RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीता ने देखा तो जस्सूजी भी उसे एकटक देख रहे थे। सुनीता को जस्सूजी की नजरें अपने बदन पर देख कर बड़ी लज्जा महसूस हुई। जब उसने कमरे में स्विमिंग कॉस्च्यूम पहन कर आयने में अपने आप को देखा था तो उसे पता था की उसके करारे स्तन उस सूट में कितने बड़े बाहर की और निकले दिख रहे थे। सुनीता की सुआकार गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। उसके स्विमिंग कॉस्च्यूम की एक छोटी सी पट्टी सुनीता की गाँड़ की दरार में गाँड़ के दोनों गालों के बिच अंदर तक घुसी हुई थी और गाँड़ को छुपाने में पूरी तरह नाकाम थी।
सुनीता जानती थी की उस कॉस्च्यूम में उसकी गाँड़ पूरी नंगी दिख रही थी। सुनीता की गाँड़ के एक गाल पर काला बड़ा सा तिल था। वह भी साफ़ साफ़ नजर आ रहा था। सुनीता की गाँड़ के गालों के बिच में एक हल्का प्यारा छोटा सा खड्डा भी दिखाई देता था। जस्सूजी की नजर उसकी गाँड़ पर गयी यह देख कर सुनीता के पुरे बदन में सिहरन फ़ैल गयी। वह नारी सुलभ लज्जा के कारण अपनी जांघों को एक दूसरे से चिपकाए हुए दोनों मर्दों के सामने खड़ी क्या छिपाने की कोशिश कर रही थी उसे भी नहीं पता था।
आगे सुनीता की चूत पर इतनी छोटी सी उभरी हुई पट्टी थी की उसकी झाँट के बाल अगर होते तो साफ़ साफ़ दीखते। सुनीता ने पहले से ही अपन झाँटों के बाल साफ़ किये थे। सुनीता की चूत का उभार उस कॉस्च्यूम में छिप नहीं सकता था। बस सुनीता की चूत के होँठ जरूर उस छोटी सी पट्टी से ढके हुए थे।
सुनीता शुक्र कर रही थी वह उस समय पूरी तरह गीली थी, क्यूंकि जस्सूजी की जांघों के बिच उन का लम्बा लण्ड का आकार देख कर उसकी जाँघों के बिच से उसकी चूत में से उस समय उसका स्त्री रस चू रहा था। अगर सुनीता उस समय गीली नहीं होती तो दोनों मर्द सुनीता की जाँघों के बिच से चू रहे स्त्री रस को देख कर यह समझ जाते की उस समय वह कितनी गरम हो रही थी।
सुनीता ने अपने पति की और देखा तो वह ज्योतिजी को निहारने में ही खोए हुए थे। स्विमिंग कॉस्च्यूम में ज्योतिजी क़यामत सी लग भी तो रहीं थीं। ज्योतिजी की जाँघें कमाल की दिख रहीं थीं। उन दो जांघों के बिच की उनकी चूत के ऊपर की पट्टी बड़ी मुश्किल से उनकी चूत की खूबसूरती का राज छुपा रहीं थीं। उनकी लम्बी और माँसल जांघें जैसे सारे मर्दों के लण्ड को चुनौती दे रही थीं। वहीँ उनकी नंगी गाँड़ की गोलाई सुनीता की गाँड़ से भी लम्बी होने के कारण कहीं ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं।
ज्योतिजी के घने और घुंघराले गीले बाल उनके पुरे चेहरे पर बिखरे हुए थे, उन्हें वह ठीक करने की कोशिश में लगी हुई थीं। उनकी पतली और लम्बी कमर निचे ज़रा सा पेट उसके निचे अचानक ही फुले हुए नितम्बोँ के कारण गिटार की तरह खूबसूरत लग रहा था। सुनीता और ज्योतिजी के स्तन मंडल एक सरीखे ही लग रहे थे। हालांकि ज्योतिजी का गिला कॉस्च्यूम थोड़ा ज्यादा महिम होने के कारण उनकी दो गोलाकार चॉकलेटी रंग के एरोला के बिच में स्थित फूली हुई गुलाबी निप्पलोँ की झाँखी दे रहा था।
ज्योति की नीली आँखें शरारती होते हुए भी उनकी गंभीरता दर्शा रहीं थीं। सब से ज्यादा कामोत्तेजक ज्योतिजी के होँठ थे। उन होँठों को मोड़कर कटाक्ष भरी आँखों से देखने की ज्योतिजी की अदा जवाँ मर्दों के लिए जान लेवा साबित हो सकती थीं। जस्सूजी उस बात का जीता जागता उदाहरण थे।
दोनों कामिनियाँ अपने हुस्न की कामुकता के जादू से दोनों मर्दों को मन्त्रमुग्ध कर रहीं थीं। सुनीलजी तो ज्योतिजी के बदन से आँखें ऐसे गाड़े हुए थे की सुनीता ने उनका हाथ पकड़ कर उन्हें हिलाया और कहा, "चलोजी, हम झरने की और चलें?" तब कहीं जा कर सुनीलजी इस धराधाम पर वापस लौटे।
सुनीता अपने पति सुनीलजी से चिपक कर ऐसे चल रही थी जिससे जस्सूजी की नजर उसके आधे नंगे बदन पर ना पड़े। ज्योतिजी को कोई परवाह नहीं थी की सुनीलजी उनके बदन को कैसे ताड़ रहे थे। बल्कि सुनीलजी की सहूलियत के लिए ज्योति अपनी टांगों को फैलाकर बड़े ही सेक्सी अंदाज में अपने कूल्हों को मटका कर चल रही थी जिससे सुनीलजी को वह अपने हुस्न की अदा का पूरा नजारा दिखा सके।
सुनीलजी का लण्ड उनकी निक्कर में फर्राटे मारा रहा था। दोनों कामिनियों का जादू दोनों मर्दों के दिमाग में कैसा नशा भर रहा था वह सुनीलजी ने देखा भी और महसूस भी किया। सुनील बार बार अपनी निक्कर एडजस्ट कर अपने लण्ड को सीधा और शांत रखने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। ज्योतिजी ने उनसे काफी समय से कुछ भी बात नहीं की थी। इस वजह से उन्हें लगा था की शायद ज्योति उनसे नाराज थीं।
सुनीलजी जानने के लिए बेचैन थे की क्या वजह थी की ज्योतिजी उनसे बात नहीं कर रही थी। जैसे ही ज्योतिजी झरने की और चल पड़ी, सुनीलजी भी सुनीता को छोड़ कर भाग कर ज्योति के पीछे दौड़ते हुए चल दिए और ज्योतिजी के साथ में चलते हुए झरने के पास पहुंचे। सुनीता अपने पति के साथ चल रही थी। पर अपने पति सुनीलजी को अचानक ज्योतिजी के पीछे भागते हुए देख कर उसे अकेले ही चलना पड़ा।
सुनीता के बिलकुल पीछे जस्सूजी आ रहे थे। सुनीता जानती थी की उसके पीछे चलते हुए जस्सूजी चलते चलते सुनीता के मटकते हुए नंगे कूल्हों का आनंद ले रहे होंगे। सुनीता सोच रही थी पता नहीं उस की नंगी गाँड़ देख कर जस्सूजी के मन में क्या भाव होते होंगे? पर बेचारी सुनीता, करे तो क्या करे? उसी ने तो सबको यहाँ आकर नहाने के लिए बाध्य किया था।
सुनीता भलीभांति जानती थी की जस्सूजी भले कहें या ना कहें, पर वह उसे चोदने के लिए बेताब थे। सुनीता ने भी जस्सूजी के लण्ड जैसा लण्ड कभी देखा क्या सोचा भी नहीं था। कहीं ना कहीं उसके मन में भी जस्सूजी के जैसा मोटा और लंबा लण्ड अपनी चूत में लेनेकी ख्वाहिश जबरदस्त उफान मार रही थी। सुनीता के मन में जस्सूजी के लिए इतना प्यार उमड़ रहा था की अगर उसकी माँ के वचन ने उसे रोका नहीं होता तो वह शायद तब तक जस्सूजी से चुदवा चुदवा कर गर्भवती भी हो गयी होती।
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