RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योति जी ने अपना हाथ सुनीता के बदन पर सरकाते हुए सुनीता के कँधों को सहलाना शुरू किया। ज्योति ने कहा, "देखो मैं तुमसे कुछ बातें खुल्लमखुल्ला बात करना चाहती हूँ। हो सकता है की तुम्हें मेरी भाषा अश्लील लगे। मुझे लपेड़ चपेड़ कर चिकनी चुपड़ी बातें करना नहीं आता। क्या मैं तुम्हारे साथ खुल्लमखुल्ला बात कर सकती हूँ?"
सुनीता क्या बोलती? उसने अपना सर हिला कर हामी भरी। सुनीता ने भी ऐसी बेबाक और निर्भीक लेडी को पहले कभी नहीं देखा था। वह उनको देखती ही रही। तब ज्योति बोली, "तुमने आज तक मेरे जैसी बेबाक और खुली औरत नहीं देखि होगी। मैं जो मनमें होता है वह बोल देती हूँ। मैं मानती हूँ यह मुझमें कमी है। पर मैं जो हूँ सो हूँ।"
सुनीता के हाथ में हाथ ले कर सुनीता के हाथ को सहलाते हुए पूछा, "पर पहले तो तुम यह बताओ की तुम क्या कहना चाहती थी? बताओ क्या बात है?"
सुनीता ने ज्योति के हाथ अपने हाथोँमें लेते हुए कहा, "दीदी, मेरी सफलता में कर्नल साहब का जितना योगदान है उतना ही आपका भी योगदान है। कल हम मिल नहीं पाए थे तो मैं उसके लिए आज आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करने आयी हूँ।"
ज्योति को यह सुनने की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। ज्योति ने पूछा, "मेरा योगदान? मैंने क्या किया है?"
सुनीता तुरंत सोफे से निचे उतर गयी और ज्योति के पॉंव से हाथ लगाती हुई बोली, "दीदी, अगर आप ने मुझे अपने पति से टूशन लेने का सुझाव ना दिया होता और यदि आपने अपने पति यानी की जस्सूजी को मेरे लिए इतना समय देनेके लिए प्रोत्साहित ना किया होता तो मैं जानती हूँ, वह मुझे इतना समय ना दे पाते। और तब मैं ऐसे नंबर ना ला पाती।
मैंने अपनी खिड़की से कई बार देखा था की जब जस्सूजी रात रात भर जागते थे तो आप उन्हें आधी रात को चाय बना कर पीलाती थीं। आप भी पूरी तरह नहीं सोती थीं। दूसरा जब जस्सूजी काफी समय तक मेरे साथ अकेले होते थे तब कभी भी आपने उन्हें टोका नहीं या रोका नहीं। यह आपका बहुत बड़ा बड़प्पन है।"
ज्योति ने सुनीता को ऊपर की और उठाया और अपनी बाहों में लिया और बोली, "सुनीता, जितना तुम्हारा तन सुन्दर है, उतना तुम्हारा मन भी सुन्दर है। तुम जो नंबर लायी हो वह तुम्हारी महेनत का नतीजा है। हम ने तो बस तुम्हें रास्ता दिखाया है। देखो तुम्हारी गुरु निष्ठा और लगन ने ही तुम्हें यहाँ पहुंचाया है। अक्सर जस्सूजी तुम्हारे बारे में बोलने से थकते नहीं। तुम कितनी महेनति, कितनी बुद्धि में तेज और निष्ठावान हो यह वह हमेशा मुझे बताते रहते थे। जहां तक तुम्हारी और मेरे पति के अकेले होने की बात है तो मुझे अपने पति पर पूरा विश्वास है।"
ज्योति जी ने सुनीता को अपने और करीब खींचा और बोली, "सुनीता, तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो। आजसे मैं तुम्हें अपनी छोटी बहन ही मानूंगी। क्या तुम्हें इसमें कोई एतराज तो नहीं?"
सुनीता ने कहा, "दीदी , मैं तो कभी से आपको मेरी दीदी ही मानती हूँ। आप कुछ कह रहे थे?"
ज्योति ने सुनीता की गोद में अपना हाथ रख कर कहा, " मैं जो कहने जा रही हूँ उसे सुनकर तुम्हें बहुत आश्चर्य हो सकता है। हो सकता है तुम्हें धक्का भी लगे। पर मैं बेबाक सच बोलने में मानती हूँ। देखो मेरी छोटी बहन सुनीता, मैं जानती हूँ की मेरे पति और तुम्हारे गुरु जस्सूजी तुम पर कुछ ज्यादा ही नरम हैं। तुम एक औरत हो और औरत मर्द की लोलुप नजर फ़ौरन पहचान लेती है। वह तुम्हें ना सिर्फ घूर घूर कर नज़ारे चुराकर देखते हैं और ना सिर्फ उन्होने कई बार तुमसे कुछ हरकतें भी की हैं, पर वह तुम्हें पाना चाहते हैं। तुम कुछ समझी?" सुनीता ने अपनी मुंडी हिलाकर ना कहा, वह कुछ नहीं समझी।
सुनीता के हाथ अपने हाथ में लेकर ज्योति बोली, "बहन एक बात कहूं? पहले तुम कसम लो की मेरी बात का बुरा नहीं मानोगी और मेरी बात पर कोई भी बखेड़ा नहीं खड़ा करोगी?"
सुनीता ने ज्योति जी की और देखा और बोली, "दीदी मैं कसम लेती हूँ। मैं ना तो बुरा मानूंगी और ना ही कुछ भी करुँगी, पर दीदी तुम क्या कहना चाहती हो?"
तब ज्योति ने सुनीता की नाक पकड़ कर कहा, "देखो बहन, मैं जस्सूजी की बीबी हूँ। और हमेशा रहूंगी। लेकिन मैंने उस दिन सिनेमा हॉल में तुम्हारे और मेरे पति के बिच हुई अठखेलियां देखीं थीं। मैं उसके लिए तुम्हें या मेरे पति को ज़रा सी भी जिम्मेवार नहीं मानती। ऐसे माहौल में ऐसी वैसी बातें हो ही जाती हैं। मैं झूठ नहीं बोलूंगी। मेरी और तुम्हारे पति के बिच उससे भी कहीं ज्यादा अठखेलियाँ हुई थीं।"
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