RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
अपने पति की वही शरारत भरी मुस्कान और करारा जवाब मिलने पर सुनीता कुछ झेंप सी गयी। उसके गाल शर्म से लाल हो गए। अपनी उलझन और शर्मिंदगी छिपाते हुए सुनील की कमर में एक हल्काफुल्का नकली घूँसा मारती हुई अपनी आँखें निचीं करते हुए सुनीता बोली, "क्या बकते हो? मेरा कहने का मतलब ऐसा नहीं था। खैर, मजाक अपनी जगह है। मुझे जस्सूजी को कंपनी देने में क्या आपत्ति हो सकती है? मुझे भी उनके साथ रहना, घूमना फिरना, बातें करना अच्छा लगता है। आप जैसा कहें। मैं जरूर जस्सूजी को कंपनी दूंगी। पर रात में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी हाँ!"
सुनीलजी ने अपनी बीबी सुनीता को अपनी बाँहों में भरते हुए सुनीता का गाउन दोनों हाथों में पकड़ा और कहा, "अरे भाई, वह तो तुम रहोगी ही। मैं भी तो तुम्हारे बगैर अपनी रातें उन वादियों में कैसे गुजारूंगा? मुझसे तो तुम्हारे बगैर एक रात भी गुजर नहीं सकती।"
सुनीता ने अपने पति को उलाहना देते हुए कहा, "अरे छोडो भी! तुम्हें मेरी फ़िक्र कहाँ? तुम्हें तो दिन और रात ज्योतिजी ही नजर आ रही है। भला उस सुंदरी के सामने तुम्हारी सीधी सादी बीबी कहाँ तुम्हें आकर्षक लगेगी?"
सुनील ने शरारत भरे लहजे में अपने पति के लण्ड की और इशारा करते हुए कहा, "अच्छा? तो यह जनाब वैसे ही थोड़े अटेंशन में खड़े हैं?"
सुनीता ने अपने पति की नाक पकड़ी और कहा, "क्या पता? यह जनाब मुझे देख कर या फिर कोई दूसरी प्यारी सखी की याद को ताजा कर अल्लड मस्त हो कर उछल रहे हैं।"
सुनीता की शरारत भरी और सेक्सी बातें और अदा के साथ अपनी बीबी की कोमल उँगलियों से सेहलवाने के कारण सुनील का लण्ड खड़ा हो गया था। उसके छिद्र में से उसका पूर्वरस स्राव करने लगा। सुनील ने दोनों हाथोँ से सुनीता का गाउन ऊपर उठाया।
सुनीता ने अपने हाथ ऊपर उठा कर अपना गाउन अपने पति सुनील को निकाल फेंकने दिया। सुनीता ने उस रात गाउन के निचे कुछ भी नहीं पहना था। उसे पता था की उस रात उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी। अपने पति का कड़क लण्ड अपने हाथों में हिलाते हुए पति के कुर्ता पयजामे की और ऊँगली दिखाते हुए कहा, "तुम भी तो अपना यह परिवेश उतारो ना? मैं गरम हो रही हूँ।"
सुनील अपनी कमसिन बीबी के करारे फुले हुए स्तनों को, उसके ऊपर बिखरे हुए दाने सामान उभरी हुई फुंसियों से मण्डित चॉकलेटी रंगकी एरोला के बीचो बिच गुलाबी रंग की फूली हुई निप्पलोँ को दबाने और मसलने का अद्भुत आनंद ले रहे थे। अपना दुसरा हाथ सुनील ने अपनी बीबी की चूत पर हलके हलके फिराते हुए कहा, "गरम तो तुम हो रही हो। यह मेरी उँगलियाँ महसूस कर रहीं हैं। यह गर्मी किसके कारण और किसके लिए है?"
सुनीता बेचारी कुछ समझी नहीं या फिर ना समझने का दिखावा करती हुई बोली, "मैं भी तो यही कह रही हूँ, तुम अब बातें ना करो, चलो चढ़ जाओ और जल्दी चोदो। हमारे पास पूरी रात नहीं है। कल सुबह जल्दी उठना है और निकलना है।" सुनीता पति का लण्ड फुर्ती से हिलाने लगी। उसकी जरुरत ही नहीं थी। क्यूंकि सुनील का लण्ड पहले ही फूल कर खड़ा हो चुका था।
जैसे ही सुनील ने अपनी दो उंगलियां अपनी बीबी सुनीता की चूत में डालीं तो सुनीता का पूरा बदन मचल उठा। सुनील अपनी बीबी की चूत की सबसे ज्यादा संवेदनशील त्वचा को अपनी उँगलियों से इतने प्यार और दक्षता से दबा और मसला रहे थे की सुनीता बिन चाहे ही अपनी गाँड़ बिस्तरे पर रगड़ ने लगी। सुनीता ने मुंह से कामुक सिसकारियां निकलने लगीं।
सुबह जस्सूजी से हुआ शारीरिक आधा अधूरा प्यार भी सुनीता को याद आनेसे पागल करने के लिए काफी था। उस पर अपने पति से सतत जस्सूजी की बातें सुन कर उसकी उत्तेजना रुकने का नाम नहीं ले रही थी। सुनीता अब सारी लज्जा की मर्यादा लाँघ चुकी थी। सुनीता ने अपने पति का चेहरा अपने दोनों हाथों में पकड़ा और उसे अपने स्तनों पर रगड़ते हुए बोली, "सुनील, मुझे ज्यादा परेशान मत करो। प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड जल्दी ही डालो और उसे मेरी चूत में खूब रगड़ो। प्लीज जल्दी करो।"
|