RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
जब फिर सुनीलजी और कर्नल साहब से जवाब नहीं मिला तब टी टी ने सुनीता की और जिज्ञासा भरी नजरों से देखा। फिर क्या था? सुनीता ने उनको सारा प्रोग्राम जो उसको पता था सब टी टी साहब को बता दिया। सुनीता ने टी टी को बताया की वह सब आर्मी के ट्रेनिंग कैंप में जम्मू से काफी दूर एक ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे। सुनीता को जब टी टी ने उस जगह का नाम और वह जगह जम्मू से कितनी दुरी पर थी पूछा तो सुनीता कुछ बता नहीं पायी। सुनीता को उस जगह के बारे में ज्यादा पता नहीं था। चूँकि कर्नल साहब और सुनीलजी बात करने के मूड में नहीं थे इस लिए टी टी साहब थोड़े मायूस से लग रहे थे। उस समय ज्योतिजी नींद में थीं।
सुनील, सुनीता, कर्नल जसवंत सिंह और ज्योतिजी का टिकट चेक करने के बाद टी टी साहब दूसरे कम्पार्टमेंट में चले गए। उन्होंने उस समय और किसी का टिकट चेक नहीं किया।
टी टी के चले जाने के बाद सब ने एक दूसरे को अपना परिचय दिया। साइड की निचे की बर्थ पर स्थित युवा अफसर कप्तान कुमार थे। वह भी ज्योतिजी, जस्सूजी, सुनील और सुनीता की तरह ट्रेनिंग कैंप में जा रहे थे।
देखते ही देखते दोनों युवा: कप्तान कुमार और नीतू खन्ना करीब करीब एक ही उम्र के होने के कारण बातचीत में मशगूल हो गए। नीतू वाकई में निहायत ही खूबसूरत और कटीली लड़की थी। उसके अंग अंग में मादकता नजर आ रही थी। कप्तान कुमार को मिलते ही जैसे नीतू को और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था। कुमार का कसरत से कसा हुआ बदन, मांसल बाज़ूओं के स्नायु और पतला गठीला पेट और कमर और काफी लंबा कद देखते ही नीतू की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी।
कुमार का दिल भी नीतू का गठीला बदन और उसकी मादक आँखें देखते ही छलनी हो गया था। नीतू के अंग अंग में काम दिख रहा था। नीतू की मादक हँसी, उसकी बात करते समय की अदाएं, उसके रसीले होँठ, उसके घने काले बाल, उसकी नशीली सुआकार काया कप्तान को भा गयी थी। कप्तान कुमार की नजर नीतू के कुर्ते में से कूद कर बाहर आने के लिए बेताब नीतू के बूब्स पर बार बार जाती रहती थी। नीतू अपनी चुन्नी बार बार अपनी छाती पर डाल कर उन्हें छुपा ने कीनाकाम कोशिश करती पर हवाका झोंका लगते ही वह खिसक जाती और उसके उरोज कपड़ों के पीछे भी अपनी उद्दंडता दिखाते।
नीतू का सलवार कुछ ऐसा था की उसके गले के निचे का उसके स्तनोँ का उभार छुपाये नहीं छुपता था। नीतू की गाँड़ भी निहायत ही सेक्सी और बरबस ही छू ने का मन करे ऐसी करारी दिखती थी। बेचारा कुमार उसके बिलकुल सामने बैठी हुई इस रति को कैसे नजर अंदाज करे?
सुनीता ने देखा की कुमार और नीतू पहली मुलाक़ात में ही एक दूसरे के दीवाने हों ऐसे लग रहे थे। दोनों की बातें थमने का नाम नहीं ले रहीं थीं। सुनीता अपने मन ही मन में मुस्काई। यह निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है। जब दो युवा एकदूसरे को पसंद करते हैं तो दुनिया की कोई भी ताकत उन्हें मिलने से नहीं रोक सकती। सुनीता को लगा की कहीं यह पागलपन नीतू की शादीशुदा जिंदगी को मुश्किल में ना डाल दे।
कर्नल साहब और सुनील भी उन दो युवाओँ की हरकत देख कर मूंछों में ही मुस्कुरा रहे थे। उनको भी शायद अपनी जवानी याद आ गयी।
सुनील ज्योतिजी की बर्थ पर बैठे हुए थे। ज्योतिजी खिड़की के पास नींद में थीं। जस्सूजी भी सामने की खिड़की वाली सीट पर थे जबकि सुनीता बर्थ की गैलरी वाले छोर पर बैठी थी। कम्पार्टमेंट का ए.सी. काफी तेज चल रहा था। देखते ही देखते कम्पार्टमेंट एकदम ठंडा हो गया था। सुनीता ने चद्दर निकाली अपने बदन पर डाल दी। चद्दर का दूसरा छोर सुनीता ने जस्सूजी को दिया जो उन्होंने भी अपने कंधे पर डाल दी। थोड़ी ही देर में जस्सूजी की आँखें गहरा ने लगीं, तो वह पॉंव लम्बे कर लेट गए। चद्दर के निचे जस्सूजी के पॉंव सुनीता की जाँघों को छू रहे थे।
कप्तान कुमार और नीतू एक दूसरे से काफी जोश से पर बड़ी ही धीमी आवाज में बात कर रहे थे। बिच बिच में वह एक दूसरे का हाथ भी पकड़ रहे थे यह सुनीता ने देखा। उन दोनों की बातों को छोड़ कम्पार्टमेंट में करीब करीब सन्नाटा सा था। ट्रैन छूटे हुए करीब एक घंटा हो चुका था तब एक और टिकट निरीक्षक पुरे कम्पार्टमेंट का टिकट चेक करते हुए सुनीता, सुनील, जस्सूजी और ज्योति जी के सामने खड़े हुए और टिकट माँगा।
उन सब के लिए तो यह बड़े आश्चर्य की बात थी। कर्नल साहब ने टिकट चेकर से पूछा, "टी टी साहब, आप कितनी बार टिकट चेक करेंगे? अभी अभी तो एक टी टी साहब आकर टिकट चेक कर गए हैं। आप एक ही घंटे में दूसरे टी टी हैं। यह कैसे हुआ?"
टी टी साहब आश्चर्य से कर्नल साहब की और देख कर बोले, "अरे भाई साहब आप क्या कह रहे हैं? इस कम्पार्टमेंट ही नहीं, मैं सारे ए.सी.डिब्बों के टिकट चेक करता हूँ। इस ट्रैन में ए.सी. के छे डिब्बे हैं। इन डिब्बों के लिए मेरे अलावा और कोई टी.टी. नहीं है। शायद कोई बहरूपिया आपको बुद्धू बना गया। क्या आपके पैसे तो नहीं गए ना?"
सुनीलजी ने कहा, "नहीं, कोई पैसे हमने दिए और ना ही उसने मांगे।"
टी टी साहब ने चैन की साँस लेते हुए कहा, " चलो, अच्छा है। फ्री में मनोरंजन हो गया। कभी कभी ऐसे बहुरूपिये आ जाते हैं। चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।" यह कह कर टी टी साहब सब के टिकट चेक कर चलते बने।
सुनील ने जस्सूजी की और देखा। जस्सूजी गहरी सोच में डूबे हुए थे। वह चुप ही रहे। सुनीता चुपचाप सब कुछ देखती रही। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था। सुनीता ने अपने दिमाग को ज्यादा जोर ना देते हुए, उस युवा नीतू लड़की को "हाय" किया । उस को अपने पास बुलाया और अपने बाजू में बिठाया और बातचित शुरू हुई। सुनीता ने अपने बैग में से कुछ फ्रूट्स निकाल कर नीतू को दिए। नीतू ने एक संतरा लिया और सुनीता और नीतू बातों में लग गए।
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