RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
नीतू का मन डाँवाडोल हो रहा था। वह कुमार के साथ आगे बढे या नहीं? पति (ब्रिगेडियर साहब) ने तो उसे इशारा कर ही दिया था की नीतू को अगर कहीं कुछ मौक़ा मिले तो उसे चोरी छुपी शारीरिक भूख मिटाने से उनको कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते की सारी बात छिपी रहे। नीतू के लिए यह अनूठा मौक़ा था। उसका मनपसंद हट्टाकट्टा हैंडसम नवयुवक उसे ललचा कर, फाँस कर, उससे शारीरिक सम्बन्ध बनानेकी ने भरसक कोशिश में जुटा हुआ था।
अब नीतू पर निर्भर था की वह अपना सम्मान बनाये रखते हुए उस युवक को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करे या नहीं। नीतू ने सोचा यह पहली बार हुआ था की इतना हैंडसम युवक उसे ललचा कर फाँसने की कोशिश कर रहा था। पहले भी कई युवक नीतू को लालच भरी नजर से तो देखते थे, पर किसीभी ऐसे हैंडसम युवक ने आगे बढ़कर उसके करीब आकर उसे ललचाने की इतनी भरसक कोशिश नहीं की थी।
फिर भी भला वह कैसे अपने आप आगे बढ़ कर किसी युवक को कहे की "आओ और मेरी शारीरिक भूख मिटाओ?" आखिर वह भी तो एक मानिनी भारतीय नारी थी। उसे भी तो अपना सम्मान बनाये रखना था।
काफी सोचने के बाद नीतू ने तय किया की जब मौक़ा मिला ही है तो क्यों ना उसका फायदा उठाया जाए? यह मौक़ा अगर चला गया तो फिर तो उसे अपने हाथोँ की उँगलियों से ही काम चलाना पड़ेगा। एक दिन की चाँदनी आयी है फिर तो अँधेरी रात है ही।
नीतू ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा, "कप्तान साहब, सॉरी कुमारजी, शायद आप ख्वाब और असलियत का फर्क नहीं समझते।"
कुमार ने आगे बढ़कर नीतू का हाथ थामा और कहा, "आप ही बताइये ना? मैं तो नौसिखिया हूँ।"
जैसे ही कुमार ने नीतू का हाथ थामा तो नीतू के पुरे बदन में एक बिजली सी करंट मार गयी। नीतू के रोंगटे खड़े हो गए। उस दिन तक ब्रिगेडियर साहब को छोड़ किसीने भी नीतू का हाथ इस तरह नहीं थामा था। नीतू हमेशा यह सपना देखती रहती थी कोई हृष्टपुष्ट युवक उसको अपनी बाँहों में थाम कर उसको गहरा चुम्बन कर, उसकी चूँचियों को अपने हाथ में मसलता हुआ उसे निर्वस्त्र कर उसकी चुदाई कर रहा है।
नीतू को अक्सर सपने में वही युवक बारबार आता था और नीतू का पूरा बदन चूमता, दबाता और मसलता था। कई बार नीतू ने महसूस किया था की वह युवक उसकी गाँड़ की दरार में अपनी उंगलियां डाल कर उसे उत्तेजना और उन्माद के सातवे आसमान पर उठा लेता था।
नीतू ने ध्यान से देखा तो उसे लगा की कहीं ना कहीं कुमार की शक्ल और उसका बदन भी वही युवक जैसा था।
कुमार ने देखा की जब उसने नीतू का हाथ थामा और नीतू ने उसका कोई विरोध नहीं किया और नीतू अपने ही विचारो में खोयी हुई कुमार के चेहरे की और एकटक देख रही थी, तब उसकी हिम्मत और बढ़ गयी। उसने नीतू को अपनी और खींचते हुए कहा, "क्या देख रही हो, नीतू? क्या मैं भद्दा और डरावना दिखता हूँ? क्या मुझमें तुम्हें कोई बुराई नजर आ रही है?"
नीतू अपनी तंद्रा से जाग उठी और कुमार की और देखती हुई बोली, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, क्यों?"
कुमार: "देखो, सब सो रहे हैं। हम जोर से बात नहीं कर सकते। तो फिर मेरे करीब तो बैठो। अगर मैं तुम्हें भद्दा और डरावना नहीं लगता और अगर हमारा पहला परिचय हो चुका है तो फिर इतना दूर बैठने की क्या जरुरत है?"
नीतू: "अरे कमाल है। भाई यह सीट ही ऐसी है। इसके रहते हुए हम कैसे साथ में बैठ सकते हैं? यह बर्थ तो पहले से ही ऐसी रक्खी हुई थी। मैंने थोड़े ही उसे ऊपर की और उठाया है?"
कुमार: "तो फिर मैं उसे नीचा कर देता हूँ अगर तुम्हें कोई आपत्ति ना हो तो?" ऐसा कह कर बिना नीतू की हाँ का इंतजार किये कुमार उठ खड़ा हुआ और उसने बर्थ को निचा करना चाहा। मज़बूरी में नीतू को भी उठना पड़ा। कुमार ने बर्थ को बिछा दिया और उसके ऊपर चद्दर बिछा कर नीतू को पहले बैठने का इशारा किया।
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