RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
नीतू ने तय किया की अब उसे कुमार को रोकना ही होगा। मन ना मानते हुए भी नीतू उठ खड़ी हुई। उसने अपने कपड़ों को सम्हालते हुए कुमार को कहा, "बस कुमार। प्लीज तुम मुझे और मत छेड़ो। मैं मजबूर हूँ। आई एम् सॉरी।" नीतू से कुमार को यह नहीं कहा गया की कुमार का यह सब कार्यकलाप उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नीतू ने कुमार को साफ़ साफ़ मना भी नहीं किया।
नीतू अपनी बर्थ से उठ कर गैलरी में चल पड़ी। सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं तो देखा की नीतू कम्पार्टमेंट के दरवाजे की और बढ़ने लगी थी और उसके पीछे कुमार भी उठ खड़ा हुआ और नीतू के पीछे पीछे जाने लगा। सुनीता से रहा नहीं गया। सुनीता ने हलके से जस्सूजी के पाँव अपनी गोद से हटाए और धीरे से बर्थ पर रख दिए। जस्सूजी गहरी नींद सो रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी के बदन पर पूरी तरह से चद्दर ओढ़ाकर वह स्वयं उठ खड़ी हुई और कुमार और नीतू की हरकतें देखने उनके पीछे चल पड़ी।
नीतू आगे भागकर कम्पार्टमेंट के दरवाजे के पास जा पहुंची थी। कुमार भी उसके पीछे नीतू को लपक ने के लिए उसके पीछे भाग कर दरवाजे के पास जा पहुंचा था। सुनीता ने देखा की कुमार ने भाग कर नीतू को लपक कर अपनी बाँहों में जकड लिया और उसके मुंह पर चुम्बन करने की कोशिश करने लगा। नीतू भी शरारत भरी हुई हँसी देती हुई कुमार से अपने मुंह को दूर ले जा रही थी।
फिर उससे छूट कर नीतू ने कुमार को अँगुठे से ठेंगा दिखाया और बोली, "इतनी आसानी से तुम्हारे चंगुल में नहीं फँस ने वाली हूँ मैं। तुम फौजी हो तो मैं भी फौजी की बेटी हूँ। हिम्मत है तो पकड़ कर दिखाओ।"
और क्या था? कुमार को तो जैसे बना बनाया निमंत्रण मिल गया। उसने जब भाग कर नीतू को पकड़ ना चाहा तो नीतू कूद कर टॉयलेट में घुस गयी और उसने टॉयलेट का दरवाजा बंद करना चाहा। कुमार ने भाग कर अपने पाँव की एड़ी दरवाजे में लगादी जिस कारण नीतू दरवाजा बंद नहीं कर पायी।
कुमार ने ताकत लगा कर दरवाजा खिंच कर खोला और नीतू के पीछे वह भी टॉयलेट में अंदर घुस गया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। सुनीता जब पहुंची तो दोनों प्रेमी पंछी टॉयलेट में थे और अंदर से नीतू की गिड़गिड़ाने की आवाज आ रही थी। सुनीता ने नीतू को गिड़गिड़ाकर कहते हुए सूना, "कुमार प्लीज मुझे छोड़ दो। यह तुम क्या कर रहे हो? मेरे कपडे मत निकालो। मैं बाहर कैसे निकलूंगी? अरे तुम यह क्या कर रहे हो?"
फिर अंदर से कुमार की आवाज आयी, "डार्लिंग, अब ज्यादा ना बनो जानू, प्लीज। मुझे एक बार तुम्हारे बदन को छू लेने दो। प्लीज बस एक ही मिनट लगेगा। मैं तुम्हें परेशान नहीं करूंगा। प्लीज मुझे छूने दो।"
नीतू: "नहीं कुमार, देखो कोई आ जायेगा। मैं तुम्हें सब कुछ करने दूंगी, पर अभी नहीं, प्लीज" फिर कुछ देर तक शान्ति हो गयी। अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी।
सुनीता ने देखा की एक सज्जन टॉयलेट की और आने की कोशिश कर रहे थे। सुनीता ने टॉयलेट का दरवाजा जोर से खटखटाया और बोली, "नीतू,, कुमार दरवाजा खोलो।"
जैसे ही सुनीता ने दरवाजा खटखटाया की फ़ौरन कुमार ने दरवाजा खोल दिया। सुनीता ने देखा की नीतू की साडी का पल्लू गिरा हुआ था। नितुकी ब्लाउज के बटन खुले हुए थे और वह ब्रा को सम्हाल कर कुमार को रोकने की कोशिश कर रही थी। नीतू के मस्त बूब्स लगभग पुरे ही दिख रहे थे। उसके स्तनोँ को उभार देख कर सुनीता को भी ईर्ष्या हुई। उसके स्तन ब्रा में से ऐसे उठे हुए अकड़ से खड़े दिख रहे थे। नियु की स्तनोँ के एरोला भी दिख रहे थे।
सुनीता ने फुर्ती से नीतू को अपनी बाँहों में लपेट लिया। नीतू की सूरत रोने जैसी हो गयी थी। नीतू को सुनीता ने माँ की तरह अपनी बाँहों में कुछ देर तक जकड रखा और उसके सर पर हाथ फिरा कर उसे ढाढस देने लगी।
कप्तान कुमार खिसिआनि सी शक्ल बना कर सुनीता की और देखता हुआ अपनी सीट पर जाने लगा तो सुनीता ने उसे रोक कर कहा, "देखो कुमार और नीतू। हालांकि मैं तुम्हारी माँ जितनी तो उम्र में नहीं हूँ पर एक बात तुम दोनों को कहना चाहती हूँ। तुम मेरे छोटे भाई बहन की तरह हो। मैं तुम्हें एक दूसरे से मस्ती करने से नहीं रोक रही। पर ऐसे काम का एक समय, मौक़ा और जगह होती है। जो तुम करना चाहते हो वह तुम बेशक करो, मैं तुम्हें मना नहीं कर रही हूँ, पर सही समय, मौक़ा और जगह देख कर करो। परदे के पीछे करो, पर यहां इस वक्त नहीं। अपनी इज्जत अपने हाथ में है। उसे सम्हालो।
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