया!! जिस ढंग से ज्योतिजी अपने कूल्हे पलंग के कोने पर टिका कर पलंग के निचे अपने पॉंव लटका कर बैठी थी और उसके कारण उनका तौलिया ज्योतिजी की कड़क और करारी जाँघें दोनों टाँगें जहां मिलती थीं, वहा तक चढ़ गया था और उनकी चूत अगर थोड़ा अन्धेरा सा ना होता तो जरूर साफ़ दिख जाती। फिर भी उनकी चूत की कुछ कुछ झांकी जरूर हो रही थी।
ज्योतिजी की जाँघें देखकर सुनीता से रहा नहीं गया और वह अनायास ही बोल पड़ी, "ज्योतिजी आप कितनी अद्भुत सुन्दर हो? मुझे आज आपके पति जस्सूजी की कितनी इर्षा हो रही है की आप जैसी खूबसूरत सुंदरी देवीके वह पति हैं।"
ज्योति ने थोड़ा सा आगे बढ़ कर सुनीता, जो की उनसे बिलकुल सटकर खड़ी थी, अपनी बाहों में प्रगाढ़ आलिंगन में ले लिया। सुनीता भौंचक्का सी ज्योतिजी को देखती ही रही और वह ज्योतिजी की बाहों में उनसे जुड़ गयी। सुनीता को स्वाभाविक ही कुछ हिचकिचाहट हुई तब ज्योति ने कहा, "देखो बहन, तुम मुझसे छोटी हो और शायद अनुभव में भी कम हो। हालांकि बुद्धिमत्ता में तुम मुझसे कहीं आगे हो। मैं बेबाक और खुला बोलती हूँ।
|