RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
एक तरफ सुनीता को जस्सूजी का बुखार की चिंता थी तो दूसरी और उनके नजदीक आने से वह भी तो गरम हो रही थी। सुनीता की समझ में यह नहीं आ रहाथा की वह करे तो क्या करे? उसका एक स्तन जस्सूजी के मुंह में था तो उसका हाथ जस्सूजी का लण्ड पकडे हुए था। उसके हाथ में जस्सूजी के लण्ड से निकल रही चिकनाहट महसूस हो रही थी। जस्सूजी का पजामा भी उनकी टाँगों के बिच में फैली हुई चिकनाहट से भीग चुका था। सुनीता ने अपना हाथ हिलाया तो उसकी मुठ्ठी में जस्सूजी का लण्ड भी हिलने लगा।
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सुनीता की हालत साँप छछूंदर निगले ऐसी हो गयी। ना वह निगल सकती थी और ना वह उगल सकती थी। ना वह जस्सूजी को रोक सकती थी और नाही उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दे सकती थी। वह करे तो क्या करे? उस रात वह भी ठीक तरह सो नहीं पायी थी। उसके दिमाग में पिछली शाम की घंटनाएँ पूरी रात घूमती रही थीं। सुनीलजी का पीछा कौन कर रहा था? क्यों कर रहा था? वाकई में कर भी रहा था की नहीं? यह सवाल उसको खाये जा रहे थे।
पर उस समय वह सब सोचने का वक्त नहीं था। उसे एक ही चिंता थी। अगर जस्सूजी उसे चोदने के लिए मजबूर करेंगे तो वह क्या करेगी? एक बात साफ़ थी। सुनीता जानती थी की उसमें उतनी हिम्मत नहीं थी की वह जस्सूजी को रोक सके। इसका कारण यह था की वह खुद भी कहीं ना कहीं अपने मन की गहराइयों में जस्सूजी से चुदवाना चाहती थी।
सुनीता को जस्सूजी का मोटा, लंबा लण्ड उसकी चूत में कैसे फिट होगा उसकी जिज्ञासा मार रही थी। वह उस लण्ड को अपनी चूत में अनुभव करना चाहती थी। तो दूसरी और उसने माँ को दिया हुआ वचन था। उसे अपने पति से धोका करेगी उसकी चिंता नहीं थी, क्यूंकि उसके पति को अगर सुनीता जस्सूजी से चुदवाने के लिए राजी हो जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी यह सुनीता जानती थी।
बल्कि सुनीता के पति सुनील तो सुनीता को जस्सूजी का नाम लेकर उकसाने के लिए जी भर कोशिश कर रहे थे। जाहिर था की सुनील चाहते थे की कभी ना कभी सुनीता जस्सूजी से चुदवाले ताकि उनका रास्ता साफ़ हो जाये। मतलब सुनीता के पति सुनील जी भी तो जस्सूजी की बीबी ज्योतिजी को चोदना चाहते थे ना? अगर सुनीता जस्सूजी से चुदवाने लगी तो फिर सुनीता भी तो अपने पति सुनील को जस्सूजी की बीबी ज्योति को चोदने से कैसे रोक सकती है?
हालांकि सुनीता ने कभी अपने पति को किसी भी औरत को चोदने से रोकना नहीं चाहा। सुनीता जानती थी की उसके पति भी रंगीले मिज़ाज के तो हैं ही। वह विदेश में जाते हैं तो वहाँ तो औरतें, अगर कोई मर्द मन भाया तो, अक्सर अपनी टाँगों को खोलने में देर नहीं करतीं। मर्दों को अपने देश की तरह वहाँ खूबसूरत औरतों को चोदने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते।
इस लिए सुनीता ने मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लिया था की उसके पति सुनील मौक़ा मिलने पर दूसरी औरतों को चोदते थे और इसके बारे में ना तो वह अपने पति से पूछती थी और ना तो उसके पति सुनीता को कुछ बताते थे। तो मानसिक रूप से उनका वैवाहिक जीवन खुला सा ही था। पर बात यहां सुनीता की अपनी अस्मिता की थी।
सुनीता को लगा की वह उस समय ज्यादा कुछ सोचने की स्थिति में नहीं थी। दबाव के मारे उसका सर फटा जा रहा था। उसे कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी। उसकी बगल में जस्सूजी भी शायद नींद में थे क्यूंकि काफी समय से उन्होंने अपनी आँखें खोली नहीं थी और उनकी साँसे एक ही गति से मंद मंद चल रहीं थी। सुनीता को एक नींद की झपकी आ गयी और वह जस्सूजी के बदन पर ही लुढ़क गयी। उसका एक स्तन जस्सूजी के मुंह में था वह जानते हुए भी वह उस समय कुछ कर पाने के लिए असमर्थ थी।
सुनीता गहरी नींद में बेहोश सी हालत में जस्सूजी के मुंह में अपना एक स्तन धरे हुए जस्सूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो गयी। कर्नल साहब भी बुखार के कारण आधी निंद और आधे जागृत अवस्था में थे। उनके जहन में अजीब सा रोमांच था। उनके सपनों की रानी सुनीता उनपर अपना पूरा बदन टिका कर सो रही थी। उसका एक मद मस्त स्तन जस्सूजी के मुंह में था जिसका रसास्वादन वह कर रहे थे, हालांकि सुनीता ने ब्लाउज और ब्रा पहन रक्खी थी।
जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने सुनीता का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की सुनीता एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी। ज्योति ने उनको बताया था की सुनीता एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो सुनीता के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को सुनीता अपना तन कभी नहीं देगी।
कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानते थे। वह कभी भी स्त्रियों की कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी। वह ना सिर्फ सुनीता के बदन के, बल्कि सुनीता के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सुनीता की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोश के वह कायल थे। सुनीता की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे।
और फिर उन्होंने सुनीता को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। सुनीता अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी सुनीता का हाथ महसूस किया था। कर्नल साहब भी क्या करे? क्या सुनीता उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थे।
खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और सुनीता के स्तन को मुंह से निकाल कर सुनीता को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। सुनीता का ब्लाउज और उसकी ब्रा जस्सूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी। जस्सूजी को सुनीता के स्तन के बिच में गोला किये हुए सुनीता के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी।
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