RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता उत्तेजना के मारे, "ओहहह... आहहह..." कराह रही थी। जब सुनीता ने ज्योतिजी की बात सुनी तो वह मुस्करा कर बोली, "दीदी, मेरी चूँचियाँ आपकी के मुकाबले तो कुछ भी नहीं।"
सुनीता ने पलंग पर ज्योतिजी का बदन अपनी टाँगों के बिच जकड कर रखा हुआ था। ज्योति जी ने जब अपनी आँखें खोली तो सुनीता की कच्छी नजर आयी। ज्योति ने सुनीता की कच्छी पर अपने हाथ फिराना शुरू किया तो सुनीता रुक गयी और बोली, "दीदी अब क्या है?"
ज्योति ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "अरे कमाल है, क्या मैं तुम्हारे इस कमसिन, करारे बदन की सबसे खूबसूरत नगीने को छू नहीं सकती? मैं देखना चाहती हूँ की मेरी अंतरंग प्यारी और बला की खूबसूरत दोस्त की सबसे प्यारी चीज़ कितनी खूबसूरत और रसीली है।
सुनीता शर्म से सेहम गयी और बोली, "ठीक है दीदी। मुझे आदत नहीं है ना किसी और से बदन को छुआने की और वह भी वहाँ जहां आप ने छुआ, इसलिए थोड़ा घबरा गयी थी।"
ज्योतिजी ने भी जवाब में हँसते हुए काफी सन्दर्भ पूर्ण और शरारती इशारा करते हुए कहा, "अरे पगली आदत डालले! अब कई और भी मौके आएंगे किसी और से बदन को छुआने के। अब तुझे मेरा संग जो मिल गया है।" ऐसा कह कर ज्योति जी ने सुनीता की कच्छी (पैंटी) को सुनीता के घुटनों की और निचे खिसकाया। सुनीता ने अपने दोनों पांव एक तरफ कर कच्छी को निचे की और खिसका कर निकाल फेंकी।
दोनों स्त्रियां पूरी तरह निर्वस्त्र थीं। इन्सान जब भी इस दुनिया में आता है तो भगवान् उसे उसके शरीर की रक्षा के लिए मात्र चमड़ी के प्राकृतिक आवरण में ढक कर भेजते हैं। इन्सान उसी बदन को अप्राकृतिक आवरणों में छिपा कर रखना चाहता है, जिससे पुरुष और स्त्री का एक दूसरे के अंग देखने का कौतुहल बढे जिससे और ज्यादा कामुकता पैदा हो।
दोनों स्त्रियां कुदरत की भेंट सी किसी भी अप्राकृतिक आवरण से ढकी हुई नहीं थीं।
सुनीता फिर अपनी मूल पोजीशन में वापस आ गयी। ज्योतिजी सुनीता की टाँगों के बिच स्थित सुनीता की चूत पर हाथ फेर कर उसे सहलाने और दबाने लगीं।
सुनीता अपनी गाँड़ इधर उधर कर मचल रही थी। उसके जीवन में यह पहला मौक़ा था जब किसी महिला ने सुनीता बदन को इस तरह छुआ और प्यार किया हो। सुनीता इंतजार कर रही थी की जल्द ही ज्योतिजी की उंगलियां उसकी चूत में डालेंगीं और उसे उन्माद से पागल कर देंगीं। और ठीक वही हुआ।
सुनीता की चूत के ऊपर वाले उभार पर हाथ फिराते ज्योतिजी ने धीरेसे अपनी एक उंगली से सुनीता की चूत की पंखुड़ियों को सहलाना शुरू किया। सुनीता की यह कमजोरी थी की जब कभी उसके पति सुनीता को चुदवाने के लिए तैयार करना चाहते थे तो हमेशा उसकी चूत की पंखुड़ियों को मसलते और प्यार से रगड़ते। उस समय सुनीता तुरंत ही चुदवाने के लिए तैयार हो जाती थी।
ज्योतिजी ने धीरे से वही उंगली सुनीता की चूत में डालदी। धीरे धीरे ज्योतिजी सुनीता की चूत की पंखुड़ियों के निचे वाली नाजुक और संवेदनशील त्वचा को सहलाने और रगड़ने लगी। सुनीता इसे महसूस कर उछल पड़ी। उसे ताज्जुब हुआ की ज्योतिजी को महिलाओं की चूत को उत्तेजित करने में इतने माहिर कैसे थे। ज्योतिजी की सतत अपनी उँगलियों से सुनीता की चूत चोदने के कारण सुनीता की चूत में एक अजीब सा उफान उठ रहा था। सुनीता का पति सुनील सुनीता को उंगली डालकर उसे चोदते थे। पर जो निपुणता और दक्षता ज्योतिजी की उंगली में थी वह लाजवाब थी।
जब ज्योतिजी ने देखा की सुनीता अपनी चूत की ज्योतिजी की उँगलियों से हो रही चुदाई के कारण उन्मादित हो कर अपने घुटनों के बल पर ही मचल रही थी। तब ज्योतिजी ने सुनीता के बाँहें पकड़ कर उसे अपने साथ ही लेटने का इशारा किया। सुनीता हिचकिचाते हुए ज्योतिजी के साथ लेट गयी तब ज्योति जी बैठ गयी और थोड़ा सा घूम कर अपनी दो उँगलियों को सुनीता की चूत में घुसेड़ कर सुनीता की चूत अपनी उँगलियों से फुर्ती से चोदने लगीं।
अब सुनीता के लिए यह झेलना बड़ा ही मुश्किल था। सुनीता अपने आप पर नियंत्रण खो चुकी थी। पहली बार सुनीता की चूत किसी खबसूरत स्त्री अपनी कोमल उँगलियों से चोद रही थी। सुनीता की चूत से तो जैसे उन्माद का फव्वारा ही छूटने लगा। सुनीता की सिसकारियाँ अब जोर शोर से निकलने लगीं। सुनीता की, "आह... ओह... दीदी यह क्या कर रहे हो? बापरे..." जैसी उन्माद भरी सिसकारियोँ से पूरा कमरा गूंज उठा।
जैसे जैसे सुनीता की सिसकारियाँ बढ़ने लगीं, वैसे वैसे ज्योतिजी ने सुनीता की चूत को और तेजी से चोदना जारी रखा। आखिर में, "दीदी, आअह्ह्ह... उँह... हाय... " की जोर सी सिसकारी मार कर सुनीता ने ज्योतिजी के हाथ थाम लिए और बोली, "बस दीदी अब मेरा छूट गया।" बोल कर सुनीता एकदम निढाल होकर ज्योतिजी के बाजू में ही लेट गयी और आँखें बंद कर शांत हो गयी।
सुनीता की जिंदगी में यह कमाल का लम्हा था। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की वह कभी किसी स्त्री की उँगलियों से अपनी चूत चुदवाएगी। वही हुआ था। उस दिन तक सुनीता ने कभी इतना उन्माद का अनुभव नहीं किया था। काफी समय से अपने पति से चुद तो रही थी, चुदाई में आनंद भी अनुभव कर रही थी, पर सालों साल वही लण्ड, वही मर्द और वही माहौल के कारण चुदाई में कोई नवीनता अथवा उत्तेजना नहीं रही थी। उस दिन सुनीता ने वह उत्तेजना महसूस की।
उत्तेजना सिर्फ इस लिए नहीं थी की सुनीता की चूत किसी सुन्दर महिला ने अपनी उँगलियों से चोदी थी, पर उसके साथ साथ जो जस्सूजी के बारे में उन्मादक बातें हो रही थीं उसने आग में घी डालने का काम किया था। जस्सूजी का लण्ड, उनसे चुदवानिकी बातें जस्सूजी की बीबी से ही सुनकर सुनीता के जहन में कामुकता की जबरदस्त आग लगी थी।
उस सुबह सुनीता और ज्योतिजी के बिच की औपचारिकता की दिवार जैसे ढह गयी थी। सुनीता ने तो अपनी उन्मादक ऊँचाइयों को छू लिया था पर सुनीता को ज्योतिजी को उससे भी ऊँची ऊंचाइयों तक ले जाना था।
सुनीता ने थोड़ी देर साँस थमने के बाद फिर ज्योतिजी को पलंग पर लिटा दिया और फिर वह घुटनों के बल पर उनपर सवार हो गयी और बोली, "दीदी अब मेरी बारी है। आज आपने मुझे कोई और ही जन्नत में पहुंचा दिया। आज का मेरा यह अनुभव मैं भूल नहीं सकती।"
यह सुनकर ज्योतिजी मुस्करादीं और बोली, "अभी तो मैंने तुझे कहा उतनी ऊंचाइयों पर पहुंचाया है? अभी तो मैं और मेरे पति तुझे अकल्पनीय ऊंचाइयों तक ले जाएंगे।"
ज्योतिजी के गूढ़ार्थ से भरे वाक्य सुनकर सुनीता चक्कर खा गयी। उसे यकीन हो गया की ज्योतिजी जरूर उसे जस्सूजी से चुदवाने का सोच रही थी।
ज्योतिजी की बात का जवाब दिए बिना सुनीता अपने एक हाथ से ज्योतिजी की चूत के ऊपर का उभार सहलाने लगी और झुक कर सुनीता ने अपने होँठ ज्योतिजी के स्तनोँ पर रख दिए। सुनीता ने दुसरा हाथ ज्योतिजी के दूसरे स्तन पर रखा और वह उसे दबाने और मसलने लगी। अब मचलने की बारी ज्योतिजी की थी। सुनीता ने अपनी उँगलियाँ अपनी चूत में तो डाली थीं पर कभी किसी और स्त्री की चूत में नहीं डाली थीं।
उस दिन, पहली बार ज्योतिजी की चूत को सहलाते पुचकारते हुए सुनीता ने अपनी दो उंगलियां ज्योतिजी की चूत में डाल दीं। ज्योतिजी ने जैसे ही सुनीता की उँगलियों को अपनी चूत में महसूस किया तो वह भी मचलने लगी। सुनीता एक साथ तीन काम कर रही थी। एक तो वह ज्योतिजी की चूत अपनी उँगलियों से चोद रही थी, दूसरे उसका मुंह ज्योतिजी के उन्मत्त स्तनोँ को चूस रहा था और तीसरे वह दूसरे हाथ से ज्योतिजी का दुसरा स्तन दबा रही थी और उनकी निप्पल को वह उँगलियों में भींच रही थी।
सुनीता ने ज्योति से उनको उँगलियों से चोदते हुए धीरे से उनके कानों में कहा, "दीदी, एक बात पूछूं?"
ज्योतिजी ने अपनी आँखें खोलीं और उन्हें मटक कर पूछने के लिये हामी का इशारा किया।
सुनीता ने कहा, "दीदी सच सच बताना, क्या आप मेरे पति को पसंद करती हो?"
सुनीता की भोली सी बात सुनकर ज्योति हँस पड़ी और बोली, "मैंने तुझे पहले ही नहीं कहा? मैं उन्हें ना सिर्फ पसंद करती हूँ, पगली मैं उनके पीछे पागल हूँ। तुम बुरा मत मानना। वह तुम्हारे ही पति हैं और हमेशा तुम्हारे ही रहेंगे। मैं उनको छीनने की ना ही कोशिश करुँगी ना ही मेरी ऐसी कोई इच्छा है। पर मैं उनकी इतनी कायल हूँ की मैं सारी मर्यादाओं को छोड़ कर उनसे खुल्लमखुल्ला चुदवाना चाहती हूँ। मैंने आज तुझे मेरे मन की बात कही है। और ध्यान रहे, मैं अपने पति से भी कोई धोखाधड़ी नहीं करुँगी, क्यूंकि मैंने उनको भी इस बात का इशारा कर दिया है।"
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