RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
यह सुन कर ज्योति जी ने अपने होँठ सुनीता के होँठ पर रख दिए और सुनीता के होठोँ का रस चूसती हुई बोली, "पगली! तू क्या सोचती है? यह सब मुझे पता नहीं? अरे मैंने ही तो सब के मन की बात जानने के लिए यह खेल रचा था। अब तक जो हम सब के मन में था उस दिन सब बाहर आ गया।"
सुनीता ने झिझकते हुए पूछा, "पर दीदी क्या यह सब सही है?"
ज्योति ने कहा, "देखो मेरी बहन। शादी के कुछ सालों बाद सब पति पत्नी एक दूसरे से थोड़े बोर हो जाते हैं। हमारी चुदाई में कोई नवीनता नहीं रहती। कोई अनअपेक्षित रोमांच नहीं रहता। पति और पत्नी दोनों का मन करता है की कुछ अलग हो, कुछ एक्साइटमेंट हो। इस लिए दोनों ही अपने मन में तो किसी और मर्द या औरत की कामना करते हैं पर डर के मारे या फिर सही पार्टनर ना मिलने के कारण कुछ कर नहीं पाते।
कई मर्द या औरत चोरी छुपी अपने पति पति अथवा पत्नी की पीठ के पीछे किसी और मर्द या स्त्री से रिश्ते करते हैं या चोदते हैं। यह सब स्वाभाविक है। पर इस में एक मर्यादा रखनी चाहिए की अपना पति अथवा पत्नी अपनी है और दूसरी का पति अथवा पत्नी उस की ही है। उसे हथियाने की कोशिश कत्तई भी नहीं करनी चाहिए।
बस चाह पूरी की फिर भले ही आप उसे प्यार करो पर उस पर अपना हक़ नहीं जमा सकते। यह मर्यादा अगर रख पाएं तो यह सही है। और इसमें एक और बात भी है। ऐसे में पति और पत्नी की सहमति जरुरी है, चाहे वह समझानेसे या फिर उकसाने से आये। और पति को पत्नी की सहमति तभी ही मिल सकती है जब पत्नी को अपने पति में पूरा विश्वास हो।"
ज्योतिजी ने सुनीता को होठोँ पर काफी उत्कट और उन्माद भरा चुम्बन किया। दोनों महिलाये एक दूसरे के मुंह में जीभ डालकर एक दूसरे के मुंह की लार चूस रहीं थीं।
सुनीता तब तक ज्योति के साथ काफी तनावमुक्त महसूस कर रही थी। सुनीता ने देखा की ज्योतिजी के बदन से तौलिया सरक गया था और ज्योतिजी को उसकी कोई चिंता नहीं थी। वैसे तो सुनीता को भी उस बात से कोई शिकायत नहीं थी क्यूंकि वह भी तो ज्योतिजी के करारे और उन्मादक बदन की कायल थी।
ज्योति ने सुनीता की ललचायी नजर अपने बदन पर फिसलते देखि तो वह मुस्कुरायी और सुनीता की ठुड्डी अपनी हथेली में पकड़ कर बोली, "अरे बहन देखती क्या है। महसूस कर। ज्योति ने सुनीता के सर पर हाथ दबाया जिससे सुनीता को बरबस ही आना सर नीचा करना पड़ा और उसक मुंह ज्योति जी उन्मत्त स्तनों तक आ पहुंचा। सुनीता के होँठ ज्योति जी की फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ को छूने लगे। सुनीता के होँठ अपने आप ही खुल गए और देखते ही देखते ज्योति जी की निप्पलेँ सुनीता के मुंह में गायब हो गयीं।
सुनीता ने जैसे ही ज्योतिजी की करारी निप्पलोँ को अपने होठोँ के बिच में महसूस किया तो उसके रोंगटे खड़े होगये। सुनीता ने कभी यह सोचा भी नहीं था की कभी उसे कोई स्त्री के बदन को छूने के कारण इतनी उत्तेजना पैदा होगी। सुनीता के बदन में जैसे बिजली का करंट दौड़ गया। उसके बदन में सिहरन हो उठी। अचानक उसे ऐसा लग जैसे उस का सर घूम रहा हो। उसने महसूस किया की उसकी चूत में से स्त्री रस चू ने लगा। उसकी पैंटी उसे गीली महसूस हुई।
सुनीता ने ज्योति जी को धीरे से कहा, "दीदी, आप यह क्या कर रही हो? देखो मेरी हालत खराब हो रही है। मेरी पैंटी गीली हो रही है।
ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता, आज मुझे भी तुम पर बहुत प्यार आ रहा है। तुम मेरी गोद में आ जाओगी?" जब सुनीता ने कोई जवाब नहीं दिया तो ज्योति ने सुनीता को ऊपर उठाकर धीरे से अपनी गोद में बिठा दिया। सुनीता भी चुपचाप उठकर ज्योति जी की गोद में बैठ गयी। सुनीता को भी अपनी दीदी पर उस दिन न जाने कैसा प्यार उमड़ रहा था।
ज्योति जी ने सुनीता के ब्लाउज में अपना हाथ डाला और बोली, "तुम्हारे बूब्स इतने मुलायम और फिर भी इतने सख्त हैं की उनपर हाथ फिरते मेरा ही मन नहीं भरता।"
ज्योति जी की हरकत देख कर सुनीता थोड़ी घबड़ा गयी। उसे डर लगा की कहीं ज्योति जी समलैंगिक कामुक स्त्री तो नहीं है?"
ज्योति जी सुनीता के मन की बात समझ गयीं और बोली, "सुनीता यह मत समझना की मैं समलैंगिक स्त्री हूँ। मुझे तुम्हारे जस्सूजी से चुदवाने में अद्भुत आनंद आता है। पर हाय री सुनीता! मैं वारी वारी जाऊं! तेरा बदन ही ऐसा कामणखोर है की मेरा भी मन मचल जाता है। क्या तुझे कुछ नहीं होता?"
सुनीता बेचारी चुपचाप ज्योति जी के कमसिन बदन को देखने लगी। ज्योति जी के उन्नत स्तन सुनीता के मुंह के पास ही थे। ज्योति जी के बदन की कामुक सुगंध सुनीता के तन में भी आग लगाने का काम कर रही थी।
ज्योति जी सुनीता के कान में अपना मुंह दबा कर बोली, "सुनीता, मेरे पति का लण्ड बहोत बड़ा है और (ज्योति जी अपनी उँगलियाँ बड़ी चौड़ी फैला कर बोली) इतना मोटा है। जो कोई उनसे एक बार चुदवाले वह उनसे चुदवाये बगैर रह नहीं सकता। अरे मैंने शादी भी तो मेरे पति का लण्ड देख कर ही तो की थी? एक बात कहूं बहन बुरा तो नहीं मानोगी?"
सुनीता ने सर हिला कर ना कहा तो ज्योति ने कहा, "मेरी बहन सुनीता! मेरे पति से तू भी एक बार अगर चुदवा लेगी ना, तो फिर तू उनसे बार बार चुदवाना चाहेगी।"
सुनीता आश्चर्य से ज्योति की और देखने लगी। ज्योति ने सुनीता का एक हाथ अपनी चूत पर रख दिया। सुनीता ने महसूस किया की ज्योतिजी की चूत से भी उनका स्त्री रस रिस रहा था। अब सुनीता की मर्यादा और झिझक का बाँध टूटने लगा था। वह अपने आप पर नियत्रण नहीं रख पा रही थी। सुनीता ने ज्योतिजी के पास पड़े तौलिये को हटाकर उनकी चूँचियों को चूसते हुए कहा, "दीदी सच बोलिये, रात को जस्सूजी और आपने मिलकर खूब सेक्स किया था ना?"
ज्योति जी ने सुनीता के भरे हुए स्तनों को सहलाते और निप्पलोँ को अपनी उँगलियों में दबाते हुए कहा, "अरे पगली बहन, सेक्स सेक्स मत बोल। पूछ की क्या तुम्हारे जस्सूजी ने मुझे जम कर चोदा था या नहीं? हाँ अरे बहन उन्होंने तो मेरी जान निकाल ली उतना चोदा। मैं क्या बताऊँ? इसी लिए तो आज सुबह से मैं थकी हुई हूँ। वह जब चोदते हैं तो माँ कसम, इतने सालों के बाद भी मजा आ जाता है। चुदाई में जस्सूजी का जवाब नहीं। पर तू बता, सुनील जी तुम्हें कैसे चोदते हैं?"
सुनीता ज्योतिजी की बात सुन कर थोड़ा असमंजस में पड़ गयी। पर तब तक वह काफी रिलैक्स्ड महसूस कर रही थी। सुनीता ने कहा, "दीदी मुझे अब भी थोड़ी सी झिझक है पर मैंने आप से वादा किया है तो मैं खुलमखुल्ला बताउंगी की सेक्स, सॉरी मतलब, चुदाई करने में सुनीलजी भी बड़े माहिर हैं। मुझे पता नहीं की उनका वह मतलब लण्ड जस्सूजी के जितना बड़ा है या नहीं, पर फिर भी काफी बड़ा है। बखूबी की बात यह है की जब वह चोदते हैं तो मैं जब तक झड़ ना जाऊं तब तक चोदते ही रहते हैं।"
--------------------------------------------------------------------------------------------
|