RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
सुनीलजी ने कहा, "आप मेरे साथ बड़ी गंभीरता से पेश आते हैं। मुझे अच्छा नहीं लगता। जिंदगी में वैसे ही बहुत उलझन, ग़म और परेशानियाँ हैं। जब हम दोनों अकेले में मिलते हैं तब मैं चाहता हूँ की कुछ अठखेलियाँ हो, कुछ शरारत हो, कुछ मसालेदार बातें हों। यह सच है की मैं आपकी गंभीरता, बुद्धिमत्ता और ज्ञान से बहुत प्रभावित हूँ।
पर वह बातें हम तब करें जब हम एक दूसरे से औपचारिक रूप से मिलें। जब हम इतने करीब आ गए हैं और उसमें भी जब हम मज़े करने के लिए मिलते हैं तो फिर भाड़ में जाए औपचारिकता! हम एक दूसरे को क्यों "आप" कह कर और एक दूसरे के नाम के साथ "जी" जोड़ कर निरर्थक खोखला सम्मान देने का प्रयास करते हैं? ज्योति तुम्हारा जो खुल्लमखुल्ला बात करने का तरिका है ना, वह मुझे खूब भाता है। उसके साथ अगर थोड़ी शरारत और नटखटता हो तो क्या बात है!"
ज्योति सुनील की बातें सुन थोड़ी सोच में पड़ गयीं। उन्होंने नज़रें उठाकर सुनीलजी की और देखा और पूछा, " सुनील तुम सुनीता से बहोत प्यार करते हो। है ना?"
सुनील ज्योति की बात सुनकर कुछ झेंप से गए। उन दोनों के बिच सुनीता कहाँ से आ गयी? सुनील के चेहरे पर हवाइयां उड़ती हुई देख कर ज्योति ने कहा, "जो तुम ने कहा वह सुनीता का स्वभाव है। मैं ज्योति हूँ सुनीता नहीं। तुम क्या मुझमें सुनीता ढूँढ रहे हो?"
यह सुनकर सुनील को बड़ा झटका लगा। सुनील सोचने लगे, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी? उन्होंने अपने आपको सम्हालते हुए ज्योति के करीब जाकर कहा, "हाँ यह सच है की मैं सुनीता को बहुत प्यार करता हूँ। तुम भी तो जस्सूजी को बहुत प्यार करती हो। बात वह नहीं है। बात यह है की जब हम दोनों अकेले हैं और जब हमें यह डर नहीं की कोई हमें देख ना ले या हमारी बातें सुन ना लें तो फिर क्यों ना हम अपने नकली मिजाज का मुखौटा निकाल फेंके, और असली रूप में आ जायें? क्यों ना हम कुछ पागलपन वाला काम करें?"
"अच्छा? तो मियाँ चाहते हैं, की मैं यह जो बिकिनी या एक छोटासा कपडे का टुकड़ा पहन कर तुम्हारे सामने मेरे जिस्म की नुमाइश कर रही हूँ, उससे भी जनाब का पेट नहीं भरा? अब तुम मुझे पूरी नंगी देखना चाहते हो क्या?" शरारत भरी मुस्कान से ज्योति सुनीलजी की और देखा तो पाया की सुनील ज्योति की इतनी सीधी और धड़ल्ले से कही बात सुनकर खिसियानी सी शक्ल से उनकी और देख रहे थे।
ज्योति कुछ नहीं बोली और सिर्फ सुनील की और देखते ही रहीं। सुनील ने ज्योति के पीछे आकर ज्योति को अपनी बाहों में ले लिया और ज्योति के पीछे अपना लण्ड ज्योति की गाँड़ से सटा कर बोले, "ऐसे माहौल में मैं ज्योतिजी नहीं ज्योति चाहता हूँ।"
ज्योति ने आगे झुक कर सुनील को अपने लण्ड को ज्योति की गाँड़ की दरार में सटा ने का पूरा मौक़ा देते हुए सुनीलजी की और पीछे गर्दन घुमाकर देखा और बोली, "मैं भी तो ऐसे माहौल में इतने बड़े पत्रकार और बुद्धिजीवी सुनीलजी नहीं सिर्फ सुनील को ही चाहती हूँ। मैं महसूस करना चाहती हूँ की इतने बड़े सम्मानित व्यक्ति एक औरत की और आकर्षित होते हैं तो उसके सामने कैसे एक पागल आशिक की तरह पेश आते हैं।"
सुनील ने कहा, "और हाँ यह सच है की मैं यह जो कपडे का छोटासा टुकड़ा तुमने पहन रखा है, वह भी तुम्हारे तन पर देखना नहीं चाहता। मैं सिर्फ और सिर्फ, भगवान ने असलियत में जैसा बनाया है वैसी ही ज्योति को देखना चाहता हूँ। और दूसरी बात! मैं यहां कोई विख्यात सम्पादक या पत्रकार नहीं एक आशिक के रूप में ही तुम्हें प्यार करना चाहता हूँ।"
पर ज्योति तो आखिरमें ज्योति ही थी ना? उसने पट से कहा, "यह साफ़ साफ़ कहो ना की तुम मुझे चोदना चाहते हो?"
सुनील ज्योति की अक्खड़ बात सुनकर कुछ झेंप से गए पर फिर बोले, "ज्योति, ऐसी बात नहीं है। अगर चुदाई प्यार की ही एक अभिव्यक्ति हो, मतलब प्यार का ही एक परिणाम हो तो उसमें गज़ब की मिठास और आस्वादन होता है। पर अगर चुदाई मात्र तन की आग बुझाने का ही एक मात्र जरिया हो तो वह एक तरफ़ा स्वार्थी ना भी हो तो भी उसमें एक दूसरे की हवस मिटाने के अलावा कोई मिठास नहीं होती।"
सुनील की बात सुन ज्योति मुस्कुरायी। उसने सुनील के हाथों को प्यार से अपने स्तनोँ को सहलाते हुए अनुभव किया।
अपने आपको सम्हालते हुए ज्योति ने इधर उधर देखा। वह दोनों वाटर फॉल के दूसरी और जा चुके थे। वहाँ एक छोटा सा ताल था और चारों और पहाड़ ही पहाड़ थे। किनारे खूबसूरत फूलों से सुसज्जित थे। बड़ा ही प्यार भरा माहौल था।
सुनीलजी और ज्योति दोनों ही एक छोटी सी गुफा में थे ओर गुफा एक सिरे से ऊपर पूरी खुली थी और सूरज की रौशनी से पूरी तरह उज्जवलित थी। जैसा की जस्सूजी ने कहा था, यह जगह ऐसी थी जहां प्यार भरे दिल और प्यासे बदन एक दूसरे के प्यार की प्यास और हवस की भूख बिना झिझक खुले आसमान के निचे मिटा सकते थे। प्यार भरे दिल और वासना से झुलसते हुए बदन पर निगरानी रखने वाला वहाँ कोई नहीं था।
सुनीता और जस्सूजी वाटर फॉल के दूसरी और होने के कारण नजर नहीं आ रहे थे। ज्योति अपनी स्त्री सुलभ जिज्ञासा को रोक नहीं पायी और ज्योति ने वाटर फॉल के निचे जाकर वाटर फॉल के पानी को अपने ऊपर गिरते हुए दूर दूसरे छोर की और नज़र की तो देखा की उसके पति जस्सूजी झुके हुए थे और उनकी बाँहों में सुनीता पानी की परत पर उल्टी लेटी हुई हाथ पाँव मारकर तैरने के प्रयास कर रही थी।
ज्योति जानती थी की उस समय सुनीता के दोनों बूब्स जस्सूजी की बाँहों से रगड़ खा रहे होंगे, जस्सूजी की नजर सुनीता की करारी नंगी गाँड़ पर चिपकी हुई होगी। सुनीता को अपने इतने करीब पाकर जस्सूजी का तगड़ा लण्ड कैसे उठ खड़ा हो गया होगा यह सोचना ज्योति के लिए मुश्किल नहीं था।
पता नहीं शायद सुनीता को भी जस्सूजी का खड़ा और मोटा लण्ड महसूस हुआ होगा। अपने पति को कोई और औरत से अठखेलियां करते हुए देख कर कुछ पलों के लिए ज्योति के मन में स्त्री सुलभ इर्षा का अजीब भाव उजागर हुआ। यह स्वाभाविक ही था। इतने सालों से अपने पति के शरीर पर उनका स्वामित्व जो था!
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