DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
09-13-2020, 12:22 PM,
#37
RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
शायद ज्योतिजी ने अपने पति को नहीं बताया था की उन्होंने सुनीता को आने के लिए कहा था।

सुनीता ने पूछा, "अरे आपको बुखार है ना? आप तैयार क्यों हो रहे हैं?"

जस्सूजी, "अरे ऐसा छोटा मोटा बुखार तो आता रहता है। इससे घबराएंगे तो काम कैसे चलेगा? लगता है तुम्हें ज्योति ने बता दिया है। ज्योति तो फ़ालतू में बात का बतंगड़ बना रही है।"

सुनीता ने आगे बढ़ कर जस्सूजी का हाथ थामा तो पाया की उनका बदन काफी गरम था। सुनीता ने जस्सूजी का हाथ सख्ती से पकड़ा और बोली, "यह छोटा मोटा बुखार है क्या? आपका बदन आग जैसे तप रहा है। अब हर बार आपकी नहीं चलेगी। चलो कपडे निकालो।"

कर्नल साहब यह सुनकर आश्चर्य से सुनीता की और देखने लगे और बोले, "कपडे निकालूँ? क्यों?"

जब सुनीता ने जस्सूजी के सवाल के बारेमें ध्यान से सोचा तो झेंप गयी। सुनीता को समझ आया की जस्सूजी कहीं उसकी कपडे निकालने वाली बात का गलत मतलब ना निकालें। उसने तुरंत ही कहा, "मेरा मतलब है, कपडे बदलो। ऑफिस जाने की कोई जरुरत नहीं है। आज आप घर में ही आराम करेंगे। यह मेरा हुक्म है।"

कर्नल साहब चुपचाप सुनीता की अधिकारपूर्ण आवाज सुन कर सकपका गए। आज तक कभी उन्होंने सुनीता की ऐसी सख्त आवाज सुनी नहीं थी। वह चुपचाप पीछे हटे, सुनीता को अंदर आने दिया और खुद एक हाथ का टेका ले कर सोफे पर बैठ गए। उनकी कमजोरी साफ़ दिख रही थी।

सुनीता ने कहा, "कपडे निकाल कर पयजामा पहन लीजिये। दफ्तर में फ़ोन करिये की आज आप नहीं आएंगे। मैं आपके सर पर ठन्डे पानी का कपड़ा लगा कर बुखार को कम करने की कोशिश करती हूँ।"

कर्नल साहब चुपचाप बैडरूम में अंदर चले गए और पतलून निकाल कर पजामा पहन कर पलंग पर लेट गए।

सुनीता ने बर्फ के कुछ टुकड़े निकाल कर एक कटोरी में डाले और एक साफ़ कपड़ा लेकर वह जस्सूजी के बगल में उनके सीने के पास ही अपने कूल्हे टिका कर पलंग पर बैठ गयी। जस्सूजी का बुखार काफी तेज था। सुनीता ने कपड़ा भिगोया और उसे निचोड़ कर जस्सूजी के कपाल पर लगाया और प्यार से उसे दबा कर जस्सूजी के सर पर हाथ फिराने लगी। जस्सूजी आँखें बंद कर सुनीता के कोमल हाथोँ के स्पर्श का आनंद ले रहे थे।

बिच में जब वह अपनी आँखें खोलते तो सुनीता के करारे, फुले हुए, ब्लाउज और ब्रा के अंदर से बाहर आने को व्याकुल मस्त स्तन उनकी आँखों और मुंह के ठीक सामने दीखते थे। सुनीता के स्तनोँ के बिच की गहरी खाई में से उसकी हल्के चॉकलेट रंग की एरोला की गोलाइयों में कैद निप्पलोँ की हलकी झांकी भी जस्सूजी को हो रही थी। सुनीता के बदन की खुसबू उनको पागल कर रही थी।

कई बार सुनीता के स्तन जस्सूजी के मुंह को और आँखों को अनायास ही स्पर्श कर रहे थे। सुनीता अपने काम में इतनी मशगूल थी की उसे इस बात का कोई भी ख़याल ही नहीं था की उसके मदमस्त स्तन जस्सूजी की हालत खराब कर रहे थे। सुनीता बार बार झुक कर कभी कपड़ा भिगो कर निचोड़ती तो कभी उसे जस्सूजी के कपाल पर दबा कर अपने हाथोँ से इनका कपाल और उनका सर प्यार से दबाती और अपना हाथ उस पर फिराती रहती थी।

जब सुनीता कर्नल साहब के सर पर कपड़ा दबाती तो उसे काफी झुकना पड़ता था जिसके कारण उसके स्तन जस्सूजी के मुंहमें ही जा लगते थे। कर्नल साहब ने कई बार कोशिश की वह उन्हें नजरअंदाज करे पर आखिर वह भी तो एक मर्द ही थे ना? कब तक अपने आपको रोक सकते थे? एक बार अचानक ही जब सुनीता झुकी और उसकी चूँचियाँ जस्सूजी के मुंह में जा लगीं तो बीन चाहे जस्सूजी का मुंह खुल गया और सुनीता का एक स्तन जस्सूजी के मुंह में घुस गया।

कर्नल साहब अपने आपको रोक नहीं पाए और उन्होंने सुनीता के स्तन को मुंह में लेकर वह उसे मुंह में ही दबाने और चूसने लगे। सुनीता ने ब्लाउज और ब्रा पहन रखी थीं, पर जस्सूजी के मुंह की लार से सुनीता का ब्लाउज और ब्रा भीग गए। सुनीता को महसूस हुआ की उसके स्तन जस्सूजी अपने मुंह में लेकर चूस रहे थे।

सुनीता को इस कदर अपने इतने करीब पाकर जस्सूजी का सर तो ठंडा हो रहा था पर उनके दो पॉंव के बिच उनका लण्ड गरम हो गया था। जल्दी में जस्सूजी ने अंदर अंडरवियर भी नहीं पहना था। उनका पयजामा के ऊपर उनके लण्ड के खड़े होने के कारण तम्बू जैसा बन गया था। सुनीता की पीठ उस तरफ थी इस कारण वह उसे देख नहीं सकती थी।

सुनीता ने जब पाया की जस्सूजी ने उसके एक स्तन को मुंह में लिया था तो वह एकदम घबड़ा गयी। उसने पीछे हटने के लिए एक हाथ का टेका लेने के लिए अपना हाथ पीछे किया तो वह जस्सूजी की टाँगों के बिच में जा पहुंचा। सुनीता ने अपना हाथ वहाँ टिकाया तो जस्सूजी का लण्ड ही उसके हाथ में आ गया। यह दूसरी बार हुआ की सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपने हाथ में कपडे के दूसरी और महसूस किया था।
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