RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता ने अपने पति को हल्का सा धक्का मारते हुए टेढ़ी नजर कर कहा, "शर्म करो। कल रात तो तुम मुझे पूरा का पूरा निगल गए थे। पेट नहीं भरा था क्या?"
सुनील ने भी उसी लहजे में जवाब दिया, "वह तो डिनर था। मैं तो नाश्ते की बात कर रहा हूँ।"
सुनीता ने अपने पति के होँठों से होँठ चिपकाकर उन्हें एक गहरा चुम्बन किया। फिर कुछ देर बाद हट कर नटखट अदा करती हुई बोली, "नाश्ते में आज यही मिलेगा। इससे ही काम चलाना पडेगा। दुपहर में लंच तो नहीं दे पाउंगी, पर रात को फिर डिनर करने की इच्छा हो तो कुछ जुगाड़ करना पड़ेगा। चलती ट्रैन में कम्पार्टमेंट में तुम्हें खिलाना थोड़ा मुश्किल है। पर जनाब पहले यह तो देखो की कहीं जे जे (जस्सूजी और ज्योतिजी) घर से बाहर निकले या नहीं?"
सुनीता ने खिड़की में से झांका तो देखा की जस्सूजी और ज्योतिजी अपना सामान उठा कर निचे उतर ही रहे थे। निचे टैक्सी खड़ी थी।
सुबह के पांच बजे होंगे। भोर की हलकी लालिमा छायी हुई थी। हवा में थोड़ी सी ठण्ड की खुशनुमा झलक थी। सुनील ने जब ज्योति जी को देखा तो देखते ही रह गए। ज्योति ने फूलों की डिज़ाइन वाला टॉप पहना था और निचे स्कर्ट जिसका छोर घुटनोँ से थोड़ा ज्यादा ही ऊपर तक था पहन रखा था।
उनके ब्लाउज के निचे और स्कर्ट के बेल्ट के बिच का खुला हुआ बदन किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। पतली कमर, पेट की करारी त्वचा, नाभि में बिच स्थित नाभि बटन और फिर पतली कमर के निचे कूल्हों की और का फैलाव और फिर कातिल सी कमल की डंडी के सामान सुआकार जाँघें किसी भी लोलुप मर्द की आँखों को अपने ऊपर से हटने नहीं दें ऐसी कामुक थीं।
सुनीलजी के निचे उतरते ही दोनों पति दूसरे की पत्नी को अपनी पत्नी की नजर बचाकर चोरी छुपके से ताकने की होड़ में लगे थे। सुनीलजी ने आगे बढ़कर कर्नल साहब के हाथ में हाथ देते हुए उन्हें "गुड मॉर्निंग" कहा और फिर ज्योति से हाथ मिलाकर उनको हल्का सा औपचारिक आलिंगन किया। उनका मन तो करता था की ज्योतिजी को कस के अपनी बाहों में ले, पर बाकी लोगों की नजरें और आसपास में खिड़कियों से झाँक रहे जिज्ञासु पड़ोसियों का ख्याल रखते हुए ऐसा करने का विचार मुल्तवी रखा।
जस्सूजी ने पर फिर भी सुनीता को कस कर अपनी बाहों में लिया और कहा, "तुम बला की खूबसूरत लग रही हो।" और फिर मज़बूरी में अपनी बाहों में से आजाद किया।
उन्हें टैक्सी में स्टेशन पहुँचने में करीब डेढ़ घंटा लगा। ट्रैन प्लेटफार्म पर खड़ी थी। टू टायर ए.सी. कम्पार्टमेंट में ६ बर्थ थीं। चार बर्थ जस्सूजी, ज्योतिजी, सुनीलजी और सुनीता की थीं। अपना और जस्सूजी और ज्योतिजी का सामान लगाने के बाद सुनील ने देखा की साइड की ऊपर की बर्थ पर एक करीब २५ वर्ष की कमसिन लड़की थी। लड़की का सामान बर्थ के निचे लगाने के लिए एक जवान साथ में लिए एक प्रौढ़ से आर्मी अफसर दाखिल हुए।
उस प्रौढ़ आर्मी अफसर ने अपना परिचय ब्रिगेडियर खन्ना (रिटायर्ड) के नाम से दिया। उन्होंने बताया की वह युवा लड़की, जो की उनकी बेटी से भी कम उम्र की होगी, वह उनकी पत्नी थी।
सब इस उधेड़बुन में थे की इतने प्रौढ़ आर्मी अफसर की बीबी इतनी कम उम्र की कैसे हो सकती थी। खैर कुछ देर बाद उन प्रौढ़ आर्मी अफसर के साथ सबकी 'हेलो, हाय' हुई और तब सबको पता चला ब्रिगेडियर खन्ना को अपनी पत्नी के साथ रिज़र्वेशन नहीं मिल पाया था। उन्हें दो कम्पार्टमेंट छोड़ कर रिज़र्वेशन मिला हुआ था। कुछ देर तक बातें करने के बाद जब ट्रैन छूटने वाली थी तब ब्रिगेडियर खन्ना अपने कम्पार्टमेंट में चले गए।
उस के कुछ ही समय बाद कम्पार्टमेंट में साइड वाली निचे की बर्थ पर जिनका रिज़र्वेशन था वह युवा आर्मी अफसर (जिसके यूनिफार्म पर लगे सितारोँ से पता चला की वह कप्तान थे) दाखिल हुए और फिर उन्होंने अपना सामान लगाया। कर्नल की उम्र मुश्किल से पच्चीस या छब्बीस साल की होगी। लगता था की वह अभी अभी राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी से पास हुए थे। उनके सामने ही युवा लड़की नीतू बैठी हुई थी। दोनों ने एक दूसरे से "हेलो, हाय" किया।
ट्रैन ने स्टेशन छोड़ा ही था की कर्नल साहब, सुनील, ज्योति और सुनीता के सामने एक काला कोट और सफ़ेद पतलून पहने टी टी साहब उपस्थित हुए। हट्टाकट्टा बदन, फुले हुए गाल, लम्बे बाल, बढ़ी हुई दाढ़ी और काफी लंबा कद। वह टी टी कम और कोई फिल्म के विलन ज्यादा दिख रहे थे। खैर उन्होंने सब का टिकट चेक किया। टी टी साहब कुछ ज्यादा ही बातें करने के मूड में लग रहे थे। उन्होंने जब सुनीलजी से उनका गंतव्य स्थान (कहाँ जा रहे हो?) पूछा तो कर्नल साहब ने और सुनीलजी ने कोई जवाब नहीं दिया। जब किसी ने कुछ नहीं बोला तो सुनीता ने टी टी साहब को कहा, "हम जम्मू जा रहे हैं।"
टी टी साहब फ़ौरन सुनीता की और मुड़े और बोले, "हां हाँ वह तो मुझे आप के टिकट से ही पता चल गया। पर आप जम्मू से आगे कहाँ जा रहे हैं?"
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