RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
नीतू: "ढंग से मिलने का मतलब है आपस में एक दूसरे को जानना एक दूसरे के करीब आने के लिए समय निकालना बगैरह बगैरह। हाँ, मैंने कहा तो था ख्वाब देखने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, पर ख्वाब भी सोच समझ कर देखने चाहिए।"
कुमार: "क्या आप सोच समझ कर ख्वाब देखते हो? क्या ख्वाब पर हमारा कोई कण्ट्रोल होता है क्या?"
नीतू कुमार की बात सुनकर चुप हो गयी। उसके चेहरे पर गंभीरता दिखाई पड़ी। नीतू की आँखें कुछ गीली से हो गयीं। कुमार को यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह नीतू को चुपचाप देखता रहा। सुनीता के चेहरे पर मायूसी देख कर कुमार ने कहा, "मुझे माफ़ करना नीतूजी, अगर मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आपको कोई दुःख हुआ हो। मैं आपको किसी भी तरह का दुःख नहीं देना चाहता।"
नीतू ने अपने आपको सम्हालते हुए कहा, "नहीं कप्तान साहब ऐसी कोई बात नहीं। जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आते हैं जिन्हें आपको झेलना ही पड़ता है और उन्हें स्वीकार कर चलने में ही सबकी भलाई है।"
कुमार: "नीतूजी, पहेलियाँ मत बुझाइये। कहिये क्या बात है।"
नीतू ने बात को मोड़ दे कर कुमार के सवाल को टालते हुए कहा, "कप्तान साहब आप मुझे नीतूजी कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम नीतू है और मुझे आप नीतू कह कर ही बुलाइये।"
नीतू ने फिर अपने आपको सम्हाला। थोड़ा सा सोचमें पड़ने के बाद नीतू ने शायद मन ही मन फैसला किया की वह कुमार को अपनी असलियत (की वह शादी शुदा है) उस वक्त नहीं बताएगी।
कुमार: "तो फिर आप भी सुनिए। आप मुझे कप्तान साहब कह कर मत बुलाइये। मेरा नाम कुमार है। आप मुझे सिर्फ कुमार कह कर ही बुलाइये।"
नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। क्या वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? उसे अपने पति से कोई दिक्क्त नहीं थी। उस ने अपने मन में सोचा सब्र की ऐसी की तैसी। जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? फिर तो अँधेरी रात है ही।
नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"
कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"
जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का इस तरह हाथ नहीं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना देखती ही रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है। नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे सातवें आस्मां पर उठा लेता था।
नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था। कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"
नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"
कुमार: "तो फिर मेरे करीब तो बैठो। देखो अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"
नीतू: "अरे कमाल है। यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"
कुमार: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर आप को कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा। मज़बूरी में नीतू भी उठ खड़ी हुई। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।
नीतू ने हलके से अपने कूल्हे बर्थ पर टिकाये तो कुमार ने उसे हल्का सा अपने करीब खिंच कर कहा, "भाई ठीक से तो बैठो। आखिर हमें काफी लंबा सफर एक साथ तय करना है।"
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