DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:22 PM,
#35
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनील की पत्नी सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी का मुंह छोटा हो गया। उनके मुंह पर लिखे निराशा और कुंठा के भाव सुनीता को साफ़ नजर आ रहे थे। वह खुद बड़ी निराश और दुखी महसूस कर रही थी। पर क्या करे? माँ को जो वचन दिया था। उसे तो निभाना ही था। सुनीता ने ज्योतिजी की और देखा। ज्योतिजी कुछ बोल नहीं पा रही रहीं। सुनीता को लगा की ज्योतिजी अब उससे बात नहीं करेंगी। निराश सी होकर वह उठ खड़ी हुई और कपडे पहनने लगी; तब ज्योतिजी ने सुनीता का हाथ थामा और बोली, "देखो बहन, तुम्हारी बात सही है की प्यारी माँ को दिया हुआ वचन तोड़ना नहीं चाहिए। पर एक बात को समझो। तुम्हारी माँ ने सबसे पहले तुम्हें जो सिख दी थी वह समय के चलते बदली थी की नहीं? बोलो?"

सुनीता ने ज्योति की तरफ देखा और मुंडी हिला कर कहा, "हाँ दीदी, बदली तो थी। पहले तो वह मुझे कोई लड़के से ज्यादा मिलने या बातचीत करने से ही मना कर रही थी; पर बाद में उन्होंने समय को बदलते हुए देखा तो छूआछुही और चुम्मा चाटी से आगे बढ़ने के लिए मना किया था।"

ज्योतिजी ने कहा, "देखो बहन, अगर तुम्हारी माँ आज होती ना, तो मुझे पक्का पता है की वह तुम्हें रोकती नहीं। क्यूंकि वह यह समझती की तुम अब बड़ी समझदार और परिपक्व हो गयी हो और अपना सही निर्णय तुम खुद ले सकती हो। मैं तुम्हें कोई जबरदस्ती नहीं कर रही। पर मैं तुम्हें जो मैंने कहा वह सोचने के लिए आग्रह जरुर करुँगी। बाकी निर्णय लेना तुम्हारे हाथमें है।"

सुनील की पत्नी सुनीता ने कर्नल साहब की पत्नी ज्योतिजी का हाथ थाम कर बड़ी विनम्रता से कहा, "दीदी, आप मुझसे नाराज तो नहीं हो ना? मैं आपकी छोटी बहन और अंतरंग सहेली बने रहना चाहती हूँ। कहीं मेरी यह सोच के कारण आप मुझसे रिश्ता ही ना रखना चाहो ऐसा तो नहीं होगा ना? हमारे दोनों के बिच अभी जो प्यार हुआ मैं उससे बहुत ही रोमांचित हूँ और उसके कारण आपके प्रति मेरा सम्मान और प्यार और भी बढ़ा है। अगर मैं आपको थोड़ी सी भी सेक्सी लगती हूँ और अगर आपको मेरे बदन से थोड़ा सा भी प्यार करने का मन करता हो तो मुझे 'मालिश करने के लिए बुला लेना। हमारे बिच अभी जैसे हमने किया ऐसे प्यार करने का कोड होगा 'मालिश' करनी है'।"

सुनीता की प्यारी और मीठी सरल बोली सुनकर ज्योतिजी बरबस हँस पड़ी। सुनीता को गले लगाते हुए बोली, "शायद कर्नल साहब के भाग्य में तुम्हारी 'मालिश' करना लिखा नहीं। पर तुम उन्हें प्यार करने से तो नहीं रोकेगी ना? और हाँ, मैं तुम्हें जल्दी ही 'मालिश' करने के लिए बुलाऊंगी।"

सुनीता भी ज्योतिजी के साथ हँस पड़ी और बोली, "दीदी, मैं एक राज की बात कहती हूँ। मैं खुद भी आपका बार बार 'मालिश' करना चाहती हूँ और आपसे बार बार 'मालिश' करवाना चाहती हूँ। आपके पति से भी मैं बहुत प्यार करती हूँ। आपकी इजाजत हो तो मौक़ा मिलने पर मैं उनको बहुत प्यार दूँगी। और जहां तक उनसे 'मालिश' करवाने का सवाल है, तो क्या पता कल क्या होगा?"

बड़ी देर तक दोनों बहनें एक दूसरे से लिपटी रहीं और एक दूसरे की गीली आँखें पोछती रहीं और एक दूसरे की गीली चूत पर हाथ फिराती रहीं।

कहते हैं की समय सब का समाधान है। समय सारे दुःख और सुख को लाता है और ले भी जाता है। ज्योतिजी और सुनील की पत्नी को मिले हुए कुछ दिन हो गए। कर्नल साहब (जस्सूजी) और सुनील दोनों अपने काम में व्यस्त हो गए। स्कूल की छुट्टियां भी खत्म हो गयीं और जस्सूजी की पत्नी ज्योतिजी और सुनील की पत्नी सुनीता दोनों भी अत्याधिक व्यस्त हो गए।

देखते ही देखते गर्मियां शुरू हो गयीं। स्कूलों में परीक्षा की चिंता मैं बच्चे पढ़ाई में लग गए थे। एक दिन शाम सुनील दफ्तर से घर पहुंचा ही था की कर्नल साहब का फ़ोन आया की उनके घर में चोरी हुई है। सुनील और सुनीता ने जब यह सूना तो वह दोनो भागते हुए कर्नल साहब के फ्लैट पहुंचे। उनके घर पुलिस आकर चली गयी थी। ड्राइंग रूम में सारा सामान बिखरा हुआ था।

सुनीता ने जस्सूजी की पत्नी के पास जा कर उनका हाथ थामा और पूछा की क्या हुआ था तो ज्योतिजी बोली, "समझ में नहीं आता। हम सब बाहर थे। दिन दहाड़े कोई चोर घरमें ताला तोड़ कर घुसा। चोर ने पूरा घर छान मारा। पर एक लैपटॉप, कुछ डायरियां और एक ही जूते को छोड़ कुछ भी नहीं ले गया। जूता ले गया तो भी बस एक। दुसरा जूता यहीं पड़ा है। पता नहीं, एक जूते को तो वह पहन भी नहीं सकता। उसका वह क्या करेगा? घर में इतनी महंगी चीजें हैं। मेरे गहने हैं। उन्हें छुआ तक नहीं। मेरी समझ में तो कुछ नहीं आता।"

सुनील ने कहा, "हो सकता है, अचानक ही कोई आ गया हो ऐसा उसे लगा तो जो हाथ आया उसे लेकर वह भाग निकला।"

जस्सूजी बड़ी गहरी सोचमें थे। उन्होंने कहा, "हो सकता है। पर हो सकता है कुछ और बात भी हो।"

सुनील कर्नल साहब की और आश्चर्य से देख कर बोलै, "आपको क्यों ऐसा लगता है की कुछ और भी हो सकता है?"

कर्नल साहब बोले, "वह इस लिए की पिछले कुछ दिनों से कोई मेरा पीछा कर रहा है। उसे पता नहीं की मैं जानता हूँ की वह मेरा पीछा कर रहा है। अगर यह चालु रहा तो एक ना एक दिन मैं उसे पकड़ पर पता कर ही लूंगा। पर इस बात में कुछ ना कुछ राज़ जरूर है।"

सुनील और उसकी पत्नी सुनीता कुछ समझ नहीं पाए और कुछ औपचारिक बातें कर अपने घर वापस लौट आये। कुछ दिनों में यह बात सब भूल गए।

गर्मी की छुट्टियां कुछ दिन के बाद शुरू होने वाली ही थीं। सुनील, कर्नल साहब उनकी पत्नी ज्योति और सुनील की पत्नी सुनीता एक दिन निचे कार पार्क में ही मिल गए , तब कर्नल साहब ने कहा, "सुनील और सुनीता सुनो। आर्मी में इस छुट्टियों में सामान्य नागरिकों के लिए आतंक विरोधी अभियान के तहत एक ट्रेनिंग एवं जागरूकता कार्यक्रम हिमाचल की पहाड़ियों में रखा है। इसमें नाम रजिस्टर करवाना है। कार्यक्रम सात दिनों का है। उसमें पहाड़ों में घूमना, तैराकी, शारीरिक व्यायाम, मनोरंजन इत्यादि कार्यक्रम हैं। सारा कार्यक्रम बड़ा रोमांचक होता है। मैं भी उसमें एक ट्रेनर हूँ। हमें तो जाना ही है। अगर आप की इच्छा हो तो आप भी शरीक़ हो सकते हो।"

ज्योतिजी सुनील की पत्नी ने सुनीता के करीब आयी, प्यार से उसका हाथ थामा और सुनीता के कानों में मुँह रख कर शरारत भरी आवाज में धीमे से बोलीं, "बहन चलो ना। राज की बात यह भी है की काफी दिन से मैंने तुमसे 'मालिश' भी नहीं करवाई। यह बहुत बढ़िया मौक़ा है। छुट्टियां हैं। घूमेंगे फिरेंगे और मजे करेंगे। तुम हाँ कह दोगी ना, तो सुनीलजी तो अपने आप ही आ जाएंगे।"

सुनील ने ज्योतिजी की और देखकर कहा, "अगर आप कहते हैं तो हम चलेंगे।" अपनी पत्नी सुनीता की और देखते हुए सुनील ने पूछा, "क्यों डार्लिंग, चलेंगें ना?"

सुनीता समझ गयी की ज्योतिजी के मन में कुछ जबरदस्त प्लान है। इतने करीब रहते हुए भी व्यस्तता के कारण पिछले कुछ दिनों से ज्योतिजी से मिलना भी नहीं हो पाया था। वह शर्माती हुई अपने पति की और देखती हुई बोली, "अगर आप कहेंगे तो भला मैं क्यों मना करुँगी? वैसे भी वेकेशन में हमें कहीं ना कहीं तो जाना ही है; तो क्यों ना हम इसी कार्यक्रम में हिस्सा लें? लगता है यह काफी रोमांचक और मजेदार होगा साथ साथ पहाड़ों में घूमना और एक्सरसाइज दोनों हो जाएंगे।"

तो फिर तय हुआ की पहाड़ों में छुट्टियां बिताने के लिए इस कार्यक्रम में सुनील और उनकी पत्नी सुनीता के नाम भी रजिस्टर कराएं जाएं। सब अपना सामान जुटाने में और तैयारी में लग गये।

उसी दिन शामको सुनील ने फ़ोन कर के कर्नल साहब को बताया की उसे उनसे कुछ जरुरी बात करनी है। बात फ़ोन पर नहीं हो सकती थी। कर्नल साहब आधे घंटे में ही सुनील और सुनीता के घर पहुँच गए।

सुनील डाइनिंग कुर्सी पर अपना सर पकड़ कर बैठे थे साथ में सुनीता उनसे कुछ सवाल जवाब कर रही थी। जब कर्नल साहब पहुंचे तो सुनील खड़ा हो गया और औपचारिकता पूरी होते ही उसने अपनी समस्या सुनाई।
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