RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
जस्सूजी के बदन की और उनके लण्ड की गर्मी सुनीता ने ठंडी कर दी थी। जस्सूजी अब काफी अच्छा महसूस कर रहे थे। सुनीता उठ खड़ी हुई और अपनी साडी ठीक ठाक कर उसने जस्सूजी को चूमा और बोली, "जस्सूजी, मैं एक बात आपसे पूछना भूल ही गयी। मैं आपसे यह पूछना चाहती थी की आप कुछ वास्तव में छुपा रहे हो ना, उस पीछा करने वाले व्यक्ति के बारे में? सच सच बताना प्लीज?"
कर्नल साहब ने सुनीता की और ध्यान से देखा और थोड़ी देर मौन हो गए, फिर गंभीरता से बोले, "देखो सुनीता, मुझे लगता है शायद यह सब हमारे मन का वहम था। जैसा की आपके पति सुनीलजी ने कहा, हमें उसे भूल जाना चाहिए।"
सुनीता को फिर भी लगा की जस्सूजी सारी बात खुलकर बोलना उस समय ठीक नहीं समझते और इस लिए सुनीता ने भी उस बात को वहीँ छोड़ देना ही ठीक समझा।
उस सुबह के बाद कर्नल साहब और सुनीता एक दूसरे से ऐसे वर्तन करने लगे जैसे उस सुबह उनके बिच कुछ हुआ ही नहीं और उनके बिच अभी दूरियां वैसे ही बनी हुई थीं जैसे पहले थीं।
पहाड़ों में छुट्टियां मनाने जाने का दिन करीब आ रहा था। सुनीता अपने पति सुनीलजी के साथ पैकिंग करने और सफर की तैयारी करने में जुट गयी। दोनों जोड़ियों का मिलना उन दिनों हुआ नहीं। फ़ोन पर एक दूसरे से वह जरूर सलाह मशवरा करते थे की तैयारी ठीक हो रही है या नहीं।
एक बार जब सुनीता ने जस्सूजी को फ़ोन कर पूछा की क्या जस्सूजी ज्योतिजी छुट्टियों में जाने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, तो जस्सूजी ने सुनीता को फ़ोन पर ही एक लंबा चौड़ा भाषण दे दिया।
कर्नल साहब ने कहा, "सुनीता मैं आप और सुनीलजी से यह कहना चाहता हूँ की यह कोई छुट्टियां मनाने हम नहीं जा रहे। यह भारतीय सेना का भारत के युवा नागरिकों के लिए आतंकवाद से निपटने में सक्षम बनाने के लिए आयोजित एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है। इस में सेना के कर्मचारियों के रिश्तेदार और मित्रगण ही शामिल हो सकते हैं। इस प्रोग्राम में शामिल होने के किये जरुरी राशि देने के अलावा सेना के कोई भी आला अधिकारी की सिफारिश भी आवश्यक है। सब शामिल होने वालों का सिक्योरिटी चेक भी होता है।
इस में रोज सुबह छे बजे कसरत, पहाड़ों में ट्रेक्किंग (यानी पहाड़ चढ़ना या पहाड़ी रास्तों पर लंबा चलना), दोपहर आराम, शाम को आतंकवाद और आतंक वादियों पर लेक्चर और देर शाम को ड्रिंक्स, डान्स बगैरह का कार्यक्रम है। हम छुट्टियां तो मनाएंगे ही पर साथ साथ आम नागरिक आतंकवाद से कैसे लड़ सकते हैं या लड़ने में सेना की मदद कैसे कर सकते हैं उसकी ट्रेनिंग दी जायेगी। मैं भी उन ट्रैनिंग के प्रशिक्षकों में से एक हूँ। आपको मेरा लेक्चर भी सुनना पडेगा।"
सुनीलजी को यह छुट्टियां ज्योतिजी के करीब जानेका सुनहरा मौक़ा लगा। साथ साथ वह इस उधेड़बुन में भी थे की इन छुट्टियों में कैसे सुनीता और जस्सूजी को एक साथ किया जाए की जिससे उन दोनों में भी एक दूसरे के प्रति जबरदस्त शारीरिक आकर्षण हो और मौक़ा मिलते ही दोनों जोड़ियों का आपस में एक दूसरे के जोड़ीदार से शारीरिक सम्भोग हो।
वह इस ब्रेक को एक सुनहरी मौक़ा मान रहे थे। जिस दिन सुबह ट्रैन पकड़नी थी उसके अगले दिन रात को बिस्तर में सुनीलजी और सुनीता के बिच में कुछ इस तरह बात हुई।
सुनीलजी सुनीता को अपनी बाहों में लेकर बोले, "डार्लिंग, कल सुबह हम एक बहुत ही रोमांचक और साहसिक यात्रा पर निकल रहे हैं और मैं चाहता हूँ की इसे और भी उत्तेजक और रोमांचक बनाया जाए।" यह कह कर सुनीलजी ने अपनी बीबी के गाउन के ऊपर से अंदर अपना हाथ डालकर सुनीता के बूब्स को सहलाना और दबाना शुरू किया।
सुनीता मचलती हुई बोली, "क्या मतलब?"
सुनीलजी ने सुनीता की निप्पलों को अपनी उँगलियों में लिया और उन्हें दबाते हुए बोले, "हनी, हमने जस्सूजी को आपको पढ़ाने के लिए जो योगदान दिया है उसके बदले में कुछ भी तो नहीं दिया। हाँ यह सच है की उन्होंने भी कुछ नहीं माँगा। ना ही उन्होंने कुछ माँगा और नाही हम उन्हें कुछ दे पाए हैं। तुम भी अच्छी तरह जानती हो की जस्सूजी से हम गलती से भी पैसों की बात नहीं कर सकते। अगर उन्हें पता लगा की हमने ऐसा कुछ सोचा भी था तो वह बहुत बुरा मान जाएंगे।
फिर हम करें तो क्या करें? तो मैंने एक बात सोची है। पता नहीं तुम मेरा समर्थन करोगी या नहीं।
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