RE: DesiMasalaBoard साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन
ज्योति को सुनीलजी के चेहरे के भाव देख कर हँसी आ गयी। वह अपनी आँखें नचाती हुई बोली, "अच्छा जनाब! आप कामातुर औरत की भाषा भी नहीं समझते? अरे अगर भारतीय नारी जब त्रस्त हो कर कहती है 'खबरदार आगे मत बढ़ना' तो इसका तो मतलब है साफ़ "ना"। ऐसी नारी से जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। पर वह जब वासना की आग में जल रही होती है और फिर भी कहती है, "छोडो ना? मुझे जाने दो।", तो इसका मतलब है "मुझे प्यार कर के मना कर चुदवाने के लिए तैयार करो तब मैं सोचूंगी।" पर वह जब मुस्काते हुए कहती है "मैं सोचूंगी" तो इसका मतलब है वह तुम्हें मन ही मन से कोस रही है और इशारा कर रह है की "मैं तैयार हूँ। देर क्यों कर रहे हो?" अगर वह कहे "हाँ" तो समझो वह भारतीय नहीं है।"
सुनीलजी ज्योति की बात सुनकर हंस पड़े। उन्होंने कहा, "तो फिर आप क्या कहती हैं?"
ज्योति ने शर्मा कर मुस्काते हुए कहा, "मैं सोचूंगी।"
सुनील ने फ़ौरन ज्योति की गाँड़ में अपनी निक्कर में फर्राटे मार रहा अपना लण्ड सटा कर ज्योति के करारे स्तनोँ को उसकी बिकिनी के अंदर अपनी उंगलियां घुसाकर उनको मसलते हुए कहा, "अब मैं सिर्फ देखना नहीं और भी बहुत कुछ चाहता हूँ। पर सबसे पहले मैं अपनी ज्योति को असली ज्योति के रूप में बिना किसी आवरण के देखना चाहता हूँ।" ऐसा कह कर सुनील ने ज्योति की कॉस्च्यूम के कंधे पर लगी पट्टीयों को ज्योति की दोनों बाजुओं के निचे की और सरका दीं।
जैसे ही पट्टियाँ निचे की और सरक गयीं तो सुनील ने उनको निचे की और खिसका दिया और ज्योति के दोनों उन्मत्त स्तनों को अनावृत कर दिए। ज्योति के स्तन जैसे ही नंगे हो गए की सुनील की आँखें उनपर थम ही गयीं। ज्योति के स्तन पुरे भरे और फुले होने के बावजूद थोड़े से भी झुके हुए हैं नहीं थे।
ज्योति के स्तनों की चोटी को अपने घेरे में डाले हुए उसके गुलाबी एरोला ऐसे लगते थे जैसे गुलाबी रंग का छोटा सा जापानी छाता दो फूली हुई निप्पलोँ के इर्दगिर्द फ़ैल कर स्तनोँ को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे हों। बीचो बिच फूली हुई निप्पलेँ भी गुलाबी रंग की थीं। एरोला की सतह पर जगह जगह फुंसियां जैसी उभरी हुईं त्वचा स्तनों की खूबसूरती में चार चाँद लगा देती थीं। साक्षात् मेनका स्वर्ग से निचे उतर कर विश्वामित्र का मन हरने आयी हो ऐसी खूबसूरती अद्भुत लग रही थी।
ज्योति की कमर रेत घडी के सामान पतली और ऊपर स्तनोँ काऔर निचे कूल्हों के उभार के बिच अपनी अनूठी शान प्रदर्शित कर रही थी। ज्योति की नाभि की गहराई कामुकता को बढ़ावा दे रही थी। ज्योति की नाभि के निचे हल्का सा उभार और फिर एकदम चूत से थोडासा ऊपर वाला चढ़ाव और फिर चूत की पंखुडियों की खाई देखते ही बनती थी। सबसे ज्यादा खूबसूरत ज्योति की गाँड़ का उतारचढ़ाव था। उन उतारचढ़ाव के ऊपर टिकी हुई सुनील की नजर हटती ही नहीं थी। और उस गाँड़ के दो खूबसूरत गालों की तो बात ही क्या?
उन दो गालों के बिच जो दरार थी जिसमें ज्योति की कॉस्च्यूम के कपडे का एक छोटासा टुकड़ा फँसा हुआ था वह ज्योति की गाँड़ की खूबसूरती को ढकने में पूरी तरह असफल था।
सुनील की धीरज जवाब देने लगी। अब वह ज्योति को पूरी तरह अनावृत (याने नग्न रूप में) देखना चाहते थे। सुनील ने ज्योति की कमर पर लटका हुआ उनका कॉस्च्यूम और निचे, ज्योति के पॉंव की और खिसकाया। ज्योति ने भी अपने पाँव बारी बारी से उठाकर उस कॉस्च्यूम को पाँव के निचे खिसका कर झुक कर उसे उठा लिया और किनारे पर फेंक दिया। अब ज्योति छाती तक गहरे पानी में पूरी तरह नंगी खड़ी थी।
ना चाहते हुए भी सुनील नग्न ज्योति की खूबसूरती की नंगी सुनीता से तुलना करने से अपने आपको रोक ना सका। हलांकि सुनीता भी बलाकि खूबसूरत थी और नंगी सुनीता कमाल की सुन्दर और सेक्सी थी, पर ज्योति में कुछ ऐसी कशिश थी जो अतुलनीय थी। हर मर्द को अपनी बीबी से दूसरे की बीबी हमेशा ज्यादा ही सुन्दर लगती है।
सुनील ने नंगी ज्योति को घुमा कर अपनी बाँहों में आसानी से उठा लिया। हलकीफुलकी ज्योति को पानी में से उठाकर सुनील पानी के बाहर आये और किनारे रेत के बिस्तर में उसे लिटा कर सुनील उसके पास बैठ गए और रेत पर लेटी हुई नग्न ज्योति के बदन को ऐसे प्यार और दुलार से देखने लगे जैसे कई जन्मों से कोई आशिक अपनी माशूका को पहली बार नंगी देख रहा हो।
ऐसे अपने पुरे बदन को घूरते हुए देख ज्योति शर्मायी और उसने सुनीलकी ठुड्डी अपनी उँगलियों में पकड़ कर पूछा, "ओये! क्या देख रहे हो? इससे पहले किसी नंगी औरत को देखा नहीं क्या? क्या सुनीता ने तुम्हें भी अपना पूरा नंगा बदन दिखाया नहीं?"
ज्योति की बात सुनकर सुनील सकपका गए और बोले, "ऐसी कोई बात नहीं, पर ज्योति तुम्हारी सुंदरता कमाल है। अब मैं समझ सकता हूँ की कैसे जस्सूजी जैसे हरफनमौला आशिक को भी तुमने अपने हुस्न के जादू में बाँध रखा है।"
|